Singham Again poster
रामायण पर क्राइम थ्रिलर बना दिया रोहित शेट्टी ने।  रोहित शेट्टी ने बड़ी चतुराई से यह फिल्म इस तरह से बनाई है कि लोगों की भावनाओं पर ठेस भी नहीं पहुंचे और क्राइम थ्रिलर का मज़ा भी आ जाए। उन्होंने राम जी के नाम पर कमर्शियल फिल्म भी बना दी, राम नाम की लूट भी कर ली,  दर्शकों को भी मज़ा आ गया। लोगों  भावनाएं भी आहत नहीं की।  पैसे वसूल !  वैसे फिल्म की पूरी कहानी इसके ट्रेलर में दिखाई चुकी है। 

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गणतंत्र दिवस पर लगी फिल्म फाइटर के कुछ डायलॉग हैं :

- पीओके का मतलब है -पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर; तुमने ऑक्यूपाइड किया है, मालिक हम हैं !

- उन्हें दिखाना पड़ेगा कि बाप कौन है?

- अगर हम बदतमीजी पर उतर आये तो तुम्हारा हर मोहल्ला IOP बन जाएगा -इंडिया ऑक्यूपाइड पाकिस्तान !

- ईंट का जवाब पत्थर से देने नहीं, धोखे का जवाब बदले से देने आये हैं।

- फाइटर वो नहीं, जो अटैक करता है, फाइटर वो है जो ठोक देता है !

- जंग में सिर्फ हार या जीत होती है, कोई मैन ऑफ द मैच नहीं होता।

- जो अकेला खेल रहा होता है, वो टीम के खिलाफ खेल रहा होता है।

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पंकज त्रिपाठी इस फिल्म में उतने ही अटल जी लगे, जितने फिल्म पीएम नरेन्द्र मोदी में विवेक ओबेरॉय मोदी जी लगे थे और सम्राट पृथ्वीराज में अक्षय कुमार पृथ्वीराज लगे थे। फिल्म को देखकर लगा कि क्या अटल बिहारी वाजपेयी सचमुच इतने पलायनवादी और बोरियत भरे व्यक्ति थे, जितने दिखाए गए हैं? अटल जी वास्तव में खाने पीने और शौक़ीन व्यक्ति रहे हैं तभी तो फिल्म में यह डायलॉग भी  है कि ''मैं अविवाहित हूँ, कुंवारा नहीं !''

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डंकी कोई मास्टरपीस नहीं है, यह थोड़ी-थोड़ी राजकुमार हिरानी टाइप है, कुछ शाह रुख खान स्टाइल की है। हिंसा, सेक्स, फूहड़ता, कार रेस, भ्रूम भ्रूम  नहीं है, थोड़ी ढंग की है।  जिसमें रोचक कहानी, घिसे-पिटे जोक्स, शानदार अभिनय और इमोशन तथा देशप्रेम की चाशनी है। थोड़ी सी स्वदेश है, थोड़ी सी दंगल, थोड़ी सी कपिल शर्मा वाली अंग्रेज़ी, थोड़ी से आनंद का लेडी संस्करण है।  मसाले सभी है।  इच्छानुसार पसंद कर सकते हैं। डंकी चार पैरों वाले गधों के बारे में नहीं है, यह उन दो पैरों वाले गधों के बारे में है जो डंकी रूट यानी अवैध रूप से आप्रवासी होकर इंग्लैंड जाकर बस जाना चाहते हैं।अवैध रूप से जाने में रास्ते में आने वाली तकलीफों का उन्हें अंदाज नहीं है, लेकिन वे भारत में कुछ करने के बजाय विदेश जाकर ही कुछ करने में अपनी शान समझते हैं।

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यह सस्पेंस-ड्रामा फिल्म क्रिसमस नहीं, संक्रांति के मौके पर आई है। यानी आप 'तिल गुड़ ध्या आणि गोळ गोळ बोला' की जगह 'मेरी क्रिसमस' बोलें ? फिल्म की शुरुआत क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होती है। मेरी क्रिसमस की रात और साजिश। हत्या, सस्पेंस और रोमांच से भरपूर यह फिल्म फ्रेडरिक डार्ड के फ्रेंच उपन्यास 'बर्ड इन ए केज' का रूपांतरण है।

यह मुंबई में एक लंबी रात की कहानी है जब इसे बॉम्बे कहा जाता था। कोलाबा के ईसाई बहुल इलाके में रहने वाला अल्बर्ट (विजय सेतुपति) सात साल बाद मुंबई लौटा है, अपनी माँ की मृत्यु पर शोक मना रहा है। अकेला है। निराशा से उबरने के लिए, जब वह खुद को क्रिसमस के जश्न में डुबाने की कोशिश करता है, तभी उसकी मुलाकात एक रेस्तरां में मारिया (कैटरीना कैफ) से होती है जो अपनी बेटी और बड़े टेडी बियर के साथ है, लेकिन बच्ची का पिता की वहां नहीं है। अल्बर्ट को लगता है कि कुछ गड़बड़ है लेकिन फिर भी वह उसकी ओर आकर्षित हो जाता है। संयोग दर संयोग बनाते हैं। अल्बर्ट को लगता है कि उसकी रात हसीनतम होनेवाली है, लेकिन खुद को एक पिंजरे में फंसा हुआ पाता है।

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thumb sammmm

सैम बहादुर देखनीय फिल्म है।  भारत के स्वर्णिम इतिहास की झलक इसमें है। विक्की कौशल ने मानेकशॉ के रोल में जान डाल दी। यह विक्की कौशल और डायरेक्टर मेघना गुलज़ार की फिल्म है।

सैम बहादुर भारत के पहले फील्ड मार्शल मानेकशॉ के जीवन पर आधारित फिल्म है, जिसमें विक्की कौशल ने मानेकशॉ का भूमिका की है। वे भारत के सबसे लोकप्रिय सेना नायकों में से थे और 1971 में बांग्लादेश के जन्म के समय भारत-पाक युद्ध के समय चीफ ऑफ़ आर्मी स्टाफ थे। उनकी रणनीति के अनुसार ही भारत ने वह युद्ध लड़ा, जीता और पाकिस्तान का विभाजन करवाया। उनका नाम सैम मानेकशॉ था लेकिन लोग उन्हें सैम बहादुर इसलिए कहते थे, क्योंकि वे गोरखा राइफल्स के प्रभारी बनाये गए थे।

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