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''काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (20).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :


प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र अगर जीवित होते तो 30 अगस्त 2023 को अपनी 100 वीं सालगिरह मनाते। उस दिन की पूर्व संध्या पर, 29 अगस्त को इंदौर में उनके बेटे दिनेश की उपस्थिति में एक भव्य कार्यक्रम होनेवाला है। (उनकी फिल्म 'तीसरी कसम' के बारे में मैं 23 जून को लिख चुका हूँ, सजन रे झूठ मत बोलो!) इसी फिल्म में यह दूसरा गाना है जो लाखों लोगों को आज भी बहुत प्रिय है : दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई,
काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई !


गीतकार ने यह नहीं लिखा कि हे भगवान! यह दुनिया क्यों बनाई? उन्होंने लिखा - दुनिया बनाने वाले ! उन्होंने ब्रह्मा नहीं लिखा। यहाँ वे किसी एक धर्म की बात नहीं कर रहे। धर्मों की अपनी-अपनी व्याख्या है कि दुनिया किसने बनाई, क्यों बनाई, कैसे बनाई? जो भी हो- यह तय है कि दुनिया कोई गूगल से डाउनलोड नहीं हुई है, क्योंकि वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गूगल तो क्या, हमारी धरती और इस ब्रह्माण्ड की औकात अरबों-खरबों आकाशगंगाओं में सुई की नोक के बराबर भी नहीं है।

एक अवधारणा है कि हमारी दुनिया जिस सृष्टि में है, उसकी रचना उत्क्रांति यानी Evolution से हुई। महर्षि दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश में लिखा है कि दुनिया किसी ने नहीं बनाई है, बल्कि अपने आप में स्वतंत्र व्यवस्था है। उन्होंने जीव, प्रकृति और ईश्वर को इंडिपेंडेंट यूनिट माना है। ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि दुनिया केवल भ्रम है। कई मानते हैं कि जब एक जूता तक अपने आप नहीं बनता तो इतनी बड़ी दुनिया किसी ने तो बनाई होगी! किसने? आखिर किसने? और बनाई तो क्यों बनाई? क्या अड़ी थी उसे? तनख्वाह मिलती थी? किसने कहा था बनाने को? बीवी ने?

गाने के बोल की तरह ही इस फिल्म की कहानी भी है। फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफ़ाम' पर आधारित इस फ़िल्म के निर्माता गीतकार शैलेंद्र थे। कहते हैं कि शैलेंद्र की यह फिल्म लम्बे समय तक निर्माणाधीन रही। शैलेन्द्र अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के व्यवहार से भी टूट गये थे। अभिन्न मित्र राज कपूर का सारा ध्यान अपनी होम प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘संगम‘ पर था, जो उनकी पहली रंगीन, मल्टी कॉस्ट फिल्म थी। राज कपूर संगम के पहले अपनी कोई ब्लैक एण्ड व्हाइट, छोटे बजट की फिल्म प्रदर्शित करना नहीं चाह रहे थे। टालते रहे। फिल्म को लटकाये रखा। उधर फिल्म के निर्देशक बासु भट्टाचार्य बिमल रॉय की इच्छा के विरुद्ध उनकी बेटी से विवाह करके लम्बे अरसे के लिए कोलकाता चले गये थे । विभिन्न कारणों से 'तीसरी क़सम' रुकी पड़ी रही। अंतत: 1966 में रिलीज़ हुई। इस दौरान कई बार शैलेन्द्र शायद सोचते होंगे कि 'काहे को फिल्म बनाई?'


आज यह फिल्म एक क्लासिक मानी जाती है पर जब यह रिलीज़ हुई थी तब फ्लॉप फिल्मों में शुमार थी। गीतकार ने आगे लिखा - काहे बनाए तूने माटी के पुतले,
धरती ये प्यारी प्यारी मुखड़े ये उजले
काहे बनाया तूने दुनिया का खेला
जिसमें लगाया जवानी का मेला


तीसरी कसम के इस गाने में तीन गीतकारों का योगदान बताया जाता है। शैलेन्द्र फ़िल्म के निर्माता थे, राज कपूर हीरो थे और वे मजरूह सुल्तानपुरी की मदद करना चाहते थे, क्योंकि वे एक कानूनी झंझट में फंस गए थे। मजरूह ने गाने की पहली लाइन लिखी थी, दुनिया बननेवाले क्या तेरे मन में समाई? लेकिन पूरा गाना नहीं लिख पाए। गाना घूमकर उनके पास आया कि वे उसे पूरा करें, लेकिन कर नहीं पाए। समय नहीं था। काफी अर्से बाद याद दायित्व हसरत जयपुरी को दिया गया। उन्होंने गाना पूरा किया। इसी फिल्म का मारे गए गुलफ़ाम भी हसरत ने लिखा है।
शैलेन्द्र ने केवल 43 साल का जीवन पाया (1923 से 1966)। वे खुद ऐसी कच्ची माटी के पुतले रहे जो बहुत जल्दी गल गए, लेकिन अपनी छाप छोड़ गए। उन्होंने फिल्म जगत में 17 साल काम किया, करीब 800 गाने लिखे। एक फ़िल्म का निर्माण किया - तीसरी कसम! जाने के बाद भी वे गीतों के माध्यम से जीवित हैं और सदियों तक रहेंगे। उन्होंने जिसे दुनिया का खेला कहकर टालने का यत्न किया, उसी खेले में फंसे रहे। वे जिस दौर में फिल्म नगरी में आये, तब यहाँ दलितों-वंचितों और पिछड़ों के लिए कोई जगह शायद नहीं थी। वे आये, और छाये !


दुनिया में चल रही होड़, हिंसा,अन्याय, अत्याचार , बे-ईमानी, फरेब और शोषण को देखकर शायद इसे बनानेवाला भी दुखी हुआ होगा। वह भी निराश हुआ होगा। उसने भी अपनी आस्था का विसर्जन किया होगा :
तू भी तो तड़पा होगा मन को बनाकर,
तूफ़ां ये प्यार का मन में छुपाकर
कोई छवि तो होगी आँखों में तेरी
आँसू भी छलके होंगे पलकों से तेरी


इस गाने की आगे की लाइन के मुताबिक बनाने वाले ने पहले मोहब्बत बनाई, फिर जीना सिखाया। यानी जिंदगी के पहले मोहब्बत है। बाद में है हंसना, रोना, गाना, मिलना, बिछड़ना और फ़ना होना! शिकायत है तो यही कि सपने जगा के तूने काहे को दे दी जुदाई? दुनिया बनाने वाला कोई पॉलिटिशियन था क्या? प्यारी प्यारी धरती, उजाले मुखड़े बनाकर तमाशेबाजी करता रहा!
कुछ लोगों का मानना है कि अगर दुनिया सचमुच में भगवान ने बनाई है तो इंसान को ऐसा बनाता कि उसे भूख नहीं लगती, प्यास नहीं लगती, लालच नहीं करता | इससे दुनिया के ज्यादातर 'पाप' खत्म हो जाते ! इसीलिए सवाल है कि काहे को दुनिया बनाई? क्यों ऐसी बनाई? क्या ईश्वर का मकसद कुछ और रहा होगा? ये कायनात ऐसी क्यों?


कबीर ने तो यहाँ तक कह दिया कि साँई मेरा बाँणियाँ, सहजि करै व्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ै, तोलै सब संसार॥
इसका मतलब यह कि परमात्मा व्यापारी है, वह सहज ही व्यापार करता है। वह बिना तराजू एवं बिना डाँड़ी-पलड़े के ही सारे संसार को तौलता है।


ओशो ने कहा था संसार की करीब-करीब समस्त जातियों ने ईश्वर की कल्पना पैदा की। न इसका धर्म से कोई नाता है, और न ही दर्शन शास्त्र से कोई रिश्ता है। यह अकल्पनीय है कि बिना स्रष्टा के यह विश्व कैसे अस्तित्व में आया, और इतना बड़ा ब्रह्मांड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है?


लॉर्ड केल्विन 19वीं सदी के महान वैज्ञानिक थे। केल्विन कहते थे कि विज्ञान में नास्तिकता की जगह नहीं है। अगर आप मज़बूती से सोचते हैं तो विज्ञान आपको भगवान में भरोसा रखने के लिए मजबूर करेगा।" केल्विन बाइबल पढ़ते थे और रोज़ाना चर्च जाते थे।


लेकिन शैलेन्द्र वामपंथी थे। उन्होंने आजादी से पहले कवि सम्मेलनों और इप्टा के मंच से और आजादी के बाद फ़िल्मों के ज़रिए जनता को शिक्षित और आंदोलित करने का काम किया। उनके कई गीत जन आंदोलनों में नारों की तरह इस्तेमाल होते रहे हैं। मसलन ‘‘हर ज़ोर-जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है..'', ‘‘क्रांति के लिए उठे कदम, क्रांति के लिए जली मशाल’’ आदि। बंगाल के अकाल, तेलंगाना आंदोलन और देश के बंटवारे जैसी अहम् घटनाओं पर भी उन्होंने कई गीत लिखे।


जन्म शताब्दी पर शैलेन्द्र को नमन !


शैलेन्द्र की फ़िल्म का पूरा गाना


दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई
काहेको दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई
काहे बनाए तूने माटी के पुतले,
धरती ये प्यारी प्यारी मुखड़े ये उजले
काहे बनाया तूने दुनिया का खेला
जिसमें लगाया जवानी का मेला
गुप-चुप तमाशा देखे, वाह रे तेरी खुदाई
काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई ...
तू भी तो तड़पा होगा मन को बनाकर,
तूफ़ां ये प्यार का मन में छुपाकर
कोई छवि तो होगी आँखों में तेरी
आँसू भी छलके होंगे पलकों से तेरी
बोल क्या सूझी तुझको, काहे को प्रीत जगाई
काहेको दुनिया बनाई, तूने काहेको दुनिया बनाई ...
प्रीत बनाके तूने जीना सिखाया, हंसना सिखाया,
रोना सिखाया
जीवन के पथ पर मीत मिलाए
मीत मिला के तूने सपने जगाए
सपने जगा के तूने, काहे को दे दी जुदाई
काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई ...
फिल्म : तीसरी कसम (1966 )
फ़िल्म निर्माता :शंकरदास केसरीलाल 'शैलेन्द्र'
गीतकार : इकबाल हुसैन 'हसरत जयपुरी'
गायक : मुकेश चंद्र माथुर
संगीतकार : शंकर सिंह राम सिंह रघुवंशी और जयकिशन दयाभाई पंचाल 'शंकर- जयकिशन'
-प्रकाश हिन्दुस्तानी
25-08-2023
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