(क्रिश्चियन योगा पर यह लेख 2 साल पहले लिखा था, पर आज भी मौजूं है )
अब फिर कई लोगों को तकलीफ हो रही है क्योंकि 21 जून को द्वितीय अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। 2015 को 21 जून के दिन जब पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा था, तब दुनिया के कई हिस्सों में लोगों को कष्ट था। भारत में भी कुछ लोगों को तकलीफ थी। सूर्य नमस्कार को आसन के बजाए व्यायाम कहा गया और योग दिवस की गतिविधियों से उसे हटा दिया गया। इसके पीछे तर्क यह था कि इस्लाम में विश्वास रखने वाले लोग सूर्य को देवता नहीं मानते, इसलिए वे सूर्य को नमस्कार नहीं करना चाहते। मध्यप्रदेश में भी अनेक स्कूलों में योग की कक्षा में सूर्य नमस्कार नहीं कराया जाता।
कुछ समय पहले जॉर्जिया में एक स्कूल के दैनंदिन कार्यक्रम में से योग को हटा लिया गया, क्योंकि कुछ ईसाई धर्मांवलम्बियों का मानना था कि यह इनके धर्म के हिसाब से नहीं है और उन्होंने स्कूल को इसकी शिकायत की। कनाडा के एक विश्वविद्यालय में भी योग कक्षाएं स्थगित कर दी है और फ्लोरिडा में महिलाओं की प्राइवेट योग कक्षाओं को भी लोगों ने बंद करा दिया है। वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार योग को लेकर लोगों के अपने-अपने मुद्दे है। आप हमारे बच्चों पर अपना धर्म नहीं थोप सकते। यह कहना है स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों का। यह भी तर्क दिया गया कि तनावमुक्त कराने के कुछ योग आसन बहुत कष्टप्रद है। इसके अलावा नमस्ते कहना भी ईसाई धर्म के अनुसार नहीं है और ओम का जाप करना भी वे उचित नहीं मानते। यह एक धार्मिक कसरत है।
योग के खिलाफ जो तर्क दिए गए उनमें दो बातें मुख्य हैं। पहली तो यह कि योग पूर्व की धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। दूसरा दावा यह है कि उनके पास योग से ज्यादा फायदेमंद विकल्प तैयार है। इसके बावजूद पूरी दुनिया में योग को सभी मानते हैं। राष्ट्रपति से लेकर मजदूर तक और खिलाड़ियों से लेकर हॉलीवुड के कलाकार तक सभी लोग योग को अपनाए हुए है, लेकिन ऐसे लोग भी है, जो भारतीय योग को नहीं मानते और उन्होंने अपना ‘क्रिश्चियन योगा’ शुरू कर दिया है। इसे ‘होली योगा’ यानि पवित्र योग कहा गया है।
पश्चिमी मीडिया में भारतीय योग को हिन्दू योग कहा जा रहा है और बड़े पैमाने पर उसके खिलाफ विषवमन हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया में तो आधिकारिक तौर पर क्रिश्चियन योगा को मान्यता दी गई है और उसके प्रशिक्षकों को सरकारी डिग्रियां भी मिलने लगी है। ‘प्रे़ज योगा’ के नाम पर पूरे देश में कक्षाएं भी शुरू हो गई है। बड़ी संख्या में चर्च ऐसे कार्यक्रमों को बढ़ावा भी दे रहे है। ऐसी अनेक योग कक्षाएं तो गिरजाघरों में भी संचालित हो रही है, इसे वैकल्पिक योग कहा गया है। गिरजाघरों के पादरियों का दावा है कि योग के कई आसन तो वास्तव में उनकी प्रार्थना-मुद्राओं का ही रूप है।
क्रिश्चियन योगा के एक प्रशिक्षक का कहना है कि एक ईसाई के रूप में मैं हिन्दू विचारधारा को स्वीकार नहीं कर सकता। शरीर कई तरीके से आसन लगा सकता है और इस पर किसी का कोई कॉपीराइट नहीं है। यह भी कहा गया कि योग धार्मिक क्रिया नहीं, आध्यात्मिक क्रिया है। अमेरिका में हजारों लोग योगाभ्यास करते है, लेकिन वे मूल रूप से धर्मनिरपेक्ष लोग है। वे योग को कसरत का ही एक तरीका मानते हैं। अमेरिका में सैकड़ों तरह से योग की क्रियाओं का रजिस्ट्रेशन और कॉपीराइट किया जा चुका है। योग वहां एक बहुत बड़ा कारोबार है। इसके बावजूद कई लोग यह भी मानते है कि योग भारत की वैदिक परंपरा का एक हिस्सा है।
अमेरिका में अनेक योगा स्टुडियो हैं, जहां प्रति घंटे के आधार पर फीस तय है। वहां योग फैशन भी है और जरूरत भी, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में क्रिश्चियन योगा के एक प्रशिक्षक का कहना है कि योग आपकी अंतरात्मा से पूछता है कि आपको क्या चाहिए और हम वह पा सकते हैं। यह हिन्दू विचारधारा है। एक ईसाई के रूप में मैं अपने आप में कुछ भी नहीं। मैं जो कुछ भी हूं, प्रभु यीशु के कारण हूं। उनके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
ऑस्ट्रेलिया में क्रिश्चियन योग के आसनों को अलग-अलग नाम दे दिए गए है। जैसे द क्रॉस, पीटर्स बोर्ड, डेविड’स हार्प आदि। दावा है कि इन आसनों का हर एक आसन प्रभु ईशु के आराधना की मुद्रा का है। हमें अपने धर्म के अनुसार योग करने का पूरा अधिकार है और हम वह कर रहे है। जब हम होली योगा करते हैं, तब हमारा सीधा संबंध प्रभु यीशु से हो जाता है। जब हम ध्यान करते हैं, तब वह प्रभु का ध्यान होता है। यह भारतीय परंपरा से एकदम अलग है। हमारा लक्ष्य है प्रभु यीशु की पूजा, आराधना और उनसे जुड़ना। योग की पूर्वी धारणाओं वाले लोग गलत भगवान की प्रार्थना में लगे है।
क्रिश्चियन योगा के मानने वालों का कहना है कि हम प्रभु यीशु की आराधना में जिस तरह की मुद्राएं बनाते है। भारतीय लोग उस तरह की मुद्रा नहीं बनाते। जैसे भारतीय लोग मंदिरों में जाकर हाथ जोड़ते है और दंडवत प्रणाम करते है। क्रिश्चियन योगा में इसके लिए जगह नहीं है। क्रिश्चियन अवधारणा के अनुसार मनुष्य का जीवन चक्र अलग है और वहां 84 लाख योनियों की कोई बात नहीं होती। बाइबल में साफ-साफ लिखा है कि अपने हर विचार को प्रभु यीशु के प्रति समर्पित करो। प्रभु यीशु के अलावा किसी और की आराधना की अनुमति नहीं है।
क्रिश्चियन योगा में एक ऐसी योग मुद्रा बनाई जाती है, जिसे भारत में वृक्षासन कहा जाता है। क्रिश्चियन योगा के मानने वालों का कहना है कि यह ट्री पोश्चर वहीं है, जिसकी चर्चा बाइबिल में की गई है। इसके अनुसार प्रभु यीशु एक ऐसे बागबां हैं, जो अपने बच्चों यानि पौधों की तरह हमें जन्म देते है और पालते पोसते है, ताकि हम उपयोगी बन सकें। क्रिश्चियन योगा में यह पोश्चर करने से हम बाइबिल के प्रति अपनी समझ बढ़ा सकते है।
ऐसा माना जाता है कि योग का जन्म भारत में हुआ। योग साधना के 8 अंग बताए गए है। जिनमें मानसिक और शारीरिक दोनों क्रियाओं का ध्यान रखा गया है। योगासन के द्वारा हम अपनी तमाम शारीरिक और मानसिक व्याधियों से बच सकते है। भारतीय अवधारणा के विपरित योग के बारे में ईसाई धर्म मानने वालों का कहना है कि योग के बारे में उनके धर्म कुछ और ही कहते है।
कैथोलिक पत्रिका में इस बारे में छपे एक लेख में कहा गया है कि हिन्दुत्व के अनुसार योग सम्पूर्ण शरीर की एक क्रिया है, जिसमें मानव का मस्तिष्क और मन भी शामिल है। ईसाई धर्म के अनुसार योग करने में बाधा यह है कि हम अपने मस्तिष्क और मन को प्रभु यीशु के अनुसार ही संचालित कर सकते है। बाइबिल में भगवान ने अपने आपको सम्पूर्ण सृष्टि का जनक बताया है। हम सब प्रभु के बनाए हुए है, इसलिए हम जो कुछ भी करेंगे, प्रभु की इच्छा के अनुसार ही करेंगे। पूर्वी धारणा के अनुसार योग में सभी कुछ प्रभु के रूप में है। यह कैसे हो सकता है? प्रभु तो एक ही है और वहीं सबका जनक है।
क्रिश्चियन योगा के अनुसार भारतीय योग के साथ दिक्कत यह है कि वह वेदांत या अद्वेतवांत को मानता है। यानि जो कुछ भी है, वह एक ही है। ईश्वर और उसकी रचनाओं को एक ही माना जाता है। व्यक्ति को ब्रह्म माना गया है, जो क्रिश्चियन धर्म में नहीं माना जा सकता है। भारतीय योग में लोग ओम, नम: और सोहम जैसे मंत्रों का इस्तेमाल करते हैं। भारत में योग करते समय लोग सांस लेते समय सो और छोड़ते समय हम का उच्चारण करते है। यह क्रिश्चियन धर्म के अनुसार अनुकूल नहीं है, क्योंकि कई लोग तो सोहम और ओम का अर्थ जानते ही नहीं है।
भारतीय योग विद्या व्यक्ति को भौतिकवादी चीजों से ऊपर ले जाती है। वह बताती है कि यह संसार मिथ्या है। जो कुछ भी है, वह ज्ञान ही है। वास्तव में ऐसा होना संभव नहीं है। आप अपने शरीर से मन और आत्मा को अलग करने की बात करते है, जो संभव नहीं है। ईसाई धर्म में प्रार्थना ईश्वर का दिया हुआ ही एक उपहार है। साथ ही यह मानव द्वारा किया गया प्रयास है, जो प्रभु यीशु तक वह पहुंचाना चाहता है। हमारे सभी संत हमें यहीं सिखाते है। इसीलिए हम योग को अपने हिसाब से करना चाहते है। हम अगर ध्यान ही लगाएंगे, तो वह निराकार नहीं हो सकता। वह केवल प्रभु यीशु की तरफ ही जा सकता है।
अभी तो क्रिश्चियन योगा के करीब 85 केन्द्र ही खुल पाए है। बाकि पूरी दुनिया में योग उसी तरह प्रचलित है, जैसा कि भारतीय लोग करते है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 27 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था- ‘‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का बेशकीमती उपहार है। यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है। यह मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है। यह विचार संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है और सेहत तथा भलाई के एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रस्तुत करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर की भावना दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है।’’
प्रधानमंत्री की पहल के बाद ही 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया और संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों ने 11 दिसंबर 2014 को उस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया, जिसमें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव था। यह प्रस्ताव 90 दिनों के भीतर ही पूरे बहुमत से पारित किया गया। इतने कम समय में संयुक्त राष्ट्र में कोई भी प्रस्ताव पूर्ण बहुमत से पारित नहीं हुआ। 21 जून 2015 को पहला अंतरराष्ट्रीय योग दिवस लगभग पूरी दुनिया में मनाया गया। नई दिल्ली में 21 जून को 36 हजार लोगों ने 35 मिनिट तक योग के 21 आसन का प्रदर्शन किया। उसमें गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड के दो नए रिकॉर्ड बने। पहला सबसे बड़ी योग कक्षा, जिसमें 35985 लोग शामिल थे और दूसरा 84 देशों के लोग इस आयोजन में उपस्थित थे।
इस बार योग दिवस पर प्रधानमंत्री चंडीगढ़ में रहेंगे और वहीं इस आयोजन में शामिल होंगे। पूरे देश में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की तैयारियां जोर-शोर से चल रही है। भारतीय योग में आठ मूल तत्व हैं- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याआहार, धारणा, ध्यान और समाधि। इनमें से अधिकांश लोग केवल आसन और प्राणायम को ही योग समझते है। जबकि योग इससे अधिक बहुत कुछ है।
18 April 2016
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