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''छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं''

फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (24 ).

इस शुक्रवार एक और गाने की बात :

महान गीतकार शैलेन्द्र के जन्म की शताब्दी मनाई जा रही है।  उन्होंने  केवल 43 वर्ष का जीवन पाया और सैकड़ों अद्भुत गीत रचे। सभी एक से बढ़कर एक! हर मूड और हर मिजाज़ के गाने। 1962 में आई 'रंगोली' फिल्म का यह गाना कई कारणों से यादगार है। जिस मूड और सिचुएशन में उसका मुखड़ा तैयार हुआ, वह अलग ही दास्तान है। गाना कहता है कि छोटी से ये दुनिया है और इसमें बिछड़ने या जानबूझकर अलग हो जाने के बाद भी मेल मुलाकात अवश्यंभावी है।
छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं
तुम कहीं तो मिलोगे, कभी तो मिलोगे
तो पूछेंगे हाल...

वैसे हमारी दुनिया जो केवल पृथ्वी के इर्द गिर्द है, जो इस आकाशगंगा  का उतना ही बड़ा हिस्सा है जितना कि सुई की नोक! हबल लॉ की मदद से प्रोफेसर गैरी ने आकाशगंगा की चमक और हमसे उसकी दूरी के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी। ब्रह्मांड में 10 हज़ार करोड़ आकाशगंगाएं हैं और हर आकाशगंगा में करीब 20 हज़ार करोड़ तारे हैं। अब इन संख्याओं का गुणा करके ब्रह्मांड में तारों की संख्या का पता लगाया जा सकता है।  अनुमान कहते हैं कि ब्रह्मांड 93 अरब प्रकाश वर्ष चौड़ा है. प्रकाश वर्ष वो पैमाना है जिससे हम लंबी दूरियां नापते हैं। (प्रकाश की रफ़्तार एक सेकेंड में क़रीब दो लाख किलोमीटर होती है) यानी मानव क्षमता से बहुत ही आगे !

राजिंदर सिंह बेदी की कहानी पर आधारित थी रंगोली। वह ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों का दौर था। यह  फिल्म एक रोम-कॉम थी यानी रोमांटिक कॉमेडी! फिल्म में इस गाने  के दो वर्ज़न थे।  किशोर कुमार ने मज़ाहिया गाया था और लता मंगेशकर ने सैड वर्जन! इसे किशोर कुमार और वैजयंती माला पर फिल्माया गया था। फिल्म में वैजयंती माला मध्यमवर्गीय परिवार की युवती थी और किशोर कुमार मालदार सीमेंट व्यवसायी के बेटे।  फिल्म मुंबई के फ़्लोरा फाउंटेन और बांद्रा इलाके में  शूट की गई थी। इसमें वैजयंतीमाला के सुन्दर नृत्य और किशोर कुमार की लफंदरी थी। फिल्म में यह गाना  हीरो तब गाता  है, जब हीरोइन उसे भाव नहीं देती। बाद में इसी गाने को हीरोइन हीरो से मिलने की प्रत्याशा में गाती  हुई नज़र आती है।

गाने के पहले अंतरे में हीरो निष्ठुर हीरोइन से कहता है - क्यों पत्थर दिल हुए जाती हो, हमारे जैसा कोई नहीं मिलने वाला। छोटी सी दुनिया है, पहचाने रास्ते हैं, चले चलो।  हम तो ये समझेंगे हमने, एक पत्थर को पूजा, लेकिन तुमको अपने जैसा, नहीं मिलेगा दूजा। दूसरे अंतरे में हीरो अपनी तुलना सच्चे सोने से करता है और कहता है कि हम प्यार में धीरज नहीं खोते। सीखा नहीं हमारे दिल ने, प्यार में धीरज खोना, आग में जल के भी जो निखरे, है वही सच्चा सोना। गाने के अंतिम अंतरे में चेतावनी है कि दिल की दौलत मत ठुकराओ, देखो पछताओगे; आज चले जाते हो जैसे, लौट के भी आओगे।

शैलेन्द्र के बेटे दिनेश ने इंदौर में शैलेन्द्र के सौवें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर इस गाने के बारे में मजेदार बात शेयर की। उन्होंने बताया कि राज कपूर के साथ एक टीम हुआ करती थी। जिसमें गीतकार द्वय  शैलेंद्र और हसरत जयपुरी तथा  संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन थे। यही राज कपूर की  फेवरेट टीम थी।  इस टीम के बिना राज कपूर की फिल्म नहीं बनती थीं। तभी दक्षिण के निर्माता टी. प्रकाश राव एक हिन्दी फिल्म बनाना चाहते थे  - ‘कॉलेज गर्ल'। उन्होंने शंकर-जयकिशन को संगीत की जिम्मेदारी दी, लेकिन शर्त रखी कि गाने हमारी पसंद का गीतकार ही लिखेगा। शंकर-जयकिशन ने उनकी शर्त मान कर किसी और से गीत लिखवाने की मंजूरी उस निर्माता को दे दी।

शैलेंद्र को बहुत बुरा लगा जब यह बात पता चली। बहुत  गुस्सा आया। वे हसरत जयपुरी के पास पहुंचे और कहा कि कार में बैठो। कार में शैलेन्द्र ने हसरत को बताया कि शंकर-जयकिशन ने टीम को तोड़ दिया ! अब वे किसी और के लिखे गाने पर म्यूजिक देंगे। शैलेन्द्र और हसरत कार से पिनपिनाते हुए  शंकर जयकिशन के स्टूडियो पहुंचे पर वहां न तो शंकर थे, न जयकिशन!  शैलेंद्र ने वहां किसी से कागज़  मांगा और उस पर गुस्‍से में दो लाइनें लिखीं फिर उसे स्टूडियो के कर्मचारी को देते हुए कहा - जब भी शंकर-जयकिशन आएं तो उन्‍हें ये दे देना।

राज कपूर को किस्सा पता चला तो वे भी भन्नाए।  मिलजुल कर क्यों नहीं रहते? उन्होंने सुलह कराई।  दारू-शारू पी गई। कसमें खाई गईं कि मिलकर रहना है और मिलकर काम करना है। कई महीने बीत गए।  निर्माता अमर कुमार ने फिल्‍म ‘रंगोली’ का निर्माण शुरू किया और संगीत का दायित्व शंकर-जयकिशन को सौंपा।  

एक दिन शंकर जयकिशन ने शैलेंद्र को स्‍टूडियो बुलाया और कहा कि यार! एक गाना बनाना है,  मुखड़ा तो अच्छा बन गया है।  अब तुम फटाफट पूरा गाना लिख दो। शैलेंद्र ने कहा कि कौन सा गाना? कौन सा गीत? कौन सा मुखड़ा? मैंने तो इस फिल्म के किसी गाने का मुखड़ा लिखा ही नहीं।  शंकर ने हंसते हुए कहा - वही मुखड़ा जो तुम और हसरत  स्टूडियो में देकर आए थे। तब बहुत गुस्से में थे और दो लाइनें लिखकर गए थे, वही तो हमारे गीत का मुखड़ा है।

संगीतकार शंकर ने वह कागज़ आगे कर दिया। जिस पर लिखा था - छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं; तुम कहीं तो मिलोगे, कभी तो मिलोगे
तो पूछेंगे हाल...!

यह पूरा किस्सा सुनते हुए महसूस हुआ कि गीतकार शैलेन्द्र कितने महान, कितने मासूम, कितने लयात्मक रहे होंगे कि गुस्से और आक्रामकता में भी ऐसे दार्शनिक बोल फूटे! और कोई होता तो संगीतकार शंकर जयकिशन को लालची, धोखेबाज़, मतलबी कहता।  शायद यह भी कहता कि हमेशा के लिए कुट्टी!  उन्होंने बस यही लिखा -...तो पूछेंगे हाल ! कारोबार, राजनीति और पत्रकारिता में इस तरह कई लोग टीम को तोड़ते हैं और वहां कट्टर दुश्मनी हो जाती है।

शैलेन्द्र ने हर मूड के गाने लिखे! उनके सैकड़ों गानों में दार्शनिक का अंदाज़ है। सैकड़ों गाने जीवन-दर्शन की व्याख्या करते हैं। माटुंगा, मुंबई में रेलवे वर्कशॉप में वेल्डिंग अप्रेंटिस के रूप में ज़िन्दगी के थपेड़ों की शुरुआत करनेवाले शैलेन्द्र ने कवि सम्मेलनों के मंच पर अपनी ख़ास जगह बनाई।  कविता के लिए धड़कता शैलेंद्र का दिल कई बार उदासी में डूबा। अगस्त क्रांति शुरू हुई। महात्मा गांधी ने मुंबई में करो या मरो का नारा दिया और शैलेंद्र क्रांति की राह पर चल पड़े। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़कर मजदूर-किसान की आवाज बने। आज़ादी की लड़ाई में जेल भी गए। स्वतंत्रता के बाद इप्टा से जुड़े। विभाजन के दंश पर लिखा - "सुन भइया, सुन भइया, दोनों के आंगन एक थे भइया!" जलियांवाला बाग़ के घटनाक्रम और  भगत सिंह के बलिदान पर भी खूब लिखा! जन जन के दुलारे हुए।

राज कपूर ने कवि सम्मेलन में सुना तो दीवाने हो गए और फिल्मों में जबरदस्ती घसीट कर ले आये। वे दूसरे गीतकारों के लिए हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे। बंदिनी के निर्माण के समय गुलज़ार को उन्होंने जोर देकर उसके निर्देशक बिमल रॉय के पास भेजा था जिसमें  गुलज़ार का गाना सुपर हिट हुआ था -"मोरा गोरा रंग लेइ ले, मोहे श्याम रंग देइ दे!" इस मुखड़े के पीछे सरदार सम्पूरण सिंह कालरा उर्फ़ गुलज़ार के पार्श्व में शैलेन्द्र को बताया जाता है।

एक और किस्सा है।  संगीतकार शंकर हैदराबाद के रहने वाले थे और तेलुगु जानते थे। एक बार वे और शैलेन्द्र पुणे के रास्ते  में एक ढाबे पर चाय के लिए रुके। ढाबे का कर्मचारी रमैया तेलुगु भाषी था। बार बार बुलाने पर भी वह चाय देने के लिए नहीं आया तो शंकर ने उसे तेलुगु में कहा - रमैया वस्तावैया,  रमैया वस्तावैया ! (इसका अर्थ था कि रमैया तुम कब आओगे?)  शैलेन्द्र ने शंकर के  रमैया वस्तावैया के आगे जोड़ दिया - मैंने दिल तुझको दिया, मैंने दिल तुझको दिया! ... और बन गया गीत का मुखड़ा।  श्री 420 फिल्म में यह गाना बेहद लोकप्रिय हुआ था।

शैलेन्द्र के बारे में कितना भी लिखा  जाये- कम ही होगा।  इस गाने के सीधा सा मतलब है।  छोटी सी ये दुनिया का अर्थ यही है कि भले ही धरती करीब  51 करोड़ वर्ग किलोमीटर में फैली हो, हमारे लिए तो हमारे लोग जहाँ है, वही दुनिया है। दो लोगों के विचार और रहन सहन, उन्हें कहीं न कहीं वापस मिला ही देते हैं।  - हबीब जालिब ने कहा है -दुनिया तो चाहती है यूँही फ़ासले रहें, दुनिया के मश्वरों पे न जा उस गली में चल! छोटी सी दुनिया है और कबीर भी कह गए हैं - कबीर यहु घर प्रेम का, ख़ाला का घर नाँहि। ओशो 1981 से 1985 के बीच वो अमेरिका चले गए थे और अमेरिकी प्रांत ओरेगॉन में उन्होंने  65 हज़ार एकड़ में रजनीशपुरम बसा दिया था, जो कहते हैं कि उस वक्त दुनिया की सबसे सुन्दर जगह थी। लेकिन उन्हें वापस भारत ही आना पड़ा!

रंगोली फिल्म का पूरा गाना जिसका श्रेय शैलेन्द्र और हसरत दोनों को दिया जाता है :

छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं
तुम कहीं तो मिलोगे, कभी तो मिलोगे
तो पूछेंगे हाल...

हम तो ये समझेंगे हमने, एक पत्थर को पूजा
लेकिन तुमको अपने जैसा, नहीं मिलेगा दूजा
छोटी सी ये दुनिया...

सीखा नहीं हमारे दिल ने, प्यार में धीरज खोना
आग में जल के भी जो निखरे, है वही सच्चा सोना
छोटी सी ये दुनिया...

दिल की दौलत मत ठुकराओ, देखो पछताओगे
आज चले जाते हो जैसे, लौट के भी आओगे
छोटी सी ये दुनिया...

फिल्म :  रंगोली (1962)
गीतकार :  शंकरदास केसरीलाल 'शैलेन्द्र' और  इकबाल हुसैन 'हसरत जयपुरी'
संगीतकार :  शंकर सिंह राम सिंह रघुवंशी और जयकिशन दाह्या भाई पंचाल 'शंकर- जयकिशन'
गायक /गायिका : किशोर कुमार गांगुली / लता दीनानाथ मंगेशकर
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--प्रकाश हिन्दुस्तानी
22 -09-2023
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