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नरेन्द्र मोदी कोई जम्मू-कश्मीर के वोटों से प्रधानमंत्री नहीं बने, वे पूरे देश से मिले वोटों के कारण प्रधानमंत्री बने हैं। इसलिए उन्हें जम्मू-कश्मीर के सीमित वोटों की उतनी आवश्यकता नहीं। वे यह बात जानते थे कि जम्मू-कश्मीर के बारे में उनका बड़ा फैसला देश सिर-आंखों पर लेगा और हुआ भी यही। पूरे देश में जिस तरह केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत हो रहा है। जगह-जगह मिठाइयां बांटी जा रही है, जश्न हो रहे हैं , उससे लगता है कि यह वाकई एक ऐतिहासिक दिन है। इससे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ पाकिस्तान को है। पाकिस्तान की तरफ से कोशिश हो रही है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्ज़ा ख़त्म किये जाने को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) और यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में चुनौती दी जाये और मानव अधिकारों का मुद्दा बना लिया जाए।

विपक्ष की बोलती बंद है। अब कांग्रेस के ग़ुलाम नबी आज़ाद कहते रहे कि यह फैसला वोट की खातिर लिया गया है। हां, लिया गया है वोट के खातिर। प्रधानमंत्री तो वोटों से ही चुना जाता है। ग़ुलाम नबी आज़ाद जो विरोध कर रहे हैं , वह क्या उनकी पार्टी के हित के लिए नहीं है। वास्तव में यह फैसला ऐसा है, जो कांग्रेस के लिए न निगलते बन रहा है, न उगलते बन रहा है। खुलकर समर्थन कर नहीं सकते और अगर विरोध करेंगे, तो आगामी चुनावों में देश भर के मतदाता के सामने क्या मुंह लेकर जाएंगे? समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी आदि के नेताओं को यह बात समझ में आ गई कि जब पूरा देश इस फैसले के साथ है, तो इस फैसले का विरोध करने से कुछ हासिल होना नहीं।

फारूख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और मेहबूबा मुफ़्ती की राजनीति अब बेलगाम नहीं रहेगी। अब वे अनुच्छेद 370 में स्वशासन और स्वयत्ता की बातें कर रहे हैं। फारूख अब्दुल्ला तो यहां तक कह चुके थे कि अनुच्छेद 370 को हटाने का कोई सपना भी नहीं देख सकता। यह अनुच्छेद तब तक मौजूद रहेगा, जब तक कि कश्मीर समस्या का पूर्णरूपेण हल नहीं हो जाता। इस अनुच्छेद से छेड़छाड़ भारत के साथ जम्मू एवं कश्मीर के संवैधानिक संबंधों को खत्म कर देगी। नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं का कहना था कि हमारा भारत में कोई विलय हुआ ही नहीं। हमारा भारत से जो कुछ संबंध है, वह अनुच्छेद 370 के कारण है। अगर अनुच्छेद 370 हट जाता है, तो जम्मू-कश्मीर का भारत से नाता खत्म हो जाएगा। महबूबा मुफ़्ती भी यह बात कहती थी कि अगर अनुच्छेद 370 को हटाया तो अलगाववाद की भावनाओं की बाढ़ आ जाएगी। कोई भी इसका समर्थन नहीं करेगा।

अब कांग्रेस कह रही है कि संविधान की हत्या हो गई। पीडीपी पार्टी के नेता कह रहे है कि यह काला दिन है। महबूबा मुफ़्ती सभी विपक्षी दलों को साथ आने की बात कह रही है। यह उनकी राजनीतिक मज़बूरी ही है। अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद आखिर वे क्या मुंह लेकर अपने इलाके में वोट मांगने जा सकती है? महबूबा पहले कहती थीं कि वे अनुच्छेद 35ए की हिफाजत के लिए जेल जाने को तैयार है। इसी अनुच्छेद में स्थायी नागरिक की परिभाषा तय की गई थी। इसी में राज्य में संपत्ति की खरीद, मालिकाना हक का अधिकार, राज्य की नौकरियों में स्थान, स्कॉलरशिप और दूसरी योजनाओं का फायदा जम्मू-कश्मीर को मिलता रहा है। पिछले 70 वर्षों में खरबों रुपये की मदद भारत सरकार जम्मू-कश्मीर को करती रही। जम्मू-कश्मीर के नौकरशाहों और नेताओं के एक वर्ग ने उसका बहुत निजी लाभ उठाया है।

अब भारतीय जनता पार्टी मतदाताओं के सामने जाकर आर्थिक मुद्दे पर विफलताओं की मदद से लोगों का ध्यान इस तरफ खींच सकती है। अर्थव्यवस्था में मंदी की खबर अब या तो ग़ायब हो गई है या मामूली सी ख़बर बनकर रह गई है। अब भाजपा कहेगी कि देखिए, हमने जिन मुद्दों पर चुनाव लड़ा, उनके बारे में फैसले भी किए। आज अनुच्छेद 370 का मामला सुलटा है। कल को अयोध्या विवाद भी निपटा लेंगे और भव्य राम मंदिर का निर्माण भी शुरू करवा देंगे। जो लोग यह कह रहे है कि जम्मू-कश्मीर एक कांट्रैक्ट के तहत भारत संघ में मिला था। वे यह बात भी याद रखे कि वह कांट्रैक्ट संविधान का अस्थायी अनुच्छेद था। अब जम्मू-कश्मीर अखंड भारत का हिस्सा है और विशेष राज्य की जगह केन्द्र शासित प्रदेश की तरह है। कांट्रैक्ट की परवाह क्या कश्मीरियों ने कभी की या पाकिस्तान ने की?

केन्द्र सरकार के इस फैसले का विरोध कोई कर रहा है, तो मुख्यत: जम्मू-कश्मीर की पार्टियां, कांग्रेस, मुस्लिम लीग और कुछ क्षेत्रीय दल। केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत जिस संकल्प से अनुच्छेद 370 बेअसर हो गया, उसके लिए अब आगे जाकर संविधान में संशोधन की आवश्यकता भी होगी। कानूनी दांव-पेंच भी लड़े जाएंगे। सरकार ने अनुच्छेद 370 के ही खंड-1 के उपखंड डी का इस्तेमाल करते हुए अनुच्छेद 370 के अधिकारों को ख़त्म कर दिया। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा भी इसी से प्राप्त था। जब जम्मू-कश्मीर का विलय भारत गणराज्य में हुआ, तब यह तय था कि रक्षा, वित्त और संचार के मामलों को छोड़कर सभी मामलों पर फैसला राज्य सरकार ही लेगी। अब यह प्रावधान हटने से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अलग-अलग केन्द्र शासित राज्य हो गए हैं। अब राज्य के बारे में जो भी फैसले लेने होते थे, वे विधानसभा की मंजूरी से लेकर हो जाएंगे। राष्ट्रपति अपने निहित अधिकारों का उपयोग जम्मू-कश्मीर में बेरोक-टोक कर सकेंगे। जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की मंजूरी की जरुरत अब नहीं है। अब जम्मू-कश्मीर का कोई अलग संविधान और झंडा नहीं रहेगा। विधानसभा का कार्यकाल 5 साल का होगा। जम्मू-कश्मीर के नागरिक दोहरी नागरिकता रखते थे, वे भारत के भी नागरिक थे और जम्मू-कश्मीर के नागरिक भी। अब वे केवल भारत के नागरिक होंगे। इसके बहुत सारे निहितार्थ है। दोहरी नागरिकता खत्म होने पर अब पाकिस्तान से आया कोई भी आतंकवादी जम्मू-कश्मीर की किसी महिला से शादी करके जम्मू-कश्मीर का नागरिक नहीं बन पाएगा। जम्मू-कश्मीर के कई नेता इसका फायदा उठा रहे थे, उनकी एक बीवी लंदन में, दूसरी पाकिस्तान में और दो कश्मीर में होती थी। पाकिस्तानी आतंकवादी अब आसानी से कानूनी पनाह नहीं ले पाएंगे। केवल कश्मीरी युवती से शादी कर लेने मात्र से वे जो फायदा उठाते थे और आतंकी गतिविधियों को कानूनी जामा पहनाते थे, वह नहीं हो पाएगा।

  1. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने इस मुकाम तक आने के लिए काफी लंबा होमवर्क किया। 14 मई 1954 को राष्ट्रपति के आदेश से भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35ए जोड़ा गया। राष्ट्रपति के आदेश से ही अब वह समाप्त हो गया। सुप्रीम कोर्ट में इस अनुच्छेद को चुनौती भी दी गई थी और कहा गया था कि यह अभी तक संविधान में नहीं जोड़ा गया है। यह संविधान का स्थायी अनुच्छेद नहीं है। इस कारण जो लोग जम्मू-कश्मीर में रहते हैं, लेकिन वहां के स्थायी नागरिक नहीं हैं, वे न तो कोई नौकरी पा सकते हैं, न चुनाव में वोट दे सकते हैं , न चुनाव लड़ सकते हैं । कश्मीर मूल के निवासियों के नाम पर देश के ही अन्य नागरिकों के साथ यह भेदभाव नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 370 को लागू करने और संशोधन करने के मामले में राज्यसभा में संकल्प पेश करके पूर्ववर्तीय सरकारों में अपने कार्य को अंजाम दिया था। अब यही तरीका अपनाकर अमित शाह और नरेन्द्र मोदी अनुच्छेद 370 को अप्रभावी बना रहे हैं , तो इसमें आपत्ति के लिए जगह नहीं बचती। कांग्रेस हमेशा यह कहती रही है कि जम्मू-कश्मीर भी भारत का अंग है, लेकिन कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न पर जितना कुछ किया जाना चाहिए था, वह नहीं किया गया। केन्द्र में कांग्रेस की सरकार के रहते जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के सामने शांति अभियान भी चले। रमज़ान के दिनों में आतंकियों को खुलेआम घूमने दिया जाता था, उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं होती थी और सैन्य बलों को अधिकारहीन कर दिया गया था। जब कांग्रेस के पास लोकसभा में 407 सदस्य थे और राज्यसभा में भी स्पष्ट बहुमत था, तब भी उसने इस तरह का कोई फैसला नहीं किया। अब पीडीपी और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के नेता विधानसभा चुनाव तो लड़ेंगे, लेकिन वहां की विधानसभा दिल्ली या पुडुचेरी की तरह होगी। मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री ही रहेगा, लेकिन वे असीमित अधिकार अब नहीं रहेंगे, जिनका फ़ायदा वे उठाया करते थे। अब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री की कार पर जम्मू-कश्मीर का झंडा नहीं, तिरंगा झंडा ही होगा। मुख्यमंत्री निवास पर भी तिरंगा होगा और सभी लोग केवल तिरंगे को ही सलामी देंगे। इसमें ग़लत क्या है? पूरे देश के लोग राष्ट्रध्वज को ही सम्मान देते है और उसका अभिनंदन करते है। भारत के संविधान के होते हुए जम्मू-कश्मीर के संविधान की कोई ज़रूरत नहीं है। किसी और राज्य के पास इस तरह के अधिकार नहीं है, तो जम्मू-कश्मीर के पास क्यों रहे। जम्मू-कश्मीर तो और भी ज्यादा संवेदनशील इलाका है। पाकिस्तान की सीमा से लगा होने के कारण उसकी गंभीरता अधिक है।

जो नेता यह कह रहे है कि इससे जम्मू-कश्मीर की पहचान खत्म हो जाएगी, कश्मीरियत मर जाएगी, स्थानीय लोगों की उपेक्षा होगी, वे इस बात पर क्यों नहीं सोचते कि अगर केरल भारत में रहते हुए अपनी पहचान बनाए रख सकता है, महाराष्ट्र अपनी पहचान बनाए रख सकता है, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना जैसे हर राज्य अपनी पहचान बनाए रख सकते हैं , तो जम्मू-कश्मीर की पहचान को कोई कैसे नष्ट कर सकता है। रही कश्मीरियत की बात, तो जो कश्मीरी विदेश जाकर भी अपने आप को कश्मीरी कहता है, वह एक संवैधानिक प्रस्ताव के कारण कश्मीरियत कैसे खो देगा?

वास्तव में केन्द्र सरकार का यह प्रस्ताव ऐसे वक्त पर आया है, जब देश में स्वतंत्रता दिवस की तैयारी चल रही है। चार राज्यों में विधानसभा चुनाव आसन्न है। कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर संकट है और दूसरी विपक्षी पार्टियों को कुछ सूझ नहीं रहा कि वे क्या करें? पीडीपी के अलावा जो भी पार्टी इस फैसले का विरोध कर रही है, उसके सामने आगामी चुनाव भी नजर आ रहे है। अगर उन्होंने यहां केन्द्र का विरोध किया, तो चुनाव में क्या मुंह लेकर लोगों के पास जाएंगे। भाजपा ही तब उन लोगों से सवाल करेगी कि आप ही थे न, जो अनुच्छेद 35ए और 370 के पक्ष में थे और जब उसे अप्रभावी बनाया जा रहा था, तब विरोध कर रहे थे। यह बात उन्हें भी समझ आ रही है कि देश की सरकार पूरे देश के वोटों से चलती है, केवल जम्मू-कश्मीर के वोटों से नहीं।

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