गोयनका प्रतिष्ठान का पहला पत्रकारिता पुरस्कार वी.के. नरसिंहन नामक ऐसे पत्रकार को मिला है, जिनकी दिलचस्पी अपने बारे में बताने में कभी नहीं रही। उन्होंने राजनीति के बारे में ही ज्यादा लिखा, लेकिन कभी राजनीति की नहीं।बम्बई में ‘इंडियन एक्यप्रेस’ के उनके पुराने साथी आज भी उन्हें ऐसे आदमी सम्पादकीय तो लिख सकते हैं, लेकिन जिन्हें प्रशासन का काम बिल्कुल नहीं आता। जो विजयी है, लेकिन सिद्धान्तप्रिय भी, जो सही बात सोचते है तो उसे लिखने का माद्दा भी रखते हैं। जो राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ भारतीय दर्शन और संगीत में भी रूचि रखते हैं।
पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त यह चर्चा थी कि अगर विधान सभा पर भगवा फहराने की नौबत आई तो हो सकता है कि भगवा फहराने वाले का नाम छगन भुजबल हो। आखिर वे बाल ठाकरे के बाद शिव सेना के शीर्ष नेताओं में गिने जाते है। मगर इस १५ अगस्त को उन्हें मनपा कार्यालय पर ही तिरंगा फहरा कर ही संतोष कर लेना पड़ेगा।
ऐसे माहौल में, जब शीर्ष पत्रकार सरकार से या विपक्ष से सीधे जुड़े हों, कम ही पत्रकार है जो व्यक्तियों और सरकारी पदां से नहीं, विचारों से जुड़े होते है। कुलदीप नैयर ऐसे ही है। खबर है कि उन्हें ब्रिटेन में भारत का उच्च युक्त बनाया जा रहा है।
अमेरिका में बिना किसी छात्रवृत्ति के जाकर पढ़ाई करनेवाले कुलदीप नैयर ने वकालत का पैशा अपनाया था। उन्होंने सोचा नहीं था कि वे अखबारनवीसी करेंगे। पत्रकारिता भी शुरू की, तो उर्दू अखबार के संपादक के रूप में। यह जानना भी प्रेरक है कि उन्होंने अमेरिका में अपनी पढ़ाई का खर्चा कॉलेज होस्टल में साफ-सफाई करके निकाला।
कमलनाथ विदेशी बैंकों में खातों के मामले को लेकर सुर्खियों में है। वे दरअसल एक घाघ उद्योगपति और चतुर नेता है। उन्होंने दोनों का घालमेल कर रखा है और उद्योगपति होने का लाभ राजनीति में तथा राजनीतिज्ञ होने का लाभ उद्योगों में पा रहे हैं। एक लंबे अंतराल के बाद सांसद कमलनाथ का नाम फिर से सूर्खियों में आया है। पहले वे संजय गांधी के दोस्त के रूप में जाने जाते थे।
खान अब्दुल गफ्फार खां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से केवल पांच साल छोटे हैं। कांग्रेस के तमाम नेताओं की तरह उन्होंने सत्ता का स्वाद तो नहीं चखा, मगर सेवा की सजा जरूर भुगती है। सेवा और संघर्ष के उनके काम में भारत, पाकिस्तान या अफगानिस्तान की दीवारें रूकावट नहीं बन पाई। कांग्रेस शताब्दी समारोह के बहाने बंबई को उनकी मेजबानी का सौभाग्य मिला है।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बोम्मई नेै कहा कि सी.बी. आई. केन्द्र सरकार की राजनीतिक इकाई की तरह काम करने लगी है। उनकी बात से और लोग सहमत हो या न हों, अमेठी के राजा संजय सिंह तो होंगे ही। इस तथ्य की सच्चाई तब और भी उजागर होती है, जबकि सी.बी.आई. के अफसर अपनी जांच में तरक्की की रिपोर्ट अखबारवालों को दे रहे हैं।