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पिछले हफ्ते अमेरिका के वाशिंगटन पोस्ट ने नरेन्द्र मोदी के बारे में एक बेहद आपत्तिजनक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें मोदी की तुलना किसी तानाशाह से की गई थी, लेकिन देखते ही देखते अमेरिकी मीडिया के स्वर बदले हुए नजर आ रहे हैं। अब अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने ओपिनियन पृष्ठ पर स्टीवन रेटनर का एक लेख छापा है, जिसका शीर्षक है - वाय इंडिया नीड्स मोदी। स्टीवन रेटनर ओबामा प्रशासन में ट्रेजरी सेक्रेटरी थे और उन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी की जीत न केवल उनके या उनकी पार्टी के लिए, बल्कि भारत के लिए भी अच्छी है।

रेटनर ने लिखा है कि नरेन्द्र मोदी ने बोल्ड आर्थिक नीतियां बनाईं और उस पर अमल किया। हालांकि वे बहुत ज्यादा विवादित रहीं, लेकिन मैंने पिछली भारत यात्रा में देखा कि भारत के 130 करोड़ लोग उन नीतियों से खुश हैं और इसके लिए नरेन्द्र मोदी को श्रेय देते हैं। नरेन्द्र मोदी ने भारत की जकड़ी हुई अर्थव्यवस्था को आर्थिक सुधारों के जरिये बदल दिया। फिर भी नरेन्द्र मोदी के सामने कई चुनौतियां है।

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लेख के अनुसार नरेन्द्र मोदी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत में उत्पादकता बढ़ाने की है। भारत में शहरीकरण कम हुआ है और यह कम उत्पादकता का एक कारण है। चीन में 59 प्रतिशत आबादी महानगरीय है। जबकि भारत में केवल 34 प्रतिशत आबादी ही शहरों में रहती है। भारत के शहरों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बहुत ही कमजोर है। उसे सुधारना एक बहुत बड़ी चुनौती है।

रेटनर के अनुसार नरेन्द्र मोदी ने जो सुधार किए है, वे भले ही छोटे दिखते हो, लेकिन उनका बहुत महत्व है। भारत जैसे देश में टैक्स सुधारों को लागू करना कोई आसान बात नहीं है, जो उन्होंने कर दिखाया। इस सुधार से फायदा यह हुआ कि जो व्यापारिक सौदे अनौपचारिक रूप से होते थे, उन्हें अब नियम के अनुसार करना जरूरी हो गया है। इस तरह अब व्यापारियों के लिए टैक्स चुराने की कोई गुंजाइश नहीं बची।

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नरेन्द्र मोदी ने दीवालिया होने के नियमों में भी परिवर्तन किया है। यह भी एक ऐसा परिवर्तन है, जो मामूली दिखता है, लेकिन उसका असर प्राइवेट निवेशकों पर सकारात्मक पड़ रहा है। इस तरह सुधारों की एक लंबी लिस्ट बनाई जा सकती है, जो नरेन्द्र मोदी ने की है। नरेन्द्र मोदी के प्रयासों के कारण ही भारत में ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रिपोर्ट पर सकारात्मक प्रभाव नजर आया। कारोबार करने की सुविधाओं के बारे में अब भारत का नंबर 100 से बेहतर होकर 77वें स्थान पर आ गया है। नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छता का अभियान भी चलाया और स्वच्छ सरकार का भी।

प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी का पहला कार्यकाल आर्थिक दृष्टि से बहुत चमकदार नहीं कहा जा सकता। भारत में लोगों का जीवन स्तर सुधारने की कोशिशें अभी भी चीन की तुलना में कम है। अनेक मामलों में भारत का विकास बाधित हो रहा है। अभी बहुत से कृषि सुधार बाकि है, जो कोई आसान चीज नहीं है। नोटबंदी जैसे फैसलों का भी बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। डॉलर के मुकाबले भारतीय रूपए की कीमत नीचे गिरी है, जिसका असर अर्थव्यवस्था पर हुआ है, क्योंकि भारत को बड़ी मात्रा में तेल आयात करना होता है। भारत अपनी वर्तमान क्षमता, आधारभूत संरचना और निजी सेक्टर के भरोसे चीन जैसी तरक्की नहीं कर सकता। 1990 के दशक में भारत और चीन दोनों की अर्थव्यवस्था लगभग समान थी। आज भारत में ग्राॅस डोमेस्टिक प्राेडक्ट पर पर्सन करीब 2000 डॉलर है, जबकि चीन में 8800 डॉलर। अगर वर्तमान हालात नहीं बदले गए, तो भारत 2047 तक चीन से पीछे ही रहेगा।

विकास की गति को बल देने के लिए रेटनर का सुझाव है कि भारत को अपने कई कानूनों को शिथिल कर देना चाहिए और सरकारी कंपनियों को निजी सेक्टर के हवाले कर देना चाहिए। अभी भारत को बहुत काम करना बाकी है।

दिलचस्प बात यह है कि अमेरिकी अखबार वाशिंगटन पोस्ट ने पिछले हफ्ते एक भारतीय पत्रकार राणा अय्यूब का लेख प्रकाशित किया था, जिसमें नरेन्द्र मोदी के बारे में कई आपत्तिजनक बातें थीं। अखबार ने लिखा था कि नरेन्द्र मोदी भारत में विभाजन की राजनीति कर रहे हैं और इनके रहते भारत के दो प्रमुख धर्मों को मानने वाले लोग टकराव की स्थिति में है। लेख में यहां तक कहा गया था कि भारत का अल्पसंख्यक समुदाय अपने आप को सुरक्षित महसूस नहीं करता। उस लेख में नरेन्द्र मोदी की तुलना किसी तानाशाह की तरह की गई थी। लेख के साथ जो चित्र छपा था, उसमें नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी भारत के नक्शे को खींचते दिखाई दिए थे, जिससे भारत के दो टुकड़े हो रहे थे।

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