मैंने पत्रकारिता की शुरूआत इंदौर में नईदुनिया से की थी और बाद में मुंबई में धर्मयुग और नवभारत टाइम्स में डेढ़ दशक बिताकर इंदौर के दैनिक भास्कर में आया था और वहां से हिन्दुजा समूह के न्यूज़ चैनल में काम कर रहा था। अभय जी से मिला तो उन्होंने कहा कि सुना है तुम पत्रकारिता में कुछ नया करना चाहते हो? मैंने हाँ कहा तो बोले -चेतक सेंटर जाकर विनय जी (वे अपने बेटे के नाम के आगे भी जी लगाते थे) से मिल लो, वे हिन्दी में इंटरनेट पर पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ बड़ा काम करना चाहते हैं।
मैं विनय छजलानी से मिला, जिन्होंने अमेरिका जाकर पढ़ाई तो प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी में की थी, लेकिन उनका विज़न कुछ खास था। अमेरिका में उन्होंने बहुत कुछ सीखा था। विनय जी को लोग 'वीसी' कहते थे, इसके पहले मैंने टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में 'वीसी' के जलवे देखे थे, जहाँ समीर जैन बेनेट,कोलमैन एंड कंपनी के वाइस चेयरमैन थे, लेकिन यहाँ वीसी विनय छजलानी के लिए प्रयुक्त होता था। विनय जी उन दिनों सुवि (जो उनकी पत्नी सुनीता के सु और विनय के वि को मिलाकर बना था) इन्फो के मालिक, सीईओ, एमडी और न जाने क्या-क्या थे। उन्होंने इंटरनेट के बारे में पूछा, कंप्यूटर के बारे में मेरी जानकारी को समझा। मुझे कहा गया कि मैं कंप्यूटर पर यानी इंटरनेट पर पत्रकारिता के नए क्षेत्र में काम करने का ख़ाका तैयार करूँ।
लेकिन समस्या यह थी कि मेरे पास कंप्यूटर नहीं था और 'सुवि' में भी कोई कंप्यूटर उपलब्ध नहीं था। संसाधन सीमित थे। प्रस्ताव आया कि क्या मैं रोज सुबह सात बजे से दस बजे तक खाली उपलब्ध कंप्यूटर का उपयोग कर सकता हूँ। मैं कहा - ठीक है। और इस तरह मैं हिन्दी के सर्वप्रथम पोर्टल का सर्वप्रथम सम्पादक बना। मैं न केवल पहला सम्पादक था, बल्कि पहला एम्लाई भी था। मुझे ही पूरी टीम जोड़नी थी।
उन दिनों भारत की गिनी-चुनी वेबसाइट ही उपलब्ध थी। हिन्दी की तो कोई भी नहीं। कुछ माह बड़े संघर्ष में बीते। बिजली गुल होना आम बात थी, इन्वर्टर नहीं थे, सुवि का ऑफिस छठवीं (वास्तव में अपर ग्राउंड और मेजेनायन फ्लोर के कारण आठवीं) मंजिल पर था और सुबह-सुबह लिफ्ट बंद रहने से मुझे ऊपर तक पैदल ही आना होता था। इतनी सुबह ऑफिस ने सफाई नहीं होती थी, चाय का तो सवाल ही नहीं था। मैंने वेबदुनिया पोर्टल की रूपरेखा बनाई। इसके पहले मुझे पोर्टल और वेबसाइट का अंतर भी नहीं पता था। पत्रकार साथी मज़ाक में कहते थे कि तुम पत्रकार से कम्प्यूटर ऑपरेटर हो गए हो। मैं कहता - भविष्य इंटरनेट का है। एक दिन आएगा जब लोग मोबाइल पर इंटरनेट के माध्यम से वीडियो चैट करेंगे , बैंकिंग करेंगे और शॉपिंग करेंगे। तब मेरी बात पर लोग हंसते थे।
शुरू में हमने दैनिक नईदुनिया के इंटरनेट एडिशन के लिए काम किया फिर वेबदुनिया का ट्रायल शुरू हुआ। हाँ, वेबदुनिया का नाम पहले 'हिन्दी दुनिया' सोचा गया था। अनेक बैठकों और मंथन के बाद यह ख़याल आया कि हिन्दी दुनिया नाम सरकारी टाइप लगता है। इसलिए वेबदुनिया नाम के पक्ष में वोटिंग की गई। उन दिनों जोश, जूनून और जज़्बे का आलम ही कुछ और था। कई कई दिन घर जाना नहीं हो पाता था। ब्रेकफास्ट, लंच, डिनर सब कुछ दफ़्तर में। कई महीनों तक हमारी पूरी टीम काम के नशे में रही। बहुत मुश्किल से घरवालों ने उस नशे से मुक्त कराया।
धीरे-धीरे हालात सुधरे। निवेशक आये। सुवि इन्फो का कार्यालय महात्मा गांधी मार्ग की नई बनी लाभ गंगा बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ। फिर पलासिया गार्डन के सामने एक बिल्डिंग के तलघर में फिर वहां से नई दुनिया के न्यूज़ प्रिंट के गोडाउन में और फिर वापस पलासिया की एक बिल्डिंग में । (सुना है अब कुछ साल पहले उसका बहुत शानदार ऑफिस हो गया है।) मुझे मेरे काम के लिए ऑफिस में डेस्क टॉप उपलब्ध कराया गया। उन दिनों लेपटॉप लाख से ऊपर का होता था और काम कम शेखी बघारने के ज़्यादा काम आता था। उन दिनों मोबाइल पर कॉल के 16 रुपये 80 पैसे प्रति मिनट खर्च होता था। तब इनकमिंग कॉल के लिए भी 16 रुपये 80 पैसे देने होते थे। मोबाइल की सिम प्राप्त करना रसूख की बात होती थी। तब मिस कॉल देखकर लैंडलाइन से बात करने का चलन था।
उन दिनों की चुनौतियां अलग थीं। बार बार बिजली गुल हो जाती थी, इंटरनेट की स्पीड चींटी की चाल थी, एक-एक पेज अपलोड करने में दो-दो घंटे लग जाते थे, ट्रेंड स्टाफ नहीं मिलता था। कई बार यह सब बहुत ही हताश कर देता था लेकिन जब साइट के विज़िटर्स के बारे में रिपोर्ट आती थी, तब वापस जोश आ जाता था कि हम हिन्दी में इंटरनेट के लिए कार्य कर रहे हैं। पूरी दुनिया में हमें देखा और पढ़ा जा रहा है । हम न केवल पत्रकारिता कर रहे हैं, बल्कि नए माध्यम में हिन्दी को प्रस्थापित कर रहे हैं। वेबदुनिया कई मामलों में दुनिया में अव्वल रहा है।
जिस समय किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि इंटरनेट पर हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में ई-मेल भेजा जा सकता है, तब वेबदुनिया ने ई-पत्र के माध्यम से पहले हिन्दी और फिर 10 अन्य भारतीय भाषाओं में ई-मेल सेवा शुरू की थी। ई-पत्र दुनिया का पहला ट्रांसलिटरेट इंजन था, जिसके माध्यम से व्यक्ति रोमन में टाइप कर अपनी भाषा में अपना संदेश भेज सकता था। ई-पत्र पैड के माध्यम से वेबदुनिया ने ऑफलाइन भी यह सुविधा उपलब्ध करवाई थी, जिससे व्यक्ति ऑफलाइन भी अपनी भाषा में टाइप कर सकता था। कम्प्यूटर की भाषा में कहें तो यह कॉमन इंटरनेट ऑफलाइन यूटिलिटी सुविधा थी।
विश्व का पहला हिन्दी सर्च इंजन भी वेबदुनिया ने ही बनाया था, जिसकी लांचिंग हमने मुंबई जाकर होटल ताज इंटरनेशनल में की थी। वेब खोज नाम के इस सर्च इंजन में इंटरनेट पर खबरें, आलेख आदि सामग्री हिन्दी में भी ढूंढी जा सकती है, इसकी शुरुआत का श्रेय भी वेबदुनिया के खाते में ही दर्ज है। पोर्टल की शुरुआत के मात्र दो वर्षों के भीतर विश्व का पहला हिन्दी सर्च इंजन वेबदुनिया ने बनाया। संसदीय मामलों के विशेषज्ञ और साहित्यकार अशोक चतुर्वेदी के नेतृत्व में वेबदुनिया की सर्च टीम ने इसे बखूबी अंजाम दिया। आज जब हम समाचार या आलेख के साथ जरूरी की-वर्ड डाल देते हैं, यह तरीका बहुत आसान भी है। लेकिन उस दौर में हर खबर और आलेख के लिए अलग इंटरफेस के जरिए की-वर्ड डालना होता था। यह काफी परिश्रम वाला काम था, लेकिन इसी टीम की बदौलत शुरू हुआ विश्व का पहला हिन्दी सर्च इंजन। फिर खोज के नतीजे 100% सही आते थे जो कि वह काम ऑटो जेनरेटेड नहींं था बल्कि मैनुअल किया जाता था।
फ़ोनेटिक की-बोर्ड वेबदुनिया की तकनीकी दक्षता को दर्शाता है। जब किसी ने इंटरनेट पर अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में टाइप करने के बारे में सोचा भी नहीं था, तब वेबदुनिया ने फोनेटिक की-बोर्ड के माध्यम से हिन्दी समेत अन्य भारतीय भाषाओं में टाइप करने की सुविधा प्रदान की।
चैटिंग की शुरूआत। उस दौर में चैटिंग करना स्वर्ग की अप्सराओं से बात करने जैसा था। इसके किस्से और कहानियां बहुत ही रोचक और रोमांचक होते थे। इससे इंटरनेट की दुनिया में कार्यक्षमता बढ़ी और कार्य आसान होने लगा। किसी फाइल का रूट पूछने के लिए फोन करने की आवश्यकता नहीं थी और कोई खबर भेजने के लिए फैक्स की जरूरत नहीं थी। सब कुछ बहुत ही झटपट होता था। इस दौर में वेबदुनिया ने कई प्रयोगों में एक नया प्रयोग किया और वह यह कि चैट के माध्यम से देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल और जनता दल (यू) नेता, बाल ठाकरे, मुरलीमनोहर जोशी और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान से भारत के लोगों की सीधी बात कराई जाए। इस विचार को वेबदुनिया ने 29 सितंबर 2000 को चैट का आयोजन कर मूर्तरूप भी दे दिया। देशभर से हजारों लोगों ने दोनों से सीधे सवाल पूछे। यह बहुत ही रोमांचक था। पहले सिर्फ पत्रकार ही सवाल पूछते थे, लेकिन यह कमाल का अनुभव था कि देश की आम जनता भी सीधे नेताओं से सवाल पूछ सकती थी। उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी से भी चैट के माध्यम से लोगों ने बात की। आजकल तो गूगल हैंगआउट का जमाना है।
पहला ई-कॉमर्स- वेबदुनिया की पहल का नतीजा था। वेबदुनिया ने ई-कॉमर्स की शुरुआत तब की थी, जब इसके बारे में कोई बहुत अधिक नहीं जानता था। रक्षाबंधन के मौके पर बहनें अपनी राखियां डाक अथवा कोरियर से भेजती थीं, लेकिन विदेशों में भेजना तो और भी दुष्कर था। ऐसे में वेबदुनिया ने विदेश में रह रहे भाइयों के लिए न सिर्फ राखियां बल्कि मिठाई का पैकेट, हल्दी, कुमकुम और चावल भी नाममात्र के शुल्क पर पहुंचाया। जो काम आज अमेज़न कर रहा है, वह वेबदुनिया पहले ही कर चुका है।
इस दौर में बहुत सारे दबाव और लालच भी रहे कि आप हिन्दी या अन्य भारतीय भाषाएं छोड़ दें और अंग्रेजी को अपना लें या दूसरी यूरोपीय भाषा अपना लें तो ज्यादा कमाई सकते हैं, लेकिन वेबदुनिया के प्रबंधकों की यह नीति सराहनीय कही जाएगी कि उन्होंने हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं का दामन नहीं छोड़ा। आज दुनिया के कई देशों में वेबदुनिया और हिन्दी एक दूसरे के पर्याय हैं।
भारत में इंटरनेट की शुरुआत 80 के दशक से ही हुई, लेकिन विधिवत रूप से 15 अगस्त 1995 में भारत संचार निगम लिमिटेड ने गेटवे सर्विस लांच कर इसकी शुरुआत की। तब सिर्फ अंग्रेजी की वेबसाइटें होती थीं और सारा काम अंग्रेजी में ही होता था। भारत में इंटरनेट की शुरुआत के महज 3 साल बाद हिन्दी का पहला पोर्टल वेबदुनिया डॉट कॉम लांच हुआ। इसे हिन्दी भाषा के लिए नई क्रांति की शुरुआत माना गया।
मेरे बाद वेेेबदुनिया का नेतृत्व रवीन्द्र शाह ने संभाला; फिर मनीष शर्मा और जयदीप कर्णिक का आगमन हुआ। उन्होंने वेब दुनिया को नई ऊंचाइयां दी । किशोर भुराड़िया शुरू से वेबदुनिया से जुड़े रहे । वे वेबदुनिया के सीईओ रहे ।वेबदुनिया शुरू हुआ तब गूगल की उम्र एक साल 19 दिन थी। वेबदुनिया शुरू होने के चारमाह बाद चीन का बाइदू, 3 साल बाद लिंक्डइन, 5 साल बाद ऑर्कुट, 6 साल बाद यू ट्यूब, 7 साल बाद ट्विटर, 10 साल बाद व्हाट्स ऐप और कोरा, 11 साल बाद इंस्टाग्राम और बाइबर, 12 साल बाद स्नैपचैट, 14 साल बाद टेलीग्राम और 17 साल बाद टिकटोक आये, कई विलय हो गए, कुछ छा गए। वेबदुनिया सदा एक रफ्तार से चलता रहा।
वेबदुनिया के उस दौर के साथी याद हैं। अशोक चतुर्वेदी, सुधीर सक्सेना, नचिकेता देसाई, रवींद्र शाह, अजीत अंजुम, गीताश्री, निर्मला भुराड़िया, विकास मिश्र, बबिता अग्रवाल, पूर्णेन्दु शुक्ल, भूपेश गुप्त, अनिल कर्मा, राजन मिश्र, सुनील चौरसिया और अनेक साथी याद हैं। उनके अलावा अमित गोयल, आशीष, पंकज, महेन्द्र सांघी, परमिंदर, कर्नल देवगिरिकर, सीए सिंघी जैसे हमारे तकनीकी और प्रबंधन विशेषज्ञ सहकर्मी थे। कई नाम फ़िलवक्त भूल रहा हूँ। वे क्षमा करें।(नाम वरिष्ठता क्रम में नहीं हैं)
Sept 23, 2019. Indore