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modi and trump

भारत के फार्मा सेक्टर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अहसानमंद होना चाहिए कि उन्होंने दुनिया की निगाहों में भारतीय फार्मा सेक्टर की महत्ता बार-बार बताई। यह काम करोड़ों डॉलर के खर्च के बाद भी संभव नहीं हो पाता। भारत विश्व में हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत तकरीबन 400 करोड़ की हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का निर्यात भी करता है। भारत में मुख्यतः इसे इप्का और कैडिला लैब बनाती है।

इंडियन कौंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन की दवा को कोरोना के लिए बचाव की दवा के तौर पर इस्तेमाल करने की सलाह दी है। हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन, कोरोना के संक्रमण से बचाने के लिए महत्वपूर्ण साबित हो रही है। यह एक टेस्टेड दवा है जो बरसों से इस्तेमाल की जा रही है। यह सस्ती भी है और भारत में सुलभ भी है। जब दुनिया में कोरोना का संक्रमण बढ़ा, तब भारत ने ऐहतियात के रूप में इस दवा का निर्यात प्रतिबंधित कर दिया और उत्पादन में भी बढ़ोतरी कर दी। गत शनिवार को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अपील की थी कि भारत अमेरिका को हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन दवा की खेप भेज दे। भारत में स्पष्ट किया था कि इस दवा का स्टॉक भारत के लोगों की ज़रूरत के लिए है। अगर भारत के पास इसका पर्याप्त का हुआ और वह इसके निर्यात करने की स्थिति में हुआ तो ही वह इसका निर्यात करेगा। इसमें भी भारत देखेगा कि किस देश को इसकी ज़्यादा ज़रूरत है। इसके निर्यात में पड़ोसी देशों का विशेष ध्यान रखा जायेगा।

भारत के इस रुख पर अमेरिका के राष्ट्रपति ने आक्रामक रुख अपना लिया। ट्रंप ने कहा -''भारत अमेरिका की अच्छी बातचीत चल रही है और मुझे ऐसा कोई कारण नहीं दिखता कि भारत अमेरिका के दवा के ऑर्डर पर रोक जारी रखेगा। मैंने रविवार सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की और मैंने कहा था कि अगर आप हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की आपूर्ति को मंजूरी देते हैं तो हम आपके इस कदम की सराहना करेंगे। यदि वह दवा की आपूर्ति की अनुमति नहीं देते हैं तो भी ठीक है, लेकिन हां, वे हमसे भी इसी तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद रखें। " कांग्रेस के नेता और पूर्व कूटनीतिज्ञ शशि थरूर ने ट्रंप को जवाब देते हुए अपने ट्वीट में लिखा- "वैश्विक मामलों में दशकों के अपने अनुभव में मैंने किसी राष्ट्राध्यक्ष या सरकार को दूसरे देश की सरकार को इस तरह खुलेआम धमकी देते हुए नहीं सुना। मिस्टर राष्ट्रपति? भारत में जो हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन बनती है वो 'हमारी घरेलू आपूर्ति' के लिए है। यह आपके लिए आपूर्ति का विषय तब बनेगा जब भारत इस दवा को आपको बेचने का फैसला करता है।"

संयोग ही रहा कि भारत ने इस दवा के निर्यात पर से प्रतिबन्ध हटा लिया क्योंकि निर्यात पर रोक के दौरान भारत ने इसका उत्पादन बढ़ा लिया था। कोरोना संक्रमण के कारण अमेरिका कई हालत बेहद खराब हो गई है। मृतकों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के ऊपर अंगुलियां उठाई जा रही हैं। न्यूयॉर्क में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या काफी ज़्यादा है। न्यूयॉर्क में सबसे ज्यादा मरीज सामने आए हैं।

अच्छा हुआ कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत के बारे में पुराने बयान को दुरुस्त कर लिया। भारत के हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन के निर्यात पर मुहर लगाते ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सुर बदल गए हैं। ट्रंप ने कहा है- मोदी महान हैं, वह बहुत अच्छे नेता हैं। फॉक्स न्यूज से बातचीत के दौरान ट्रम्प ने कहा- नरेंद्र मोदी ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के मामले में हमारी मदद की है। हम विदेश से कई दवाइयां मंगवा रहे हैं। इसमें भारत में बनाई जाने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाइयां भी शामिल है। कोरोना संक्रमण जैसे विश्वव्यापी संकट के दौर में भी भारत ने जिस तरह अपनी कूटनीति को संतुलित करके रखा है, वह अपने आप में मिसाल के तौर पर याद रखी जाएगी।

भारत ने अपनी प्राथमिकताओं में साफ़ कर दिया है कि उसके सामने सबसे पहले भारत की जनता है, फिर पड़ोसी देशों का नंबर आता है और उसके बाद ही अमेरिका जैसे देशों की जगह है। भारत और पाकिस्तान के रिश्ते भले ही बेहद तल्ख़ हों लेकिन ऐसे में भी भारत में मानवता का रास्ता नहीं त्यागा है। विपरीत हालात में भी पाकिस्तान के कई बीमार लोगों को भारत का वीसा दिया गया था। कोरोना से प्रतिरोध करने यानी बचाव करने के लिए दवा देने में भी भारत ने अपने देश की जनता के बाद पड़ोसी मुल्कों की जनता को प्राथमिकता दी है। इसमें कोई दुर्भावना किसी के भी प्रति नहीं है। कोई भी परिवार पहले अपने घर के लोगों की चिंता करेगा, फिर पड़ोसियों की और फिर दूसरे मोहल्लेवालों की। जब भारत पूरी दुनिया को कोरोना से बचाव के लिए हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन दवा दे सकता है तो अमेरिका को क्यों नहीं? भारत ने यही कहा था कि पहले अपनी ज़रूरत देखेंगे, फिर पड़ोसियों - पाकिस्तान, बांग्लादेश , नेपाल, अफगानिस्तान आदि की, फिर तुम्हारी तरफ देखेंगे। ग़लत तो नहीं कहा था।

भारत के पास हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन के उत्पादन की प्रचुर क्षमता है। हम महीने भर में लगभग 100 टन तक का उत्पादन भी कर सकते हैं। एक मरीज को 14 टैबलेट्स की ज़रूरत पड़ती है। भारत सरकार ने 10 करोड़ टैबलेट्स का ऑर्डर पहले ही को दे रखा है। इतने में हम 6-7 करोड़ मरीजों का इलाज आराम से कर सकते हैं। भारत में केस इतनी जल्दी भी नहीं बढ़ेंगें,क्योंकि यहां लॉकडाउन जैसे उपाय किए गए हैं। भारत में हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का प्रयोग मुख्यतः मलेरिया के लिए किया जाता है। भारत में एक समय मलेरिया के केस बहुत ही ज्यादा थे। 2001 में भारत में मलेरिया के 20 लाख से आधिक केस थे जो अब 4 लाख से भी कम हैं। अमेरिका में मलेरिया के मात्र 2000 वार्षिक केस होते हैं। ये ड्रग वो रूमेटाइड अर्थराइटिस, लुपुस आदि के लिए प्रयोग करते हैं। अब जब डिमांड इतनी कम हो तो इसके लिए किसी ड्रग को मैन्युफैक्चर करना आर्थिक रूप से लाभकारी नहीं रहता। इसे बाहरी देशों से खरीदना लाभदायक है। अमेरिका भी वही करता है। अमेरिका में कोरोना से जितनी मौतें हो रही हैं वह भारत से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में ट्रम्प की बौखलाहट को आसानी से समझा जा सकता है। भारतीय दवा उद्योग की वह ब्रांडिंग नहीं हो सकी जो पश्चिमी दवा कंपनियों की हुई है।

अब अमेरिका जिन भारतीय दवाओं को सब स्टैंडर्ड कहता था, आज वह उन्हीं दवाओं के लिए तरस रहा है। भारत ड्रग कारोबार को एक बहुत बड़ा खिलाड़ी है। बहुत सी दवाएं भारत से दुनिया भर में निर्यात होती हैं। इसका महत्व ईरान जैसा देश ही बता सकता है, जहाँ अमेरिका की पाबंदी के कारण कोई भी पश्चिमी देश वहां अपनी दवाएं नहीं बेचता। भारतीय दवा कंपनियां ही हैं जो उसकी मदद करती हैं। इन दवाओं ने लोगों को रोगमुक्त किया है और लाखों लोगों की जान तक बचाई है। अब भारतीय बालक ड्रग इंडस्ट्री का परचम अमेरिका में भी फहराएगा, इसके लिए भारत को ट्रम्प का शुक्रगुज़ार होना चाहिए।

9 April 2020

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