अमित शाह का जन्मदिन !
मैं भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह की कई बातों का आलोचक हूँ, उनसे घोर असहमत रहता हूं, लेकिन फिर भी मैं उनका बड़ा प्रशंसक हूं. आमतौर पर जिस तरह कोई व्यापारी केवल अपने मुनाफ़े से मतलब रखता है, उसी तरह अमित शाह केवल भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक लाभ से मतलब रखते हैं. उनका लक्ष्य 'किसी भी तरह' भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाने का रहता है, इस में नैतिकता-अनैतिकता वे देखते नहीं हैं शायद !
अमित शाह शतरंज के माहिर खिलाड़ी हैं. रंगमंच पर अभिनय भी किया है और वे शास्त्रीय संगीत में रुचि रखते हैं. राजनीति में भी शास्त्रीय संगीत की तर्ज पर शतरंज खेलते हैं. वे कब प्यादे को वजीर बना देते हैं, कब राजा, घोड़ा और कब प्यादा, घोड़ा बन जाता है, और कब वजीर ऊंट के खाने में बैठने पर बाध्य हो जाता है, यह सामने वाले को समझ में नहीं आता. अमित शाह की अगली चाल कौन सी होगी, उनकी पार्टी के लोग भी नहीं जान पाते!
राजनीति में जितने दुश्मन नरेंद्र मोदी के होंगे, उससे कहीं ज्यादा दुश्मन अमित शाह ने पाल रखें हैं. सोशल मीडिया में भी अमित शाह खासे लोकप्रिय हैं. उनके फेसबुक पेज पर फॉलोवर्स की संख्या 1 करोड़ साढ़े 5 लाख से ज़्यादा है और ट्विटर पर करीब 75,00,000 लोग फॉलो करते हैं. वे शतरंज के अच्छे खिलाड़ी हैं और 2006 में गुजरात स्टेट शतरंज एसोसिएशन के चेयरमैन बने. पायलट प्रोजेक्ट के रूप में उन्होंने अहमदाबाद के सरकारी स्कूलों में शतरंज को शामिल करा दिया. जिससे विद्यार्थी ज्यादा सजग हुए, उनमें एकाग्रता बढ़ी. 2007 में नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के चेयरमैन और वाइस चेयरमैन बने और कांग्रेस के 16 साल के प्रभुत्व को समाप्त किया.
अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी में लोकसभा सीटें, विधानसभा सीटें, जिला पंचायत, जनपद-ग्राम पंचायत की सीटें की नहीं जीतीं. भारतीय जनता पार्टी समर्थित कार्यकर्ताओं ने सहकारी बैंक, मंडी समितियों, खेल संगठनों, व्यापारिक संगठनों, विभिन्न खेल क्लब और अन्य सामाजिक संगठनों आदि पर भी कब्जा किया और इस सब का फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिला.
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के भरोसे ही लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी लोकसभा चुनाव लड़ने गुजरात के गांधीनगर जाते रहे हैं. दसवीं लोकसभा से लेकर 16वी लोकसभा तक! शाह को अपनी राजनीति का नुकसान भी उठाना पड़ा. सोहराबुद्दीन शेख के फर्जी एनकाउंटर मामले में 25 जुलाई 2010 को भी गिरफ्तार हुए. उन पर अपहरण हत्या, हत्या का षड्यंत्र, सबूतों को छुपाने, एक्सटॉर्शन, महिला का फोन टैपिंग आदि आरोप थे. और तभी उन्होंने जेल में ही संकल्प किया था कि कांग्रेस को जड़ मूल से खत्म कर देंगे. बाद में वे न्यायालय के आदेश पर रिहा हुए. कांग्रेस की राजनीति की जड़ पर मट्ठा डालने का फैसला उन्होंने जेल में कर लिया था. 2012 में उनका नाम प्रजापति मर्डर केस में भी आया.
अमित शाह इतनी बड़ी पार्टी के प्रमुख होते हुए भी, इतने राज्यों में सत्ता होते हुए भी लगातार सक्रिय बने रहते हैं. वे कभी चैन से नहीं बैठते. अपने कार्यकर्ताओं के लगातार संपर्क में रहते हैं. हर सप्ताह ख़ास दिन नियमित रूप से अपने कार्यकर्ताओं से मिलते हैं, चाहे पहले से अपॉइंटमेंट फिक्स हो या न हो. धनी परिवार के होने के बावजूद कभी विमान में बिजनेस क्लास में सफर नहीं करते। चाहें तो चार्टर्ड विमान से यात्रा कर सकते हैं, लेकिन नियमित उड़ानों का ही उपयोग करते हैं. वह भी सामान्य यात्री की तरह. फाइव स्टार होटल में रुक सकते हैं, लेकिन रुकते हैं किसी आम कार्यकर्ता के घर. भोजन करना हो तो अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के घर जाकर भोजन करना पसंद करते हैं. यह उनकी संगठन क्षमता का नमूना है और तरीका भी शायद संघ की ट्रेनिंग का.
अगर अमित शाह के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी में यह मुकाम हासिल किया है तो इसका मुख्य कारण यह है कि अमित शाह ने हमेशा जमीनी स्तर के मुद्दों को उठाया है. पार्टी के कार्यकर्ताओं से स्थायी रूप से संपर्क रखा है. जब अहमदाबाद नगर के प्रभारी बने तब उन्होंने राम जन्मभूमि आंदोलन हो रही है एकता यात्रा के पक्ष में बहुत बड़ा जन समर्थन हासिल किया. 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के लिए चुनाव प्रबंधन का जिम्मा संभाला था, यह सिलसिला लंबे समय तक चलता चलता रहा. 2009 में जब लालकृष्ण आडवाणी ने लोकसभा चुनाव लड़ा तब वे उसके लिए रणनीति बनाते रहे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब गांधीनगर लोकसभा से चुनाव लड़ा था, तब भी वे उसके प्रभारी थे और हर बार भी अपने संगठन क्षमता और एक चुनाव मैनेजमेंट गुरु के रुप में अपनी स्थिति बनाते रहे.
1990 में भारतीय जनता पार्टी गुजरात में प्रमुख विरोधी पार्टी थी. उस वक्त नरेंद्र मोदी गुजरात में प्रभावी थे, उन्होंने अमित शाह को गुजरात भारतीय जनता पार्टी का संगठन सचिव बनाया। शाह ने लगातार काम किया और भारतीय जनता पार्टी के प्राथमिक सदस्यों का दस्तावेजीकरण किया. बूथ लेवल पर पार्टी की स्थिति को मज़बूत किया।
गुजरात में 1995 में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ज्यादा चल नहीं सकी. लेकिन अमित शाह ने गुजरात प्रदेश वित्त निगम के अध्यक्ष के रूप में निगम का कायापलट कर दिया और उसे शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध करवा दिया. भाजपा सरकार गिरने के बाद उपचुनाव में उन्हें फिर खड़ा होने का मौका मिला. सरखेज सेवर चुनाव में खड़े हुए और 25 हजार वोटों के अंतर से जीत गए. उनकी बड़ी राजनीतिक विजय थी. मतदाताओं का विश्वास उन्होंने जीता और प्रदेश में पार्टी को मजबूत बनाने के लिए अपनी ताकत झोंक दी. 1998 में उन्होंने फिर से चुनाव लड़ा और एक लाख 30 हजार वोटों से जीते. इसे बड़ी कहा जा सकता है.
गुजरात में सहकारिता आंदोलन बहुत बड़ी उपलब्धि है और सहकारी संस्थाओं पर कांग्रेस का कब्जा था. अमित शाह ने उस पर अपने समर्थकों को स्थापित कर दिया. अपनी चतुराई से उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को सरकारी बैंकों, दूध डेयरी और मंडी समितियों के चुनाव में जितवाया. इस जीत ने भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को ताकत दी और ग्रामीण ग्रामीण क्षेत्रों में पार्टी का प्रभाव बढ़ा. . शाह ने अपनी व्यावसायिक बुद्धि का उपयोग संस्थाओं के लिए भी किया और एशिया के सबसे बड़े सहकारी बैंक -- अहमदाबाद जिला सहकारी बैंक को 1 वर्ष के अंदर ही फायदे की स्थिति में ला दिया. बरसों में में पहली बार इस बैंक में अपना लाभांश घोषित किया. भारतीय जनता पार्टी ने उनकी उपलब्धियों को देखते हुए उन्हें सहकारिता प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया.
विधानसभा चुनाव के पहले 2002 में गुजरात में गौरव यात्रा निकाली गई, सह संयोजक अमित शाह थे. इस गौरव यात्रा के बाद जो चुनाव हुए उसमें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई. और अमित शाह फिर सरखेज से, लगातार तीसरी बार जीते. जीत का अंतर 158000 से भी ज़्यादा था. उन्हें परिवहन, गृह जैसे मंत्रालयों का दायित्व दिया गया. गुजरात के गृह राज्य मंत्री के रूप में उन्होंने काम किया. धीरे धीरे उनकी लोकप्रियता बरती गई. लोगों से मिलते रहे. 2007 में विधानसभा चुनाव में खड़े हुए इस बार जीत का आंकड़ा 2,32,832 पर पहुंच गया. उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया. कानून विभाग उनके पास रहे.
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में नरेंद्र मोदी का विकल्प अगर कोई हो सकता है तो वह अमित शाह ही हैं अमित शाह राजनीति में कहां तक जाते हैं यह तो भविष्य ही बताएगा.
22 oct 2017