फिल्म समीक्षा : तलवार

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एक बाद साफ कर दूं कि फिल्म तलवार ‘आरुषि और हेमराज हत्याकांड’ पर आधारित फिल्म नहीं है। यह फिल्म ‘आरुषि और हेमराज हत्याकांड की जांच’ पर आधारित है।  हमारी पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियों की पोल खोलने के साथ ही यह फिल्म न्याय व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। इसी फिल्म का एक डायलॉग है- ‘‘न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी, एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार है। यह तलवार है पुलिस और जांच एजेंसियां। अब इस तलवार पर जंग लग चुका है।’’

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फिल्म समीक्षा : कैलेंडर गर्ल्स

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अगर आपने मधुर भंडारकर की पेज थ्री, फैशन, कार्पोरेट आदि फिल्मों में से कोई भी फिल्म देखी है, तो यह फिल्म देखने की जरूरत नहीं। मधुर भंडारकर ने पुरानी फिल्मों की खिचड़ी को गर्म कर परोस दिया है। यह फिल्म उन लोगों के लिए ठीक है, जो सिनेमा हाल में फिल्म देखने के लिए नहीं जाते है। हां, इस फिल्म को देखने जाने के पहले थियेटर में फोन करके पता जरूर कर लेना कि फिल्म का शो हो भी रहा है या नहीं। वर्ना आपके आने-जाने का समय यूं ही बर्बाद होगा। इंदौर में कई सिनेमाघरों में पहले और दूसरे शो ही दर्शकों के ना आने से रद्द कर दिए गए। बॉक्स ऑफिस पर मय्यत का नजारा मधुर भंडारकर ने दिखा दिया।

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फिल्म समीक्षा : एवरेस्ट

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एवरेस्ट फिल्म को गत 2 सितंबर को वेनिस फिल्म महोत्सव में रिलीज किया गया था। 18 सितंबर को यह फिल्म दुनियाभर में रिलीज हुई। यह फिल्म एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोहियों के दो समूहों के सर्वाइवल अभियान पर टिकी है। 25 सितंबर को यह फिल्म पूरी दुनिया के करीब तीन हजार सिनेमाघरों में रिलीज होगी। भारत में यह फिल्म प्रदर्शित हो चुकी है और इसे अच्छा प्रतिसाद मिला है।

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फिल्म रिव्यू : वेलकम बैक

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कबिस्तान में ‘भूतों के साथ’ अंताक्षरी किस फिल्म हैं? वेलकम बैक में आपको ऐसे दृश्य भी देखने को मिलेंगे। इस अंताक्षरी में भूतों के साथ सिनेमा हॉल के दर्शक भी अंताक्षरी खेलने लगते हैं। ठिलवाई की इंतेहा है, इस फिल्म में। इंटरवल के पहले तो यह और भी ज्यादा हैं।

वेलकम बैक को रिलीज होने के लिए बड़ा संघर्ष करना पड़ा हैं। पहले यह फिल्म दिसंबर में रिलीज होनी थी, लेकिन नहीं हो पाई। फिर मई मेंं इसकी रिलीज की डेट तय हुई, लेकिन फिर परेशानी। अब जाकर सितंबर में यह फिल्म रिलीज हुुई। अनिल कपूर इसके रिलीज से इतने डरे हुए थे कि उन्हेंं इसकी अच्छी ओपनिंग की आशा नहीं थी, लेकिन फिल्म ठीकठाक टाइम पास है, बशर्तें आप दिमाग का इस्तेमाल न करें।

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फिल्म समीक्षा : कट्टी-बट्टी

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पहले इस फिल्म का नाम ‘साली कुतिया’ रखा गया था। जिस पर कंगना को भारी आपत्ति थी। इमरान खान के मामा आमिर खान के हस्तक्षेप के बाद इस फिल्म का नाम कट्टी-बट्टी रखा गया। कंगना इस पर भी खुश नहीं थीं। उन्हें लगता है कि यह नाम चाइल्डिश है। छोटे बच्चे कट्टी-बट्टी करते रहते हैं। फिल्म देखने पर लगता है कि न पहले वाला अच्छा था और न यह नाम।

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बजरंगी भाईजान अगर जवाहरलाल नेहरू की पंचशील टाइप पिक्चर थी, तो फैंटम नरेन्द्र मोदी टाइप पिक्चर है। पंडित नेहरू की नीति भाईचारे की थी और वे पड़ोसी देशों से दोस्ताना संबंध चाहते थे, जिसका फिल्मीकरण बजरंगी भाईजान टाइप भाईचारे में दिखाया गया, लेकिन फैंटम बजरंगी भाईजान से उल्टी, गदर की तरह है। गदर में एक प्रेम कहानी थी, फैंटम में जेम्स बांड जैसी नकल की गई है। आधिकारिक रूप से रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) ऐसा कुछ नहीं करता, जैसा की फैंटम में दिखाया गया है। बजरंगी भाईजान में सिनेमा हाल से बाहर जाता दर्शक टसुए बहाता नजर आता था, तो फैंटम में यह स्वर सुनने को मिलता है कि यार, इस पिक्चर में तो सलमान को होना था।

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