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हे प्रभु, मुझे माफ़ कर, मैंने मरजाँवा फ़िल्म देख ली!
(तत्काल लिखने की हिम्मत नहीं हुई!)
मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था, लेकिन फिर भी मैं मरजाँवा फिल्म देखने के लिए चला गया। आप किसी भी कारण से यह फिल्म देखने का जोखिम मत उठाइए। महाबकवास है!
जो रोल अमिताभ बच्चन को मिलना चाहिए, वह अवतार गिल को मिल जाए, तो क्या होगा? अगर अमिताभ को दीवार और शोले की जगह अवतार में प्रमुख भूमिका निभानी होगी तो क्या होगा? यह हेयर लॉस नहीं आइडेंडिटी का ही लॉस हो जाएगा। पिछले हफ्ते ही फिल्म आई थी उजड़ा चमन और इस शुक्रवार को लगी है बाला। दोनों ही फिल्मों का विषय एक है। जवानी में गंजे होते युवाओं की समस्या। बाला ने उजड़ा चमन को बहुत पीछे छोड़ दिया है, क्योंकि इसमें कहानी और चरित्रों की प्रस्तुती इस तरह की गई है कि वह दिलचस्प और विचारोत्तेजक लगती है। उजड़ा चमन देखते हुए गिरते बालों की समस्या से परेशान व्यक्ति को खीज होने लगती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने जैसे पात्र का उपहाश बर्दाश्त नहीं कर सकता। बाला में इसी बात को संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। उजड़ा चमन में गंजे होते युवा और रश्त-पुश्त होती युवती की कहानी थी। इसमें एक सुंदर युवती और गंजे होते युवक के साथ ही एक श्याम वर्ण युवती की कहानी भी जोड़ दी गई है।
दिलों की बात करता है जमाना, लेकिन मोहब्बत अब भी चेहरे से ही शुरू होती है। चेहरे और शरीर की बनावट को लेकर बनी उजड़ा चमन फिल्म में सब कुछ साधारण है। अभिनय, निर्देशन, गीत-संगीत, छायांकन, सभी कुछ औसत दर्जे का। इस कारण फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में सफल नहीं हो पाई। दो घंटे की फिल्म भी लंबी लगने लगती है। कहां लिखा है कि गोरा होना अच्छा है और सांवला होना अच्छा नहीं। यह भी कहां लिखा है कि बाल वाले ज्यादा हैंडसम लगते है और गंजे हैंडसम नहीं लगते। यह भी कहीं नहीं लिखा कि अच्छा डीलडौल होना कोई बड़ी अयोग्यता है, लेकिन फिर भी समाज में ये सब चलता रहता है।
जिंदगी में खुशियां ही सबकुछ नहीं होती। कभी पैसे खर्च करके भी रोने का मन करें, तो प्रियंका चोपड़ा की नई फिल्म हाजिर है। फिल्म देखकर लगा कि जायरा वसीम ने हिन्दी फिल्म दर्शकों पर बड़ा उपकार किया कि अभिनय की दुनिया त्याग दी। अगर आपके पास दिल्ली के पास छतरपुर में स्वीमिंग पुल वाला शानदार फॉर्म हाउस है, पैसे की कोई कमी नहीं है, घर नौकर-चाकरों से भरा पड़ा है, तनख्वाह पाने के लिए बॉस से डांट नहीं खानी पड़ती या कारोबार में कोई झिकझिक नहीं करनी पड़ती, भूतपूर्व मिस वर्ल्ड जैसी बीवी, दो बच्चे और एक कुत्ता आप अफोर्ड कर सकते है, तो आपको पूरा हक है कि इमोशनल हुआ जाए। अगर आपके पास यह सब नही और जबरन इमोशनल होना ही हो, टसुएं बहाने का मूड हो, तब प्रियंका चोपड़ा के नाम पर 200-500 रुपये स्वाहा किए जा सकते हैं।
ताजमहल बहुत सुंदर है, हमने सुना है, उसे देखा नहीं। हवाई जहाज में बैठने में बहुत मजा आता है, हमने सुना है पर हम कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे। समंदर में बहुत ज्यादा पानी होता है, हमने सुना है पर हमने उसे देखा नहीं, लेकिन हमारे बच्चे यह सब देखेंगे। हमारी बेटियों के नाखूनों पर गोबर लगा है, लेकिन वहां भी कभी नेल पॉलिश लगेगी। यही मूल स्वर है सांड की आंख फिल्म का। जेंडर इक्वेलिटी पर बनी यह फिल्म अतिनाटकीय है। फिल्म मन को छूं जाती है और छोटी-मोटी कमियों को भुला दें, तो यह एक शानदार फिल्म है।
ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ की मुख्य भूमिका वाली वॉर पैसा वसूल फिल्म है। एक्शन, सस्पेंस और थ्रिल के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म निश्चित ही पसंद आएगी। फिल्म की कमजोर कड़ी है, तो इसके गाने। फिल्म की कहानी में जबरदस्त टि्वस्ट है, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखते है। फिल्म देखते हुए कभी बोरियत नहीं होती। फिल्म रिलीज होने के पहले ही 30 करोड़ के अधिक के टिकटों की बुकिंग हो चुकी थी। हॉलीवुड की फिल्मों जैसी इस फिल्म में एक्शन के अलावा गाने और इमोशनल दृश्य भी हॉलीवुड की फिल्म की तरह है, जो पचते नहीं।