१६ दिसम्बर १९८८ को महान साहित्यकार और पत्रकार डॉ. प्रभाकर माचवे के संपादन में इंदौर से जिस चौथा संसार दैनिक का प्रकाशन प्रारंभ हुआ था, वह आज एक वटवृक्ष बन गया है। इसमें श्री नरेश मेहता जैसे महान साहित्यकार-संपादक का भी पुण्य छिपा है। चौथा संसार सांध्य उसी की एक शाखा है। भारत में ऐसे अनेक अखबार समूह हैं, जो सांध्य दैनिक प्रकाशित करते हैं, लेकिन ऐसे अखबार शायद ही हों जो उसी नाम से शाम को भी नए रंग-रूप में संस्करण प्रकाशित करते हों। इस संदर्भ में कहना होगा कि आपका चौथा संसार यह बिरला प्रयोग कर रहा है।
हर खबर जो छापने के योग्य यानी ‘फिट टू प्रिंट’ होती है, प्रात:कालीन अखबार में छाप दी जाती है, लेकिन सांध्यकालीन अखबार में वहीं चुनिंदा खबर प्रमुखत: जाती है, जिसे पाठक पढ़ना चाहते हों। सुबह के अखबार में विज्ञापनों के बीच खबरें खोज-खोजकर पढ़ना पड़ती है, जबकि सांध्यकालीन अखबार में खबरें ही खबरें होती हैं। सुबह का अखबार हॉकर सुबह-सुबह पेंâक जाता हैं, सांध्यकालीन अखबार पाठक हॉकर के हाथ से झपट लेना चाहता है। सांध्यकालीन अखबार सुबह छपकर आने वाले अखबार के लिए भूमिका तैयार कर देता है। सांध्य दैनिक रोज सुबह आने वाले अखबार के बीच पुल का काम करते है।
चौथा संसार परिवार की कोशिश होगी कि यह सांध्यकालीन अखबार ब्लड प्रेशर बढ़ाने वाली सक्र्युलेटिंग लायब्रेरी न हो। लोगों को क्या करना चाहिए, यह बताना हमारा काम नहीं। यह तो गीता-बाइबिल में लिखा ही है। हम तो केवल यह बता सकते हैं कि लोग क्या कर रहे हैं। हम जानते हैं कि अखबारों की मिल्कियत चाहे जिसकी भी हो, प्रेस की आजादी हमेशा पाठकों को मिल्कियत होती है, इसीलिए जो अखबार प्रेस की आजादी के निहितार्थ नहीं समझते, उनका प्रसार तो गिरता ही है, वे अंतत: सरकार के पतन के भी कारण होते हैं।
चौथा संसार सांध्य आपको सौंपते हुए हमें अतीव प्रसन्नता है। ग्लोबलाइजेशन के युग में हम लोकल खबरों को तवज्जों देते रहेंगे। हमारी कोशिश होगी सच्ची और ताजा खबरें देने की। यह अखबार अगर आपको उद्वेलित करेगा तो गुदगुदाएगा भी, अगर आप कष्ट में हो तो यह साझेदार होगा और खुशियों में यह आपके साथ गुनगुनाएगा। आपकी पीड़ा में चित्कार करेगा और संबंधित लोगों का ध्यान उस ओर खींचेगा। यह आपके गुस्से को आवाज देगा। आपके अस्तित्व को पहचान देने की कोशिश करता रहेगा। यह एक पत्र नहीं, मित्र की भूमिका निभाएगा। एक मित्र की ही तरह यह चाहेगा कि आपका जीवन हर तरह खुशियों से सराबोर हो, आपके जीवन की हर राह में पूâल खिले हों, सुर सजे हो और खुशबूएं बिखरी पड़ी हों। यह सफर सुहाना हो।
हम सदैव, आपके विश्वास के आकांक्षी रहेंगे।
-प्रकाश हिन्दुस्तानी
७ अप्रैल २००३