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जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों ने राज्य के परिसीमन का विरोध करते हुए इसे भारतीय जनता पार्टी की मनमानी करार दिया है। इस परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर के राजनैतिक समीकरण बदल जाएंगे। महबूबा मुफ्ती तो साफ-साफ कह रही हैं कि यह तो बीजेपी का विस्तार का कार्यक्रम हैं। परिसीमन में जनसंख्या के आधार की अनदेखी की गई। हमें इस परिसीमन पर भरोसा नहीं है। हम इसे रिजेक्ट करते हैं। महबूबा ने यह भी कहा कि यह परिसीमन तो अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का एक एक्सटेंशन मात्र हैं।

नेशनल कांफ्रेंस पार्टी का कहना है कि परिसीमन आयोग ने जम्मू-कश्मीर के हर विधानसभा क्षेत्र से छेड़छाड़ की हैं। अभी हम इस रिपोर्ट का अध्ययन कर रहे हैं और उसके बाद अपनी रणनीति बनाएंगे।

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अब जम्मू-कश्मीर विधानसभा में एक नया विधानसभा क्षेत्र लाल चौक भी होगा। इसमें अमीरा कदल और सोनावर का एक क्षेत्र होगा। चनापौरा तहसील से काटकर अमीरा कदल नामक नया क्षेत्र बनाया गया है। बारामूला जिले में तंगमर्ग विधानसभा का नाम बदलकर गुलमर्ग कर दिया गया है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब कश्मीर के इलाके की सीटों की संख्या 47 कर दी गई है और जम्मू में 43। कश्मीर में पहले 46 सीटें थी, वहां 1 सीट बढ़ाई गई है। जबकि जम्मू में 6 सीटें बढ़ाई गई हैं। अब जम्मू में 43 सीटें होंगी, जो हिन्दू बहुल इलाका माना जाता हैं। कश्मीर में जो एक सीट बढ़ाई गई है, वह कुपवाड़ा जिले में है। अनंतनाग जिले में भी एक सीट बढ़ाई गई है और अब वहां 7 विधानसभा क्षेत्र होंगे, लेकिन पड़ोसी कुलगाम जिला छोटा हो गया है, वहां केवल 3 सीटें ही बचेंगी। अब जम्मू कश्मीर में अनुसूचित जाति के लिए 7 सीटें आरक्षित की गई है और अनुसूचित जनजाति के लिए 9 सीटें आरक्षित रखने का प्रावधान है । परिसीमन आयोग की सिफारिश है कि कश्मीरी विस्थापितों के लिए भी कम से कम 2 सीटों की व्यवस्था की जाएं। इस प्रावधान में 1 सीट महिला के लिए हो। केन्द्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में इस तरह की व्यवस्था है , वहां 3 प्रतिनिधि मनोनीत होते हैं।

जम्मू-कश्मीर के विपक्षी दलों का कहना है कि जिस तरह से पूरे राज्य का परिसीमन किया गया है और नए-नए विधानसभा क्षेत्र गठित किए गए हैं और पुराने के साथ छेड़छाड़ की गई है, उससे लगता है कि यह सब सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।

अभी जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की 5 सीटें हैं। परिसीमन के बाद भी यहां से 5 सीटें ही रहेंगी, लेकिन उन सीटों का सीमांकन नए तरीके से हो रहा है। 5 संसदीय सीटें उधमपुर, अनंतनाग-राजौरी, श्रीनगर और बारामुला हैं। हर संसदीय सीट में 18 विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए हैं। इन पांच संसदीय सीटों में से 2 सीटें जम्मू और 2 कश्मीर की है। 1 सीट में दोनों ही क्षेत्रों का हिस्सा है।

परिसीमन आयोग ने प्रस्ताव दिया है कि पाक अधिकृत कश्मीर भी भारत का ही हिस्सा है, इसलिए वहां 24 सीटों का प्रावधान है। फिलहाल ये सीटें खाली रहेंगी। पहले भी यह सीटें खाली ही थी। परिसीमन आयोग ने जम्मू और पीरपंजाल क्षेत्र को अनंतनाग सीट से जोड़ दिया। पीरपंजाल में पुंछ और राजौरी जिले आते है। श्रीनगर वास्तव में शिया बहुल क्षेत्र है, लेकिन अब उसे बारामुला में स्थानांतरित कर दिया है।

नए परिसीमन के बाद जम्मू की 44 प्रतिशत आबादी 48 प्रतिशत सीटों पर मतदान करेगी, जबकि कश्मीर में रहने वाले 56 प्रतिशत मतदाता 52 प्रतिशत सीटों के लिए चुनाव कर पाएंगे। पहले की व्यवस्था में कश्मीर के 56 प्रतिशत मतदाता 55.4 प्रतिशत सीटों पर और जम्मू के 43.8 मतदाता 44.5 प्रतिशत सीटों पर मतदान करते थे। जम्मू में जो 6 नई सीटें बनाई गई है, उनमें से 4 हिन्दी बहुल है। चिनाब क्षेत्र की पाडर सीट मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बहुमत वाली सीट है। जबकि एक और सीट कुपवाडा जिले में है, जहां भाजपा के समर्थकों की संख्या बड़ी बताई जाती है।

अनुसूचित जनजाति के लिए जो 9 विधानसभा की सीटें आरक्षित की गई है, उनमें से 6 नए प्रस्तावित अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में शामिल है। पुंछ और राजौरी भी इसमें शामिल हैं, जहां बड़ी संख्या में अजजा मतदाता रहते हैं। कश्मीर की स्थानीय पार्टियों को लगता है कि लोकसभा चुनाव में इस संसदीय क्षेत्र को यानी अनंतनाग को अजजा के लिए आरक्षित सीट बनाया जा सकता है। इससे भाजपा को यहां हिन्दू वोट मजबूत करने में मदद मिल सकती है। लेकिन सारी बातें भाजपा के पक्ष में ही नहीं है। बारामुला क्षेत्र के पुर्नगठन से शिया वोट मजबूत होंगे, जहां शिया नेता इमरान रजा अंसारी का वर्चस्व बताया जाता है।

परिसीमन के प्रस्तावों से जम्मू-कश्मीर की स्थानीय पार्टियों में निराशा है। नेशनल कांफ्रेंस ने तो आरोप लगाया है कि हम जो बदलाव चाहते थे, वे नहीं किए गए और केवल वे ही बदलाव किए गए, जिससे भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी को लाभ की गुंजाइश नजर आती है। जब पूरे देश में 2026 तक परिसीमन नहीं होना है, तो फिर जम्मू-कश्मीर में ही परिसीमन क्यों किया जा रहा है? जाहिर है यह 370 की निरस्ती के बाद का एजेंडा है। जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 1995 में परिसीमन किया गया था। इसके बाद सरकार ने ही कहा था कि अब 2026 में परिसीमन होगा। लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। इसलिए लद्दाख की लोकसभा या विधानसभा सीटों का गणित अलग होगा। परिसीमन आयोग का कहना है कि करीब दो साल की कड़ी मशक्कत के बाद यह रिपोर्ट तैयार हुई है और इसके लिए 242 प्रतिनिधि मंडलों से आयोग ने चर्चा की है।

5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया जाने वाला अनुच्छेद 370 हटा दिया गया था और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख को अलग-अलग केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया था। अब जो परिसीमन हुआ है, उसका आधार 2011 में हुई जनगणना है। जनगणना के अनुसार कश्मीर की आबादी 68 लाख 83 हजार और जम्मू की आबादी 53 लाख 72 हजार है। कश्मीरी पंडितों ने आयोग से मांग की थी कि उनके लिए भी सीटें रिजर्व की जाएं।

जम्मू में 6 और कश्मीर में 1 सीट बढ़ाने का मतलब यह है कि हिन्दी बहुल जम्मू इलाके में भारतीय जनता पार्टी की जीत की संभावना ज्यादा मानी जाती है। 2014 में यहां से भाजपा ने 37 में से 25 सीटें जीती थीं। इसके पहले कश्मीर में वर्चस्व होने के कारण वहां जितने वाली पार्टी की ही राज्य में सरकार बन जाती थी। तब लद्दाख भी राज्य का हिस्सा हुआ करता था। यानी कश्मीर के बूते पर तीनों इलाकों में नेतृत्व किया जा सकता था। अब लद्दाख अलग हो चुका है और जम्मू की सीटें बढ़ गई हैं।

इस रिपोर्ट पर सरकारी मुहर लगने के बाद जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक नक्शा कुछ और ही रंग लिए होगा। 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी 25 सीटों के अलावा पीडीपी की 28 सीटों के सहारे सत्ता में भागीदारी की थी, बाद में बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और विधानसभा में राज्यपाल का कानून लागू कर दिया गया। अगस्त 2019 में ही इसे केन्द्र शासित प्रदेश बना दिया गया। अब जम्मू-कश्मीर अपनी अलग पहचान रखता है, जहां सरकार बनाना भारतीय जनता पार्टी और स्थानीय पार्टियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण कार्य होगा। इंतजार कीजिए, संभव है कि जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव की घोषणा जल्द ही हो जाएं।

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