कई पढ़े लिखे और सम्भ्रांत लोग सोशल मीडिया पर भी सक्रिय है, लेकिन लगता ही नहीं कि वे पढ़े-लिखे है या उनमें कोई तहजीब भी है। सोशल मीडिया के बारे में पर्याप्त समझ का अभाव होने के कारण कई बार ऐसी स्थितियां पैदा हो जाती है, जो सोशल मीडिया यूजर को हंसी का पात्र बना दे। आए दिन आप ऐसे लोगों से वर्च्युअल दुनिया में मिलते रहते है। जरूरी नहीं कि आप इनके बारे में कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करो।
पिछले दिनों फिल्म अभिनेता विनोद खन्ना को प्रोस्टेट कैंसर की खबर सुर्खियों में थी। सोशल मीडिया पर किसी ने विनोद खन्ना और उनकी पत्नी का एक फोटो शेयर किया था, जिसमें विनोद खन्ना काफी कमजोर नजर आ रहे थे। पोस्ट के अनुसार विनोद खन्ना की तबीयत ठीक नहीं है और उनका कैंसर का इलाज चल रहा है। पोस्ट लिखने वाले ने उस तस्वीर के साथ ही विनोद खन्ना की युवावस्था की तस्वीर भी पोस्ट कर दी। दोनों तस्वीरों में अंतर साफ नजर आ रहा था। एक विनोद खन्ना की युवावस्था की तस्वीर थी और दूसरी उनकी वृद्धावस्था और बीमारी की तस्वीर थी। अनेक लोगों ने विनोद खन्ना के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त की और प्रार्थना की कि वे जल्द स्वस्थ हो जाएं।
विनोद खन्ना के गंभीर बीमारी को देखते हुए एक राष्ट्रीय हिन्दी न्यूज चैनल ने उन पर आधे घंटे का विशेष प्रोग्राम दिखा दिया, जिसमें विनोद खन्ना की फिल्मों के दृश्य और गाने थे। किसी ने भी उस प्रोग्राम में यह नहीं दिखाया था कि विनोद खन्ना भगवान को प्यारे हो गए, लेकिन कई लोगों ने बीना पूरा प्रोग्राम देखें ही विनोद खन्ना को श्रद्धांजलियां देना शुरू कर दी। हाल यह हुआ कि फेसबुक और ट्विटर पर विनोद खन्ना के निधन और श्रद्धांजलियों की सूचनाओं की बाढ़ आ गई। इससे इलाज करा रहे विनोद खन्ना के परिवार के लोगों को बड़ी परेशानी हुई। सैकड़ों लोगों ने उन्हें फोन कर करके श्रद्धांजलि अर्पित कर डाली और कई तो शोक व्यक्त करने उनके घर भी पहुंच गए। मजबूरन विनोद खन्ना की पत्नी कविता खन्ना और बेटे अक्षय खन्ना को यह अपील जारी करनी पड़ी कि विनोद खन्ना स्वास्थ्य लाभ ले रहे है और प्रशंसकों की दुआओं से जल्द ही ठीक हो जाएंगे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी प्रार्थना की कि कृपया विनोद खन्ना की बीमारी की तस्वीर पोस्ट न करें।
सोशल मीडिया के उत्साही लोग पता नहीं कितनी बार दिलीप कुमार के इंतकाल की खबरें जारी कर चुके है। अमिताभ बच्चन की बीमारी और मौत को लेकर भी कई बार झूठी पोस्ट डाली जा चुकी है। सोशल मीडिया पर सक्रिय उत्साही लोगों को चाहिए कि वे रायपुर की एक न्यूज एंकर से सबक लें और हमेशा धीरज से प्रतिक्रिया व्यक्त करना सीखे। समाचार पढ़ते समय उस न्यूज एंकर को एक सड़क दुर्घटना की खबर पढ़नी पड़ी, जिसमें उनके पति की मृत्यु हो चुकी थी। न्यूज एंकर ने बगैर आपा खोये धीरज बनाए रखा और बुलेटिन पूरा होने के बाद फोन पर अपने परिजनों से संपर्क किया।
कई बार आप गहरे विषाद में होते है। विषाद का कारण कुछ भी हो सकता है। अपने किसी अति निकट संबंधी की बीमारी या स्वर्गवास जैसी घटना भी हो सकती है। ऐसी स्थितियां टाली नहीं जा सकती। ऐसे में धीरज बनाए रखना चाहिए और सबसे पहले अपने सबसे नजदीकी मित्रों और रिश्तेदारों से संंपर्क करना चाहिए। अपने परिजनों के बारे में सोशल मीडिया पर ब्रेकिंग न्यूज जैसी सूचनाएं डालना मानवीय नहीं लगता। अपने किसी बेहद करीबी के जाने की खबर अपने दूसरे करीबी लोगों को आप खुद दे, यह बेहतर तरीका हो सकता है, सोशल मीडिया नहीं। विचित्र बात यह है कि सोशल मीडिया पर जब आप अपने किसी नजदीकी के निधन या बीमारी की सूचना शेयर करते है। तब सोशल मीडिया पर मौजूद लोगों में से बहुत से ऐसे लोग प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने लगते है। मानो वे ही आपके नजदीकी व्यक्ति के सबसे बड़े हितैषी हो।
वरिष्ठ पत्रकार श्री राजेन्द्र माथुर की 26वीं पुण्यतिथि पर इंदौर में एक संस्था ने अनेक लोगों का स्वागत सत्कार कर दिया। जिन लोगों का स्वागत हुआ, उनमें से कई ऐसे थे, जिनका राजेन्द्र माथुर से दूर-दूर का भी नाता नहीं था। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने उस स्वागत सत्कार की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए लिखा कि अंग्रेजी के महान साहित्यकार श्री राजेन्द्र माथुर के नाम पर हुए कार्यक्रम में मुझे सम्मानित किया गया, यह मेरे लिए गर्व की बात है। जाहिर है उस पोस्ट को लोगों ने मजाक का पात्र बनाया, क्योंकि उन्हें यहीं नहीं पता था कि राजेन्द्र माथुर अंग्रेजी के साहित्यकार नहीं हिन्दी के जाने-माने पत्रकार थे। आपका सम्मान हुआ, यह अच्छी बात है, लेकिन आपने अपनी फेसबुक पोस्ट से यह बात साबित कर दी कि आप उस सम्मान के काबिल नहीं थे। इतनी जल्दबाजी में सम्मान की बात शेयर करना जरूरी नहीं था। बेहतर होता कि वे पहले राजेन्द्र माथुर के बारे में कुछ जान लेते और फिर पोस्ट शेयर करते।
कई लोग तो ऐसी पोस्ट भी शेयर और टैग करने से नहीं चूकते, जिनमें से कोई एक व्यक्ति यह दुनिया कूच कर गया हो। किसी दिवंगत की स्मृति को सम्मान देना अच्छी बात है। यह सामान्य शिष्टाचार भी है, लेकिन किसी दिवंगत की पोस्ट को शेयर करना और टैग करना सोशल मीडिया की तहजीब नहीं है। अनेक लोग किसी दिवंगत को श्रद्धांजलि देने के बहाने उनके साथ अपने संस्करण लिखने बैठ जाते हैं। हालात यह होते है कि वे दिवंगत के प्रति कम और अपने प्रति ज्यादा प्रशंसा कर बैठते है। कई बार तो दिवंगत व्यक्ति के छोटे होने का एहसास भी ऐसी पोस्ट में होता है। कई लोग फेसबुक पर ही पूछने लगते है कि अरे यह कैसे हुआ ? कब हुआ ? कई बार लोग श्रद्धांजलि के नाम पर ऐसा कुछ लिख जाते है, जो दिवंगत व्यक्ति के परिवारजनों को आहत कर देता है। इसलिए सोशल मीडिया पर संवेदनशील मुद्दों पर कोई भी पोस्ट शेयर करने से पहले पांच बार सोच लीजिए। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी हस्ती हुई तस्वीरों की डीपी बना रखी है। ऐसे लोग कई बार शोक संदेश लिखते है, तब उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर साथ में नजर आती है। शोक संदेश के साथ हंसती हुई तस्वीर दिल को कष्ट पहुंचा जाती है।
सोशल मीडिया के सभी प्लेटफॉर्म को एक जैसा मत समझिए। फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम आदि सभी की अपनी-अपनी खासियतें और कमजोरियां है। जिस तरह की बातें आप किसी एक प्लेटफॉर्म पर शेयर करते है, वैसी ही बातें दूसरे प्लेटफॉर्म पर जस की तस कह देना बुद्धिमानी नहीं है। हर व्यक्ति की पसंद अलग-अलग है और हो सकती है।
22 April 2017