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"जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (19).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :

करीब आधी सदी  पहले 1974 में फिल्म आई थी -'आपकी कसम'।  जिसका यह कालजयी गाना 'जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम' आज भी अपने दार्शनिक बोल, मधुर संगीत और स्वर के लिए याद किया जाता है। जब किशोर कुमार, आनंद बक्शी, आर. डी. बर्मन और जे. ओम प्रकाश जैसी विभूतियां एक साथ मिलीं और सुपरस्टार राजेश खन्ना पर कोई गाना फिल्माया गया  तो उसका कालजयी या क्लासिक होना तो लाजमी था। जिस तरह की फिल्म थी, जैसा फिल्मांकन था, उसका कोई तोड़ नहीं।  

यह  गाना  राग बिहाग में है। कल्याण थाठ। यह  रात्रि के प्रथम पहर (शाम 6 से रात्रि 9 बजे ) का राग है।

जीवन एक ऐसी यात्रा है, जहां ज्यादातर चीजों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं। हम नहीं जानते कि कौन से पल विशेष पल  होंगे। हम नहीं जानते कि हम उन खास लोगों से कब मिलेंगे। कब हममें शक करने का रोग लग जाए और हमारे अपने ही दुश्मन हो जाएं।  यह गाना अपने हालातों से रू-ब-रू होने और फ्लैशबैक में जाकर चीज़ों को देखने और उन्हें टटोलने का मौका देता है :

ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते

जिंदगी एक सफर है जहाँ हम कई मकामों से होकर गुजरते हैं।  इसकी खूबी यही है कि हम जिस मक़ाम से गुज़रते हैं, उसे फिर से पाना संभव नहीं।  खोया बचपन वापस नहीं लाया जा सकता।  बीत चुकी जवानी वापस आने से रही।  

फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं
फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं मगर
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं

हर चीज़ के लिए एक वक़्त मुक़र्रर है। इन लाइनों में एक तरह की चेतावनी है। चेतावनी है वर्तमान की उपेक्षा नहीं करने की। यह लाइन थोड़ी सी दार्शनिक है।   ज़िंदगी मौका सबको देती है फूल बनाकर। लेकिन यदि हम उन मौकों के प्रति असंवेदनशील होते हैं वो मौक़े हमारे हाथ से चुपचाप सरक जाते  हैं। उसके बाद वह नहीं मिलते।  पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं वे दुबारा नहीं खिलते।  जिन रिश्तों में दरार पड़ जाती है, उन्हें वापस पुनर्जीवित करना आसान नहीं होता।  पेड़ से गिरे पीले पत्ते वापस पेड़ पर चिपकाये नहीं जा सकते।  

कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

जब निर्जीव वस्तुएं ही वापस नहीं लाई जा सकती तो इंसानों, संगी-साथियों और अपनों का तो कहना ही क्या? एक बार उन्हें खोना मतलब हमेशा के लिए खोना।  यह कभी भी नहीं करें वरना जीवन भर उनका नाम लेकर पछताना पड़ सकता है।

आँख धोखा है क्या भरोसा है
आँख धोखा है क्या भरोसा है सुनो
दोस्तों शक दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो

दोस्त दुश्मन क्यों बन जाते हैं? इसका मुख्य कारण हमारे मन में घर कर जाने वाले संदेह हैं। शंकालु मन लंबे समय से बने रिश्तों और दोस्ती को तोड़ देता है।कई मर्तबा हमारी देखी  हुई चीजें भी सत्य नहीं होती। हमें भ्रम होता रहता है। हमें क्षितिज नज़र आता है पर क्षितिज नमक कोई चीज नहीं होती।  धरती और आकाश का कोई मेल नहीं होता।  सागर और आकाश कभी नहीं मिलते।  कई चीजें कभी सामान्य आँखों से नजर नहीं आतीं, पर होती हैं जैसे परमाणु ! इसलिए शक नहीं करना चाहिए , खासकर अपनों पर तो कभी नहीं।

कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हजारों सलाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

आगे बताया गया है कि वक्त का पहिया तो घूमता ही रहता है। वक्त की गति को दुनिया में भला कौन थाम सका है? वह तो अनंतकाल से चलता ही आ रहा है।  पलक झपकते ही वक्त इंसान के हाथ से छूट जाता है।

सुबहो आती है रात जाती है यूँ ही
वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
एक पल में ये आगे निकल जाता है
आदमी ठीक से देख पाता नहीं
और परदे पे मंज़र बदल जाता है

एक पल में इतिहास बदल जाता है। नागासाकी पर  परमाणु बम गिराने का फैसला एक पल में बदल सकता था, नहीं बदला। भारतीय बैडमिंटन स्टार पी वी सिंधु विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में गोल्ड से चूक गईं थी।  रोमांचक फाइनल मुकाबले में उन्हें नोजोमी ओकुहारा के हाथों हार कर सिल्वर से संतोष करना पड़ा। एक पल की चूक हुई और जापानी खिलाड़ी रोमांच की पराकाष्ठा तक पहुंचे मैच में 21-19, 20-22, 22-20 से जीत दर्ज करने में सफल रही। एक पल की चूक में टाइटैनिक डूब गया।

एक बार चले जाते हैं जो दिन रात सुबहो शाम
वो वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

जिंदगी में विकल्प चुनना और विकल्प छोड़ना दोनो ही महत्वपूर्ण हैं। सवाल सिर्फ़ हालातों का नहीं, लोगों का भी होता है। ज़िंदगी में एक दौर ऐसा भी आता है जब आप हम अतीत की तरफ़ बढ़ते हैं तो सोचते हैं कि वो दिन शायद बेहतर थे। वो लोग शायद बेहतर थे, वो मक़ाम शायद बेहतर था। वो फ़ैसले शायद ग़लत थे और वे निर्णय शायद जल्दबाज़ी में लिए गये थे।  हम अक्सर अपने प्रियजनों को हल्के में लेते हैं...और उनके प्यार को भी। वे हमारे जीवन में सुगंध और उदारता लाते हैं लेकिन हम इसे रेगिस्तान बनाने पर तुले हुए हैं और बेशर्मी से इसका दोष भाग्य को देते हैं।

इस गाने की खूबी यही है कि फिल्म में यह हरेक दर्शक को अपना गाना लगता था। हर शख्स जीवन में कभी न कभी कोई गलती करता ही है। यह गाना फिल्म की कहानी में फिट बैठता था। इसका फिल्मांकन ऐसा था कि दशकों बाद भी यह लोगों को याद है। यह गाना उस पात्र पर फिल्माया गया था, जो अहंकारी था और  जिसे  रिश्तों की समझ नहीं थी। जो जीवनसाथी पर विश्वास नहीं करता था और शंकालु था। फिल्म में उस पात्र निभाया था उस दौर का सुपरस्टार राजेश खन्ना ने और साथ में थीं मुमताज़।  दोनों कलाकारों ने एक के बाद एक कई सुपरहिट फ़िल्में दीं थीं जैसे दो रास्ते, बंधन, सच्चा झूठा, दुश्मन, रोटी, अपना देश, प्रेम कहानी और आपकी कसम आदि!
फिल्म की कहानी अपने आप में क्रांतिकारी थी। आपदाओं के बाद हीरो हीरोइन की शादी होती है।  सब कुछ ठीक चल रहा होता है , लेकिन एक दिन हीरो अपने एक दोस्त और जीवनसाथी के रिश्तों में कुछ मधुर संवेदना के तार पाता है तो बिफर जाता है और शंका व्यक्त करता है।  हीरोइन कोई सफाई नहीं देती, बस उसके जीवन से बाहर चली जाती है और जाते जाते उसे एक जोरदार झन्नाटेदार थप्पड़ दे देती है।  फिर पीछे मुड़कर नहीं देखती। 
हमारे कई मित्र और हम भी ऐसे घूमते हैं जैसे आनेवाला कल हमारी जेब में हो! है किसी की जेब में? जीवन में ऐसे कई अवसर होते हैं जब हम किसी से माफ़ी मांग सकते हैं या किसी को क्षमा कर सकते हैं , लेकिन नहीं करते।  कई पल होते हैं हमारी जिंदगी में, जो हमें भूल जाना चाहिए, लेकिन हम उन पलों के भी साथ चलना चाहते हैं।

फिल्म की कहानी की बात नहीं कर रहा हूँ, केवल गाने के फिल्मांकन की। फिल्म के हीरो कमल (राजेश खन्ना) की पश्चाताप की यात्रा शुरू होती है! तार एक सप्तक नीचे और दूसरा नीचे जाते हैं, उसे रेट्रोस्पेक्ट मोड में, आत्मनिरीक्षण के लिए ले जाते हैं! वह ट्रेन में थर्ड क्लास (उन दिनों ट्रेन में थर्ड क्लास होता था) डिब्बे में खिड़की से सटकर बैठा है। ट्रेन चल रही है, वह असहाय सा बैठा है। ट्रेन गति पकड़ती है... और वह बस इतना ही कर सकता है कि पटरी बदलते हुए देख सके; वह रेल की पटरियों के डायमंड क्रॉसिंग देखता है। पटरियों की जोड़ी को दूसरी पटरियों के पास से गुजरना और फिर अलग हो जाना, सब कुछ पीछे छूटते हुए देखना ...सुख और दुख के क्षणों का स्मरण करना ...जो सब अब अतीत बन गया है! इस बीच ट्रेन अँधेरे बोगदे में जाती है, उसके जीवन का यही काल हो मानो! आगे वह फूल भी देखता है, पर दूर से, चलती ट्रेन से।

फिल्म के इस गाने की शूटिंग कश्मीर में हुई थी।  दूसरे दृश्य में उसे घंटियां बजती सुनाई देती है। वह खुद को उस मंदिर के सामने देखता है जहां वह अपनी पत्नी के साथ गया था। बाद में उन्होंने 'भांग' का नशा करने के बाद स्थानीय लोगों के साथ नृत्य किया था! (जै जै शिव शंकर, काँटा लगे न कंकर) फ्लैशबैक में पुराने सीन याद आते हैं।  एक सीन में पाइप ऑर्गन और बांसुरी का मनमोहक क्लासिक फ्यूजन है! जब किशोर दा अगले छंद में पीड़ा व्यक्त करना जारी रखते हैं, आँख धोखा है, क्या भरोसा है; सुनो, शक दोस्ती का दुश्मन है, अपने दिल में इसे घर बनाने ना दो।

इस फिल्म का सन्देश था कि रिश्तों को संजोना चाहिए।  सावधानी से।  मोहब्बत से। स्नेह से।...और सम्मानपूर्वक! ग़लतियाँ होती हैं, ग़लती करना इंसान का स्वभाव है, लेकिन गलती में बदलने से पहले उन्हें सुधारने से बहुत फर्क पड़ता है।

जैसे ही गाना आगे बढ़ता है, बर्फ से ढके पहाड़ और बर्फ से ढके भूरे रंग के ओवरकोट में एक बेंच पर बैठा नायक दिखाई देता  है। सूरज की रोशनी से जूझते हुए। उसके पूरे चेहरे पर बड़े अक्षरों में तपस्या लिखी हुई थी!  शायद वह अपने आप तक पहुँच गया है; अपने कृत्यों से क्षुब्ध! क्षमा मांगने को बेताब। और फिर वर्षा। हर जगह हरियाली है। पूरी स्क्रीन राजहंस से भर जाती है। ,

जैसे ही नायक चलता है, एक घोड़ा-गाड़ी उसके आगे निकल जाती है। जब हम अहंकार, भय, झिझक, संकोच के आगे झुक जाते हैं और पिछड़ जाते हैं तो भाग्य हमसे आगे निकल जाता है और एक पल में सब कुछ बदल जाता है।  परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर चीज़ है! इसीलिए किशोर कुमार ने गाने के इन चार लफ़्ज़ों पर ज़ोर दिया था - 'वो फिर नहीं आते' !

आनंद बख्शी ने इस गाने में वही बात कही है जो  बच्चन जी ने कही थी -जो बीत गई सो बात गई। 

हमारे स्कूल के दिनों में गिरिधर की कुंडलियां हिन्दी के कोर्स में थीं।   उसमें से एक कुंडली थी - बीती ताहि बिसारि दे, आगे की सुधि लेइ। जो बनि आवै सहज में, ताही में चित देइ॥

कबीर कैफे के लिए नीरज आर्य का गाना है -मत कर माया को अहंकार ,मत कर काया को अभिमान काया गार से कांची,
ऐसा सख्त था महाराज जिनका मुल्कों में राज ,
जिन घर झूलता हाथी,
हो जिन घर झूलता हाथी उन घर दीया  ना बाती|| जिन बादशाहों के यहाँ कभी हाथी बंधे होते थे और वे हाथी खड़े खड़े ही ऐसे हिलते रहते थे, मानो झूला झूल रहे हों, आज उन घरों में कोई दीया बाती करनेवाला भी नहीं है।  रिश्तों की अहमियत समझो दोस्तो !
ओशो ने कबीर और दादू दयाल को बहुत तल्लीनता से पढ़ा था।  उन्होंने कहा था -  जब भी ऐसी घड़ी आए कि तुम्हें लगे कुछ कहना है, तब एक ही स्मरण करना कि जुबान से नहीं, अपने होने से ही कहना। तुम्हारा मौन भी तब सार्थक हो जाएगा। तब तुम चुप भी रहोगे, तो तुम्हारी चुप्पी भी बहुत  कुछ कहेगी। और वह गुफ्तगू ज्यादा गहरी होगी।  
आनंद बख्शी का लिखा पूरा गीत : 
ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं
फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं मगर
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं
वो हजारों के आने से मिलते नहीं
उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

आँख धोखा है क्या भरोसा है
आँख धोखा है क्या भरोसा है सुनो
दोस्तों शक दोस्ती का दुश्मन है
अपने दिल में इसे घर बनाने न दो
कल तड़पना पड़े याद में जिनकी
रोक लो रूठ कर उनको जाने न दो
बाद में प्यार के चाहे भेजो हजारों सलाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते

सुबहो आती है रात जाती है
सुबहो आती है रात जाती है यूँ ही
वक़्त चलता ही रहता है रुकता नहीं
एक पल में ये आगे निकल जाता है
आदमी ठीक से देख पाता नहीं
और परदे पे मंज़र बदल जाता है
एक बार चले जाते हैं जो दिन रात सुबहो शाम
वो वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते
ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम
वो फिर नहीं आते वो फिर नहीं आते
फिल्म – आपकी कसम (1974)
गीतकार – आनंद बख्शी
गायक – किशोर कुमारसंगीतकार – राहुल देव बर्मन


-प्रकाश हिन्दुस्तानी
18-08-2023
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