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महाराष्ट्र का सबसे घने जंगलों वाला जिला है गढ़चिरोली। यह जिला मध्यप्रदेश के बस्तर और आंध्रप्रदेश के आदिलाबाद जिलों से लगा हुआ है। आंध्रप्रदेश की सीमा से लगा होने के कारण यहां के लोग तेलुगू भाषा अच्छी तरह जानते हैं। इस जिले में बहुत घने जंगह हैं और वे किसी के लिए भी शरणगाह बन सकते हैं।

तेलंगाना (आंध्रप्रदेश) के ज्यादातर नक्सलवादी इसी जिले के जंगलों में छुपे हुए हैं, क्योंकि तेलंगाना का इलाका ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित है, इसलिए नक्सलवादी इस क्षेत्र में आ गए हैं।

गढ़चिरोली जिले के नक्सलवादियों का संबंध ‘कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इण्डिया-माक्र्सिस्ट-लेनिनिस्ट पीपुल्स वार’ नामक संगठन से है। कींडापल्ली सीतारमैया इसके प्रमुख हैं। उनको पकड़वाने के लिए आंध्र सरकार ने सवा लाख रुपए के पुरस्कार के लिए आंध्र सरकार ने सवा लाख रुपए के पुरस्कार की घोषणा की थी। उन्हें पुलिस ने पकड़ भी लिया था, लेकिन हैदराबाद के उस्मानिया जनरल अस्पताल से वह गत चार जनवरी को अपने साथियों की मदद से फरार हो गए।

नक्सलवादियों का दूसरा गुट भी कम्युनिष्ट पार्टी ऑफ इण्डिया-माक्र्सिस्ट-लेनिनिस्ट नामक संगठन से संबद्ध है। उसके प्रमुख चंद्रपुल्ला रेड्डी हैं।

तीसरे गुट का संबंध ‘यूनिटी सेंटर ऑफ कम्युनिस्ट रिवोल्यूशन रीज ऑफ इण्डिया-माक्र्सिस्ट लेनिनिस्ट’ नामक संगठन से है। इसके भी दो भाग हैं: एक है देवपुल्ली वेंकटेश्वर राव का और दूसरा चेलापल्ली श्रीनिवास राव का।

चौथा गुट है ‘रिआर्गनाइंजिंग कमेटी-माक्र्सिस्ट-लेनिनिस्ट’, जिसके नेता एस.ए. रऊफ हैं।

पांचवां गुट म्याला नरसिंह का, जो चीन के नि-नपियाओं का समर्थक माना जाता था। आंध्रप्रदेश में एस.सी.ए. रऊफ और म्याल नरसिंह के गुट आज से करीब दो साल पहले बहुत ज्यादा सक्रिय थे। तब इनमें करीब सात हजार पुरुष और आठ सौ महिला कार्यकर्ता थे। इनकी अपनी ‘रेड आर्मी’ थी, जिसमें ७० महिलाओं सहित ३२० सैनिक थे। इनमें कोंडापल्ली सीतारमैया का कामकाज ज्यादा व्यवस्थित था और छात्रों, नौजवानों और कामगारों में उसका काफी अच्छा प्रभाव रहा है।

चंद्रपुल्ला रेड्डी का छात्रों और आदिवासियों पर खासा प्रभाव है। उन्हीं के बीच उनका गुट ज्यादा सक्रिय है। इसी गुट की एक इकाई ‘प्रोग्रेसिब डेमोव्रेâटिक स्टूडेंट्स यूनियन’ है, जिसके १५,००० से ज्यादा सदस्य हैं। इसी की एक अन्य इकाई है ‘इंडियन पेâडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन’, जिसके ६,००० सदस्य हैं। इसके करीब दो दर्जन छोटे-मोटे संगठन भी हैं। इसी का संबंध ‘प्रोग्रेसिव डेमोव्रेâटिक यूथ लीग’ से है, जिसकी सदस्य संख्या करीब दो हजार है। करीब ४५० सदस्य ‘प्रोग्रेसिव आर्गनाइजेशन ऑफ वीमन्स’ में भी हैं। ‘रिवोल्यूशनरी रायटर्स एसोसिएशन’, आंध्रप्रदेश का संबंध भी इस गुट से है। इसमें करीब २५ लेखक, कवि, पत्रकार आदि हैं।

महाराष्ट्र की सीमा के चार जिलों में ‘आदिवासी रैयतुकुली संघम’ (आदिवासी किसान-खेत मजदूर संगठन) का काफी दबदबा है। इन क्षेत्रों में पंचायतों और न्यायालय के पैâसले इस संगठन की सहमति के बिना नहीं होते, ऐसा कहा जाता है। इसके दो लाख सदस्य हैं। २५ और २६ फरवरी, १९८४ को महाराष्ट्र के गढ़चिरोली जिले के कमलापुर गांव में इसी संगठन का सम्मेलन होने वाला था, जो नहीं होने दिया गया।

‘पीपुल्स वार’ ग्रुप का आंध्रप्रदेश के वारंगल, पूर्वी और पश्चिमी करीमनगर और आदिलाबाद, महाराष्ट्र के गढ़चिरोली और चंद्रपुर तथा मध्यप्रदेश के बस्तर जिलों में अच्छा प्रभाव है। गोंड आदिवासी उन्हें काफी मानते हैं।

कौन लोग हैं, जो नक्सलवादियों के इन दलों में सक्रिय हैं? कौन-कौन हैं जो आंध्रप्रदेश की सीमाएं लांघकर महाराष्ट्र के जंगहों की खाक छान रहे हैं? वे लोग आमतौर पर बहुत पैसे वाले तो हैं ही नहीं, मध्यम वर्ग के लोग भी उसमें कम ही हैं। ज्यादातर हैं सर्वहारा, गरीब मजदूर, खदान कर्मी या हरिजन आदिवासी की संतानें।

उदाहरण के लिए २३ वर्षीय पेड्डी शंकर को ही लें। २ नवम्बर, १९८० को गढ़चिरोली जिले की सिरोंचा तहसील के एक गांव में पुलिस ने उसे गोली मार दी थी। पुलिस ने कहा था कि वह एक मुठभेड़ में मारा गया। कौन था वह? उसके पिता एक साधारण खदान मजदूर थे। वह इंटरमीडिएट के आगे पढ़ नहीं पाया था। अपनी आजीविका के लिए उसने एक गैरेज में क्लीनर का काम करना शुरू किया था। किसी तरह वह अपनी जिंदगी काट रहा था।

३० अगस्त, १९८३ को पुलिस ने पैल्ले कनाकय्या को महाराष्ट्र की सीमा से लगे आदिलाबाद में मार डाला था। वह एक गरीब आदिवासी गोंड का बेटा था। मामूली पढ़ाई के बाद ही वह नक्सलवादी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगा था।

ये लोग अकारण किसी को मारते-पीटते नहीं। पिछले चार वर्षों में केवल एक घटना प्रकाश में आई है, जब नक्सलवादियों ने हिंसा का उपयोग किया। ३ अक्टूबर, १९८२ को गढ़चिरोली तहसील के अंकिसा गांव के एक शिक्षक सत्यनारायण राजे का दाहिना हाथ काट दिया गया था। कहा जाता है कि यह कार्रवाई उन्होंने पुलिस के भेदियों को चेतावनी देने के लिए की थी।

राजू एक मालगुजार के मुनीम का लड़का है। उसके पास १५ एकड़ जमीन और नलवूâप हैं। अपने आदिवासी मजदूरों को वह व्रूâरता से पीटता था। कहा जाता है कि उसके पिता ने ७० एकड़ सरकारी जमीन पर कब्जा कर रखा है। जब राजू का हाथ काटा गया, तब वह घंटों पड़ा-पड़ा तड़पता रहा। कोई उसे अस्पताल नहीं ले गया। एक आदिवासी ने कहा कि जब राजू मास्टर हमें पीटता था, तब पुलिस क्यों नहीं आती थी?

खैर, राजू के मामले में सरपंच सहित दस लोगों को पकड़ा गया। उन पर भारतीय दंड विधान की दफा ३०७ (हत्या की कोशिश) का इल्जाम लगाया गया। राजू को सिरोंचा में नियुक्त किया गया। सरकार ने उसे दस हजार रुपए का अनुदान दिया। यह सब तो हुआ, लेकिन पुलिस की कथित ‘मुठभेड़’ में मारे गए पेड्डी शंकर को क्या मिला?

एक बार नक्सलवादियों ने एक बलात्कारी नायब-तहसीलदार को डराया-धमकाया। उसने एक आदिवासी लड़की के साथ बलात्कार किया था। गांव के लोग उस नायब-तहसीलदार से डरते थे, इसलिए कुछ कह नहीं पाते थे। इस प्रकरण के बाद वे नक्सलवादियों का सम्मान करने लगे।

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