You are here: सुबह सवेरे (मेरा हैशटैग)
हम हिन्दीभाषियों का परिहास बोध भी विलक्षण है। दुनिया में सबसे ज्यादा हिन्दी भाषी भारत में ही रहते है (मॉरिशस, सूरीनाम, फिजी, गुयाना, नेपाल आदि में भी हिन्दीभाषी रहते है) और सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता बहुत मायने रखती है। खास बात यह है कि ये हिन्दीभाषी देश, काल और परिस्थिति के अनुसार गंभीर बाते तो शेयर करते ही हैं, हंसी-मजाक में ऐसी बातें भी कह जाते हैं, जो यादगार होती है। श्री राजेन्द्र माथुर कहते थे कि अगर यह जानना हो कि कोई समाज कितना जीवंत है, तो उसके परिहास बोध पर नजर डालो।
पिछले कुछ हफ्ते से सोशल मीडिया और मास मीडिया में शाहरुख खान और ऋतिक रोशन के बीच प्रतिस्पर्धा की बातें सामने आ रही है। कई लोग सांप्रदायिक आधार पर अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता को दर्शाते है, वैसी ही प्रतिबद्धता, अब फिल्म के क्षेत्र में भी देखने को मिल रही है। सांप्रदायिक और जातीय ध्रुवीकरण पहले फिल्मी दुनिया में कभी नहीं हुआ। पाकिस्तान में रईस के प्रदर्शन पर रोक के बाद एक वर्ग यह कह रहा है कि जितनी आजादी फिल्मकारों को भारत में है, उतनी पाकिस्तान में नहीं। रईस पर रोक के कारण पाकिस्तानी हीरोइन माहिरा खान भी खासी निराश हैं। उन्हें केवल इसी उद्देश्य से लिया गया था कि माहिरा के कारण पाकिस्तान में फिल्म हिट हो सकेगी।
क्या स्थानीय नागरिक और राजनैतिक कार्यकर्ता अपने क्षेत्र के नेता की गतिविधि को लेकर फेसबुक पर टिप्पणी नहीं लिख सकते हैं? आमतौर पर तो इसमें किसी को कोई पेंच नजर नहीं आता, क्योेंकि डोनाल्ड ट्रम्प से लेकर नरेन्द्र मोदी तक के बारे में सोशल मीडिया पर लोग अपनी-अपनी राय लिखते रहते है। राय के साथ ही आलोचना कई बार व्यक्तिगत भी हो जाती है, लेकिन फिर भी बड़े-बड़े नेता ऐसी आलोचना को नजरअंदाज कर देते है। यह बड़प्पन हरेक में नहीं होता। कई बार बड़े नेता ऐसी बातोें को नजरअंदाज करते है, लेकिन छोटे नेता या बड़े नेता के समर्थक ऐसी आलोचना सह नहीं पाते।
फेसबुक पर लाइव वीडियो का दौर शुरू होने के बाद बहुत से ऐसे नकारात्मक वीडियो प्रचलन में आ रहे है, जिनका असर समाज के लिए घातक है। हालात इतने बदतर है कि बच्चे और किशोरवय के लोग आत्महत्या जैसा खतरनाक कदम उठाने की कोशिश के वीडियो भी शेयर कर रहे है। जिसके कारण दूसरे बच्चों के मन में नकारात्मक भाव बढ़ते जा रहे है। खुद को नुकसान पहुंचाने वाले ऐसे वीडियो को लेकर पश्चिम का समाज बेहद चिंतित भी है।
गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों की घोषणा के बाद कई बार बहस होने लगती है कि पद्म पुरस्कार सही लोगों को मिल रहे है या नहीं। इस बार पद्म पुरस्कारों की घोषणा में एक नाम सबसे ज्यादा विवादों में रहा और वह है शरद पवार का। शरद पवार को महाराष्ट्र के लोग साहेब कहकर बुलाते है। पुणे और बारामती क्षेत्र में तो शरद पवार को पद्म पुरस्कार मिलने का जोरदार स्वागत हुआ है, लेकिन आमतौर पर कई लोगों को यह बात पची नहीं। लोग इसे महाराष्ट्र के तत्कालीन राजनैतिक समीकरण से जोड़कर देख रहे है। महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना की युति यानी गठजोड़ टूट चुका है और मुंबई महानगर पालिका चुनाव शिव सेना और भाजपा अलग-अलग लड़ रही हैं। यह भी चर्चा है कि शिव सेना कभी भी सरकार से पीछे हट सकती है। ऐसे में शरद पवार की एनसीपी बीजेपी के पक्ष में आकर सत्ता बचा सकती है।
गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड समारोह में मेरिल स्ट्रीप ने अपने छोटे से भाषण में अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में जो कुछ भी कहा, वह ट्रम्प और उनके प्रशंसकों को बुरी तरह खल गया है। डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका में बाहर से आए लोगों के बारे में अक्सर कुछ न कुछ कहते रहे हैं। मेरिल स्ट्रीप ने कहा कि अगर आप हमें देश के बाहर निकाल देंगे, तो आपके पास कुछ भी नहीं बचेगा। सिवाए फुटबॉल और मार्शल ऑर्ट के। 74 गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड समारोह में मेरिल स्ट्रीप ने कहा था कि मैं नए साल की शुरूआत से कुछ दिन पहले अपनी आवाज और दिमाग खो बैठी हूं। इसलिए लिखित भाषण पढ़ूंगी।