फेसबुक 16 साल का हो गया। उसके संस्थापक मार्क जकरबर्ग कहते हैं कि सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ है। जकरबर्ग का दावा सही है या गलत यह तो अभी भी विवादों में ही है, लेकिन यह तय है कि फेसबुक अब सोशल मीडिया का प्लेटफार्म भर नहीं रह गया है, बल्कि इससे अधिक एक ऐसी दैत्याकार कार्पोरेट शक्ति बन गया है, जो कई सरकारों की भी नहीं सुनता। सोशल मीडिया का उपयोग देशों की सीमाओं के बाहर धूर्त राजनेता अपने-अपने हिसाब से करते आ रहे है।
इसका एक नमूना पिछले दिनों सिंगापुर के चुनाव में देखने को मिला, जब एक यूजर ने सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में चुनाव धांधली का आरोप लगाया। फेक न्यूज के खिलाफ बने कानून पर चिंता व्यक्त करने वाली फेसबुक ने सरकार की तरफ से आए अनुरोध पर कोई ध्यान नहीं दिया। सिंगापुर की सरकार ने फेक न्यूज के खिलाफ एक कानून बना रखा है और वह कानून मंत्रियों को यह अधिकार देता है कि वे फेक न्यूज नजर आने पर सोशल मीडिया साइट को चेतावनी देते हुए उसे हटाने के आदेश दे सकते है। मानवाधिकार कार्यकर्ता इस कानून को गलत कहते है और फेसबुक बिना सच्चे या झूठे की परवाह किए बिना सरकारी आदेशों को मानने से इनकार कर देता है।
फेसबुक यह दावा करता है कि वह लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ है और अपने सभी यूजर्स को वह यह अधिकार देता है कि वे क्या पहले देखना चाहते है। प्रिंट और टीवी मीडिया में यह नहीं हो सकता। फेसबुक को अगर आप केवल सोशल मीडिया साइट समझते है, तो आप उसके बारे में कम जानते है, क्योंकि वह एक बड़ा अमेरिका कार्पोरेट बन चुका है, जिसका मुख्य धंधा विज्ञापन करना है।
पिछले साल फेसबुक का कुल रेवेन्यु 7 हजार करोड़ डॉलर से भी अधिक था। यानी करीब 5 लाख करोड़ रुपये के बराबर। फेसबुक के पास अब वाट्सएप, इंस्टाग्राम और ओकुलस भी है। फेसबुक मेंसेजर, फेसबुक वॉच, फेसबुक पोर्टल आदि भी उसके हिस्से में है। 2005 में फेसबुक का रेवेन्यु केवल 9 डाॅलर था। वह फॉर्च्युन 500 कंपनियों में शामिल हैं। 10 हजार करोड़ डॉलर से अधिक की इक्विटी उसके पास है। फेसबुक का दावा है कि वह दुनिया को देश की सीमा से अलग हटकर देखने में मदद करता है और पूरी दुनिया के लोगों को समवेत रूप में जोड़ता है।
एक सप्ताह पहले नाजदाक में फेसबुक के शेयर के दाम एकदम से गिर गए। इससे नाजदाक के शेयर कारोबारियों में तूफान मच गया। आज भी नाजदाक में लोग फेसबुक के शेयर खरीदने में खुशी महसूस करते है और उन्हें लगता है कि दीर्घकालीन निवेश के रूप में फेसबुक एक अच्छा विकल्प हो सकता है। फेसबुक खुद ऐसी खबरों को बढ़ावा देता है, जिससे निवेशकों के मन में ऊर्जा का संचार होता रहे।
दुनियाभर में फेसबुक के करोड़ों यूजर्स फेसबुक से खुश ही है, यह नहीं कहा जा सकता। बार-बार ऐसे अभियान चलते है, जिनमें लोग फेसबुक अकाउंट को डिलीट करने की बातें करते है। लोगों को लगता है कि फेसबुक उनके तनाव में वृद्धि का कारण बन रहा है। कही-कहीं तो लोग मानसिक विकार के लिए भी फेसबुक को दोषी कहते है।
फेसबुक खुद भी जितना मासूम बनता है, उतना है नहीं। वह लोगों को सोशल मीडिया का प्लेटफार्म यो ही उपलब्ध नहीं कराता। इसके बदले में उनकी प्राइवेसी पर डाका डाल देता है। वह लगातार लोकेशन आधारित विज्ञापन यूजर्स के सामने पेश करता रहता है। यहां तक कि अगर आप फेसबुक प्रोफाइल में अपना शहर नहीं भी लिखे, तब भी फोन की लोकेशन के आधार पर वह समझ लेता है कि आप किस लोकेशन पर है। आपका आईपी एड्रेस, वाईफाई और ब्लुटूथ डाटा फेसबुक के पास उपलब्ध रहता है। यहां तक कि अगर आप कोई पोस्ट टाइप करें और उसे डिलीट कर दें, तब भी फेसबुक उसे अपने रिकॉर्ड में ले लेता है।
वह अपनी यूजर की कॉल हिस्ट्री और एसएमएस डाटा को भी कलेक्ट करता रहता है। खासकर एंड्रायड यूजर्स के डाटा को, वह बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेता है।
फेसबुक ने चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर डेवलप कर रखे है और आप अगर अपने मित्रों की तस्वीरें वहां शेयर करें, तब वह आपके मित्रों के नाम भी टैग करने के लिए प्रस्तावित कर देता है। यहां तक कि वह चेहरे की पहचान करने वाले उपकरणों का उपयोग आपके अकाउंट को रिकवर करने के लिए भी कर लेता है। हाल ही में उसने जो वीडियो सेवा शुरू की है, उससे फेसबुक के विज्ञापनों की आय यू-ट्यूब से कही ज्यादा हो रहा है।
इंस्टाग्राम, फेसबुक कंपनी की आय का एक प्रमुख स्त्रोत बन चुका है और उसने अब यह सुविधा दे दी है कि एक ही स्ट्रीम में दो यूजर एक साथ लाइव कर सकते है। भविष्य में फेसबुक जिस तरह के चैट बॉट टेक्नोलाॅजी का उपयोग करने जा रहा है, उससे यूजर के मनपसंद स्टीकर, जीफ फाइल, पेमेंट, मुलाकात, व्हीकल राइड आदि के बारे में भी जानकारी इकट्ठी करना आसान होगा। फेसबुक खुद अपने यूजर को प्रस्तावित कर देगा कि उसके सामने कौन-कौन से स्टीकर्स या जीफ फाइल शेयर करने की सुविधा है।
आपके ई-पर्स में कितने पैसे बचे है और आप कहां-कहां से पैसे ट्रांसफर कर सकते है। फेसबुक अब अपना एक नया वीडियो ऐप भी ला रहा है, जो ऐपल टीवी के लिए होगा। फेसबुक ने लाइट ऐप भी बना रखे है, जिसके 20 करोड़ से अधिक यूजर्स है, जो लोग महंगे स्मार्ट फोन अफोर्ड नहीं कर पाते, वो भी फेसबुक लाइट के जरिये फेसबुक से जुड़े रहते है।
अंग्रेजी के लोकप्रिय लेखक स्टीफन किंग ने हाल ही में ट्वीट किया है कि मैं फेसबुक छोड़ रहा हूं, क्योंकि मैं उसकी गलत सलत सूचनाओं के भारी भरकम बोझ के तले दबा हुआ महसूस करता हूं। यहां राजनीतिक विज्ञापनों की भरमार है। झूठे दावे किए जाते है और गलत सूचनाओं के अम्बार में से सही सूचना ढूंढना मुश्किल काम है। स्टीफन किंग की तरह ही न्यूयॉर्क टाइम्स में प्रकाशित ओपिनियन कॉलम में लेखक जॉर्ज सोरोस ने दावा किया है कि फेसबुक गुपचुप तरीके से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनकी पार्टी के लिए कार्य कर रहा है। इसके बदले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फेसबुक और जकरबर्ग को कानून के दायरे में आने से बचाने का कार्य कर रहे है।
दावा किया गया है कि गत 19 सितम्बर को जकरबर्ग की ट्रम्प से होने वाली मुलाकात में यह बात कही गई थी कि फेसबुक पर झूठे अतिवादी और जोड़-तोड़कर तैयार किेए गए तथ्यों के बयान जगह नहीं पाएंगे। गलत सूचनाओं को प्रचारित-प्रसारित होने से रोका जाएगा। ट्रम्प ने कहा था कि फेसबुक एक मीडिया कंपनी है और उसे एक प्लेटफार्म कहना ठीक नहीं है।
जॉर्ज सोरोस खुद एक साॅफ्टवेयर इंजीनियर है। उनका कहना है कि सॉफ्टवेयर व्यवसायी होने का मतलब यह नहीं है कि आप कोई सुपर पॉवर है। ट्रम्प से मुलाकात के दौरान जकरबर्ग ने कहा था कि वे सभी सरकारी नियम कानून का पालन करेंगे, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा।
चीन और अमेरिका के व्यवसायिक रिश्तों के बारे में सभी जानते है। चीन में फैल रहे कोरोना वायरस की खबरें भी पूरी दुनिया में फैल रही है और उससे चीन का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
चीन के प्रभाव में आकर फेसबुक ने यह तैयारी कर ली है कि वह कोरोना वायरस के बारे में सूचनाओं को तेजी से फैलने में मदद नहीं करेगा। यहां तक कि फेसबुक ने पहली बार अपने ब्लॉग पर यह लिखा कि हम कोरोना वायरस के बारे में झूठी अफवाहों वाले पोस्ट को बढ़ने से रोकेंगे और स्थानीय प्रशासन की मदद करेंगे, ताकि स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो सकें।
फेसबुक खुद हर पोस्ट को करीब 160 तरीके की पड़ताल से गुजारता है। जो पोस्ट उसके फायदे में नहीं होती, उसे वह आपके मित्रों के सामने आने ही नहीं देता। यदि आप कोरोना हैशटैग से कोई पोस्ट फेसबुक पर शेयर करेंगे, तो वह आपके सभी मित्रों को उनकी न्यूज फीड में नजर नहीं आएगी।
फेसबुक जानबूझकर उन्हीं पोस्ट को प्रमोट करता है, जो उसके व्यवसायिक हित में होती है। इसे बोलचाल की भाषा में इस तरह समझ सकते है कि मानो आपके फेसबुक पर 5 हजार मित्र है, अब आप जो भी पोस्ट लिखते है, वह उन सभी 5 हजार मित्रों की न्यूज फीड में नजर नहीं आती।
वह केवल कुछ मित्रों की न्यूज फीड में ही नजर आती है। अगर आपने कभी गलती से फेसबुक पर एक छोटा सा भी विज्ञापन दे दिया, तो फेसबुक यह अपेक्षा करता है कि आप अपनी हर पोस्ट विज्ञापन के रूप में ही प्रचारित-प्रसारित करें। बेशक कुछ कारोबार ऐसे है, जिनके लिए फेसबुक के विज्ञापन फायदेमंद हो सकते है, लेकिन अधिकतर मामलों में फेसबुक के विज्ञापनों का असर शून्य ही निकला है।
जो बातें फेसबुक के फायदे में होती है, उन्हें वह बढ़ाता-चढ़ाता है, लेकिन जिस तरह की गलत सूचनाओं को आप अनुचित सझते है और उन्हें रुकवाना चाहते हैं, तब फेसबुक अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर बहानेबाजी करने लगता है।
चीन में फेसबुक नहीं चलता। चीन की सरकार ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म प्रमोट कर रखे है। चीन के पास बायडू ऐप है। वहीं वहां का सबसे लोकप्रिय प्लेटफार्म भी बन चुका है। साल्ट लेक सिटी में मार्क जकरबर्ग ने पिछले सप्ताह एक जोरदार भाषण दिया और उन्होंने दावा किया कि फेसबुक फ्री स्पीच के पक्ष में तनकर खड़ा है और आगे भी खड़ा रहेगा।
भारत के मामले में उस पर कई आरोप लगते रहे है कि वह धर्म निरपेक्षता के नाम पर किसी एक वर्ग की ही पोस्ट को प्रमोट करता है और दूसरे वर्ग की पोस्ट को आगे बढ़ने से रोकता है।
भारत के जितने भी फेसबुक यूजर है, उनमें से अधिकांश फेसबुक पर अकाउंट ओपन करते हुए ऐसे कई प्रश्नों के जवाब में हां लिख देते है, जिसका अर्थ वे नहीं जानते। अधिकांश तो उसे पढ़ ही नहीं पाते।
फेसबुक पर अकाउंट ओपन करने की शर्तों में ऐसी अनेक शर्ते है, जहां आप अपन निजता फेसबुक के पास गिरवी रख देते है। आपके बारे में आप खुद जितनी बातें फेसबुक और ऐसे ही दूसरे सोशल मीडिया पर उजागर कर देते है, वह न केवल आपके लिए बल्कि देश के लिए भी खतरनाक हो सकती है।
फेसबुक ही आपको बताता है कि लोग क्या पसंद करते है और फिर आप लोगों की पसंद के हिसाब से अपने आप को ढालने लगते है। फेसबुक ने लोगों को अलग-अलग इंट्रेस्ट ग्रुप के हिसाब से छांटना शुरू कर दिया है। यही फेसबुक का प्रिफर्ड आडियंस डाटा कहलाता है। 146 करोड़ से अधिक लोग इस तरह अलग-अलग ग्रुपों में बंटे हुए है।
आप भले ही सीएए का विरोध करें और एनआरसी के खिलाफ अभियान चलाएं। आपकी निजता आपके पास नहीं है। जो जानकारी आप सरकार को नहीं देना चाहते, उससे कही अधिक जानकारी आप जकरबर्ग को दे चुके है।
आप भले ही फेसबुक को हल्के-फुल्के अंदाज में लें, फेसबुक आपको इतने हल्के-फुल्के अंदाज में नहीं लेता, क्योंकि आप उसके लिए अरबों-खरबों के कारोबार का मसाला है। अब आप क्या है, यही आपको सोचना है?
6 Feb 20