ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर
शिलान्यास किंग और लोकार्पण महारथी शिवराज सिंह
शिवराज सिंह ने छह ऑक्टोबर 2023 को एक ही दिन में 12000 से ज्यादा कार्यों का लोकार्पण और 2000 से ज्यादा निर्माण कार्यों का भूमिपूजन करके रिकॉर्ड बना लिया है। निश्चित ही यह आंकड़ा गिनीज़ बुक्स में दर्ज होना चाहिए। चुनाव की तारीखों का ऐलान होने का वक्त आ चूका है और कभी भी आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। एक साथ, एक ही दिन में इतने उद्घाटन और लोकार्पण प्रधानमंत्री ने भी नहीं किये हैं। एमपी में मामा हैं, तो यह मुमकिन है !
मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव बीजेपी शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को सामने रखकर नहीं लड़ रही है, बल्कि नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रखकर लड़ रही है। मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव बीजेपी के लिए कितने महत्वपूर्ण है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले 11 दिनों में तीन बार मध्य प्रदेश का दौरा कर चुके हैं। छह महीने में वह मध्य प्रदेश की नौ यात्राएं कर चुके हैं। मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के बारे में अमित शाह ने पिछले दिनों कहा था कि अगर मध्य प्रदेश का चुनाव हार गए तो केन्द्र में अगले 50 साल तक सरकार बनाना हमारे लिए मुश्किल होगा। अगर मध्य प्रदेश जीत गए तो हमारे लिए यह जीत दिल्ली की राह आसान करेगी।
मध्य प्रदेश में चुनाव जीतना बीजेपी के लिए इसलिए भी जरूरी है कि यहां लोकसभा की 29 सीट हैं, जिनमें से 28 बीजेपी के पास हैं। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में इन सीटों में कमी होती है तो दिल्ली में बीजेपी की सरकार को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को आम सभाओं में तवज्जो नहीं देते। प्रधानमंत्री राज्य के मुख्यमंत्री को क्रेडिट देने में साधारण सौजन्य भी नहीं दिखाते, वह भी बीजेपी के मुख्यमंत्री को। प्रधानमंत्री ना तो शिवराज सिंह चौहान की तारीफ करते हैं और ना ही मध्य प्रदेश सरकार की योजनाओं की प्रशंसा में दो शब्द भी कहते हैं। क्या इसका कारण यह है कि नरेन्द्र मोदी 2012 से ही शिवराज सिंह चौहान में एक प्रतिस्पर्धी को देखते हैं?
''छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं''
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (24).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
महान गीतकार शैलेन्द्र के जन्म की शताब्दी मनाई जा रही है। उन्होंने केवल 43 वर्ष का जीवन पाया और सैकड़ों अद्भुत गीत रचे। सभी एक से बढ़कर एक! हर मूड और हर मिजाज़ के गाने। 1962 में आई 'रंगोली' फिल्म का यह गाना कई कारणों से यादगार है। जिस मूड और सिचुएशन में उसका मुखड़ा तैयार हुआ, वह अलग ही दास्तान है। गाना कहता है कि छोटी से ये दुनिया है और इसमें बिछड़ने या जानबूझकर अलग हो जाने के बाद भी मेल मुलाकात अवश्यंभावी है।
छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं
तुम कहीं तो मिलोगे, कभी तो मिलोगे
तो पूछेंगे हाल...
वैसे हमारी दुनिया जो केवल पृथ्वी के इर्द गिर्द है, जो इस आकाशगंगा का उतना ही बड़ा हिस्सा है जितना कि सुई की नोक! हबल लॉ की मदद से प्रोफेसर गैरी ने आकाशगंगा की चमक और हमसे उसकी दूरी के बारे में पता लगाने की कोशिश की थी। ब्रह्मांड में 10 हज़ार करोड़ आकाशगंगाएं हैं और हर आकाशगंगा में करीब 20 हज़ार करोड़ तारे हैं। अब इन संख्याओं का गुणा करके ब्रह्मांड में तारों की संख्या का पता लगाया जा सकता है। अनुमान कहते हैं कि ब्रह्मांड 93 अरब प्रकाश वर्ष चौड़ा है. प्रकाश वर्ष वो पैमाना है जिससे हम लंबी दूरियां नापते हैं। (प्रकाश की रफ़्तार एक सेकेंड में क़रीब दो लाख किलोमीटर होती है) यानी मानव क्षमता से बहुत ही आगे !
''काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (20).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र अगर जीवित होते तो 30 अगस्त 2023 को अपनी 100 वीं सालगिरह मनाते। उस दिन की पूर्व संध्या पर, 29 अगस्त को इंदौर में उनके बेटे दिनेश की उपस्थिति में एक भव्य कार्यक्रम होनेवाला है। (उनकी फिल्म 'तीसरी कसम' के बारे में मैं 23 जून को लिख चुका हूँ, सजन रे झूठ मत बोलो!) इसी फिल्म में यह दूसरा गाना है जो लाखों लोगों को आज भी बहुत प्रिय है : दुनिया बनाने वाले, क्या तेरे मन में समाई,
काहे को दुनिया बनाई, तूने काहे को दुनिया बनाई !
गीतकार ने यह नहीं लिखा कि हे भगवान! यह दुनिया क्यों बनाई? उन्होंने लिखा - दुनिया बनाने वाले ! उन्होंने ब्रह्मा नहीं लिखा। यहाँ वे किसी एक धर्म की बात नहीं कर रहे। धर्मों की अपनी-अपनी व्याख्या है कि दुनिया किसने बनाई, क्यों बनाई, कैसे बनाई? जो भी हो- यह तय है कि दुनिया कोई गूगल से डाउनलोड नहीं हुई है, क्योंकि वैज्ञानिक तथ्य यह है कि गूगल तो क्या, हमारी धरती और इस ब्रह्माण्ड की औकात अरबों-खरबों आकाशगंगाओं में सुई की नोक के बराबर भी नहीं है।
''छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं''
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (24 ).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
महान गीतकार शैलेन्द्र के जन्म की शताब्दी मनाई जा रही है। उन्होंने केवल 43 वर्ष का जीवन पाया और सैकड़ों अद्भुत गीत रचे। सभी एक से बढ़कर एक! हर मूड और हर मिजाज़ के गाने। 1962 में आई 'रंगोली' फिल्म का यह गाना कई कारणों से यादगार है। जिस मूड और सिचुएशन में उसका मुखड़ा तैयार हुआ, वह अलग ही दास्तान है। गाना कहता है कि छोटी से ये दुनिया है और इसमें बिछड़ने या जानबूझकर अलग हो जाने के बाद भी मेल मुलाकात अवश्यंभावी है।
छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं
तुम कहीं तो मिलोगे, कभी तो मिलोगे
तो पूछेंगे हाल...
"जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (19).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
करीब आधी सदी पहले 1974 में फिल्म आई थी -'आपकी कसम'। जिसका यह कालजयी गाना 'जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम' आज भी अपने दार्शनिक बोल, मधुर संगीत और स्वर के लिए याद किया जाता है। जब किशोर कुमार, आनंद बक्शी, आर. डी. बर्मन और जे. ओम प्रकाश जैसी विभूतियां एक साथ मिलीं और सुपरस्टार राजेश खन्ना पर कोई गाना फिल्माया गया तो उसका कालजयी या क्लासिक होना तो लाजमी था। जिस तरह की फिल्म थी, जैसा फिल्मांकन था, उसका कोई तोड़ नहीं।
यह गाना राग बिहाग में है। कल्याण थाठ। यह रात्रि के प्रथम पहर (शाम 6 से रात्रि 9 बजे ) का राग है।
जीवन एक ऐसी यात्रा है, जहां ज्यादातर चीजों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं। हम नहीं जानते कि कौन से पल विशेष पल होंगे। हम नहीं जानते कि हम उन खास लोगों से कब मिलेंगे। कब हममें शक करने का रोग लग जाए और हमारे अपने ही दुश्मन हो जाएं। यह गाना अपने हालातों से रू-ब-रू होने और फ्लैशबैक में जाकर चीज़ों को देखने और उन्हें टटोलने का मौका देता है :
ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
जिंदगी एक सफर है जहाँ हम कई मकामों से होकर गुजरते हैं। इसकी खूबी यही है कि हम जिस मक़ाम से गुज़रते हैं, उसे फिर से पाना संभव नहीं। खोया बचपन वापस नहीं लाया जा सकता। बीत चुकी जवानी वापस आने से रही।
फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं
फूल खिलते हैं लोग मिलते हैं मगर
पतझड़ में जो फूल मुरझा जाते हैं
वो बहारों के आने से खिलते नहीं
जयंती रंगनाथन का नया उपन्यास 'मैमराज़ी' कई बातों से ख़ास है। यह सरल भाषा में है, दिलचस्प है, किस्सागो शैली में है और भिलाई जैसे शहर की 'सेलेब्रिटी टाइप' भाभियों और देवर की जिंदगी के बारे में व्यंग्यात्मक लहजे में है। कभी लगता है कि वापस छोटे शहर की जिंदगी में लौट आये हैं, कभी लगता है कि कोई सीरियल डीडी पर देख रहे हैं!
'मैमराज़ी' की जान उसके कैरेक्टर हैं। सभी उपन्यासों के होते हैं, लेकिन इसमें वे जीवंत लगते हैं। व्हाट्सप्प पर घूमते किस्से हैं। यहाँ गर्लफ्रेंड का मारा बेचारा है, जिसे गे समझ लिया गया है। भिलाई का लोकल रणवीर सिंह हैं, भाभी या कहें कि भाभियाँ हैं, देवर है, गर्लफ्रेंड के मामले में तंगहाल लड़के हैं, भाभी के स्कर्ट और उससे जुड़े गॉसिप हैं. और भी किस्से हैं। उपन्यास नहीं, दिलचस्प किस्सों का गुलदस्ता या कहें चटखारे हैं। उस शहर के चटखारे, जहाँ की लेडीज़ लोगों का फेवरेट टाइमपास है - दूसरों की हेल्प करना, दूसरों का लाइफ कंट्रोल करना ... पर ये नहीं करेगा तो फिर वह लोग क्या करेगा ! अगर आप इस किताब का बीच में भी कोई भी पन्ना खोल लें तो भी आपको उसकी रोचकता वैसी ही लगेगी।
"जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (19).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
करीब आधी सदी पहले 1974 में फिल्म आई थी -'आपकी कसम'। जिसका यह कालजयी गाना 'जिन्दगी के सफ़र में गुजर जाते हैं जो मकाम' आज भी अपने दार्शनिक बोल, मधुर संगीत और स्वर के लिए याद किया जाता है। जब किशोर कुमार, आनंद बक्शी, आर. डी. बर्मन और जे. ओम प्रकाश जैसी विभूतियां एक साथ मिलीं और सुपरस्टार राजेश खन्ना पर कोई गाना फिल्माया गया तो उसका कालजयी या क्लासिक होना तो लाजमी था। जिस तरह की फिल्म थी, जैसा फिल्मांकन था, उसका कोई तोड़ नहीं।
यह गाना राग बिहाग में है। कल्याण थाठ। यह रात्रि के प्रथम पहर (शाम 6 से रात्रि 9 बजे ) का राग है।
जीवन एक ऐसी यात्रा है, जहां ज्यादातर चीजों पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं। हम नहीं जानते कि कौन से पल विशेष पल होंगे। हम नहीं जानते कि हम उन खास लोगों से कब मिलेंगे। कब हममें शक करने का रोग लग जाए और हमारे अपने ही दुश्मन हो जाएं। यह गाना अपने हालातों से रू-ब-रू होने और फ्लैशबैक में जाकर चीज़ों को देखने और उन्हें टटोलने का मौका देता है :
ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम
वो फिर नहीं आते, वो फिर नहीं आते
''ऐ मालिक तेरे बंदे हम"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (22).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
इस बार एक प्रार्थना गीत। हो सकता है आपने यह नहीं सुना हो या नहीं गाया हो, पर एक पूरी पीढ़ी इसे स्कूल जाने पर पढ़ाई शुरू होने के पहले गाया कराती थी। चर्चा 1957 में लगी फिल्म 'दो आँखें 12 हाथ' के एक गीत की। मेरा निजी अनुभव है कि इस गीत में प्रार्थना के जो शब्द हैं वे निराशा के पलों में बड़ा सुकून देते हैं। कोई भी इसे आज़मा सकता है। जब कभी मायूसी महसूस हो, तब शांतचित्त होकर इसे सुना जा सकता है। नेकी और बदी का चोली दामन का साथ है। जहाँ पुण्य है, वहां पाप भी है; जहाँ भलाई है, वहां बुराई भी है; जहाँ अपकार है, वहां उपकार भी है। बदी से बचने का एक तरीका है हम मालिक से प्रार्थना करें कि वह हमें बचा ले। इसलिए बचा ले कि जब हम संसार से विदा लेने की बेला आये तो हँसते हुए रवानगी दर्ज करा सकें। एक वही है जो हमें इस दुनिया की बुराइयों से निजात दिला सकता है। हे परम पिता परमात्मा, हम सभी तो तेरे बन्दे हैं। तू ही पालनहार है हमारा।
ऐ मालिक तेरे बंदे हम
ऐसे हो हमारे करम
नेकी पर चले और बदी से टले,
ताकी हँसते हुए निकले दम
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (17).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
हिन्दी फिल्म जगत में 1957 यादगार साल था। आजादी मिले दस साल ही हुए थे। इसी साल गुरुदत्त की 'प्यासा', दिलीप कुमार की 'नया दौर' और नरगिस की 'मदर इण्डिया' लगी थी। 'प्यासा' हिन्दी सिनेमा के इतिहास की दुर्लभ फिल्मों में से एक है। इसे विश्व की 100 वर्ष की 100 सबसे महत्वपूर्ण फिल्मों में शामिल किया गया है। दरअसल 'प्यासा' कोई फिल्म नहीं, सेल्युलाइड पर छवियों से रचा काव्य थी। जिसके बारे में सत्यजीत रे ने कहा था : "कमाल का सेंस ऑफ़ रिदम और कैमरा की फ्लूइडिटी."
गुरुदत्त द्वारा निर्देशित, निर्मित एवं अभिनीत हिन्दी की सदाबहार रोमांटिक फ़िल्म। इसमें दस गाने थे। सभी ज़बरदस्त ! देशभक्ति का गाना 'जिन्हें नाज़ है हिन्द पर, वे कहाँ हैं' नेहरूजी को बहुत पसंद था। इसके रोमांटिक गाने 'हम आपकी आँखों में इस दिल को..', 'जाने क्या तूने कही', और 'आज साजन मोहे संग लगा लो' भी खूब बजे।
''छाँव है कभी, कभी है धूप ज़िंदगी"
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (21).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
आज एक हँसी और बाँट लो, आज एक दुआ और मांग लो, आज एक आँसू और पी लो, आज एक जिंदगी और जी लो, आज एक सपना और देख लो, आज... क्या पता, कल हो ना हो...! सबसे इंपॉर्टेंट है आज, आज और सिर्फ आज ! 2003 में आई फिल्म 'कल हो न हो' का यह गाना आज मुस्कुराने और खुश रहने के बारे में है क्योंकि कल किसी ने नहीं देखा है।
यह कमर्शियल फिल्म थी, जिसका लक्ष्य धन कमाना था, लेकिन इस गाने का सन्देश था कि आज के लिए जियें क्योंकि कोई नहीं जानता कि कल क्या होगा। जिंदगी का रूप हर पल बदलता रहता है। कभी कष्ट आते हैं , कभी खुशियां, कभी हताशा हाथ लगती है, लेकिन फिर भी कभी-कभी आशाएं और बलवती हो जाती हैं।
हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िंदगी
छाँव है कभी, कभी है धूप ज़िंदगी
हर पल यहाँ, जी भर जियो
जो है समाँ, कल हो न हो
''चोरी में भी है मज़ा..."
फिल्मी गाने की एक लाइन में जीवन का दर्शन (16).
इस शुक्रवार एक और गाने की बात :
चोरी या चौर्य कर्म में मज़े की यह बात 1998 में आई विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म 'करीब' के गाने में कही गई। गाना लिखा था जानेमाने शायर डॉ. राहत इन्दोरी ने। गाने की शुरुआती लाइन हैं :
यह क्या हुआ कैसे हुआ
यह कब हुआ क्या पता
चोरी चोरी जब नज़रें मिली
चोरी चोरी फिर नींदें उड़ी
चोरी चोरी यह दिल ने कहा
चोरी में भी है मज़ा