श्री विश्वनाथ सचदेव ने टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में प्रवेश किया था और वें १५ साल तक नवभारत टाइम्स और धर्मयुग के सम्पादक (साथ-साथ भी) रहे। वे एक बेहतरीन सम्पादक, संवेदनशील व्यक्ति और बेहतरीन कवि हैं।टीवी शो और स्टेज पर उनके कार्यक्रम मानवीय मूल्यों को लेकर चर्चा में रहे हैं। देश-दुनिया के अनेक शीर्ष लेखक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, फिल्मी कलाकार, उद्योगपति उनके मित्रों में हैं।
मूलतः कोटा, राजस्थान के निवासी श्री गणेश मंत्री समाजवादी चिन्तक और समाजवादी कार्यकर्ता थे। टाइम्स ऑफ इण्डिया समूह में उन्होंने प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में कार्य शुरू करने वाले श्री गणेश मंत्री धर्मयुग के प्रधान सम्पादक तक पहुँचे। हर दायित्व उन्होंने इस खूबी के साथ निभाया कि न तो पत्रकारिता में समझौता किया न ही कभी अपनी सिद्धांतों को परे किया।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक पत्रकार, वक्ता और शोधार्थी के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने हिन्दी को उचित सम्मान देने के लिए भी कार्य किया। एक राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार के रूप में उनकी उपस्थिति प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों देखी जा सकती है। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय राजनीति के जानकारों के रूप में उनकी ख्याति है। वे करीब १० साल तक प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया में कार्य कर चुके हैं। हिन्दी समाचार एजेंसी ‘भाषा’ के संस्थापक-सम्पादक के रूप में उन्होंने भाषा से जुड़े कई प्रयोग किए।
डा. कन्हैयालाल नंदन उन सम्पादकों में से हैं, जिन्हें उनकी योग्यता और मेहनत के काम से वह मान-सम्मान नहीं मिला है, वे जिसके हकदार है। उत्तरप्रदेश के फतेहपुर जिले के तिवारी परिवार में जन्मे कन्हैयालाल नंदन ने कानपुर से बी।ए।, इलाहाबाद से एम।ए। और भावनगर यूनिवर्सिटी से पीएच.डी. की उपधियाँ ली। १ जुलाई १९३३ में जन्मे श्री नंदन ने मुम्बई विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेजों में चार सल तक अध्यापन कार्य किया। १९६१ से १९७२ तक वे धर्मयुग में सहायक सम्पादक रहे। फिर १९७२ से दिल्ली से क्रमशः पराग, सारिका और दिनमान में संपादक रहे।
श्रवण गर्ग ने हिन्दी पत्रकारिता में दो योगदान दिए हैं। पहला तो उन्होंने सम्पादक नामक प्रजाति को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और दूसरा इस प्रजाति की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन की व्यवस्था की। अखबार के सम्पादक को उन्होेंने लाइब्रेरी से बाहर निकालकर न्यूज डेस्क की मैनस्ट्रीम में पहुंचाया और उसका दायरा अग्रलेख और सम्पादकीय पेज से बाहर पैâलाया। आज यदि हिन्दी पत्रकारिता का विस्तार मध्यप्रदेश के बाहर पूरे देश में हो रहा है, तो इसके पीछे श्रवण गर्ग की मेहनत भी छिपी है। श्रवण गर्ग ने पत्रकारिता में हैँण्ड कम्पोजिंग से लेकर कम्प्यूटर नेटवर्विंâग तक के दौर में काम किया है।
मुंबई के बांद्रा पूर्व स्थित कला नगर के एक चौराहे का नामकरण हाल ही में डॉ. धर्मवीर भारती के नाम पर किया गया। डॉ. धर्मवीर भारती कला नगर की ही साहित्य सहवास बिल्डिंग में रहते थे। कला नगर में ही बाल ठाकरे का निवास मातोश्री भी है, लेकिन चौराहे का नामकरण डॉ. भारती के नाम पर होना उनके प्रति मुंबई का सम्मान दर्शाता है। डॉ. धर्मवीर भारती भारतीय पत्रकारिता के शिखर पुरूषों में से हैं। इससे बढकर वे साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। हिन्दी पत्रकारिता में उन्होंने 'धर्मयुग' जैसी सांस्कृतिक पत्रिका को स्थापित किया और ढाई दशक से भी ज्यादा समय तक शीर्ष पर बनाए रखा। मुझे याद है 1981-82 के वे साल, जब विज्ञापन दाता धर्मयुग में विज्ञापन बुक करने के लिए लम्बी लाइन में लगते थे। हाल यह था कि दीपावली विशेषांक में तो साल भर पहले ही विज्ञापन बुक हो जाते थे।
वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक नई दुनिया के पूर्व संपादक, पद्मश्री अभय छजलानी अब हमारे बीच नहीं रहे। गुरुवार, 23 मार्च २०२३ को अल सुबह उनका निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे। वे मध्य प्रदेश टेबल टेनिस संगठन के अध्यक्ष रह चुके हैं। वे इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी (इलना) के पूर्व अध्यक्ष थे, इसके लिए उन्हें 2002 में चुना गया था। भारत सरकार ने उन्हें पत्रकारिता में योगदान के लिए 2009 में पद्म श्री के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया था। अभय छजलानी का जन्म 4 अगस्त 1934 में हुआ था।
एन.के. के नाम से मशहूर नरेन्द्र कुमार सिंह ने पत्रकारिता में अनेक झंडे गाड़े हैं। वे हैं तो बिहार के लेकिन उनका कर्म क्षेत्र पूरा भारत की रहा है, जिसमें से मध्यप्रदेश में उन्होंने अपनी सेवाओं लम्बे समय तक दी और अब वे मध्यप्रदेश के ही निवासी हो गए हैं। अपने ४० साल के पत्रकारिता के जीवन में एनके सिंह के तीन हजार से ज्यादा आलेख प्रकाशित हो चुके हैं। कई अखबारों का सम्पादन वे कर चुके हैं और कई डाक्यूमेन्ट्री फिल्मों के निर्माण अहम सहयोग दे चुके हैं। सेन्ट्रल प्रेस क्लब भोपाल के अध्यक्ष रह चुके नरेन्द्र कुमार सिंह ने संगठन को बनाने के लिए ही बहुत सारे कार्य किए हैं।
7 अगस्त, जन्मदिन के अवसर पर...
आजकल अखबारों का सम्पादकीय पन्ना ‘वेस्ट मटेरियल' बनता जा रहा है, जिस पन्ने पर लोग सबसे ज्यादा भरोसा करते थे और जिसे पढ़ने के लिए न केवल आतुर रहते थे, बल्कि जिसके एक-एक शब्द को पाठ्यपुस्तक की तरह पढ़ा जाता था, वह अब न्यूजपेपर नाम के प्रॉडक्ट का लगभग अवांछित हिस्सा बन गया है।
उज्जैन मेंं ७ सितंबर १९५२ को जन्मे आलोक मेहता करीब ४२ साल से पत्रकारिता में सक्रिय हैं, लेकिन आज भी वे अपने आपको पत्रकारिता का विद्यार्थी ही कहते हैं। उन्होंने १६ साल की उम्र में ही नई दुनिया से अपनी पत्रकारिता का जीवन शुरू किया और उसके बाद १९६९ में दिल्ली में समाचार एजेंसी हिन्दुस्तान समाचार में कार्य किया। उसके बाद उन्होंने एक के बाद एक अनेक प्रकाशनों और प्रसारण माध्यमों में कार्य किया। वे लगभग सभी प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार पत्रों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। २००९ में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।
राहुल बारपुते उन सम्पादकों में से हैं, जिन्होंने अपने खून-पसीने से हिन्दी पत्रकारिता की नींव की सींचा। उन्होंने आजाद भारत की नई विधा की हिन्दी पत्रकारिता की दिशाएं तय की और नई पौध तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह बाबा यानी राहुल बारपुते का ही कमाल था कि राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, शरद जोशी, आलोक मेहता, डॉ. रणवीर सक्सेना, नरेन्द्रकुमार सिंह जैसे सम्पादक तैयार हो सके।