जितना हो-हल्ला सॉफ्ट ड्रिंक की बोतलों को लेकर हो रहा है उससे लगता है कि हमें सॉफ्ट ड्रिंक पीने वालों की बहुत चिंता है। सांसद से लेकर मीडिया तक इस मुद्दे को उछाल रहे हैं। ऐसी ही चिंता स्वच्छ पानी और शुद्ध दूध को लेकर होती तो और अच्छा होता।

भारत में सॉफ्ट ड्रिंक पीने वालों की संख्या सीमित है। अमेरिका में लोग भजोन के साथ पानी की जगह सॉफ्ट ड्रिंक और जर्मनी में लोग पानी की जगह बियर पीते हैं। भारत में अगर लोगों को पीने का साफ पानी और शुद्ध दूध मिल जाए तो वे निहार हो जाएं। भारत में लगभग आधी आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है। करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिन्होंने कभी कोल्ड ड्रिंक चखा तक नहीं। भारत की एक बड़ी आबादी को पीने का पानी भी आसानी से उपलब्ध नहीं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, लेकिन भारत में दूध पीने वालों की बुरी हालत है। कभी दूध में वाशिंग पावडर जैसे तत्व मिलाकर कृत्रिम दूध बनाने की खबरें आती हैं, तो कभी अशुद्ध पानी मिलाने की।

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१६ दिसम्बर १९८८ को महान साहित्यकार और पत्रकार डॉ. प्रभाकर माचवे के संपादन में इंदौर से जिस चौथा संसार दैनिक का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था, वह आज एक वटवृक्ष बन गया है। इसमें श्री नरेश मेहता जैसे महान साहित्यकार-संपादक का भी पुण्य छिपा है। चौथा संसार सांध्य उसी की एक शाखा है। भारत में ऐसे अनेक अखबार समूह हैं, जो सांध्य दैनिक प्रकाशित करते हैं, लेकिन ऐसे अखबार शायद ही हों जो उसी नाम से शाम को भी नए रंग-रूप में संस्करण प्रकाशित करते हों। इस संदर्भ में कहना होगा कि आपका चौथा संसार यह बिरला प्रयोग कर रहा है।

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ऐसे बिरले ही लोग होते हैं, जो अपनी मृत्यु के बाद अपने शरीर को दान में देने का इच्छा पत्र पहले ही लिख जाते हैं। रंगकर्मी और लेखक वसंत पोतदार ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। उन्होंने अपनी देह चिकित्सा महाविद्यालय को दान कर दी। देश के चिकित्सा महाविद्यालयों में मृत शरीरों की उपलब्धि इतनी कम है कि मेडिकल कॉलेज के विद्यार्थी शवों की कमी से परेशान हैं। शवों की चीरफाड़ के बिना अच्छे डॉक्टर बनना मुश्किल है। समाजसेवी नानाजी देशमुख ने एक संस्था भी बनाई है, जो मृत्यु उपरांत शरीर दान की परंपरा को बढ़ावा दे रही है। इसके बावजूद अपेक्षित संख्या में देह चिकित्सा महाविद्यालयों को नहीं मिलती।

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भाजपा की नेता उमा भारती ने बीती रात इंदौर की रेसीडेंसी कोठी में छत पर सोने की इच्छा जताई थी, जिसे दिग्विजयसिंह की सरकार पूरी नहीं कर पाई। कितना दुर्भाग्यजनक है कि कोई भूतपूर्व मंत्री और भूतपूर्व (?) भावी मुख्यमंत्री सरकारी आरामगाह में छत पर सोने की इच्छा जताए और वह पूरी न हो पाए। छत पर सोने को लेकर हिन्दी फिल्मों में अनेक गाने चल पड़े हैं। इस खबर के साथ ही उन गानों की याद हो आई। उनमें से कुछ गाने तो ऐसे हैं, जिन्हें लिखना उचित नहीं होगा। छत हो और गर्मी का सीजन हो, बिजली की कटौती हो तो कौन छत पर नहीं सोना चाहेगा? 

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