आखिर नंदमुरि तारक रामाराव ने यह घोषणा कर ही दी कि उनका उत्तराधिकारी उनका बेटा नंदमुरि कृष्णाराव ही होगा, कोई दामाद नहीं। इससे स्पष्ट है कि रामाराव भी चरणसिंह, इंदिरा गांधी या शेख अबदुल्ला से किसी प्रकार भिन्न नहीं है। एन.टी.आर. अपने १३ बच्चों में सबसे ज्यादा कृष्णराव को ही चाहते हैं। कृष्णाराव अपने पिता के पद चिन्हों पर चलने की पूरी कोशिश कर रहे हैं, राजनीति में भी और फिल्मों में भी। यह बात भी सच है। कृष्णाराव अपने पिता से ज्यादा लोकप्रिय नेता और अभिनेता हैं।
जनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर का कहना है कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह की सरकार राजीव गांधी की सरकार से अच्छी चल रही है। पता नहीं, उत्तरप्रदेश में सरकार चल भी रही है या नहीं पर यह बात सही है कि अड़चनों के बावजूद वीर बहादुर सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए है। यही उनका एक सूत्री कार्यक्रम है।
बंबई की फिल्मी अभिनेत्रियां अभिनय के लिए कम और प्रेम प्रकरणों तथा अंग प्रदर्शन के लिए ज्यादा मशहूर है। कुछेक ही हैं, जिनके अभिनय में दम है कामरेड शबाना आजमी उन्हीं में से है। अभिनय के अलावा वे बंबई की झोपड़पट्टी वालों के प्रति सहानुभूति के लिए भी जानी जाती है। पिछले दिनों वे झोपड़पट्टी हटाने के विरोध में बंबई में आमरण अनशन पर बैठ गई। उसके पहले एक मई को उन्होंने झोपड़पट्टी के जुलूस का नेतृत्व भी किया था। शबाना के साथ झोपड़पट्टी का नाम वैसे ही जुड़ गया है जैसे (लिव उलमैन) का यूनिसेफ के साथ और जेन फोंड़ा का एरोबिक्स के साथ।
एक अरसा पहले श्रीमती मेनका गांधी ने दिल्ली में किताबों की एक दुकान खोली थी। तब वे लोगों को श्री सलमान रशदी का उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रन पढ़ने का सुझाव जरूर देती थीं। आजकल मेनका गांधी किताबों की दुकान पर नहीं बैठतीं और न ही किसी को यह किताब पढ़ने का सुझाव देती हैं।
सफल पति वह है जो इतनी दौलत कमाए कि उसकी पत्नी उसे खर्च नहीं कर पाए। और सफल पत्नी वह है, जो ऐसा पति ढूंढ निकाले। इस कसौटी पर यदि कसें तो हम पाएंगे कि जैकलिन केनेडी ओनासिस दुनिया की सबसे सफलतम पत्नी रही हैं। आजकल वे भारत में हैं। मुगलों की शाही जनाना पोशाकों के बारे में किताब की सामग्री जुटा रही हैं।
शारदा प्रसाद सत्ता के गलियारे में रहे। उनके लिए मंत्री बनना कभी कोई कठिन बात नहीं थी। वे चाहते तो बिना मंत्री बने भी सत्ता के केन्द्र के रूप में धाक जमा सकते थे। अपने प्रिय लोगों का गिरोह बनाकर उसे स्थापित करना भी उनके लिए आसान था। मगर उन्होंने यह नहीं किया। वे चुपचाप अपना कार्य करते रहे। श्रीमती इंदिरा गांधी स्मृति न्यास से एम.वाय. शारदा प्रसाद का अलग होना त्रासदी ही कही जाएगी।