फिल्म मलंग फिल्म प्रमाणन बोर्ड के नए डिजाइन के प्रमाण पत्र के साथ शुरू होती है, जिसमें अक्षय कुमार और नंदू के सेनेटरी पैड के विज्ञापन के बाद कबीर की दो लाइन स्क्रीन पर आती है - ‘नींद निशानी मौत की, जाग कबीरा जाग और रसायन छांड़िके, नाम रसायन लाग।’ मलंग फिल्म बनाने वाले ने मलंग का अर्थ समझ लिया है टोटल गैरजिम्मेदार आदमी, जो केवल अपनी मस्ती के लिए ही जीता है। न वह अपना सोचता है, न परिवार का, न समाज का और देश या इंसानियत के बारे में तो सोचने की कोई बात ही नहीं।
मलंग देखो तो लगता है कि गोवा के सभी पुलिस वाले भ्रष्ट और हत्यारे है। यह भी लगता है कि गोवा आने वाली लड़कियां नशे की आदी हो जाती है और फिर जिस्मफरोशी करने लगती है। गोवा में तमाम तरह के ड्रग्स खुलेआम बिकते है और पुलिस वाले भी ड्रग्स का उपयोग करते है। फिल्म देखो तो यह भी लगता है कि जिस्मफरोशी करने वाली औरतें बहुत अच्छी होती है और जिन मां-बाप में अलगाव हो जाता है, उनके बच्चे इंसानियत का मतलब भूल जाते है।
मलंग फिल्म बनाने के लिए कुछ दृश्यों की कल्पना की गई और फिर जबरदस्ती कहानी बुन दी गई। अमिताभ बच्चन की आखिरी रास्ता फिल्म बदले की भावना पर केन्द्रित थी और मलंग भी बदले की भावना वाली थीम पर ही है। फिल्म में बदले की भावना डाली, बलात्कार की कोशिशों के दृश्य, खुलेपन की बातें, थोड़े किसिंग सीन, फाइटिंग के धमाकेदार बेमतलब करतब, थोड़ा नाचगाना और ग्लिसरिन वाले इमोशन। यही है मलंग की रेसिपी। इस फिल्म में आदित्य राय कपूर बाहुबलि के भल्लाल देव (राना दग्गुबाटि) की तरह नजर आते है। इस फिल्म को देखकर लगता है कि अनिल कपूर के अभिनय में काफी वैरायटी है और वे दूसरे अमिताभ साबित हो सकते हैं।
यह फिल्म ऐसे दो युवाओं की कहानी है, जो पीठ पर बैकपेक लादकर थोड़े पैसे और ठेर सारा कांफिडेंस के सहारे दुनिया देखने निकल पड़ते हैं। वे हर चीज देखना और करना चाहते है। किसी अनजान के साथ एकांत में रात बिताना चाहते है, ऊंचाई से कूदना चाहते है, तरह-तरह के नशे का आनंद लेना चाहते है और कहते है कि हम सिर्फ अपने और अपने लिए जीने की हफरत रखते है। न दोस्तों के लिए जीना चाहते है, न परिवार के साथ। यह उन लोगों की कहानी है, जिन्हें मजा चाहिए, सुकून नहीं। उन्हें पता है कि गर्व फिल्म सिम्पल होती है, बीवी नहीं और उस जगह रहना बहुत मुश्किल होता है, जहां यादे रहती हो। यह पीड़ी सोचती है कि गर्लफ्रेंड शादी के बाद बीवी कम और मां ज्यादा बन जाती है। हिंसा के दृश्य अतिरेक में दिखाए गए है। इस डायलॉग के साथ कि बदले में हमेशा दो कब्रें खोदना पड़ती है और कोई भी डर जीवन में एक ही बार लगता है बार-बार नहीं।
फिल्म में नयनाभिराम दृश्य है। जितना अंग प्रदर्शन दिशा पटानी ने किया है, आदित्य राय कपूर ने भी उससे कम नहीं किया। भूलकर देखने के लिए दो घंटे की मलंग ठीक-ठाक टाइम पास है। खेल खतम पैसा हजम। गोवा की पुलिस और पर्यटन विभाग को इस फिल्म पर मानहानि का दावा ठोकना चाहिए, न तो वहां की पुलिस ऐसी है और न ही वहां के लोग। हां, इंटरवल में अगर आप बाहर जाएं, तो पॉपकार्न खरीदने की लाइन में ज्यादा वक्त न गंवाए, क्योंकि इंटरवल के बाद पहले ही सीन में कहानी के मोड़ को दिखाया गया है।