Bookmark and Share

नए मजदूरों की भर्ती से कपड़ा मिल मजदूरों की २६६ दिन लम्बी हड़ताल के लड़खड़ाने की खबरें जब आम होने लगीं तो मजदूर नेता दत्ता सामंत ने तीन दिन की व्यापक हड़ताल- ‘उत्पादन बंद’ का आव्हान किया। हजारों कपड़ा मजदूर गिरफ्तारी दे रहे हैं और शहर बस परिवहन (बेस्ट) के कर्मचारी समर्थन में हड़ताल कर रहे हैं। कपड़ा मिल हड़ताल के साथ नए संदर्भों से जुड़े कई पहलुओं के बारे में बंबई से प्रकाश हिन्दुस्तानी की रपट।

बंबई के कपड़ा मिल मजदूरों की हड़ताल के कारण २००० करोड़ रुपए से अधिक के उत्पादन का नुकसान हो चुका है।

मजदूरों की नौ महीने से चल रही इस हड़ताल से निपटने के लिए मालिकों ने जो नया हथियार उठाया है, वह है नए मजदूरों की भर्ती। अक्टूबर के अंत तक ऐसे ४०,००० मजदूरों की भर्ती की जानी है, जिसमें से १६,००० नए मजदूरों की भर्ती की जा चुकी है, हालांकि मिल मालिक संघ के सचिव आर.जी. शैट्ये ने कहा है कि यह बात सही नहीं है। ४ अक्टूबर तक ऐसी केवल १५०० नियुक्तियां ही की गई हैं। महाराष्ट्र गिरणी कामगार यूनियन के अध्यक्ष डॉ. दत्ता सामंत ने कहा है कि मिलों की चिमनियों से जो धुआं निकल रहा है, वह नए मजदूरों के काम का नतीजा है, लेकिन हम जबर्दस्ती उन्हें रोकते नहीं हैं, क्योंकि हमारा आंदोलन पूरी तरह अहिंसक है।

४७ मिलों में आंशिक उत्पादन शुरू हो गया है। सेंचुरी और स्प्रिंग मिलों में तीनों पालियों का काम हो रहा है। १५ मिलों में दो पालियां चल रही हैं। ३० मिलों में केवल एक पाली में काम हो रहा है। इन मिलों में काम करने वाले ज्यादातर लोग नए हैं। मिल मालिक संघ ने दावा किया है कि इस वक्त बीस प्रतिशत उत्पादन कार्य चल रहा है। आठ लाख मीटर कपड़ा रोज बन रहा है।

कपड़ा मिलों के ४५ से ५० हजार बदली (स्थानापन्न) कर्मचारियों को नौकरी से निकाला जा चुका है। मिलों द्वारा अखबारों में छपवाए गए नोटिस पढ़कर कितने बदली कामगार काम कर लौट आए, इसका कोई हिसाब किसी के पास नहीं है, लेकिन यह संख्या निश्चित ही नगण्य है।

जो कामगार नए नियुक्त हुए हैं, उन्हें एक से तीन महीने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके बाद यदि उन्हें योग्य माना गया तो उन्हें बदली कर्मचारियों के रूप में रखा जाएगा और संभवत: उनमें से कुछ को स्थायी भी कर दिया जाएगा। नए कर्मचारियों में ज्यादातर ऐसे हैं, जिन्होंने पहले कभी किसी मिल के भीतर कदम भी नहीं रखा होगा।

सेंचुरी मिल में नई नियुक्तियां अपेक्षाकृत ज्यादा हुई हैं। इस संवाददाता को यहां के कुछ मजदूरों ने बताया कि हमारी बाकायदा कक्षाएं चलती हैं। शुरू के एक हफ्ते में पूâटी कौड़ी भी नहीं मिलती। इसके बाद एक समय का भोजन और नाश्ता मुफ्त दिया जाता है। तीसरे हफ्ते इन नए मजदूरों का काम बारीकी से जांचा जाता है। फिर इसमें उपयुक्त पाए जाने पर उन्हें प्रशिक्षण के लिए चुना जाता है- ३०० रुपए महीने पर, प्रशिक्षण के बाद इन्हें बदली कर्मचारियों के रूप में नौकरी दी जाने वाली है।

लेकिन इन कर्मचारियों की स्थित आगे क्या होगी- यह कोई नहीं जानता। यदि हड़ताल खत्म हो गई और पुराने मजदूरों को काम से नहीं हटाने का निश्चय हुआ तब ये मजदूर कहां जाएंगे और यदि इन नए मजदूरों को काम पर रख लिया गया और स्थायी नियुक्ति दे दी गई, तब पुराने मजदूरों का क्या होगा?

जाहिर है इतने सारे नए मजदूरों को भी काम देने की कोई क्षमता मिलों के पास नहीं है। जो मजदूर हड़ताल के कारण अपने मूल निवास स्थान पर चले गए हैं, वे हड़ताल खत्म होने के बाद भी वहीं रहेंगे और काम पर नहीं लौटेंगे, यह सोचना नादानी ही होगी।

वास्तव में हड़ताल का यही मौका मिल मालिक चाहते थे, ताकि अनचाहे मजदूरों की छंटनी की जा सके। नए मजदूरों की नियुक्ति से उन्हें फायदा ही फायदा है। उनसे वे ऐसे संकट के दौर में भी काम ले रहे हैं और वह भी न्यूनतम कीमत पर। इनमें जो बेहतर काम कर रहे हैं उन्हें वे स्थायी कर देंगे और उन मजदूरों को जो अकुशल हैं या यूनियन की गतिविधियों में सक्रिय हैं, हड़ताल के खात्मे पर निकाल देंगे। इन नई नियुक्तियों का असर पुराने मजदूरों पर बुरा होगा और उनमें परस्पर द्वेष बढ़ेगा।

सेंचुरी मिल में सबसे ज्यादा नए मजदूर रखे गए हैं- तकरीबन १२००। इस मिल में ‘मजदूरों’ की उपस्थिति सबसे अच्छी बताई गई है, लेकिन पता चला है कि इनमें ज्यादातर नौसिखिए हैं। ऐसे लोगों की संख्या चार से पांच हजार है। इन्हें प्रशिक्षण के लिए कुछ भी नहीं दिया जाता। मिल मालिक संघ ने दावा किया है कि जो लोग काम पर आ रहे हैं, उनमें ये लोग शामिल नहीं हैं। संघ के मुताबिक चार अक्टूबर को ३७,०१९ मजदूरों ने अपनी हाजिरी दर्ज की।

इसके अलावा ११,५११ लिपिक वर्ग के कर्मचारी भी उपस्थित थे। करीब ६००० रक्षा कर्मचारी तो काम पर हैं ही। इससे स्पष्ट है कि मजदूरों की इच्छा काम करने की है। संघ ने यह भी बताया कि मजदूरों के साथ मारपीट की घटनाएं निरंतर बढ़ रही हैं। अब तक करीब एक हजार मजदूरों की पिटाई की गई है, जिसमें कम से कम पांच लोगों की मृत्यु हुई। मृतकों में एक मजदूर और चार सुपरवाइजर हैं। इनमें से दो बांबे डाइंग के, एक क्राउन मिल्स औरदो श्रीराम मिल्स के कर्मचारी थे।

बंबई की मिलों में ४५ से ५० हजार के बीच बदली मजदूर हैं। बदली मजदूर, यानी मिलों के बंधुआ मजदूर। नए कर्मचारियों की भर्ती से सबसे ज्यादा कष्ट बदली मजदूरों को ही होगा। हड़ताल के कारण वे आज सड़क पर हैं। नए मजदूरों के कारण ऐसी स्थितियां बनेंगी कि ये वापस काम पर नहीं आ पाएंगे। कारण यह है कि मिलें नए मजदूरों को बदली कामगारों की जगह ही रख सवेंâगी, क्योंकि वे स्थायी मजदूरों को तो निकाल नहीं सकतीं।

लेकिन इससे मिलों को भले ही फायदा हो मजदूरों को फायदा होने वाला नहीं है, क्योंकि इन नए मजदूरों को भी प्रशिक्षण के बाद बदली कामगारों की तरह रखा जाएगा और यदि भविष्य के चार-छह साल में हड़ताल हुई तो इन्हीं बदली कामगारों की जगह नए कामगार फिर आ जाएंगे।

मिल मालिकों और प्रबंधकों को यह भ्रम है कि इन नई नियुक्तियों से उनकी नैया पार हो जाएगी, जबकि यह भी होने वाला नहीं है। एकदम नए मजदूरों द्वारा जो कपड़ा बनाया जा रहा है, उसकी क्वालिटी एकदम घटिया किस्म की है और अहमदाबाद की मिलों के आगे वह उन्नीस भी नहीं बैठता। दूसरी बात यह कि इन नए मजदूरों की नियुक्ति का डॉ. दत्ता सामंत और उनका संगठन-महाराष्ट्र गिरणी कामगार यूनियन विरोध कर रहा है। इन्हीं नियुक्तियों पर व्रुâद्ध होकर दत्ता सामंत ने घोषणा कर दी है कि उनके द्वारा संचालित सभी यूनियनें पांच हजार कारखानो में कामकाज ठप कर देंगी।

तीसरी बात यह है कि नए कर्मचारियों की नियुक्ति से सभी बदली कामगारों में डर और गुस्से की मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई है, लेकिन नौ महीने पुरानी हड़ताल तोड़कर वापस काम पर आना उनके लिए अब संभव ही नहीं है, क्योंकि मिलों ने उनके पास रद्द कर दिए हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें लगता है कि अब संघर्ष ही एकमात्र चारा है। तब वे दत्ता सामंत के आंदोलन को ही मजबूत बनाएंगे। इस सारी प्रक्रिया में फायदा तो दत्ता सामंत और उनके संगठन को ही है।

हो सकता है कि स्थिति विस्फोटक हो जाए और व्यापक हिंसा भड़क उठे। हालांकि दत्ता सामंत कहते हैं कि यह आंदोलन शांतिपूर्ण है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि भूखे और परेशान मजदूर यदि हिंसा पर भी उतारू हो जाएं तो मैं इसे हिंसा नहीं मानूंगा।

आखिर बदली कामगारों का सारा गुस्सा गैरवाजिब नहीं है। ये मजदूर मिलों के सबसे उपेक्षित कर्मचारी हैं और बरसों से इनके साथ अन्याय हो रहा है। ४५ से ५० हजार के बीच की संख्या के इन मजदूरों को पहले तीन महीने नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसके दौरान इन्हें व्यवहार में कोई काम नहीं सिखाया जाता। इन्हें काम दिया जाता है मशीनों की सफाई का, झाड़ू लगाने का, कचरा उठाने का और हम्माली करने का।

इसके बाद इन्हें स्पिनिंग, कपड़ा खाता, फोल्डिंग खाता आदि किसी में भी लगा दिया जाता है। जब वे यह काम ठीक से नहीं कर पाते तो उन पर अक्सर जुर्माना ठोंक दिया जाता है- कभी २५ पैसे, कभी इससे ज्यादा भी।

बदली मजदूरों को रोज काम पर उपस्थित होना पड़ता है। यदि कोई स्थायी मजदूर नहीं आया तो उसे काम मिलता है, वरना नहीं।

काम पाने के लिए उसे रोज अधिकारियों की चापलूसी करनी होती है और महीने दो महीने में एक बार शराब और मटन की पार्टी देनी पड़ती है। उसे रोज काम यों भी नहीं मिलता। किसी महीने १० दिन, किसी महीने १५ दिन। किसी महीने तनख्वाह मिलती है २४० रुपए, किस महीने तीन सौ रुपए। न भविष्यनिधि, न ग्रेच्युटी, न बोनस, न ले ऑफ का वेतन, न चिकित्सा भत्ता, न यात्रा भत्ता। दस-दस साल हो जाते हैं, लेकिन उन्हें स्थायी नहीं किया जाता। वो यूनियन में भी शामिल नहीं हो सकते।

इसका नतीजा उन्हें सेवानिवृत्त होते समय भी भुगतना पड़ता है, क्योंकि वे देर से स्थायी किए जाते हैं इसलिए १० से १५ साल तक ही उनका प्राविडेंट पंâड आदि कटता है। सेवानिवृत्त होते समय उन्हें बहुत कम पैसा मिल पाता है।

मिलों में काम करने वाली स्त्री मजदूरों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। सुपरवाइजरों का व्यवहार उनके साथ सम्मानजनक नहीं होता। आज जबकि देशभर के उद्योगों में स्त्री कर्मचारियों की संख्या बढ़ रही है, मिलों में स्त्री मजदूरों की संख्या घटती जा रही है। १९५६ में मिलों में स्त्री मजदूरों की संख्या १३४३८ थी, जो १९६० में घटकर ९८०६ रह गई। आजकल चार हजार के करीब स्त्रियां मिलों में काम करती हैं।

(दिनमान, 17-23 अक्टूबर 1982)

Search

मेरा ब्लॉग

blogerright

मेरी किताबें

  Cover

 buy-now-button-2

buy-now-button-1

 

मेरी पुरानी वेबसाईट

मेरा पता

Prakash Hindustani

FH-159, Scheme No. 54

Vijay Nagar, Indore 452 010 (M.P.) India

Mobile : + 91 9893051400

E:mail : prakashhindustani@gmail.com