ये हैं इंडियन सुमो राहुल बत्रा See Video

Thumb Hulk

30 इंच के बाइसेप्स हैं और वजन मात्र 211 किलो।
दिल्ली के राहुल अनिल बत्रा को 'इंडियन हल्क', 'भीम' और न जाने कितने सम्मान मिल चुके हैं ! कई रेकॉर्ड उनके नाम पर हैं। भारत और एशिया भर के। कई बुक ऑफ रेकॉर्ड्स में वे छाये हुए हैं।
क्या इतना वजन बढ़ाना ग़लत नहीं है?
राहुल कहते हैं कि मुझे जैसे बाइसेप्स करने थे, उसमें यह स्वाभाविक है। कोई 90 किलो का बंदा अगर 27-28 इंच के बाइसेप्स दिखाता है तो निश्चित मानिए कुछ गड़बड़ है। हो सकता है उसने 'सिन्थॉल' इंजेक्ट करवाया हो! सामान्य रूप से 80 या 90 किलो वजन के युवक के बाइसेप्स 16 या 18 इंच से ज्यादा के नहीं होंगे। यह आनुपातिक होना चाहिए!

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करीब 300 करोड़ के खर्च से बनी सम्राट पृथ्वीराज रिलीज़ हो गई है। अक्षय कुमार कितना न्याय कर पाए हैं सम्राट की भूमिका में?

केन्द्रीय गृह मंत्री और कई राज्यों के मुख्यमंत्री इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की घोषणा कर चुके हैं इसका फिल्म के धंधे पर क्या असर पड़ सकता है? दर्शक क्या कह रहे हैं इस फिल्म पर?

प्रसिद्ध फिल्म लेखक-समीक्षक अजय ब्रह्मात्मज और प्रकाश हिंदुस्तानी की चर्चा

2014 से अब तक भारत की अर्थव्यवस्था कहां पहुंची। जीडीपी, रोजगार, महंगाई, मुद्रा स्फीती, प्रतिव्यक्ति आय, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि के क्षेत्र में हम कहां पहुंचे? एफडीआई के भरोसे शेयर बाजार का क्या हाल है और डॉलर कितना ऊंचा हो गया है? 8 साल पहले जिन वादों के साथ सरकार आई थीं, वे वादे अब कहां है?

आर्थिक क्षेत्र में लगातार लिखने वाले और अर्थव्यवस्था को भीतर तक समझने वाले पत्रकार आलोक ठक्कर से बातचीत।

 अशोक ओझा 3 दशकों से अमेरिका में हिन्दी शिक्षण को बढ़ावा देने में जुटे हैं। इन दिनों वे फुलब्राइट हेस प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे हैं और उसी संदर्भ में भारत भ्रमण पर हैं। हिन्दी युवा संस्थान के संस्थापक के रूप में उन्होंने अमेरिका में हजारों अमेरिकी और एनआरआई युवाओं को हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित किया हैं। वे अमेरिका में हिन्दी के राजदूत कहे जा सकते हैं। वे और उनका संगठन अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन का आयोजन भी करता हैं और आगामी अक्टूबर में ऐसा पांचवां सम्मेलन न्यूयॉर्क में करने जा रहे हैं।

अशोक ओझा न्यू जर्सी के पत्रकार और शिक्षक हैं, जहां वे दो NGO संचालित करते हैं - युवा हिन्दी संस्थान और वैश्विक स्तर पर हिन्दी संगम फाउंडेशन। दोनों ही संस्थाएं हिन्दी के प्रचार के लिए समर्पित हैं.

 

मशहूर उर्दू साहित्यकार और कथाकथन के संस्थापक जमील गुलरेज़ विज्ञापनों की दुनिया से जुड़े रहे हैं। उन्होंने देश की नामचीन विज्ञापन एजेंसियों में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया हैं और विज्ञापन की फील्ड में नए कॉपीराइटर्स तैयार करने के लिए AAAI (एडवारटाइिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया) संगठन के लिए कई कोर्सेस संचालित किए हैं।

उनके शिष्य देश की बड़ी एजेंसियों में शीर्षस्थ पदों पर हैं। अब विज्ञापनों की दुनिया कैसी हैं, क्या-क्या बदलाव हुए हैं और हो रहे हैं? डिजिटल क्रांति ने विज्ञापनों की दुनिया को कैसे बदला हैं?

 

संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के अंतिम परिणाम आते ही यह बात फिर चर्चा में आ गई है कि किस तरह भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में बदलाव हो रहा हैं। ये आरोप फिर से लगने लगे हैं कि वर्ग विशेष के लोगों को प्राथमिकता मिली हैं। पिछले दरवाजे से प्रशासकीय सेवाओं में भर्ती का मुद्दा भी फिर चर्चा में हैं। भारत की सबसे प्रतिष्ठित सेवाओं में प्रशासकीय सेवाओं का महत्व किसी से छुपा नहीं हैं। क्या यह उपलब्धि चयनित युवाओं की व्यक्तिगत होती हैं या इसके पीछे कोई और बड़ी ताकत या शक्ति होती हैं।

केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) ने पिछले दिनों कहा था कि हिन्दी, अंग्रेजी भाषा का विकल्प बनें। राजभाषा (Rajbhasha) को देश की एकता का अहम अंग बनाने का समय आ गया है। अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में संवाद करते हैं, तब हिन्दी भारत की भाषा होनी चाहिए।

दक्षिण भारत के कई नेता, लेखक, संगीतकार आदि इस बात का विरोध कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि इससे हिन्दी का साम्राज्यवादी रूप बढ़ेगा। एआर रहमान (AR Rehman) ने तो यहां तक कहा कि हिन्दी कभी संपर्क भाषा थी, लेकिन अब तमिल संपर्क भाषा हैं।

प्रसिद्ध पत्रकार, शोधार्थी और हिन्दी के लिए आवाज़ उठानेवाले राहुल देव इस विषय में क्या कहते हैं, उन्हीं से चर्चा।

कोई भी राजनीतिक पार्टी परिवारवाद से अछूती नहीं हैं। राज्यसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की घोषणा होते ही यह तथ्य फिर जगजाहिर हो गया। परिवारवाद के खिलाफ बयान देने में तो कोई भी पार्टी पीछे नहीं हैं। आखिर दूसरी प्रतिभाओं को मौका क्यों नहीं मिलता?

प्रसिद्ध वक्ता और राजनीतिक कार्यकर्ता मृणाल पंत और प्रकाश हिन्दुस्तानी की बातचीत

अब क्या कहते हैं अभा कांग्रेस कमेटी के पूर्व सचिव पंकज शर्मा। जिन्होंने Indore Dialogue के 18 अप्रैल 2022 के कार्यक्रम में कहा था कि कांग्रेस 137 साल पुरानी पार्टी हैं, जिसे अभी भी 12 करोड़ लोग वोट देते हैं। ऐसी पार्टी का भविष्य पाण्डेय जी (प्रशांत किशोर) जैसा कोई मार्केटिंग का व्यक्ति तय नहीं कर सकता। हजारों लोगों ने कांग्रेस के झंडे तले आजादी की लड़ाई लड़ीं और आज भी लोगों के अधिकारों के लिए सड़कों पर संघर्ष कर रहे हैं।

अपनी मार्केटिंग विशेषज्ञता के बदले पाण्डेय जी कांग्रेस का पूरा डाटा बेस चाहते थे। वे यह भी चाहते थे कि पार्टी कैसे चुनाव लड़ें और कैसे संसाधन जुटाए, यह भी वह ही तय करेंगे। लाखों कार्यकर्ताओं के बलिदान से खड़ी हुई पार्टी ऐसे किसी प्रस्ताव पर कैसे मान सकती है?

इसलिए पाण्डे जी का जाना तो तय था। वे अब भी झूठ बोल रहे हैं कि उन्होंने कांग्रेस का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया। हां, कांग्रेस ने उन्हें एक ग्रुप में सदस्य बनाने की पहल की थी, लेकिन वे चाहते थे कि कम से कम उपाध्यक्ष की कुर्सी उन्हें मिले। जिस पर बैठकर वे पूरी पार्टी को डिक्टेट कर सकें।

गिरीश मालवीय आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ, लेखक और पत्रकार हैं। अर्थव्यवस्था को लेकर वे लगातार लिखते रहे हैं। उनकी कई संभावनाएं सच में बदली है और कई आशंकाएं विकराल रूप में सामने आई हैं।

पिछले 8 साल में भारतीय अर्थव्यवस्था कहां पहुंच चुकी है! इस चर्चा में अर्थव्यवस्था से जुड़े सवालों को जानने और उसके परिणामों को समझने की कोशिश होगी।

आप भी अपनी जिज्ञासा और टिप्पणी कमेंट बॉक्स में करके चर्चा में शामिल हो सकते हैं।

जब एलन मस्क का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया गया था, तब उन्होंने सोशल मीडिया पर सन्देश पोस्ट किया था -"सोच रहा हूँ, ट्विटर खरीद लूं!" इसे तब मजाक समझा गया था, पर आज यह सच्चाई है। मस्क ने इस माइक्रो ब्लॉगिंग साइट को खरीदने के लिए 44 बिलियन डॉलर, यानी 3,36.800 करोड़ रुपये की डील की हैं।

क्या होगा इसका असर, इसी पर चर्चा डॉ. अमित नागपाल और डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी।

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