अगर आप 1990 और 2020 के दो प्रेमी जोड़ों की टेंशन अपने सिर में डाउनलोड करना चाहते हैं, तो वेलेंटाइन्स डे पर यह कर सकते हैं। यह फिल्म ऐसे युवक-युवती की कहानी है, जो युवावस्था में केवल मस्ती और संभावनाओं को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। जो लोग यह मानते हैं कि प्यार दिल से करना चाहिए, लेकिन शादी दिमाग के अनुसार। जिंदगी में पैसा कमाना बहुत जरूरी है और वास्तव में ज्यादा पास आना, असल में दूर जाना होता है। यह पीढ़ी समझती है कि प्यार में सीरियस होना कोई अच्छी बात नहीं है। इस तरह दो पीढ़ियों के दो युगल की कहानी एक साथ चलती रहती है। एक फ्लैशबैक में है और दूसरी रियल टाइम में। वेलेंटाइन्स डे के अवसर को भुनाने में जुटे बाजार की भीड़ में इम्तियाज अली की यह फिल्म भी शामिल हो गई।
फिल्म के एक दृश्य में सारा अली खान आंखों में आंसू लेकर हीरो कार्तिक से कहती हैं कि अब तुम मुझे तंग करने लगे हो। पूरी फिल्म में दर्शक यही डायलॉग निर्देशक के बारे में बोलते रहे होंगे। सोचा न था, जब वी मेट, लव आज कल (2009), तमाशा, रॉकस्टार जैसी फिल्में बनाने वाले इम्तियाज अली ने इस फिल्म में बहुत से प्रयोग किए हैं। यह फिल्म 11 साल पुरानी फिल्म की कहानी की ही तरह है। प्रेम कहानी थोड़ी अलग है और फिल्म में उलझनें ही उलझनें हैं। कई बार तो लगता है कि हीरो हीरोइन ऐसी बकवास करते हैं कि उन्हें पर्दे से खींचकर थप्पड़ रसीद कर दिया जाए।
दो प्रेम कहानियां समानांतर चलती है। रणदीप हुड्डा तमाम ठोकरें खाने के बाद रेस्टोरेंट और कैफे हाउस चलाते हैं। उनका कैफे को-वर्किंग प्लेस भी है, जहां युवक-युवतियां अपने-अपने प्रोजेक्ट में जुटे रहते है। पिछली फिल्म में ऋषि कपूर वाले किरदार में रणदीप हुड्डा ने प्रभावशाली एक्टिंग की है। फिल्म का तकनीकी पक्ष बहुत दमदार है और संगीत भी मधुर है, लेकिन यह फिल्म मनोरंजन के बजाय सरदर्द का कारण ज्यादा बनती है। दर्शक न तो फिल्म को एंजाय कर पाता है और न ही रो पाता है। इसी नाम की पिछली फिल्म ब्लॉकबस्टर थी, लेकिन यह फिल्म दर्शकों को उतनी पसंद नहीं आ रही है। युवा वर्ग के दर्शकों के लिए जितनी गहराई की फिल्म बनाने की कोशिश की गई है, वह गहराई अंधेरे में जाकर डूब गई है।
मुंबई फिल्म उद्योग की प्रेम कहानियां अक्सर सफल रही है। उनमें काफी ट्रेजडी भी होती है। इस फिल्म में ट्रेजडी के नाम पर हीरो और हीरोइन की एक्टिंग ही है। प्यार करने वाले युवा समझ ही नहीं पाते कि वे प्यार करना चाहते है या नहीं और वे प्यार को महत्व देते है या अपने करियर को। कहा जा सकता है कि यह फिल्म दिमाग वाले दर्शकों के लिए बनाई गई है, लेकिन जनाब दिमाग वाले दर्शक बॉलीवुड की प्रेम कहानियां थोड़े ही देखते है। फिल्म में आधुनिक दिखाने के फेर में किरदार बनावटी हो गए हैं। कभी वे एक दम भावुक हो जाते हैं और कभी एकदम दुनियादार। अगर आप दिमाग या दिल से युवा हैं और वेलेंटाइन्स डे मनाना चाहते हैं, तो इम्तियाज अली के नाम पर दो-चार सौ रुपये खर्च कर सकते हैं और अगर आप सचमुच प्रेम में है, तो वेलेंटाइन्स डे पर फिल्म देखने क्यों जाना?