(तीन दिसंबर 2014 को लंबी बीमारी के बाद श्री ए.आर. अंतुले का निधन हो गया है। श्री अंतुले का यह इंटरव्यू साप्ताहिक दिनमान में प्रकाशित हो चुका है)
सवाल प्रकाश हिन्दुस्तानी के जवाब अब्दुल रहमान अंतुले के
महाराष्ट्र के भूतपूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले न्यासों के गठन के चक्रव्यूह में इस तरह धंसे कि आज वह अपने को अपनों में भी अजनबी पा रहे हैं। उनके विरुद्ध लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश श्री लेंटिन ने सही करार दे उनके भाग्य पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया। अपने पद से त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने न्यास से संबंध नहीं तोड़ा।
सर्वोच्च न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के निर्णय पर सहमति व्यक्त करते हुए राज्यपाल लतीफ को बिना मंत्रिमंडल की सलाह भूतपूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करने की सलाह दी। भारत के इतिहास में पहली बार एक राज्यपाल ने एक भूतपूर्व मुख्यमंत्री के विरुद्ध मुकदमा चलाने की कार्रवाई का अनुमोदन किया। यद्यपि अंतुले ने देशवासियों को वस्तुस्थिति से अवगत करने के लिए पत्रकार सम्मेलन करने की धमकी दी, लेकिन वह कार्यरूप नहीं ले सकी। दिनमान से बातचीत करने को वे तैयार हुए, जिसे अंजाम दिया प्रकाश हिन्दुस्तानी ने। बातचीत के चालीस मिटन तक शब्दों में बांध कर भेजते हुए प्रकाश हिन्दुस्तानी ने बंबई से लिखा :
लोग कहते हैं कि अंतुले ने इतना पैसा ट्रस्ट के नाम पर इसलिए जमा किया, क्योंकि वह ‘पंत प्रधान’ (प्राइम मिनिस्टर) बनना चाहते थे। अंतुले ने भी कहा कि ‘चीफ मिनिस्टर बनना कभी भी मेरा एम्बीशन नहीं रहा’ लेकिन वह यह भी कहते हैं कि ‘मैं हमेशा गरीब अवाम की सेवा करना चाहता हूं’। आजकल अंतुले परवरदिगार के प्रति ज्यादा आस्था रखते हैं। वह कभी भी इंटरव्यू में यह नहीं कहते कि मुझे इंदिरा गांधी ने चीफ मिनिस्टर बनाया था। वह कहते हैं परवरदिगार ने कुर्सी दी, उसी ने ले ली। १५ अगस्त की दोपहर एक बजे :
बंबई के मेरिन ड्राइव पर समुद्र के किनारे बने ‘भारत महल’ में जब मैं पहुंचा, तब दोपहर एक बजा था। मैं ठीक वक्त पर पहुंचा था। श्री अंतुले मुझे एक अलग कमरे में ले गए। बैठते ही सबसे पहले वह ‘आजादी की सालगिरह पर मुबारकबाद’ कहते हैं जो सुखकर लगता हैं। मैं टेप का स्विच ऑन करता हूं तो वे अजीब-सी नजरों से देखते हैं। मैं पूछता हूं कि क्या टेप बंद कर दूं। अंतुले कहते हैं, नहीं नहीं, मैं यह नहीं चाहता कि औरों की तरह आप भी मुझे गलत ‘कोट’ करें। अंतुले साहब का आशय उनके शब्दों को उद्धृत करने से था।
गत नौ अगस्त को आपके खिलाफ एक मुकदमा दगायर किया गया है और यह मुकदमा फौजदारी का है। इस बारे में आप क्या कर रहे हैं?
मुझे इस बारे में क्या करना है? यह मुकदमा तो एक तरह की अग्नि-परीक्षा है और मैं इसके लिए तैयार हूं, लेकिन मुझे मालूम है कि गत साल ९ अगस्त को एक समारोह हमने किया था। कई पुराने क्रांतिकारी और उनके रिश्तेदार आए थे। १९४२ के जमाने कीयाद उस वक्त लोगों ने की थी, जब हम आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे। समारोह हमने किया, यह गए साल का किस्सा है। और इस साल, ठीक उसी रोज हम पर वारंट आया। अब अगले साल ९ अगस्त को क्या होगा, हमें इसका अंदाजा नहीं है, लेकिन हमें किसी किस्म की चिंता नहीं है क्योंकि जो कुछ करता है, परवरदिगार करता है।
मैं समझता हूं कि जगह को देना भी और इज्जत आबरू के साथ वहां से निकालना भी परवरदिगार पर है, क्योंकि मैं गरीबों के लिए कुर्सी पर बैठा, गरीबों के लिए मैंने काम किया, इसीलिए मुझे वहां से निकाला गया। यह तो किसी ने भी नहीं कहा कि मैंने कभी पांच रुपए भी अपने लिए लिए हों। यही कहा गया कि मैंने गरीबों के लिए पैसा जमा किया और वह पैसा चेक से जमा किया। वह पैसा सही-सलामत बैंक में बाकी है। गरीबों के लिए अमीरों के पास से पैसा लिया और इसीलिए हमने गुनाह किया और अगर यह गुनाह है तो हमने वह कुर्सी छोड़ दी।
हमारा उस कुर्सी पर बैठना जितनी इज्जत और तौकीर की बात नहीं थी, उतना इस कुर्सी से गरीबों के लिए काम करते हुए हटना तौकीर की बात थी। तो यह जो राजनीति है, उसमें ईश्वर ने हमारी दुआ मकबूल की और इसीलिए हमें उसने कुर्सी पर बिठाया और इज्जत के साथ उस कुर्सी से हटाया भी।
आजकल आपकी दिनचर्या क्या होती है?
परमात्मा की दया से अभी तक लोगों का मिलना-जुलना लगा रहता है। आप गलत अर्थ म ेंन लें तो कहूं कि हुजूम लगा रहता है। महाराष्ट्र के एमपी, एमएलए और अन्य नेता आते रहते हैं। चार घंटे मैं उनके लिए रोज अलग रखता हूं, तो भी मुझे यह टाइम कम पड़ता है। यदि आज १५ अगस्त न होता तो शायद इस वक्त मैं आपसे भी नहीं मिल पाता।
आपसे मिलने जो लोग आते हैं, खासकर नेता लोग, उनसे क्या चर्चाएं होती हैं?
आप जिस तरह से बात कर रहे हैं, उस तरह से तो नहीं करते हैं। उनको मुझसे प्यार है, क्योंकि वे मुझे कुर्सी के कारण नहीं चाहते इसलिए जहां भी मैं हूं, वे मुझसे मिलने आ जाते हैं। कुछ लोग कुर्सी को मानते हैं, कुछ लोग व्यक्ति को। तो इन लोगों को मेरे ‘व्यक्ति’ से प्यार है।
पर किसी ने भी प्रहार किया तो आप उसे ‘हिट बैक’ करेंगे। इससे क्या तात्पर्य है?
मेरे नाम से बहुत सारी बातें छपीं हैं। छपती भी रहेंगी और ऐसी बात मैंने कभी किसी को नहीं कही। कोई भी बात जो मेरे नाम से छपे, वह अच्छी हो या बुरी, सही हो या गलत में कभी कांट्राडिक्ट नहीं करता। मेरे मामले में यह भी कहौ जाता है कि मैं बोली हुई बात का ही नहीं ऐसी किसी बात का भी कांट्राडिक्ट नहीं करता, जो मैंने बोली ही नहीं हो मगर फिर भी छप जाए।
आठ अगस्त को, जिस दिन श्रीमती गांधी बंबई में थीं, एक हिन्दी दैनिक में यह खबर छपी थी कि आपकी निष्ठा उनके प्रति पहले जैसी ही है। यह बात तो आपने कही थी न?
बिल्कुल सही है। यह मैंने जरूर कहा था और अभी मैं उनको नेता मानता हूं। उसमें से कोई चीज गलत नहीं समझता।
सुना है कि आपने अमिताभ बच्चन के साथ मिल कर एक वंâस्ट्रक्शन वंâपनी खोल ली है।
अमिताभ बच्चन के साथ मैंने कोई वंâपनी नहीं खोली है। बेचारे बीमार हैं इन दिनों। किसी के भी साथ मैंने कोई वंâपनी नहीं खोली हैं। चीफ मिनिस्ट्री के दौरान या चीफ मिनिस्ट्री जाने के बाद मैंने कोई भी वंâपनी नहीं खोली है।
आपके पास कौन सी किताब रखी हुई है? आप पढ़ रहे हैं इसे?
हां, चंद्रकांत गोगटे की मराठी किताब है- ‘आघात’ आज इस किताब का मेरे हाथ से विमोचन होना है, शाम पांच बजे। मैंने सोचा कि कार्यक्रम में जाने से पहले यह किताब पढ़ लूं, वहां बहुत सारे विद्वान लोग आने वाले हैं। किताब का प्रकाशन कोई राजनैतिक प्लेटफार्म तो नहीं है।
इसके अलावा आप और क्या पढ़ रहे हैं?
सर्वधर्म सम्भाव की किताबें पढ़ रहा हूं। हिन्दुस्तान के लोकतंत्र के लिए और एकता के लिए जो बहुत ही जरूरी है। उस सिलसिले में जरूरी मजाहब की वंâपेरेटिव स्टडी मैं कर रहा हूं।
कोई किताब लिख भी रहे हैं? एक अखबार में छपा था।
नहीं, लिखना अभी मैंने शुरू नहीं किया है। लिखना तो बाद में आता है। अभी तो मैं स्टडी कर रहा हूं। कुछ अपने मामूली से तजुर्बात जो उन्होंने कलमबंद किए हैं, पढ़ रहा हूं। कुछ किताब भी, जो मुख्तलिफ धर्म की हैं, पढ़ रहा हूं। मैं सैक्युलरिज्म का मायना अधर्मी होना नहीं समझता। सभी धर्मों को समान रूप से जानना और उनकी इज्जत करना, यही सैक्युलरिज्म हैं।
आप कहना चाहते हैं कि धर्म के प्रति आपकी आस्था बढ़ी है। आप कितनी बार रोज नमाज अदा करते हैं?
मेरा मानना है कि खुदा और इनसान के दरमियान जो रिश्ता है, आदमी को उसका प्रचार नहीं करना चाहिए। बस, अपनी क्षमता के मुताबिक उसकी खिदमत करते रहना चाहिए।
कुछ लोगों का कहना है कि चार अगस्त को आप जो प्रेस कांप्रेंâस करने वाले थे, उसमें इंदिरा गांधी के खिलाफ कोई बात बताने वाले थे, लेकिन आपने प्रेस कांप्रेंâस ही नहीं की।
मेरे दिमाग और दिल को मुझसे ज्यादा अच्छा जानने वाले लोग अगर दूसरे हैं तो इसका मतलब ये कि मैं अपने बारे में अनजाना हूं और वे मेरे बारे में जानकार हैं। अगर यह बात आपको मंजूर है तो जो वह कह रहे हैं, वही सही है।
आपकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा क्या है?
मैं राजनीति को सोशल वर्वâ के लिए एक जबर्दस्त मुफीद अमला या आलागाह मान कर आया हूं। मैं राजनीति में राजनीति के लिए नहीं, बल्कि गरीब अवाम की खिदमत करने के लिए आया हूं। यदि आप मेरी जिंदगी को देखें समझने की कोशिश करें, हालांकि इसके लिए आपको वक्त जाया करने की जरुरत नहीं हैं, क्योंकि मैं बहुत अदना आदमी हूं, तो आप पाएंगे कि मैंने बहुत छोटी उम्र में सोलह-सत्रह साल की उम्र में ही सोशल वर्वâ शुरू किया था। हमारे गांव में रास्ता नहीं था, तब हमने वहां मुफ्त मजदूरी करके वहां सड़क बनाई थी। सड़क के लिए जो सामान चाहिए था, उसके लिए मैंने हजारों रुपए इकट्ठा किए थे, गरीबों के काम के लिए पैसा इकट्ठा करना मेरे लिए कोई नई बात नहीं है और इंदिरा गांधी के साथ मैं १९५३ से हूं जब वह वर्विंâग कमेटी की मेम्बर भी नहीं थी। इंदिरा गांधी के साथ मैं तब भी रहा जब वह सत्ता में नहीं रहीं। कभी मैंने सोचा था कि मैं चीफ मिनिस्टर बनूंगा। अभी भी मैं नहीं सोचता कि मुझे चीफ मिनिस्टर बनना है। चीफ मिनिस्टर बनना कभी भी मेरा मकसद नहीं रहा, मेरा एंबीशन नहीं रहा।
क्या आपका एंबीशन चिफ मिनिस्टर से भी आगे कुछ बनने का है?
जब आप किसी पार्टी के मेम्बर होते हैं और पार्टी के नेतृत्व को मानते हैं, तो आपको ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। इंदिरा गांधी को मैंने १९५३ से नेता माना है और कभी आया, कभी गया वाली बात कभी नहीं की। एक लम्हे के लिए भी मैं उनसे अलग नहीं हुआ। जब मैंने उन्हें नेता माना है, तो मुझे किस रोल में मुफीद साबित होना है, यह जजमेन्ट उन्हीं को करना है। मैं बगैर किसी शिकायत के वहीं करूंगा, जो वह कहेंगी।
आपको मालूम ही है कि बाबासाहेब भोंसले आगामी सत्र के पहले ही मंत्रिमंडल फिर से बना रहे हैं। कहा जा रहा है कि आपके समर्थकों को मंत्रिमंडल से निकालने की फिराक में हैं। आपकी टिप्पणी?
यह तो आप भोंसले साहब से ही पूछिए। वैसे यह सब मैंने हालात पर छोड़ दिया है। जब मैंने चीफ मिनिस्ट्री छोड़ी तब विधायकों ने मुझ पर कांफिडेंस का प्रस्ताव पास किया था। तो आप किसे मेरा समर्थक कहते हैं और किसे मुखालिफ? सभी मेरे समर्थक हैं, आप समझिएगा मैं अपने आप को किसी का मुखालिफ नहीं समझता। भोंसले साहब क्या समझ रहे हैं, मुझे नहीं मालूम लेकिन मैं उनको मुखालिफ नहीं समझ रहा हूं।
आप इन दिनों मुख्यमंत्री नहीं हैं। तनख्वाह आपको नहीं मिलती। बैरिस्टरी आप करते नहीं हैं, अब तो फिर आपकी आजीविका वैâसे चलती है?
मैं आपको सलाह दूंगा कि आप इस किस्म के प्रश्न कभी किसी से न करें कि आप क्या खाते हैं, कितना कमाते हैं, कहां रहते हैं, आपकी कमीज फटी हुई कयों है? आप अपने पिता के घर में रहते हैं या दोस्त के घर में। इस तरह के सवालात का कोई मकसद नहीं है।
(दिनमान, २९ अगस्त-४ सितम्बर, १९८२)