मध्यप्रदेश में तो सरकार ने छपाक को टैक्स फ्री भी कर दिया है। वास्तव में छपाक दर्शनीय फिल्म है। इसलिए नहीं कि यह एसिड अटैक पर आधारित है, बल्कि इसलिए की इसमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने की कोशिश करने वालों की जीत की कहानी है। फिल्म बताती है कि दुनिया में सबकुछ बुरा ही बुरा नहीं हो रहा है। न्याय व्यवस्था के प्रति यह फिल्म आस्था जगाती है कि देर से ही सही पर न्याय के लिए लड़ा जरूर जाना चाहिए। एसिड अटैक के बहाने इसमें समाज में महिलाओं के प्रति बदले की भावना, समाज के सकारात्मक सोच वाले लोगों की पहल और जातिगत हिंसा को भी छूने की कोशिश की गई है। कहानी के खलनायक की जाति से संबंधित दुष्प्रचार भी झूठा साबित होता है। किसी वर्ग की जाति या धर्म छुपाने की कोशिश नहीं की गई है।
दीपिका पादुकोण की तारीफ इसलिए की जानी चाहिए कि उन्होंने एक ऐसी किरदार निभाने का साहस दिखाया, जो उनके वास्तविक जीवन से मेल नहीं खाता। किसी केलेण्डर गर्ल के लिए यह कोई आसान बात नहीं है। लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित भूमिका को निभाने का फैसला करना जेएनयू में जाने से लाख गुना बड़ा कठिन और महत्वपूर्ण फैसला रहा होगा। एक ऐसे चरित्र को निभाना जिसे देखते ही लोग डर के मारे चीखने लगते हो। एक ऐसे चरित्र को पर्दे पर निभाना, जो जीवन के रोजमर्रा संघर्ष से जूझते हुए कानून में बदलाव की लड़ाई लड़ता हो, जिसके घर वाले भी पूरी तरह साथ नहीं दे पा रहे हो, आर्थिक परेशानियां अलग हो। फिल्म के एक दृश्य में एक एनजीओ के संचालक मित्र से वह कहती हैं कि तुम कोई सरकार हो कि मुझे तुमसे डर लगे। इस पात्र के बहाने मेघना बोस्की गुलजार ने बहुत कुछ कह दिया है।
फिल्म में बहुत से बातें प्रतीकों में कही गई है। इंटरवल के पहले तक फिल्म की नायिका तेजाब से झुलसे अपने चेहरे को दुपट्टे में छुपाए रहती है। सेशन्स कोर्ट में उसके पक्ष में फैसला आने के बाद वह कोर्ट परिसर में आती है और खुशी से चीखते हुए अपना दुपट्टा हवा में उछाल देती है और इस तरह अपने चेहरे को समाज के सामने बाध्य कर देती है कि वह उसे सम्मानीय तरीके से स्वीकारे। एक छोटी सी नोंक-झोंक में वह अपने मित्र से रुठती है और अगले ही क्षण तेज हवा से टेबल पर रखी फाइल के तमाम दस्तावेज उड़कर कमरे में फेल जाते है और वे दोनों मिलकर जमीन पर बिखरे दस्तावेज उठाने लगते है। यहां लगता है कि मेघना गुलजार भी पर्दे पर मौजूद है। फिल्म का निर्देशन बहुत ही उम्दा है। साथ ही एडिटिंग, सिनेमाटोग्राफी, शंकर एहसान लाय का संगीत, गुलजार के गाने और अरिजित सिंह की आवाज सबकुछ अच्छा होते हुए भी कचोटता है।
दीपिका पादुकोण के सामने अमोल की भूमिका में विक्रांत मेसी हैं, जिन्होंने कही भी दीपिका से कमतर अभिनय नहीं किया है। यह फिल्म दीपिका पादुकोण का प्रॉडक्शन भी है। इसकी घोषणा उन्होंने 24 दिसम्बर 2018 को टि्वटर पर की थी। राज कपूर की फिल्म सत्यम शिवन सुंदरम में भी नायिका का चेहरा असुंदर दिखाने की कोशिश की गई थी, क्योंकि जलने से नायिका का आधा चेहरा जल जाता है और वह अपनी पूरी फिल्म में आंचल से आधे चेहरे को छुपाए रहती है। इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है। फिल्म की कहानी के अनुसार दीपिका के चेहरे सुंदर से बेहद वीभत्स और फिर 7 ऑपरेशनों के बाद धीरे-धीरे सामान्य से कुछ कम नजर आते है। अकीरा फिल्म में भी एसिड अटैक दिखाया गया था, लेकिन वहां नायिका सोनाक्षी सिन्हा एसिड अटैक करने वालों को सबक सिखाती है।
छपाक देखनीय फिल्म है। पहली ही फुर्सत में देख डालिए। यह आपका मनोरंजन शायद न करें, पर सोचने-समझने में मदद करेगी।