जम्मू और कश्मीर में आतंकियों के मददगार और पत्थर फेंकने वाले सोशल मीडिया का उपयोग करके उन्माद फैला रहे है। सरकार ने एक महीने के लिए जम्मू-कश्मीर में सोशल मीडिया पर रोक लगा दी है। इससे सुरक्षा बलों के खिलाफ संदेशोें का आदान-प्रदान कठिन हो जाएगा और शायद आतंकी गतिविधियों में भी कमी आए। एक सरकारी आदेश के अनुसार सोशल मीडिया का उपयोग करके अशांति फैलाने में जिन वेबसाइट का उपयोग हो रहा है, उनका उपयोग प्रतिबंधित किया गया है। इस कारण जम्मू-कश्मीर में फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप, यू-ट्यूब, फ्लिकर, वि-चैट, टम्बलर, क्यू-झोन, गूगल प्लस, विबोर, स्नैपचेट, टेलीग्राम, प्रिंटरेस्ट, लाइन, बाइडू सहित कुल 22 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग रोका गया है।
सभी इंटरनेट प्रोवाइडर्स से कहा गया है कि वे इन वेबसाइट्स की सेवाएं बाधित कर दें। आतंकी गतिविधियों के मददगार सोशल मीडिया का उपयोग हिंसा फैलाने में कर रहे है। जांच में पता चला है कि करीब 300 वाट्सएप ग्रुप ऐसे है, जो युवाओं की बीच हिंसा फैलाने में मददगार है। वाट्सएप का उपयोग प्रतिबंधित होने से संदेशों का आदान-प्रदान उतना आसान नहीं होगा।
राज्य सरकार को विश्वास है कि इस प्रतिबंध के कारण घृणा फैलाने वाले संदेशों के विस्तार पर रोक लगेगी। कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर घृणा फैलाने वाले वीडियो फुटेज बहुत वायरल हो रहे है। इन वीडियो में पत्थर फेंकने वाले युवाओं को आतंकी गुटों और पाकिस्तान परस्त नेताओं की तरफ से शाबाशी भी दी जा रही है। सुरक्षा बलों ने सेना पर पत्थर फेंकने वालों को बार-बार ताकीद दी है कि उनसे सख्ती से निपटा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने भी पैलेट गन्स के उपयोग पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
सोशल मीडिया की इन प्रमुख वेबसाइट्स पर रोक लगने के बाद कश्मीर के लोगों का बाहरी दुनिया से नाता जोड़ पाना आसान नहीं होगा। बाहरी दुनिया के लोग भी जम्मू-कश्मीर के भीतरी इलाकों में हो रही वारदातों के बारे में आसानी से जानकारी नहीं पा सकेंगे। मई और जून के महीनों में कश्मीर में पर्यटकों की आवाजाही शुरू हो जाती है। इस प्रतिबंध से पर्यटकों को भी असुविधा होगी, लेकिन राज्य सरकार को लगता है कि आतंकी गतिविधियों को रोकने के दिशा में यह अच्छा कदम है।
यह कोई पहली बार नहीं है, जब जम्मू-कश्मीर इलाकों में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाया गया है। सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के अनुसार कश्मीर में 2012 से 2016 के बीच 31 बार इस तरह के प्रतिबंध लगाए गए है। अनेक मानवाधिकार संगठनों ने इस प्रतिबंध को गलत बताया और अभिव्यक्ति की आजादी पर कुठाराघात कहा। दुनियाभर में फैले उग्रवादी संगठनों से सहानुभूति रखने वाले पत्रकार इस कदम पर उद्वेलित है। इसके जवाब में सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया का उपयोग आपत्तिजनक कंटेंट के प्रचार-प्रसार के रूप में किया जाना गलत है। इस माध्यम से हिंसा भड़काने की कोशिशों को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा।
राज्य सरकार के आदेश से अलगाववादी तत्व बहुत गुस्से में है। उनका कहना है कि ऐसे प्रतिबंध अभिव्यक्ति की आजादी के लिए अच्छी बात नहीं है और इससे संबंधों को सामान्य बनाना कठिन हो जाएगा। प्रमुख अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुक ने इस प्रतिबंध के खिलाफ कमर कस ली है। फारुक का कहना है कि कुछ लोगों की सजा सभी कश्मीरियों को देना ठीक नहीं है। इस प्रतिबंध के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि इससे कारोबार पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। भारतीय सेना के प्रतिनिधि ने भी मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती से सोशल मीडिया पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध की सिफारिश की थी। इंडियन टेलीग्राफ एक्ट के अनुसार आपत्तिजनक सामग्रियों का प्रसारण नहीं किया जा सकता और इसी के तहत यह कार्यवाही की गई है। पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला भी इस प्रतिबंध से नाखुश है। उनका कहना है कि सड़क पर जाकर सैनिकों पर पत्थर फेंकने से अच्छा है कि लोग अपनी भड़ास सोशल मीडिया पर जाकर उतार दें।