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ड्रीम गर्ल कहते ही हेमा मालिनी की छवि सामने आती है, लेकिन एकता कपूर की इस ड्रीम गर्ल को देखने के बाद शायद आयुष्मान खुराना का चेहरा सामने आने लगे। फिल्म का एक डायलॉग है कि जब सही गलत हो, तब सही वो होता है, जो सबसे कम गलत हो। एकता कपूर की लगभग सभी फिल्में फूहड़ हैं, ऐसे में ड्रीम गर्ल सबसे कम फूहड़ फिल्म कही जा सकती है। यह पैसा वसूल कॉमेडी फिल्म है, जिसमें झूठ की पराकाष्ठा से उपजा हास्य छाया रहता है। बीच-बीच में कुछ घटिया लतीफे भी है और दो अर्थों वाले संवाद भी। आज के डिजिटल दौर में यह फिल्म बताती है कि सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट से बेहतर है अपने दोस्तों से जीवंत संपर्क रखना।
साहो का एक प्रसिद्ध वनलाइनर है। हर जुर्म का मकसद हो्ता है और हर मुजरिम की कहानी। इसी तरह हर फिल्म बनाने का कोई मकसद होता है और दर्शक को फिल्म देखने का बहाना। साहो को लोग बड़े बजट और प्रभास के कारण देखने जा सकते हैं। दो साल और 300 करोड़ रुपये खर्च करके बनाई गई साहो इसलिए देखनी चाहिए कि भारतीय फिल्म निर्माता हाॅलीवुड की नकल कितनी कर पाते है। आधे घंटे का क्लाइमेक्स, दर्शकों को बांध रखता है, लेकिन पूरी फिल्म में कहानी नाम की कोई चीज है नहीं।
बालाजी फिल्म फैक्ट्री की नई फिल्म जबरिया जोड़ी मनोरंजक है। मसालों से भरपूर यह फिल्म बिहार के पकड़वा विवाह की घटनाओं पर आधारित है, जहां विवाह योग्य दूल्हों का अपहरण करने के बाद न केवल विवाह करवा दिया जाता है, बल्कि संतान होने तक वे अपहरणकर्ताओं की निगरानी में भी रहते हैं। बिहार की पृष्ठभूमि पर फिल्माई गई इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा और शक्तिमान खुराना के भाई अपार शक्ति की प्रमुख भूमिकाएं हैं। फिल्म का पहला आधा हिस्सा अच्छा खासा मनोरंजक है और बाद में फिल्म में गंभीर सामाजिक संदेश जोड़ दिया गया है।
एकता कपूर और फिल्म बनाने वाली टीवी चैनल कंपनी से दर्शकों का सवाल है कि मेंटल है क्या? जो ऐसी फिल्में हमें झिलवाने पर आमादा हो। इसे एक्शन, सस्पेंस, थ्रिलर फिल्म बताया जा रहा है। फिल्म में राजकुमार राव, कंगना रनौत और 10-12 कॉकरोचों ने अच्छा काम किया है। हालांकि टाइटल के दौरान यह दिखाया गया है कि फिल्म बनाने के दौरान असली कॉकरोच इस्तेमाल नहीं किए गए, बल्कि ग्रॉफिक्स का इस्तेमाल किया गया। फिल्म में कंगना रनौत को कागज के काॅकरोच बनाते हुए भी दिखाया गया है। वह भी तब जब कंगना को काॅकरोच से चिढ़ रहती है।
खानदानी शफाखाना बेहद अझेलनीय फिल्म है। दिमाग का दही बना देती है। इसे काॅमेडी फिल्म कहा गया है, लेकिन दर्शकों के लिए यह ट्रेजडी फिल्म है। यह बात सही है कि विकी डोनर, पैडमेन, शुभ मंगल सावधान और टायलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्में कामयाब हुई है, लेकिन किसी फिल्म में 20-25 बार सेक्स कह देने से वह कोई सेक्स काॅमेडी फिल्म नहीं हो जाती। 1959 की कहानी अगर 2019 में बनाई जाएगी, तो यही होगा। सोनाक्षी सिन्हा, बादशाह खान, नादिरा बब्बर, वरूण शर्मा, कुलभूषण खरबंदा और अनू कपूर के होते हुए भी यह एक माइंडलेस कॉमेडी फिल्म है। एक नए कलाकार प्रियांश जोरा की आमद फिल्म में है और वह नाहक ही खर्च हो गए। बादशाह खान के गाने भी कोई कितने झेले।
40 साल पहले भी ऋषि कपूर ने 'झूठा कहीं का' नाम की फिल्म में काम किया था, जिसमें उनके साथ नीतू कपूर प्रमुख भूमिका में थीं। रवि टंडन के निर्देशन में बनी उस 'झूठा कहीं का' और इस 'झूठा कहीं का' में ज़मीन-आसमान का अंतर है। यह पंजाबी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'कैरी ऑन जट्टा' की रीमेक है। पुरानी फिल्म की तरह ही इसमें भी ऋषि कपूर प्रमुख भूमिका में हैं, लेकिन वे हीरो नहीं हैं। हालांकि फिल्म उन्हीं के कंधे पर सवार है। कारण यह है कि लिलेट दुबे, सनी सिंह, ओंकार कपूर, निमिषा मेहता आदि सभी नए कलाकार इस फिल्म में है। जिमी शेरगिल, मनोज जोशी और राकेश बेदी की भी छोटी भूमिकाएं हैं। अंत में सनी लियोनी का एक आइटम सांग भी डाल दिया गया है , जिसे देखने के लिए दर्शक थियेटर में रुकने की जहमत नहीं उठाते।