लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार सफलता पर संडे गार्डियन में एक विशेष रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट के अनुसार चुनाव में भारी सफलता के पीछे जो मुख्य कारण है, वह है मतदाता का मन समझने में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की कुशलता। अखबार के अनुसार दोनों नेता मतदाता के मन में क्या है, यह बात समझने में पूरी तरह सफल रहे और उन्होंने उसी के हिसाब से चुनाव अभियान चलाया। नतीजे में लोगों ने उन्हें भारी सफलता प्रदान की। नरेन्द्र मोदी की हाल ही में 8 जून को हुई सभा में उन्होंने इसका जिक्र भी किया है।
दूसरी बार प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने अपनी पहली चुनावी रैली और भाषण के लिए केरल राज्य को चुना, जहां से भाजपा का एक भी सांसद नहीं जीत सका। उन्होंने केरल के अपने भाषण में कहा कि हम राजनीति में सरकार नहीं देश बनाने आए है। यह बात उपस्थित भीड़ को पसंद आई। चुनाव के नतीजे आने के बाद जब दूसरी पार्टी के नेता थकान दूर करने में व्यस्त है। ऐसे में नरेन्द्र मोदी आगामी चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। नरेन्द्र मोदी और अमित शाह दोनों का साढ़े तीन दशक पुराना राजनैतिक सहयोग है और अब दोनों भारतीय राजनीति के मंच पर दो सबसे शक्तिशाली नेता बनकर उभरे हैं। चुनाव के पहले जब टिकटों का बंटवारा हो रहा था, तब मोदी और शाह बंद कमरे में बैठकर घंटों भावी प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा कर रहे थे। उनके दिमाग में प्रत्याशियों की योग्यता क्या होनी चाहिए, यह बात साफ थी। बिना किसी भेदभाव और दबाव के उन्होंने भाजपा के प्रत्याशियों का चयन किया। इस बात को पूरी तरह ध्यान दिया गया कि प्रत्याशी अपने चुनाव क्षेत्र में कितनी प्रतिष्ठा रखता है, वह कितना ईमानदार है, कितना मेहनती है, उसका बौद्धिक स्तर क्या है और लोगों से उसका संपर्क कैसा है।
भाजपा के ही अंदरूनी सूत्र कहते है कि दोनों नेताओं ने कुछ खास संसदीय क्षेत्रों में ऐसे उम्मीदवारों को मौका दिया, जो जीतकर आ सकें और भाजपा की प्रतिष्ठा के अनुकूल हो। दोनों ही नेताओं का कोई भी फेवरेट उम्मीदवार नहीं था। पार्टी के प्रति उनकी वफादारी ही सबसे बड़ा पैमाना रहा।
भाजपा से उलटा कांग्रेस में उन लोगों को टिकट दिया गया, जो दिल्ली में उनके नेताओं के करीबी थे और गांधी परिवार के विश्वास पात्र थे। कांग्रेस जिनको चुनाव जीतने लायक उम्मीदवार समझते थी, वे भी चुनाव में हार गए। पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष, भूतपूर्व मुख्यमंत्री, भूतपूर्व मंत्री, सांसद आदि कांग्रेस के टिकट पर नहीं जीत पाए। मोदी और शाह का फॉर्मूला स्पष्ट था कि आप (मतदाता) हमें इसलिए वोट दें, क्योंकि हमने फलां काम किया है।
इसके लिए मोदी और शाह ने कड़ा अभ्यास किया। 2009 में यूपीए की सरकार दोबारा बनने पर उन्होंने उसकी बारीकी से समीक्षा की। फिर मोदी ने न्यू इंडिया का फॉर्मूला आगे किया। उन्होंने इस बात का भी ध्यान रखा कि यूपीए के दूसरे दौर में वे कहां-कहां असफल रहे। अखबार के अनुसार 2014 में मोदी ने मनमोहन सिंह को नहीं हराया, बल्कि लोगों ने कांग्रेस पार्टी को हराया था, क्योंकि लोग चाहते थे कि भारत की इकॉनामी फास्ट फाॅरवर्ड मोड में आगे जाए। कांग्रेस ने न्यू इंडिया का नारा दिया था, लेकिन मोदी सरकार ने 2014 में लोगों को आश्वस्त किया कि भाजपा ही अर्थव्यवस्था को फास्ट फॉरवर्ड मोड में ले जा सकती है। मोदी बार-बार देशवासियों को कहते रहे कि भारत सुरक्षित हाथों में है, आप परवाह न करें। भाजपा ने सरदार पटेल के नाम का उपयोग भी इस तरह किया कि नई पीढ़ी के लोगों को यही लगता है कि सरदार पटेल कांग्रेस के नहीं भाजपा के नेता रहे होंगे। नरेन्द्र मोदी के कार्य करने का अंदाज भी एक सीमा तक इंदिरा गांधी के अंदाज से मिलता है, जिसमें वे प्रशासन के भीतर अपनी गुप्त पकड़ बनाए रखते है। मोदी और शाह भारत के गरीब मतदाताओं को उसी तरह आश्वस्त करने में कामयाब रहे, जैसे इंदिरा गांधी गरीबी हटाओ के बारे में लोगों को आश्वस्त करने में सफल हुई थी।