जॉनी वॉकर स्कॉच के विज्ञापन का एक मशहूर वाक्य है - ‘बोर्न इन 1915 एंड स्टिल गोइंग स्ट्रांग’। यह बात सरदार खुशवन्त सिंह पर खरी उतरती है। 71 वर्षीय सरदारजी का ‘बल्ब और बोतल’ कालम दुर्भावनाओं और सदभावनाओं सहित अब भी लोकप्रिय है। उनका बल्ब बूझा नहीं, कागज का बंडल खत्म नहीं हुआ और स्कॉच की बोतल सूखी नहीं। मजेदार बात यह कह रही कि पिछले सोमवार को ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने उनके बारे में जो संपादकीय छापा वह उनके कालम की ही तरह जगह-जगह छपा और चिर्चित रहा।
समाजवादी जनता दल के नेता चौधरी देवी लाल विपक्ष की राजनीति के खलीफा है। वे जानते है कि दूल्हे का दोस्त बनना ज्यादा अच्छा होता है, दूल्हा बनना नहीं। वे यह भी जानते है कि आज के थापे वंâडे आज नहीं जलाए जा सकते। इसी कारण से उन्होंने समाजवादी जनता दल के लिए दूरदर्शी योजना बनाई है। हो सकता है कि उनके इरादे पूरी तरह कामयाब न हों, पर गेहूँ को पीसने से आटा न बने, दलिया तो बन ही जाएगा।
प्रधानमंत्री कई मामलों में अपने विचार बदल रहे हैं। ओर अब शायद सलाहकार भी। अब अरूण नेहरू वे अरूण नेहरू नहीं है, जो कांग्रेस में दूसरे नंबर के नेता थे। अब अरूण नेहरू के अधिकार काफी कम हो गए हैं और प्रधानमंत्री उन्हें वैसा महत्व नहीं दे रहे है, जैसा पहले दिया करते थे।
आमतौर पर हमारे यहां उद्योगपति के नाम अखबारों मेैं तभी छपते हैं, जब टैक्स की चोरी या पेâरा नियमों का उल्लंघन होता है। ऐसे उद्योगपति कम ही हैं, जो दूसरे कारणों से चर्चित होते हैं। ऐसे ही उद्योगपति हैं विजयपत सिंहानिया। जे.आर.डी.टाटा की तरह वे भी उद्योगपति है ओर उड़ाके भी। उन्होंने २३ दिन में ९६०० किलोमीटर की दूरी तय की है औ वह भी डेढ़ क्विंटल के एक अति हलके विमान से। अपने इस विमान से सिंहानिया ने ११ देशों के ऊपर उड़ान भरी ओर भारत की धरती पर उतरकर गिनेज बुक्स आफ वल्र्ड रिकार्डस में अपना नाम दर्ज कराने की स्थिति प्राप्त कर ली। हालांकि पाकिस्तान के कराची हवाई अड्डे पर उन्हें कुछ कानूनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर अंतत: मामला सुलझ गया।
पोथीराम उपाध्याय (द्वारकापीठ के शंकराचार्य) को कांग्रेस का नजदीकी माना जाता है। मीनाक्षीपुरम में धर्मान्तरण के खिलाफ जोरदार मुहीम छेड़ने वाले शंकराचार्य ही थे। अब वे रामजन्मभूमि के इसलान्यास की नई पहल के कारण विवाद का केन्द्र बने हैं और लगता है कि उनकी जन्मपत्रिका में यही सब कुछ लिखा है।
बेशक एस.एम. जोशी नंबर एक समाजवादी नेता है। वे व्यापक जनाधार वाले ट्रेड यूनियन लीडर तथा रचनीत्मक कार्यकर्ता हैं। मगर महाराष्ट्र, कर्नाटक सीमा विवाद में उलझकर वे वही कर रहे हैं, जिसे मराठी में कहा जाता है - ‘आपले नाक कापून दसयीला अपशकुन’ अर्थात अपनी नाक कटवाकर दूसरों के लिए अपशकुन करना। अब एस.एम. जोशी बेलगांव को कर्नाटक से महाराष्ट्र में मिलाने की मांग पर शरद पवांर के साथ आंदोलन में जुटे हैं। इस आन्दोलन को वे बेलगांव के मराठीभाषियों से किए गए वादे की पूर्ति मानते है।
कहा जाता है कि सुब्रह्ममण्यम स्वामी की लम्बाई से भी ज्यादा लम्बी उनकी जुबान है। वे जिस पार्टी में रहे, उसी के नेताओं को गाली देते रहे। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोपेâसर रह चुके स्वामी ने पिछले माह एक बयान में कहा था कि मैं उतना बेववूâफ नहीं हूं, जितना नजर आता हूं।
गोयनका प्रतिष्ठान का पहला पत्रकारिता पुरस्कार वी.के. नरसिंहन नामक ऐसे पत्रकार को मिला है, जिनकी दिलचस्पी अपने बारे में बताने में कभी नहीं रही। उन्होंने राजनीति के बारे में ही ज्यादा लिखा, लेकिन कभी राजनीति की नहीं।बम्बई में ‘इंडियन एक्यप्रेस’ के उनके पुराने साथी आज भी उन्हें ऐसे आदमी सम्पादकीय तो लिख सकते हैं, लेकिन जिन्हें प्रशासन का काम बिल्कुल नहीं आता। जो विजयी है, लेकिन सिद्धान्तप्रिय भी, जो सही बात सोचते है तो उसे लिखने का माद्दा भी रखते हैं। जो राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ भारतीय दर्शन और संगीत में भी रूचि रखते हैं।
श्रीचेरूमुरि शर्माजी राव की इतनी चर्चा तब भी नहीं हुई थी, जब उन्होंने आंध्रप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के महाभारत की बागडोर सम्भाली थी। एक नवजात पार्टी को आंध्रप्रदेश में सत्ता दिलाने और इंका के आंध्रप्रदेश में पुनप्रवेश के रास्तों पर गतिरोध कायम करने में उनकी निर्णायक भूमिका थी। तेलुगु देशम को उन्होंने जन्म दिया, पाला-पोसा और राजनैतिक लड़ाई के पैंतरे सिखाए।
पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त यह चर्चा थी कि अगर विधान सभा पर भगवा फहराने की नौबत आई तो हो सकता है कि भगवा फहराने वाले का नाम छगन भुजबल हो। आखिर वे बाल ठाकरे के बाद शिव सेना के शीर्ष नेताओं में गिने जाते है। मगर इस १५ अगस्त को उन्हें मनपा कार्यालय पर ही तिरंगा फहरा कर ही संतोष कर लेना पड़ेगा।