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Kesari1

गली ब्वॉय ने ठीक ही गाया था - 'क्या घंटा लेकर जायेगा?' फिल्मफेयर ने  गली ब्वॉय की मान ली। वही मिला मनोज मुन्तशिर को। 

फिल्म :  केसरी 1897  में 'ब्रिटिश भारतीय सेना' की 36वीं  सिख रेजीमेंट के 21 बहा

दुर सैनिकों की लड़ाई की कहानी है जो उन्होंने  सारागढ़ी में करीब दस हज़ार हमलावरों से लड़ी थी। इसे सारागढ़ी की लड़ाई भी कहते हैं।   सेना दे 21 बहादुर जवानों की टुकड़ी  का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह ने मृत्युपर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे बड़े  अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है।

 संदर्भ : जवाहरलाल नेहरू की वसीयत का अंश  -  "मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठी भर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान  के दामन को चूमते हुए समुंदर में जा मिले। लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर  दिया जाए।  वह खेत जहां हज़ारों  मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर हिस्सा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए."

गीत  :   अब आप जरा जवाहरलाल नेहरू की वसीयत और केसरी फिल्म के गाने के बोल की तुलना करें। खास बात यह है कि इस गाने में वतन को भारत माता नहीं कहा गया है, बल्कि वतन की तुलना महबूब से की गई है। जब भी मैं यह गाना सुनता हूँ तो रोमांचित हो उठता हूँ। 

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इस गाने की सबसे खास बात यह है कि इसके बोल और जवाहर लाल नेहरू की वसीयत के भाव लगभग एक जैसे हैं। आखिर कोई सैनिक शहीद होने की कामना करता हो, तो उसके बाद क्या होता होगा। इस गीत का भाव भी यही है। जाहिर है वह सैनिक यह चाहेगा कि शहीद होने के बाद उसे जला या दफना दिया जाएगा। दोनों ही स्थितियों में उसे मिट्‌टी में मिलना ही है। मिट्‌टी में मिलकर क्या होगा। यहां सैनिक की आरजू है कि वह मिट्‌टी में मिलकर कोई फूल खिलाएगा या फिर पानी का कतरा बनकर नदी में बहेगा। मिट्‌टी के बाद वह फसलों के रूप में पुर्नजीवन पाएगा। गाने की एक और लाइन है - मैं कितने नसीबों वाला था कि तेरी अस्मत पर कुर्बान हुआ। 

पूरा गाना इस प्रकार है - 

तलवारों पे सर वार दिए
अंगारों में जिस्म जलाया है
तब जाके कहीं हमने सर पे
ये केसरी रंग सजाया है

ए मेरी ज़मीं अफसोस नहीं
जो तेरे लिए सौ दर्द सहे
महफूज रहे तेरी आन सदा
चाहे जान ये मेरी रहे न रहे

ऐ मेरी ज़मीं महबूब मेरी
मेरी नस नस में तेरा इश्क बहे
पीका ना पड़े कभी रंग तेरा
जिस्म से निकल के खून कहे

तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरजू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे खेतों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरजू

वो ओ..

सरसों से भरे खलिहान मेरे
जहाँ झूम के भांगड़ा पा न सका
आबाद रहे वो गाँव मेरा
जहाँ लौट के बापस जा न सका

ओ वतना वे मेरे वतना वे
तेरा मेरा प्यार निराला था
कुर्बान हुआ तेरी अस्मत पे
मैं कितना नसीबों वाला था

तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरजू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे खेतों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरजू

ओ हीर मेरी तू हंसती रहे
तेरी आँख घड़ी भर नम ना हो
मैं मरता था जिस मुखड़े पे
कभू उसका उजाला कम ना हो

ओ माई मेरे क्या फिकर तुझे
क्यूँ आँख से दरिया बहता है
तू कहती थी तेरा चाँद हूँ मैं
और चाँद हमेशा रहता है

तेरी मिट्टी में मिल जावां
गुल बनके मैं खिल जावां
इतनी सी है दिल की आरजू
तेरी नदियों में बह जावां
तेरे फसलों में लहरावां
इतनी सी है दिल की आरजू


मनोज मुन्तशिर का लिखा यह गाना न केवल 2019 के श्रेष्ठतम गीतों में है, बल्कि दशक के सर्वश्रेष्ठ गीतों में है। ऐ मेरे वतन के लोगों में एक नागरिक की आवाज गूंजती है। राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में देश के लिए प्रतिबद्धता झलकती है। इस गाने में देश को महबूब मानकर जो कल्पना की गई है, वह अद्भूत है। भले ही गली ब्वाय के गाने अपना टाइम आएगा को फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ गीत कहा हो, सर्वश्रेष्ठ गीत तो मनोज मुन्तशिर का यह गाना ही है। 

 

18 Feb 2020

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