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सनी देओल ने एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए जो फिल्म बनाई है उसमें अपने बेटे को हीरो बनाया है। आधी फिल्म एडवेंचर टूरिज्म को समर्पित है और बाकी आधी फिल्मी फॉर्मूले को। जिस तरह कहानी का ताना-बाना बुना गया है, वह दिलचस्प है। सोलो ट्रेवलिंग करने वाली वीडियो ब्लॉगर मनाली के पास एक ऐसे कैम्प में जाती है, जहां 5 दिन का खर्च 5 लाख रुपये है। इस फाइव स्टार कैम्प में ट्रेकिंग के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। हीरोइन यहां अपने ब्लॉग के लिए नकारात्मक विचार लेकर आती है, लेकिन जब वह कैम्प में अद्भूत जीवन का अनुभव करती है, तब उसका वीडियो ब्लॉग नेगेटिव से पॉजिटिव हो जाता है। देश के लिए सनी देओल का यह योगदान है कि उन्होंने इस फिल्म में पीर पांजल पर्वत समूह की स्पिति वैली, चंद्रा ताल, कजा, लाहौल वैली और देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मनाली क्षेत्र की अनेक सुरम्य वादियों की सैर करा दी। पर्यटन विभाग को चाहिए कि वह इस फिल्म के फुटेज को जी भरकर प्रचारित करें। इस फिल्म को देखने के बाद दर्शकों को एडवेंचर टूरिज्म का मजा तो आ ही जाता है।
ड्रीम गर्ल कहते ही हेमा मालिनी की छवि सामने आती है, लेकिन एकता कपूर की इस ड्रीम गर्ल को देखने के बाद शायद आयुष्मान खुराना का चेहरा सामने आने लगे। फिल्म का एक डायलॉग है कि जब सही गलत हो, तब सही वो होता है, जो सबसे कम गलत हो। एकता कपूर की लगभग सभी फिल्में फूहड़ हैं, ऐसे में ड्रीम गर्ल सबसे कम फूहड़ फिल्म कही जा सकती है। यह पैसा वसूल कॉमेडी फिल्म है, जिसमें झूठ की पराकाष्ठा से उपजा हास्य छाया रहता है। बीच-बीच में कुछ घटिया लतीफे भी है और दो अर्थों वाले संवाद भी। आज के डिजिटल दौर में यह फिल्म बताती है कि सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट से बेहतर है अपने दोस्तों से जीवंत संपर्क रखना।
ड्रीम गर्ल कहते ही हेमा मालिनी की छवि सामने आती है, लेकिन एकता कपूर की इस ड्रीम गर्ल को देखने के बाद शायद आयुष्मान खुराना का चेहरा सामने आने लगे। फिल्म का एक डायलॉग है कि जब सही गलत हो, तब सही वो होता है, जो सबसे कम गलत हो। एकता कपूर की लगभग सभी फिल्में फूहड़ हैं, ऐसे में ड्रीम गर्ल सबसे कम फूहड़ फिल्म कही जा सकती है। यह पैसा वसूल कॉमेडी फिल्म है, जिसमें झूठ की पराकाष्ठा से उपजा हास्य छाया रहता है। बीच-बीच में कुछ घटिया लतीफे भी है और दो अर्थों वाले संवाद भी। आज के डिजिटल दौर में यह फिल्म बताती है कि सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट से बेहतर है अपने दोस्तों से जीवंत संपर्क रखना।
बालाजी फिल्म फैक्ट्री की नई फिल्म जबरिया जोड़ी मनोरंजक है। मसालों से भरपूर यह फिल्म बिहार के पकड़वा विवाह की घटनाओं पर आधारित है, जहां विवाह योग्य दूल्हों का अपहरण करने के बाद न केवल विवाह करवा दिया जाता है, बल्कि संतान होने तक वे अपहरणकर्ताओं की निगरानी में भी रहते हैं। बिहार की पृष्ठभूमि पर फिल्माई गई इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा और शक्तिमान खुराना के भाई अपार शक्ति की प्रमुख भूमिकाएं हैं। फिल्म का पहला आधा हिस्सा अच्छा खासा मनोरंजक है और बाद में फिल्म में गंभीर सामाजिक संदेश जोड़ दिया गया है।
साहो का एक प्रसिद्ध वनलाइनर है। हर जुर्म का मकसद हो्ता है और हर मुजरिम की कहानी। इसी तरह हर फिल्म बनाने का कोई मकसद होता है और दर्शक को फिल्म देखने का बहाना। साहो को लोग बड़े बजट और प्रभास के कारण देखने जा सकते हैं। दो साल और 300 करोड़ रुपये खर्च करके बनाई गई साहो इसलिए देखनी चाहिए कि भारतीय फिल्म निर्माता हाॅलीवुड की नकल कितनी कर पाते है। आधे घंटे का क्लाइमेक्स, दर्शकों को बांध रखता है, लेकिन पूरी फिल्म में कहानी नाम की कोई चीज है नहीं।
खानदानी शफाखाना बेहद अझेलनीय फिल्म है। दिमाग का दही बना देती है। इसे काॅमेडी फिल्म कहा गया है, लेकिन दर्शकों के लिए यह ट्रेजडी फिल्म है। यह बात सही है कि विकी डोनर, पैडमेन, शुभ मंगल सावधान और टायलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्में कामयाब हुई है, लेकिन किसी फिल्म में 20-25 बार सेक्स कह देने से वह कोई सेक्स काॅमेडी फिल्म नहीं हो जाती। 1959 की कहानी अगर 2019 में बनाई जाएगी, तो यही होगा। सोनाक्षी सिन्हा, बादशाह खान, नादिरा बब्बर, वरूण शर्मा, कुलभूषण खरबंदा और अनू कपूर के होते हुए भी यह एक माइंडलेस कॉमेडी फिल्म है। एक नए कलाकार प्रियांश जोरा की आमद फिल्म में है और वह नाहक ही खर्च हो गए। बादशाह खान के गाने भी कोई कितने झेले।