दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 मीडिया घरानों पर 10-10 लाख रूपए का जुर्माना अदा करने के लिए कहा। हाईकोर्ट का मानना है कि इन मीडिया घरानों ने कठुआ में 8 साल की बच्ची के साथ जबरदस्ती और हत्या की खबर में पीड़िता का नाम उजागर किया, जो मीडिया के सिद्धांतों के खिलाफ है। इस तरह के मामलों में पीड़िता की पहचान छुपाए रखने संबंधी कानूनों की अवहेलना के कारण यह आदेश दिया गया।
मीडिया घरानों ने अपनी गलती मानते हुए माफी मांग ली है, लेकिन कोर्ट ने कहा है कि वह इस मुआवजे की राशि एक सप्ताह के भीतर हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास जमा करें, ताकि यह संपूर्ण राशि जम्मू-कश्मीर के कठुआ में रहने वाली पीड़िता के परिजनों को पहुंचाई जा सके। पीड़ित को मुआवजा देने संबंधी योजना के तहत यह आदेश दिया गया है।
जिन मीडिया घरानों को यह आदेश दिया गया है, उनमें टाइम्स ऑफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, एनडीटीवी, हिन्दू, रिपब्लिक टीवी, डेक्कन क्रानिकल, नवभारत टाइम्स, द विक, द पायोनियर, फस्र्ट पोस्ट, स्टेट्समैन और इंडिया टीवी शामिल है। यह सभी मीडिया घराने देश के जाने-पहचाने मीडिया हाउस है और इनकी पहुंच करोड़ों पाठकों और दर्शकों तक है। हाईकोर्ट ने जिन घरानों पर यह जुर्माना लगाया है, उनमें प्रिंट, टीवी और वेब मीडिया सभी शामिल है।
हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि मीडिया घरानों ने पीड़िता की पहचान को उजागर करके इंडियन पैनल कोड के सेक्शन 228ए का उल्लंघन किया है, जिसके तहत अपराधी को सजा देने की व्यवस्था है। कोर्ट ने यह भी साफ किया है कि सेक्शन 23 के अंतर्गत पोस्को कानून में बाल पीड़िता की पहचान उजागर करने में छह महीने की सजा का प्रावधान है।
इन मीडिया हाउस द्वारा कठुआ की पीड़िता की पहचान उजागर करने के बाद सोशल मीडिया पर पीड़ित बच्ची की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो गए थे। कोर्ट ने कहा है कि ऐसी पीड़ित बच्ची की पहचान उजागर करना जो अब इस दुनिया में नहीं है, किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। यह कानून का उल्लंघन तो है ही, पत्रकारिता की नैतिकता का भी सरासर उल्लंघन है। कोर्ट ने इस बारे में दिशा-निर्देश जारी किए है कि पीड़ित व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन बड़े पैमाने पर किया गया है। पीड़िता के परिवार की पहचान भी उजागर की गई। यहां तक कि पीड़िता के परिवार की महिलाओं की पहचान भी उजागर की गई। पीड़िता के पिता के नाम के साथ ही उसके गांव और यहां तक कि उसके घर की तस्वीरें भी मीडिया ने उजागर की। इससे कानून का उल्लंघन तो हुआ ही है। एक परिवार का जीना भी मुश्किल हो गया है।
मीडिया ने पीड़िता को जहां बंधक बनाकर रखा गया था, उस कथित धार्मिक स्थान की पहचान भी उजागर की। उस धार्मिक स्थान के केयरटेकर के एक बयान को ही आधार बनाकर पीड़िता को बार-बार बेइज्जत किया गया।
मीडिया हाउस के वकील ने सभी मीडिया हाउस की तरफ से न्यायालय में माफी मांग ली है और यह कहा है कि कानून के प्रति अज्ञानता की वजह से यह गलती हुई। मीडिया हाउस में काम करने वाले लोगों को यह गलतफहमी हो गई थी, चूंकि पीड़िता की मृत्यु हो चुकी है, इसलिए उसका नाम उजागर करने में आपत्ति नहीं है। फिर भी सभी मीडिया हाउस अपनी गलती के लिए माफी चाहते है।
विगत 13 अप्रैल को दिल्ली हाईकोर्ट ने पीड़िता का नाम उजागर करने वाले सभी 12 मीडिया हाउस को नोटिस जारी किया था। इसका जवाब देने के लिए 12 में से 9 मीडिया हाउस के वकील अदालत में पेश हुए। कोर्ट ने उन्हें चेताया था और कहा था कि किसी भी इस तरह के पीड़ित व्यक्ति का नाम, पता, फोटो, परिवार की जानकारी, स्वूâल की जानकारी, पड़ोसी के बारे में जानकारी या ऐसी कोई भी जानकारी जिससे उसकी पहचान उजागर होती हो, कानून सही नहीं है।
टेलीविजन, अखबार और वेबसाइट में इतनी जानकारी आने के बाद भी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (पीटीआई) ने पीड़िता के बारे में कभी कोई जानकारी उजागर नहीं की थी। पीटीआई की इस जवाबदेही वाली पत्रकारिता की प्रशंसा की जा रही है। पीटीआई द्वारा सतर्कता बरतने के बाद भी अनेक वेबसाइट ने कठुआ कांड से संबंधित एफआईआर जस की तस प्रकाशित की। एफआईआर में अपराध से संबंधित सभी जानकारियां थी। ऐसे में यहां भी पीड़िता की पहचान छुपाई नहीं जा सकी।
कठुआ में बालिका के अपहरण और हत्या की घटना को पूरी दुनिया में बेहद गंभीरता से लिया जा रहा है। जगह-जगह घटना के विरोध में प्रदर्शन हो रहे है। 18 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब लंदन पहुंचे, तब वहां भी उन्हें अनेक विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा। भारत में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर पूरी दुनिया पर चिंता व्यक्त की जा रही है। पाकिस्तानी मीडिया इस मामले को भुनाने में लगा है और वह इसे धार्मिक रूप देने पर अड़ा है। मामला इतना बड़ा रूप ले चुका है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस मामले में आरोपी को सजा और पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने की बात कही है।
12 मीडिया घरानों को दिया गया एक सप्ताह का समय 25 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा, उसी दिन हाईकोर्ट इस मामले में आगे की कार्रवाई करेगा। दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर कर रहे है।
इस मामले में जिन मीडिया हाउस का नाम आया है, वे सभी वैश्विक स्तर पर पहचान रखते है। इनमें से कई मीडिया हाउस तो 100 साल से भी ज्यादा पुराने है, जहां पत्रकारिता के ऊंचे मूल्यों की परंपरा है। ऐसे में भेड़चाल चलते हुए इन्होंने जो गलती की, वह क्षम्य नहीं हो सकती। अगर न्यायालय कड़ा रुख अपनाए, तो भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है, जब पीड़िता की पहचान गुप्त रहेगी।