2014 से अब तक भारत की अर्थव्यवस्था कहां पहुंची। जीडीपी, रोजगार, महंगाई, मुद्रा स्फीती, प्रतिव्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्र में हम कहां पहुंचे? एफडीआई के भरोसे शेयर बाजार का क्या हाल है और डॉलर कितना ऊंचा हो गया है? 8 साल पहले जिन वादों के साथ सरकार आई थीं, वे वादे अब कहां है?
आर्थिक क्षेत्र में लगातार लिखने वाले और अर्थव्यवस्था को भीतर तक समझने वाले पत्रकार आलोक ठक्कर से बातचीत।
मशहूर उर्दू साहित्यकार और कथाकथन के संस्थापक जमील गुलरेज़ विज्ञापनों की दुनिया से जुड़े रहे हैं। उन्होंने देश की नामचीन विज्ञापन एजेंसियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया हैं और विज्ञापन की फील्ड में नए कॉपीराइटर्स तैयार करने के लिए AAAI (एडवारटाइिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया) संगठन के लिए कई कोर्सेस संचालित किए हैं।
उनके शिष्य देश की बड़ी एजेंसियों में शीर्षस्थ पदों पर हैं। अब विज्ञापनों की दुनिया कैसी हैं, क्या-क्या बदलाव हुए हैं और हो रहे हैं? डिजिटल क्रांति ने विज्ञापनों की दुनिया को कैसे बदला हैं?
केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने पिछले दिनों कहा था कि हिन्दी, अंग्रेजी भाषा का विकल्प बनें। राजभाषा (Rajbhasha) को देश की एकता का अहम अंग बनाने का समय आ गया है। अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में संवाद करते हैं, तब हिन्दी भारत की भाषा होनी चाहिए।
दक्षिण भारत के कई नेता, लेखक, संगीतकार आदि इस बात का विरोध कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि इससे हिन्दी का साम्राज्यवादी रूप बढ़ेगा। एआर रहमान (AR Rehman) ने तो यहां तक कहा कि हिन्दी कभी संपर्क भाषा थी, लेकिन अब तमिल संपर्क भाषा हैं।
प्रसिद्ध पत्रकार, शोधार्थी और हिन्दी के लिए आवाज़ उठानेवाले राहुल देव इस विषय में क्या कहते हैं, उन्हीं से चर्चा।
जब एलन मस्क का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया गया था, तब उन्होंने सोशल मीडिया पर सन्देश पोस्ट किया था -"सोच रहा हूँ, ट्विटर खरीद लूं!" इसे तब मजाक समझा गया था, पर आज यह सच्चाई है। मस्क ने इस माइक्रो ब्लॉगिंग साइट को खरीदने के लिए 44 बिलियन डॉलर, यानी 3,36.800 करोड़ रुपये की डील की हैं।
क्या होगा इसका असर, इसी पर चर्चा डॉ. अमित नागपाल और डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।
अब क्या कहते हैं अभा कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव पंकज शर्मा। जिन्होंने Indore Dialogue के 18 अप्रैल 2022 के कार्यक्रम में कहा था कि कांग्रेस 137 साल पुरानी पार्टी हैं, जिसे अभी भी 12 करोड़ लोग वोट देते हैं। ऐसी पार्टी का भविष्य पाण्डेय जी (प्रशांत किशोर) जैसा कोई मार्केटिंग का व्यक्ति तय नहीं कर सकता। हजारों लोगों ने कांग्रेस के झंडे तले आजादी की लड़ाई लड़ीं और आज भी लोगों के अधिकारों के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं।
अपनी मार्केटिंग विशेषज्ञता के बदले पाण्डेय जी कांग्रेस का पूरा डाटा बेस चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि पार्टी कैसे चुनाव लड़ें और कैसे संसाधन जुटाए, यह भी वह ही तय करेंगे। लाखों कार्यकर्ताओं के बलिदान से खड़ी हुई पार्टी ऐसे किसी प्रस्ताव पर कैसे मान सकती है?
इसलिए पाण्डे जी का जाना तो तय था। वे अब भी झूठ बोल रहे हैं कि उन्होंने कांग्रेस का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। हां, कांग्रेस ने उन्हें एक ग्रुप में सदस्य बनाने की पहल की थी, लेकिन वे चाहते थे कि कम से कम उपाध्यक्ष की कुर्सी उन्हें मिले। जिस पर बैठकर वे पूरी पार्टी को डिक्टेट कर सकें।
राम मंदिर, सीएए, ट्रिपल तलाक और अनुच्छेद 370 के बाद अब कॉमन सिविल कोड का मुद्दा उठाया जा रहा है। इसी मुद्दे पर संविधान के अध्येता और सामाजिक कार्यकर्ता सचिन कुमार जैन से चर्चा शाम 6 बजे
भोपाल में गृहमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड में कॉमन सिविल कोड पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जाना है। उसका ड्रॉफ्ट तैयार किया जा रहा है। कॉमन सिविल कोड के बाद आम जनजीवन पर क्या असर पड़ेगा? इसी की पड़ताल लाइव में...
Uniform Civil Code: देश में एक बार फिर से समान नागरिक संहिता पर बहस शुरू हो गई है. उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया है. लेकिन सवाल ये है कि क्या राज्य सरकार का ऐसा करने का अधिकार है.
Uniform Civil Code: उत्तराखंड में बीजेपी के पुष्कर सिंह धामी को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद मिल गया है. मुख्यमंत्री के लिए जैसे ही उनका नाम तय हुआ, वैसे ही उन्होंने फिर से समान नागरिक संहिता का सुर छेड़ दिया. उन्होंने कहा कि सत्ता संभालते ही सारे वादों को पूरा किया जाएगा, जिसमें समान नागरिक संहिता का वादा भी शामिल है. धामी चुनाव प्रचार के दौरान भी कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कर चुके हैं.
समान नागरिक संहिता एक ऐसा मुद्दा है, जो हमेशा से बीजेपी के एजेंडे में रहा है. 1989 के लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में समान नागरिक संहिता का मुद्दा शामिल किया. 2019 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने समान नागरिक संहिता को शामिल किया था. बीजेपी का मानना है कि जब तक समान नागरिक संहिता को अपनाया नहीं जाता, तब तक लैंगिक समानता नहीं आ सकती.
समान नागरिक संहिता को लेकर सुप्रीम कोर्ट से लेकर दिल्ली हाईकोर्ट तक सरकार से सवाल कर चुकी है. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई. वहीं, पिछले साल जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र से कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी है.
समान नागरिक संहिता यानी सभी धर्मों के लिए एक ही कानून. अभी होता ये है कि हर धर्म का अपना अलग कानून है और वो उसी हिसाब से चलता है.
- हिंदुओं के लिए अपना अलग कानून है, जिसमें शादी, तलाक और संपत्तियों से जुड़ी बातें हैं. मुस्लिमों का अलग पर्सनल लॉ है और ईसाइयों को अपना पर्सनल लॉ. - समान -नागरिक संहिता को अगर लागू किया जाता है तो सभी धर्मों के लिए फिर एक ही कानून हो जाएगा. मतलब जो कानून हिंदुओं के लिए होगा, वही कानून मुस्लिमों और ईसाईयों पर भी लागू होगा. - अभी हिंदू बिना तलाक के दूसरे शादी नहीं कर सकते, जबकि मुस्लिमों को तीन शादी करने की इजाजत है. समान नागरिक संहिता आने के बाद सभी पर एक ही कानून होगा, चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या मजहब का ही क्यों न हो.