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अगर आप 1990 और 2020 के दो प्रेमी जोड़ों की टेंशन अपने सिर में डाउनलोड करना चाहते हैं, तो वेलेंटाइन्स डे पर यह कर सकते हैं। यह फिल्म ऐसे युवक-युवती की कहानी है, जो युवावस्था में केवल मस्ती और संभावनाओं को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। जो लोग यह मानते हैं कि प्यार दिल से करना चाहिए, लेकिन शादी दिमाग के अनुसार। जिंदगी में पैसा कमाना बहुत जरूरी है और वास्तव में ज्यादा पास आना, असल में दूर जाना होता है। यह पीढ़ी समझती है कि प्यार में सीरियस होना कोई अच्छी बात नहीं है। इस तरह दो पीढ़ियों के दो युगल की कहानी एक साथ चलती रहती है। एक फ्लैशबैक में है और दूसरी रियल टाइम में। वेलेंटाइन्स डे के अवसर को भुनाने में जुटे बाजार की भीड़ में इम्तियाज अली की यह फिल्म भी शामिल हो गई।
फिल्म मलंग फिल्म प्रमाणन बोर्ड के नए डिजाइन के प्रमाण पत्र के साथ शुरू होती है, जिसमें अक्षय कुमार और नंदू के सेनेटरी पैड के विज्ञापन के बाद कबीर की दो लाइन स्क्रीन पर आती है - ‘नींद निशानी मौत की, जाग कबीरा जाग और रसायन छांड़िके, नाम रसायन लाग।’ मलंग फिल्म बनाने वाले ने मलंग का अर्थ समझ लिया है टोटल गैरजिम्मेदार आदमी, जो केवल अपनी मस्ती के लिए ही जीता है। न वह अपना सोचता है, न परिवार का, न समाज का और देश या इंसानियत के बारे में तो सोचने की कोई बात ही नहीं।
पंगा फिल्म का नाम वापसी या कमबैक होना चाहिए था। कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ी शादी और एक बच्चे को जन्म देने के 7 साल बाद वापस कबड्डी की राष्ट्रीय टीम में आने के लिए संघर्ष करती हैं। पति साथ है, बेटा साथ है, मां साथ है, दोस्त साथ है। ऑफिस के लोग भी कमोबेश साथ है, तो इसमें पंगा लेने की क्या बात है। पति और बेटे को भोपाल में छोड़कर मुंबई और कोलकाता में कबड्डी खेलने जाना कोई पहाड़ तोड़ना नहीं है। अब अगर कोई ऐसे में घर में सहायक की नियुक्ति न करें, मां की मदद न लें और रोना रोते रहे कि मैं एक मां हूं और मां के कोई सपने नहीं होते, तो यह मूडता है। वैसी ही मूडता जैसी फिल्म में नायिका और उसका परिवार कार होते हुए भी स्कूटर पर बैठकर शॉपिंग करने जाता है। शादी और बच्चा होने के बाद नेशनल टीम में भले ही न खेलें, लेकिन खुद को फिट रखने से कौन किसी को रोकता है। कहानी में यही सब झोल है। वरना फिल्म में अच्छी एक्टिंग है और पारिवारिक कहानी है।
फिल्म गुड न्यूज ऐसे वयस्कों के लिए है, जिन्होंने विकी डोनर और बधाई हो जैसी फिल्में पसंद की है। यह विकी डोनर से आगे की कहानी है, जिसमें कॉमेडी और इमोशन का कॉकटेल है। भारत में गुड न्यूज का अर्थ एक ही बात से लिया जाता है और वहीं इस कहानी के केन्द्र में है। कॉमेडी से शुरू हुई फिल्म धीरे-धीरे ऐसे गंभीर और भावनात्मक मोड पर पहुंच जाती है, जब दर्शक भावुक हो जाते है। आज से 20 साल पहले हिन्दी में इस तरह की फिल्मों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
मध्यप्रदेश में तो सरकार ने छपाक को टैक्स फ्री भी कर दिया है। वास्तव में छपाक दर्शनीय फिल्म है। इसलिए नहीं कि यह एसिड अटैक पर आधारित है, बल्कि इसलिए की इसमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने की कोशिश करने वालों की जीत की कहानी है। फिल्म बताती है कि दुनिया में सबकुछ बुरा ही बुरा नहीं हो रहा है। न्याय व्यवस्था के प्रति यह फिल्म आस्था जगाती है कि देर से ही सही पर न्याय के लिए लड़ा जरूर जाना चाहिए। एसिड अटैक के बहाने इसमें समाज में महिलाओं के प्रति बदले की भावना, समाज के सकारात्मक सोच वाले लोगों की पहल और जातिगत हिंसा को भी छूने की कोशिश की गई है। कहानी के खलनायक की जाति से संबंधित दुष्प्रचार भी झूठा साबित होता है। किसी वर्ग की जाति या धर्म छुपाने की कोशिश नहीं की गई है।
दबंग-3 सलमान खान की फॉर्मूला फिल्म है, जिसमें सलमान खान, सलमान खान कम और रजनीकांत ज्यादा नजर आए। एक्शन और फाइट के सीन दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरह है। यह दबंग की फ्रेंचाइजी है, तो जाहिर है कि सलमान खान टाइप फिल्म ही होगी और वैसी है भी। या तो यह फिल्म आपको बेहद पकाऊ लगेगी या बेहद मनोरंजक। आपके बुद्धि के स्तर की परीक्षा लेती है यह फिल्म। फिल्म का एक संवाद है कि भलाई और बुराई की लड़ाई में बुराई हमेशा जीत जाती है, क्योंकि भलाई के पास इतना कमीनापन नहीं होता कि वह लड़ सकें। सलमान और सोनाक्षी के अलावा इसमें महेश मांजरेकर की बेटी सई मांजरेकर की भी बड़ी भूमिका है। दबंग-3 में भी चुलबुल पांडे उर्फ रॉबिनहुड पांडे उर्फ करू के रोल में सलमान खान और फिलर के रूप में सोनाक्षी सिन्हा के घीसे-पीटे संवाद है। इसका फॉर्मूला थोड़ा बदला गया है और कहानी में थोड़ा टि्वस्ट भी है। मुन्नी बदनाम की जगह, मुन्ना बदनाम हुआ, नैना वाले गाने, आइटम और फाइटिंग के दृश्य है।