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मिस्र की राजधानी काहिरा में सितंबर ‘९४ में हुए १७४ देशों के प्रतिनिधियों के जनसंख्या सम्मेलन को मात्र जनसंख्यां सम्मेलन कहना उचित नहीं होगा। दरअसल, यह जनसंख्या और स्वास्थ्य सम्मेलन था, जिसमें जनसंख्या नियंत्रण के अलावा महिला कल्याण कार्यक्रमों, शिशु स्वास्थ्य और संरक्षण, महिला शिक्षा रोजगार आदि पर विस्तृत चर्चा हुई और भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा तय की गयी। परिवार को सीमित रखने के साधनों पर चर्चा में कई सवाल उभरे। कुछ देशों के प्रतिनिधियों ने इस बात पर आपत्ति भी उठायी कि गर्भपात को जनसंख्या नियंत्रण का ही उपाय माना जाना चाहिए। आपत्ति की वजह भी यह थी कि उनका धर्म गर्भपात को उचित नहीं ठहराता।

धरती पर बढ़ता जनसंख्या का बोझ आज दुनिया के हर देश के लिए खतरे की घंटी है। दुनिया में हर एक सेवंâड में तीन नये बच्चे आबादी की संख्या बढ़ा रहे हैं, एक मिनट मे२६८ बच्चे जन्म ले रहे हैं और ९८ लोग हर मिनट धरती से उठ रहे हैं, इस तरह देखें तो भी हर मिनट में १७० की गति से आबादी बढ़ रही है जो प्रति वर्ष ८ करोड़, ९५ लाख, ५८ हजार का आंकड़ा छू रही है। खतरा यह है कि अगर यह गति बनी रही तो अगले ५० साल में दुनिया की आबादी दो गुनी हो जायेगी।

विश्व के विकासशील देशों में भारत पहला देश था, जिसने १९५१ में ही जनसंख्या नियंत्रण की योजना बना ली थी। पंचवर्षीय योजनाओं की शुरूआत होने के पहले ही भारत ने समझ लिया था कि बढ़ती आबादी कभी न कभी बड़ी समस्या बन सकती है। फर्वâ है तो सिर्पâ इतना कि तब इसे ‘परिवार-नियोजन’ योजना कहा गया था और इसका लक्ष्य जनसंख्या पर नियंत्रण के साथ ही नवजात शिशुओं और माताओं के स्वास्थ्य की रक्षा करना भी थी। बाद में यह कार्यक्रम फिर से ‘परिवार कल्याण’ कार्यक्रम के रूप में घोषित किया गया। हमारी हर पंचवर्षीय योजना में जनसंख्या नियंत्रण पर विशेष बजट भी रखा गया। इसी का नतीजा है कि भारत में जनसंख्या वृद्धि की गति पर एक हद तक नियंत्रण किया जा सका है। भारत में जन्म दर ५.९ से घट कर ३.२ हो गयी। अप्रâीकी देश अभी इस लक्ष्य से बहुत पीछे है।

अप्रâीकी देशों में केन्या, जिंबाब्वे और बोत्सवाना को देखें। वहां औसतन १० महिलाओं के ६४ बच्चे होते हैं माले में तो यह आंकड़ा ७३ है, जबकि जर्मनी में औसतन १० महिलाओं के १३ बच्चे होते हैं और संयुक्त राज्य अमरीका में २१।

काहिरा सम्मेलन में यह बात उभर कर सामने आयी कि विकासशील देशों में पिछले तीन दशकों में औसतन हर महिला के बच्चों की संख्या कम हुई है। यहां पहले १० महिलाओं के ६० बच्चे हुआ करते थे और केवल १० प्रतिशत महिलाएं ही परिवार नियोजित करने के साधनों का उपयोग करती थी। अब हर १० महिलाओं के बच्चों की संख्या मात्र ४० है और ५० फीसदी महिलाएं गर्भनिरोधक साधनों का इस्तेमाल करने लगी है। इस दिशा में सबसे ज्यादा काम एशिया के थाईलैंड में हुआ है, जहां १९६० में हर १० महिलाओं के ६४ बच्चे होते थे, अब बच्चों की संख्या मात्र २२ पर ही रूक गयी है। हमारे पड़ोसी श्रीलंका में यह आंकड़ा ५३ से घट कर २५ हो गया है।

काहिरा सम्मेलन में यह बात सामने आयी कि भारत में १३ करोड़ दंपत्ति ऐसे हैं जिनकी आयु १७ से ४५ साल के बीच की है। इसमें से भी ५ करोड़ महिलाएं ऐसी हैं जो १७ से २४ साल के बीच की है। भारत में जितने भी बच्चे जन्म लेते है। उनमें से १५ प्रतिशत की माताएं इसी १७ से २४ साल के आयु वर्ग की होती है।

काहिरा सम्मेलन में निष्कर्ष निकाला गया कि अगर युवतियों की शादी को विलंबित किया जा सके। युवा शादीशुदा महिलाएं अपने प्रथम शिशु का जन्म थोड़े समय के लिए स्थगित कर दें और युवा माताएं अपने बच्चों के बीच आयु का अंतर बढ़ा दें तो आबादी बढ़ने की गति कुछ नियुक्ति की जा सकती है। इसका सीधा-सीधा आशय यह है कि भारत में जनसंख्या नियंत्रण की सारी शक्ति १७ से २५ साल की नवयुवतियों के नियंत्रण में है।

काहिरा के सम्मेलन में ११३ पृष्ठों के जिस कार्य मसविदे पर चर्चा हुई, उसका निष्कर्ष यह है कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए एक कार्य योजना पर अमल किया जाये, जो सन २०१५ तक कार्यरत रहेगी। इस पर कुल २१७ अरब डॉलर का खर्च आनेवाला है। इसमें दस देश संयुक्त राष्ट्र अमरीका, जर्मनी, जापान, नार्वे, ब्रिटेन, स्वीडन, नीदरलैंड, कनाडा, फिनलेंड और डेनमार्वâ ९० फीसदी योगदान देंगे।

निष्कर्ष यह रहा कि जनसंख्या वृद्धि की समस्या सिर्पâ जनसंख्या वृद्धि की समस्या नहीं है वरन स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार और बेहतर जीवन स्तर की समस्या है। किसी मुद्दे पर तो दुनिया के १७४ देश एक हो कर काम करने आये है। निष्कर्ष जो भी हो, अच्छा ही होगा।

प्रकाश हिन्दुस्तानी

 

धर्मयुग 16 दिसंबर 1994

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