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पता नहीं सुभाष चंद्रा रूपर्ट मर्डोक को अपना आदर्श मानते हैं या नहीं, लेकिन यह बात तय है कि उनका काम करने का तरीका रूपर्ट मर्डोक से काफी मिलता-जुलता है। दोनों ही मीडिया के महारथी है और मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया पर छा जाना चाहते हैं। दोनों का काम करने का तरीका ऐसा है कि वे आकाश के मार्ग से किसी भी देश में प्रवेश करते है और वहां के टेलीविजन चैनलों और दूसरे माध्यमोें पर शिकंजा कस लेते है। दोनों की जिंदगी की कई बातें समान है। सुभाष चंद्रा रूपर्ट मर्डोक की तुलना में 19 बैठते है, तो इसका कारण यह है कि वे कारोबार के मैदान में बाद में आए। हो सकता है कि मर्डोक की उम्र तक आते-आते वे उससे काफी आगे निकल जाएं।

14 मार्च 2017 को जारी फोब्र्स की सूची में शामिल अरबपतियों में भारत के सुभाष चंद्रा का नाम 435वें नंबर पर है, लेकिन भारतीय अरबपतियों में वे 15वां स्थान रखते हैं। दो साल पहले सुभाष चंद्रा की स्थिति भारत में 18वें नंबर पर थी। सुभाष चंद्रा को भारत का रूपर्ट मर्डोक भी कहा जाता है। यह बात और है कि मर्डोक के सामने सुभाष चंद्रा का साम्राज्य थोड़ा छोटा लगता है, लेकिन मर्डोक सुभाष चंद्रा की तुलना में बहुत पुराने कारोबारी है। सुभाष चंद्रा का कारोबार दुनियाभर में फैला है और 169 देशों के करीब 100 करोड़ लोगों तक उनके न्यूज चैनलों की पहुंच है। सुभाष चंद्रा के कारोबार में ज़ी टीवी चैनल नेटवर्क के 70 चैनल, केबल नेटवर्क, आयात-निर्यात उद्योग, सौर ऊर्जा परियोजनाएं, थीम पार्क, कंस्ट्रक्शन्स, खदान आदि प्रमुख है।

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सुभाष चंद्रा का ज़ी नेटवर्क नरेन्द्र मोदी और भाजपा का माउथपीस माना जाता है। सुभाष चन्द्रा शेयर बाजार के महारथी है और वे अपनी कई कंपनियों के शेयर ऊपर नीचे करते रहते है। कुछ दिनों पहले उनकी किताब ‘द ज़ी फेक्टर : माय जर्नी एस द रांग मैन एट द राइट टाइम’ का विमोचन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री के सरकारी निवास पर हुआ था, जिसमें मनोहर पर्रिकर, सुरेश प्रभु, मुलायम सिंह यादव, नजीब जंग, सुशील कुमार शिंदे, अमर सिंह, अक्षय कुमार, अनुपम खेर, मधुर भंडारकर आदि अनेक लोग शामिल हुए थे। सुभाष चंद्रा ने उस कार्यक्रम में कहा था कि वे सन् 2001 में प्रधानमंत्री आवास पर एक किताब के विमोचन समारोह में आए थे। किताब लिखी थी नरेन्द्र मोदी ने और विमोचन किया था तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने। उसी दिन से सुभाष चंद्रा ने ठान लिया था कि वे अपनी आत्मकथा का विमोचन प्रधानमंत्री निवास पर प्रधानमंत्री से ही करवाएंगे।

भारत में प्राइवेट सेटेलाइट चैनल की शुरूआत करने वाले सुभाष चंद्रा ही है। 2 अक्टूबर 1992 को उन्होंने ज़ी टीवी शुरू किया था और उसके बाद वे लगातार नए-नए चैनल शुरू करते गए। 1995 में उन्होंने सिटी केबल शुरू किया। फिर ज़ी टीवी केबल के माध्यम से वे इंटरनेट कनेक्शन देने वाली पहली कंपनी ज़ी टीवी केबल के मालिक बन गए। 2003 में उन्होंने डायरेक्ट टू होम यानि डीटीएच सेवा शुरू की। रूपर्ट मर्डोक की तरह मीडिया से जुड़े अनेक व्यवसाय में वे शामिल है। टेलीविजन नेटवर्क (ज़ी), समाचार पत्र श्रृंखला (डीएनए), केबल सिस्टम (वायर एंड वायरलेस लिमिटेड), डीटीएच (डिश टीवी) के अलावा वे अग्रानी और फोकाल नामक को-संचार उपग्रह के भी मालिक है। एस्सेल वल्र्ड और वाटर किंगडम उनके थीम पार्क है, प्ले विन के नाम से वे ऑनलाइन गैमिंग का कारोबार करते है। ज़ी लर्न के माध्यम से वे शिक्षा के धंधे में है। फ्लेक्सीबल पैकेजिंग के क्षेत्र में वे एस्सेल प्रोपैक और एस्सेल इन्फ्रा लिमिटेड के नाम से वे कंस्ट्रक्शन के कारोबार में है। पारिवारिक मनोरंजन के केन्द्र के रूप में वे फन सिनेमास के मालिक है। इसके अलावा सुभाष चंद्रा ने मल्टीमीडिया शिक्षा के केन्द्र भी खोले। एनजीओ के धंधे में भी वे आए और चंद्रा ग्लोब विपन्ना फाउंडेशन के चेयरमैन वे है। आदिवासी क्षेत्रों में वे शिक्षा का कार्य करते है और उनका दावा है कि उनके एनजीओ 40 हजार गांवों में 11 लाख से भी ज्यादा बच्चों को शिक्षा दे रहे है।

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ज़ी ने पाकिस्तानी सीरियलों को दिखाने के लिए जिंदगी नाम का चैनल भी शुरू किया है। वेलनेस चैनल के रूप में वे ज़ी लिविंग भी चला रहे है। अब उनका इरादा देशभर में एटीएम खोलने का है। वे देशभर में 50 हजार से अधिक एटीएम खोलने की योजना बना रहे है, जहां होने वाले हर ट्रांजेक्शन का एक निश्चित शुल्क उनके खाते में जमा होगा।

अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए सुभाष चंद्रा रूपर्ट मर्डोक की ही तरह या यूं कहे कि कहीं-कहीं उनसे भी ज्यादा कड़े और क्रूर फैसले करते रहे है। रूपर्ट मर्डोक की ही तरह उन्होंने अपना देश नहीं छोड़ा, बल्कि भारत में ही रहकर दुनियाभर में साम्राज्य फैलाने की कोशिशों में लगे है। ऐसा कहा जाता है कि ज़ी चैनल की शुरूआत के दिनों में उन्होंने सरकारी दूरदर्शन के वरिष्ठ अधिकारियों को कई गुना ज्यादा तनख्वाह देकर अपने यहां काम पर लगाया। काम होते ही उन लोगों को मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया, जिसमें कई वरिष्ठ ब्रॉडकास्टिंग अधिकारियों का जीवन तबाह हो गया। इसके अलावा उन्होंने दूरदर्शन को सेबोटाज करने के लिए मोटी-मोटी रिश्वतें बांटी। यह कुछ ऐसा ही है जैसा कि कहा जाता है कि एयरटेल और अन्य प्राइवेट टेलीकॉम कंपनियों ने बीएसएनएल के साथ किया था। रजत शर्मा का शो ‘आप की अदालत’ ज़ी टीवी पर बरसों बरस चलता रहा। इस शो के कारण जितनी अच्छी पीआरशिप रजत शर्मा ने की, उससे कहीं ज्यादा अच्छी पीआर सुभाष चंद्रा की रही। अगर आप अतीत में झांके तो पाएंगे कि ज़ी टीवी पर चलने वाले आप की अदालत कार्यक्रम के विशेष आयोजनों में जिस तरह लोगों को बुलाकर संपर्क साधा जाता था, वहीं शिक्षा रजत शर्मा को अपने चैनल शुरू करने के वक्त काम आई। आज ज़ी ग्रुप हिन्दी और भारतीय टेलीविजन कार्यक्रमों को बनाने वाला दुनिया का सबसे बड़ा समूह है। कहते है कि उसके पास 80 हजार घंटे प्रसारित करने वाले कार्यक्रम का भंडार है। इसके अलावा तीन हजार फिल्में भी ज़ी टीवी के फिल्मी चैनलों के पास है। इस तरह वे दुनिया में हिन्दी फिल्मों की सबसे बड़ी लायब्रेरी के मालिक भी है।

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30 नवंबर 1950 को जन्मे सुभाष चंद्रा की कामयाबी की कहानी पाठ्य पुस्तकों में पढ़ाई जाने लायक तो है। हरियाणा के हिसार के सुभाष चंद्र गोयल 1970 में 17 रूपए लेकर घर से निकले थे और इन्हीं से उन्होंने अपना कामकाज शुरू किया। 1966 में वे अपने पिता से जिद कर रहे थे कि उन्हें फिएट कार खरीदकर दी जाए, जो उनके पिता ने पूरी नहीं की। 21 साल की उम्र में सुभाष चंद्रा ने अपनी फिएट कार की जिद पूरी की और एक सेकंड हैंड फिएट कार खरीदने में कामयाब हुए। सुभाष चंद्रा ने 12वीं के बाद औपचारिक पढ़ाई नहीं की। पढ़ाई में उनकी दिलचस्पी कभी थी भी नहीं, लेकिन कारोबारी बुद्धि बहुत तेज थी। बचपन से ही वे खुद का कारोबार करना चाहते थे। यह नशा उन पर ऐसा सवार था कि 19 साल की उम्र में उन्होंने वेजीटेबल ऑयल बनाने की यूनिट लगाई। चावल का कारोबार भी किया। अनाज का एक्सपोर्ट भी करने लगे। 21 साल की उम्र में 1981 में उन्हें ख्याल आया कि पैकेजिंग कंपनी बनाई जाए। हुआ यह था कि वे एक पैकेजिंग एक्जीबिशन में गए थे और वहां उन्हें लगा कि पैकेजिंग के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं है। फिर उन्होंने एस्सेल पैकेजिंग की शुरूआत की। पैकेजिंग और अनाज का व्यापार करते-करते उन्होंने अपना साम्राज्य काफी बढ़ा लिया। मुंबई के नजदीक उन्होंने करीब 600 एकड़ की विवादास्पद जमीन पर थीम पार्क बनाने का खयाल किया और उसके लिए जुट गए। कहा जाता है कि उस थीम पार्क को बनाने में उन्होंने अनेक पर्यावरण संबंधी नियमों को धता बताई। शिवसेना और बाल ठाकरे, भाजपा और उस क्षेत्र के सांसद राम नाईक (वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल) इस तरह के थीम पार्क का घोर विरोध कर रहे थे, लेकिन अचानक रातों रात शिवसेना और भाजपा का रुख बदल गया, जो बाल ठाकरे और राम नाईक इस तरह के थीम पार्क के विरोध में बयान देते थे, समर्थन में उतर आए। इसके पीछे क्या करिश्मा था, यह तो सुभाष चंद्रा और ये लोग ही जाने। तरह-तरह की चर्चाएं उन दिनों इस मुद्दे को लेकर होती थी।

ऐसा नहीं है कि सुभाष चंद्रा हर कारोबार में कामयाब रहे हो। उन्हें कई बार कारोबार में मात भी मिली। वे अपनी विफलताओं को शिक्षा मानते है और कहते है कि कोई भी विफलता उतनी बुरी नहीं, क्योंकि वह हमें शिक्षा देकर जाती है। सुभाष चंद्रा ने मुंबई में प्रिंट मीडिया में दैनिक भास्कर ग्रुप के सहयोग से 2005 में डीएनए नामक अंग्रे़जी अखबार की शुरूआत की थी। सैकड़ों करोड़ रुपए इस कारोबार में निवेश किए गए थे, लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के आगे डीएनए अखबार नहीं चल पाया। बाद में दैनिक भास्कर समूह डीएनए के प्रकाशन से अलग हो गया और आज ज़ी न्यूज पर सुभाष चंद्रा के प्रिय टीवी एंकर सुधीर चौधरी डीएनए के नाम से ही एक कार्यक्रम पेश करते है। सुभाष चंद्रा ने ही आईपीएल की तरह ही क्रिकेट का कारोबार करने की सोची थी, लेकिन वह योजना कानूनी उलझनों में फंस गई और क्रिकेट को कारोबार का एक बड़ा हिस्सा बनाने की उनकी योजना नाकाम रही। ऑनलाइन गैम्बलिंग के कारोबार के माध्यम से जुआं खिलाकर मोटी कमाई करने की योजना भी धरी रह गई। रूपर्ट मर्डोक की तरह उन्होंने भी शिक्षा का कारोबार करना चाहा और जगह-जगह अपने स्कूल की फ्रेंचाइज बेची। देशभर में इस तरह के स्कूल चल तो रहे है, लेकिन सुभाष चंद्रा के साम्राज्य का वह छोटा सा हिस्सा ही है।

विजय माल्या की तरह ही अपने संसाधनों का उपयोग करके सुुभाष चंद्रा हरियाणा से राज्यसभा के लिए चुने गए है। उनकी योजना मध्यप्रदेश से राज्यसभा में जाने की थी, लेकिन वह योजना कामयाब नहीं हो पाई, तो किसी तरह उन्होंने हरियाणा से यह जुगत बैठा ली। सुभाष चंद्रा भले ही कॉलेज की पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए हो, लेकिन उन्होंने इतनी दौलत कमा ली है कि यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट लंदन में उन्हें मानद डॉक्टरेड की उपाधि भेंट की है, जो व्यवसाय प्रशासन के क्षेत्र में है। सुभाष चंद्रा को जानने वाले और उनकी कंपनियों में काम करने वाले लोग यह बात बहुत अच्छी तरह जानते और महसूस करते है कि सुभाष चंद्रा का पूरा साम्राज्य भाई-भतीजावाद, नि़जी सनक और जिद के कारण चलता है। प्रोफेशनलिज्म को वहां उतना सम्मान नहीं। ऐसा ही हाल रूपर्ट मर्डोक का भी है। अंतर यह है कि सुभाष चंद्रा ने न तो अपना देश बदला, न अपनी बीवियां। खरबपति होने का बाद भी उनका बीड़ी पीने का शौक बरकरार है और वे बीड़ी पीने में शरमाते नहीं।

डीएनए के एक पूर्व संपादक ने एक प्रमुख अंग्रे़जी दैनिक में लेख लिखकर सुभाष चंद्रा के जीवन के कई अनछुए पहलुओं को बताया है। सुभाष चंद्रा ने शायद रजत शर्मा से ही यह सीखा है कि नेपथ्य में रहकर काम करना ही महत्वपूर्ण नहीं है। मुख्यमंच पर भी आना चाहिए और इसीलिए वे अपने टीवी चैनल में डॉ. सुभाष चंद्रा शो के नाम से एक कार्यक्रम करते है। इस मोटीवेशनल प्रोग्राम में सुभाष चंद्रा को देखकर कई लोगों को सुब्रत रॉय सहारा के प्रवचन याद आते है।

डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह रूपर्ट मर्डोक की बल्ले-बल्ले है, वैसी ही बल्ले-बल्ले सुभाष चंद्रा की नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद है। शायद इसीलिए ज़ी टीवी नरेन्द्र मोदी और भाजपा का प्रवक्ता बना हुआ है। सुभाष चंद्रा इसे विचारधारा का नाम देते है। वे राष्ट्रीयता की भावना का भी समर्थन करते है और रूपर्ट मर्डोक की तरह ट्विटर पर ट्वीट तो करते रहते है, लेकिन बेहद सोच समझकर। रूपर्ट मर्डोक ने कभी कहा था कि कोई अमेरिकी राष्ट्रपति पद तक मुसलमान पहुंच ही नहीं सकता। बराक ओबामा के अश्वेत होने पर भी उन्होंने व्यंगात्मक भाषा का इस्तेमाल किया था और कहा था कि बराक ओबामा अमेरिकी अश्वेतों के प्रतिनिधि नहीं है। सुभाष चंद्रा राजनैतिक दृष्टि से ज्यादा परिपक्व है। वे कोई भी बात सोच समझकर ही कहते है। सुभाष चंद्रा ने विधिवत शपथ पत्र लेकर अपने नाम के आगे से गोयल हटा दिया और चंद्र को चंद्रा करके सुभाष चंद्रा नाम रख लिया। इससे लगता है कि वे जातिवाद के खिलाफ हैं।

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दुनिया के सबसे बड़े मीडिया मुगल रूपट मर्डोक को लेकर दो तरह की खबरें चर्चा में है। पहली तो यह कि मर्डोक का साम्राज्य ढलान पर है। सोशल मीडिया के आगमन के बाद उनका कारोबार प्रभावित हुआ है। कई कंपनियां मुनाफा नहीं कमा रही है और कई घाटे की और अग्रसर है। दुनियाभर में मीडिया के इस सम्राट के चेहरे पर चिंता की लकीरें बताई जा रही है। उनके प्रतिस्पर्धी खड़े हो रहे है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन में उनके साम्राज्य की चूल्हे हिल रही है। उनकी गतिविधियों को लोकतंत्र के लिए खतरा तक करार दिया जा रहा है। जाहिर है ऐसे में किसी को भी चिंता होने लगेगी।

रूपट मर्डोक ऐसी बातों पर कोई कमेंट नहीं करते। वे बहुत कम कमेंट करते है और ज्यादातर अपने एक्शन से ही अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते है। डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति बनना मर्डोक के लिए वरदान साबित हुआ है और अब वे वैसी ही गतिविधियां कर रहे है, जैसी कि बिहार या यूपी में सत्ता हाथ में आने के बाद मुख्य दल करते है। अमेरिकी राष्ट्रपति की बेटी इवांका ट्रम्प खुद रूपट मर्डोक के लिए बरसों से कार्य करती थी। ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने मर्डोक परिवार के कारोबार से अलग होने का फैसला कर लिया। मर्डोक के इशारे पर अमेरिकी राष्ट्रपति अपने देश में चुन-चुनकर विरोधियों को हटाने में लगे है। भारतीय मूल के प्रीत भरारा और अन्य 45 लोगों को उनके पद से हटने का इशारा करने के पीछे भी मर्डोक का हाथ कहा जाता है। प्रीत भरारा मेनहट्टन के हाई प्रोफाइल एटॉर्नी थे, जो फॉक्स न्यूज में हुई गड़बड़ियों की जांच करने वाले थे। प्रमुख अमेरिका चैनलों में प्राइम टाइम शो में चुन-चुनकर लोगों की भर्ती की जा रही है और ट्रम्प विरोधियों को हटाया जा रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प मर्डोक से पूछते है कि वे किस-किस कमीशन में किसकी नियुक्ति करें।

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86 साल के रूपट मर्डोक फोब्र्स की सूची में सबसे धनी मीडिया मालिकों में शामिल है। सैकड़ों टीवी चैनल उनके है। वे स्टुडियो, पुस्तक प्रकाशन, समाचार पत्र उद्योग, केबल उद्योग आदि मीडिया के हर क्षेत्र में छाए हुए है। भारत में दिखाया जा रहा स्टार इंडिया उन्हीं का है, जिसके 32 टीवी चैनल है और भारत की एक तिहाई आबादी ये चैनल देखती है। स्टार और ईएसपीएन भी उन्हीं का है, जिसका जरिये वे क्रिकेट और अन्य सभी खेलों में छाए हुए हैं। टाटा स्काई के पार्टनर के रूप में वे डीटीएच नेटवर्क चलाते है। हैथवे के जरिये वे केबल नेटवर्क में हिस्सा रखते हैं। स्टार डेम और जी नेटवर्क के साथ मिलकर वे टीवी चैनल डिस्ट्रीब्यूशन का धंधा करते हैं। उनके कई होम शॉपिंग नेटवर्क है। फॉब्र्स स्टार न्यूज के जरिये वे फिल्में बनाते है। माय नेम इज खान फिल्म का निर्माण इसी कंपनी ने किया था। फिल्मों के डिस्ट्रीब्यूशन का काम भी वे करते हैं और स्लम डॉग मिलिनियर जैसी दर्जनों फिल्में उन्होंने विश्व स्तर पर वितरित की। दुनिया के सबसे बड़े पुस्तक प्रकाशन संस्थानों में से एक हार्पर कालिन्स उन्हीं का है। वॉल स्ट्रीट जर्नल पर उनका कब्जा है। वे सीएनएन जैसी बड़ी कंपनियों के मालिक हैं, जिसके चैनल दुनियाभर में चलते है। वे न्यूज कार्पोरेशन के चेयरमैन और सीईओ हैं। भारत में उनकी बराबरी का कोई आदमी नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया समूह और जी टीवी ग्रुप भी मर्डोक के साम्राज्य के सामने छोटे है। उन्होंने कई बेहद विशाल और एकाधिकार वाली कंपनियां बनाई है। वे उन कंपनियों के मालिक है और उनके जरिये मीडिया के बेताज बादशाह। दुनिया के करीब 150 देशों में उनके चैनल दिखाए जा रहे है। प्रिंट की दुनिया में उनके अखबारों की सूची बड़े-बड़े दिग्गजों में शामिल है।

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अपने मीडिया साम्राज्य के माध्यम से मर्डोक का एक मात्र काम है ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाना। लोकतंत्र, नैतिकता, न्याय, ईमानदारी आदि शब्द उनके शब्दकोष में ही नहीं है। वे साम्राज्यवाद में पूरा-पूरा भरोसा रखते है और उनकी नकल करते हुए दुनिया के कई देशों में ऐसे उद्योगपति आगे आए है, जो खुद भी मर्डोक की तरह बनना चाहते है। ऑस्ट्रेलिया में जन्मे रूपट मर्डोक ने इंग्लैण्ड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। 1950 से 1952 तक वे लंदन के डेली एक्सप्रेस में सब एडिटर के रूप में कार्य करते रहे। 1952 में वे अपने देश ऑस्ट्रेलिया लौट गए। और वहां से एडिलेड न्यूज और सन-डे मेल शुरू किया। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे ऑस्ट्रेलिया के ही कई अखबारों पर अपना अधिपत्य कायम किया। फिर वे उन अखबारों के विस्तार में लग गए। 1969 में उन्होंने ब्रिटेन में न्यूज ऑफ द वल्र्ड और द सन अखबार खरीदा। सेन एंटोनियो एक्सप्रेस न्यूज, न्यूयॉर्क पोस्ट, न्यूज इंटरनेशनल, न्यूयॉर्क मैग्जीन, द स्टार, द लंदन टाइम्स और सन डे टाइम्स, बोस्टोन हेराल्ड, शिकागो सन टाइम्स आदि खरीदे। इसी के साथ उन्होंने कई टेलीविजन स्टेशन भी खरीदे। पुस्तक प्रकाशन के व्यवसाय में गए। अपनी एयरलाइन शुरू की, तेल और गैस के कारोबार में घुसे। ट्वेन्टीथ सेंचुरी फॉक्स और अमेरिकी टेलीविजन स्टेशन खरीदे। फॉक्स ब्रॉडकास्टिक नेटवर्क खड़ा किया और 1985 में अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर ली। 1985 में उन्होंने न्यूयॉर्क पोस्ट बेच दिया। ट्राय एंगल पब्लिकेशन पर कब्जा किया। 1971 में स्काय सेटेलाइट टेलीविजन नेटवर्क की स्थापना की। आगे जाकर इसी स्काय ने अपने प्रतिस्पर्धी ब्रिटिश स्काय ब्रॉडकास्टिक पर कब्जा कर लिया। एशिया स्टार टीवी पर आधिपत्य जमाया। न्यूज इंटरनेशनल के डायरेक्टर बने। न्यूज कार्पोरेशन लिमिटेड, ट्वेन्टीथ सेंचुरी फॉक्स आदि के भी डायरेक्टर बने। उन्हीं की कंपनी स्टार इंडिया मुंबई के सबसे महंगे इलाके लोवरपरेल बिजनैस डिस्ट्रिक्ट की सबसे बड़ी अट्टालिका में 14 मंजिलों के दफ्तर से संचालित होती है।

2011 में मर्डोक का अखबार सन टेलीफोन हैकिंग के केस में फंसा। तब उसकी 28 लाख प्रतियां बिकती थी। वह घटकर अब 16 लाख के आसपास पहुंच गई है। सन का एड रेवेन्यु बुरी तरह घट गया है और वह घाटे की स्थिति में आ गया है। इसके बाद भी मर्डोक का दम्भ कायम है, वो कहते है कि आप प्रिंट की तुलना डिजिटल माध्यमों से नहीं कर सकते। हम अभी भी अपने क्षेत्र के महारथी है। टेलीफोन हैकिंग के मामले को लेकर रूपट मर्डोक की जो छिछालेदार हुई वह कम नहीं थी। कई किताबें उन पर लिखी गई, जिसमें उनकी जिंदगी के राज खोले गए है। मर्डोक किस तरह राजनीति का उपयोग करते है, किस तरह नेताओं पर दबाव बनाते है, यहां तक कि वे न्याय व्यवस्था को भी प्रभावित करने की कोशिश करते है। अपने विरोधियों को नेस्तनाबूत करने के लिए वे कोई कसर नहीं छोड़ते।

मर्डोक अपना सारा काम अपने वफादार कर्मचारियों के माध्यम से करते है। वे अपने इन कर्मचारियों को बहुत बड़े-बड़े पद और तनख्वाह देते हैं। उन से अपेक्षा की जाती है कि वे मर्डोक के इशारे पर वह हर काम करें, जो मर्डोक के फायदे में है। इसके बदले में उन कर्मचारियों को मनमाना पैसा, रिश्वत में बांटने के लिए मोटा धन, महिला कर्मचारियों की नियुक्ति और उनके साथ व्यभिचार करने की छूट और मौज मस्ती का सारा सामान उपलब्ध कराता है। साल में एक बार मर्डोक अपने अधिनस्तों से उनके द्वारा संचालित की जा रही कंपनियों का हिसाब-किताब मांगते हैं।

दुनिया के सभी प्रमुख देशों के नेताओं से वे मिलते रहते है। इन मुलाकातों का उद्देश्य मर्डोक के कारोबार से जुड़े होते है। दुनिया के अनेक लोग है, जो मर्डोक को अपना आदर्श मानते है और उन्हीं के जैसा होना चाहते है। मर्डोक का काम करने का स्टाइल लोगों को पसंद आता है और वे भी मर्डोक की तरह देश में चल रहे डाउन मार्केट अखबारों को खरीदते है। यह भी कहा जाता है कि अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की सरकारी खुफिया एजेंसियों में मर्डोक के लोग काम कर रहे है, मर्डोक उनसे जानकारियां निकलवाते है और उनका उपयोग करते है। मर्डोक खुद अपने मीडिया पॉवर का उपयोग करते है और उनके अधिकारी भी।

1975 में मर्डोक पर यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के चुने गए प्रधानमंत्री के खिलाफ षड्यंत्र किया था। ब्रिटेन में समाचार पत्र कर्मचारियों के आंदोलन करने पर उन्होंने छह हजार कर्मचारियों को रातों रात नौकरी से बाहर कर दिया था। अमेरिका नागरिकता के लिए उन्होंने अपने देश ऑस्ट्रेलिया की नागरिकता छोड़ दी। यह तक कि ईसाई धर्म भी उन्होंने अपने फायदे के लिए अपना लिया। पिछले साल ही उन्होंने चौथी शादी की थी। पहले की तीन पत्नियों से वे तलाक ले चुके थे।

सितम्बर 2015 में रूपट मर्डोक कुछ ही घंटों के लिए भारत आए थे। इस दौरान वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिले। उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा था कि मीडिया और मनोरंजन उद्योग विकास में बहुत बड़ी संख्या में नौकरियों के अवसर पैदा किए जा सकते है। उन्होंने भारत में अपने साम्राज्य के विस्तार पर भी चर्चा की थी। बाद में मर्डोक ने ट्विटर पर दिए गए एक संदेश में कहा था कि भारत एक जटिल देश है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के बाद सर्वश्रेष्ठ नीतियों वाले सर्वश्रेष्ठ नेता है।

 

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