- IIMC की प्रवेश परीक्षा की जिम्मेदारी हमने 2 साल से नेशनल टेस्टिंग एजेंसी को दे रखी थी। कोरोना के कारण परीक्षा हम नहीं ले पाए। न ही इंटरव्यू किए गए।
- हमारे संस्थान में पत्रकारिता के 80 फ़ीसदी विद्यार्थियों को प्लेसमेंट मिल चुका है, विज्ञापन और पीआर के विद्यार्थियों का प्लेसमेंट 100फ़ीसदी हुआ है। अब हमारा पूरा ध्यान प्लेसमेंट को लेकर भी है।
- विद्यार्थियों का ध्यान स्क्रीन पर चमकने वाले सितारों पर ही जाता है। टेलीविजन के पर्दे के पीछे भी बहुत-बहुत जिम्मेदारियों वाले पद होते हैं। जैसे ही उन्हें उन पदों के बारे में जानकारी मिलती है , वे उन पदों की ओर प्रवृत्त होते हैं।
- मैं भाग्यशाली रहा। विद्यार्थी जीवन में ही मैं संपादक बनना चाहता था और 24 साल की उम्र में स्वदेश रायपुर का संपादक बन गया था।
- माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय का कुलपति मैं अपनी मां के आशीर्वाद से बना। कुलपति बनने के पहले या बाद में मैं कभी भी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान से नहीं मिला, जो विश्वविद्यालय निकाय के अध्यक्ष थे। कुलपति पद पर नियुक्ति की सूचना मुझे मिली तब मैंने अपनी माताश्री के स्वर्गवास पर होने वाले संस्कार में गया हुआ था। वहीं मुझे पी. नरहरि साहब का फोन आया था और तत्काल भोपाल पहुंचकर अपना दायित्व ग्रहण करने के लिए कहा गया था। मैंने तत्काल भोपाल पहुंचने में असमर्थता बता दी थी।
- आजादी के बाद भी महान संपादकों का दौर जारी है। अब तो एक ही अखबार में कई-कई सम्पादक होते हैं। इंदौर की बात करें तो वहां राहुल बारपुते, राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, माणिकचंद वाजपेयी, कृष्ण कुमार अस्थाना, कमल दीक्षित जैसे बहुत प्रतिभाशाली संपादक हुए हैं।
- जो पत्रकार उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं उन्हें पत्रकारिता के सिद्धांत और उसका व्यावहारिक ज्ञान दोनों होना चाहिए। यही हमारा लक्ष्य।
- जिस तरह आप राजनीति को नेताओं के भरोसे नहीं छोड़ सकते, उसी तरह पत्रकारिता को केवल पत्रकारों भरोसे नहीं छोड़ सकते क्योंकि पत्रकारिता का कर्म सार्वजनिक होता है, व्यक्तिगत नहीं।
पूरा इंटरव्यू देखने के लिए
https://www.youtube.com/watch?v=6RAWN84jcYI