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भारतीय सेना के दो जवानों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज करने के खिलाफ सोशल मीडिया पर जिस तरह बीजेपी को लानतें भेजी जा रही हैं, वे गौर करने लायक हैं। भारतीय सेना की दसवीं गढ़वाल यूनिट के मेजर आदित्य के नेतृत्व में सैनिकों ने दो पत्थरबाजों को गोली मार दी थी, उसके बाद सेना के जवानों के विरूद्ध हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया। सैनिकों के खिलाफ जो धाराएं लगाई गई है, वे है दफा 302, 307 और 336। जम्मू-कश्मीर में इंडियन पेनल कोड लागू नहीं होता, इसलिए वहां रणबीर पेनल कोड (आरपीसी) के तहत यह धाराएं लगाई गई है। जम्मू-कश्मीर की पुलिस ने जांच कमेटी बैठा दी है और तमाम लोगों से पूछताछ हो रही है कि इस मामले में क्या घटा और कैसे?

शनिवार को एफआईआर दर्ज की गई, उसके बाद बंद का आयोजन हुआ और फिर पथराव। शोपियां के एसपी अम्बारकर श्रीराम दिनकर मामले की जांच कर रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सेना की गोली से मारे गए दोनों जवान जावेद अहमद भट्ट और सुहैल जावेद लोन शनिवार को सेना पर पथराव कर रहे थे। सेना के जवानों ने आत्मरक्षा में गोलियां चलाई। पथराव करने वाले करीब दो सौ थे, उन्होंने एक जूनियर कमिशन ऑफिसर से हथियार छीना, उन्हें घायल किया, सेना की गाड़ी में आग लगाई और एक घायल जवान को आग के हवाले करने जा रहे थे, तभी अन्य जवानों ने भीड़ पर गोलियां चलाई, जिससे दो युवक मारे गए।

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इस पर गहरी नाराजगी जाहिर की। बीजेपी के सहयोग से मुख्यमंत्री बनी महबूबा मुफ्ती ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से बात की और अपना विरोध दर्ज किया। महबूबा ने कहा कि यह नागरिकों की हत्या है। सेना के जवानों की तरफ से मेजर आदित्य ने कहा कि अगर हिंसक भीड़ पर गोली नहीं चलाई जाती, तो सेना के जख्मी जवान को जिंदा आग में झोंक दिया जाता। सेना आमतौर पर गोली नहीं चलाती, लेकिन जब भी गोली चलाती है, तो उसका कोई लक्ष्य होता है। वह गोली जान लेने के लिए ही चलाई जाती है, मनोरंजन के लिए नहीं।

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मेजर आदित्य उस समय घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे, लेकिन वे प्रभारी थे और घटनास्थल से मात्र 200 मीटर दूर थे। सेना की ओर से कहा गया कि सेना का कॉनवॉय शांतिपूर्ण तरीके से सड़क पर जा रहा था, तभी लोगों ने बिना किसी बात के इकट्ठा होकर सेना के वाहनों पर पथराव शुरू कर दिए। इन लोगों ने पथराव के लिए ऐसी जगह चुनी, जहां केवल चार वाहन थे। उन्होंने ईटों और बड़े पत्थरों से सेना के वाहनों को नुकसान पहुंचाया और आग लगाने की कोशिश भी की। इसमें सेना के दो जवान घायल भी हो गए।

इस पूरी वारदात पर भारतीय जनता पार्टी में भी उबाल आ गया है। सुब्रमण्यम स्वामी ने महबूबा मुफ्ती को हट जाने की सलाह दी है। सेना के एक प्रवक्ता ने फिर वहीं बात दोहराई है कि जवानों को प्रशिक्षण इसी तरह दिया जाता है कि अगर वे आत्मरक्षा के लिए गोली चलाते है, तो उसका अर्थ दुश्मन की जिंदगी के खात्मे से ही होना चाहिए। सोशल मीडिया पर जो टिप्पणियां आई है, उनमें कहा गया है कि ये कैसा कानून, जहां देश की रक्षा करने वालों को अपनी आत्मरक्षा करने का मौका नहीं दिया जाता। सैनिकों के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर तत्काल रद्द करनी ही चाहिए। भले ही जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़े। बिना किसी विवाद के शांतिपूर्ण जा रहे वाहनों पर इस तरह पथराव करना और जवानों की जान लेने की कोशिश करना किसी और देश में संभव नहीं है। एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने लिखा कि क्या किसी को यह बताने की जरूरत है कि भारतीय सेना हमारे लिए क्या कर रही हैं?

कश्मीर के लोगों को भी इस तरह की सलाह दी गई है कि वे सेना से डरे नहीं, सेना किसी के घर में बिना कारण नहीं घुस रही है और न ही गोलियां चला रही है। लोगों को चाहिए कि वे सेना के शांतिपूर्ण कार्यों पर हिंसक होने की कोशिश न करें।

सेना के जवानों पर एफआईआर के बाद भाजपा की बड़ी भद हो रही है। लोग कह रहे है कि अगर जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस समर्थक किसी दल की सरकार होती, तो भाजपा के नेता किस तरह के बयान देते। भाजपा के मंचों से केन्द्र सरकार और रक्षा मंत्री को कितनी गालियां दी जाती। भाजपा ऐसी घटना को चुनावी मुद्दा भी बना लेती है और चीख-चीख कर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने की बात कही जाती है, लेकिन यहां तो कश्मीर में भी भाजपा के सहयोग से सरकार चल रही है और सेना के जवानों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो रही है। न प्रधानमंत्री कुछ बोल रहे हैं, न भाजपाध्यक्ष। थल सेना के पूर्व जनरल केन्द्र में मंत्री है और वे अपना मुंह सीये हुए बैठे हैं। सेना प्रमुख खुद कई मामलों में पर मुखर हैं, लेकिन यहां कुछ नहीं बोल रहे। कश्मीर के डीजीपी का एक बयान जरूर आया है कि केवल एफआईआर दर्ज हुई है और सेना का पक्ष अभी जाना नहीं गया है।

31 Jan 2018

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