You are here: सुबह सवेरे (मेरा हैशटैग)
अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में अमेरिकी मीडिया में एक रिपोर्ट छपी है, जिसमें उन्हें ‘टि्वटर-इन-चीफ’ का खिताब दिया गया है। ट्रम्प ने अभी राष्ट्रपति पद की शपथ भी नहीं ली है, लेकिन उनके ट्वीट वैश्विक हेडलाइंस बना रहे हैं। विदेश नीति का मामला हो या कैबिनेट में नियुक्ति का, बोइंग कंपनी की खरबों की एयरफोर्स-1 डील को महंगा बताने की बात हो, या डोनाल्ड ट्रम्प टॉवर के रेस्टोरेंट का मसला- मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि जिस तरह टि्वटर पर हेडलाइंस बनाई जा रही है, उससे लगता है कि ट्रम्प ‘टि्वटर-इन-चीफ’ हो गए है। व्हॉइट हाउस पहुंचने के पहले ही ट्रम्प ने जो सनसनी अपने ट्वीट से फैलाई है, वह सामान्य बात नहीं है। जिन बातों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित कोई नेता प्रेस कांफ्रेंस करके नाराजगी प्रकट करता, उन बातों के लिए ट्रम्प ने एक छोटे से ट्वीट का सहारा ही लिया और इससे उनका मकसद कहीं ज्यादा अर्थपूर्ण तरीके से लोगों तक पहुंचा भी है।
हम 2016 के आखिरी दिनों में है। सोशल मीडिया 2016 में जितने बड़े पैमाने पर पहुंच चुका है, उतना कभी पहले नहीं पहुंचा था। फेसबुुक, टि्वटर और इंस्टाग्राम जैसे तीन प्लेटफॉर्म पर अरबों लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए है। 2016 में फेसबुक की लोकप्रियता का आलम यह रहा कि लाखों की संख्या में लोग हर सप्ताह उससे जुड़ते गए। पिछले एक महीने में ही फेसबुक के वैश्विक यूजर्स की संख्या 60 करोड़ रही है। बहुत से लोग फेसबुक पर तो है, लेकिन उसका सक्रिय उपयोग नहीं करते। 60 करोड़ लोग भी अगर फेसबुक का उपयोग सक्रिय रूप से करते है, तो यह कोई छोटी संख्या नहीं है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि फेसबुक अपने चरम पर पहुंच गया है और अब उसके सामने कोई चुनौती नहीं है।
टेक्नोलॉजी भी राजनीति का रूप बदल देती है। सोशल मीडिया ने भी राजनीति का रूप बदला है। जब टेलीविजन चैनल शुरू हुए थे, तब नेताओं को लगने लगा था कि उनका भविष्य टीवी में है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के दौरान टेलीविजन की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। अमेरिकी चुनाव को देखते हुए लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता हमेशा अपनी पार्टी के लोगों को टेलीविजन चर्चाओं के लिए प्रेरित करते रहे। सोशल मीडिया में भी लालकृष्ण आडवाणी काफी पहले से सक्रिय हैं। उनके ब्लॉग बहुत लोकप्रिय रहे, लेकिन प्रोफेशनल तरीके से सोशल मीडिया का बेहतर उपयोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया। मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए ही नरेन्द्र मोदी सोशल मीडिया में अपना सिक्का जमा चुके थे।
क्या सोशल मीडिया पर आपका व्यक्तित्व वही हैं, जो असल जिंदगी में है? क्या ऐसा संभव है कि असल जिंदगी में आप कुछ और हो और सोशल मीडिया पर आपकी छवि कुछ और? हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह दावा किया गया कि असल जिंदगी में जो आपका व्यक्तित्व है, आप उस व्यक्तित्व से अलग हटकर सोशल मीडिया पर अपना व्यक्तित्व नहीं दिखा सकते। इसका अर्थ यह हुआ कि सोशल मीडिया पर भी आप जैसे नजर आते है, वह भी वास्तविक है। कोई यह नहीं कह सकता कि वच्र्युअल दुनिया में आप अलग व्यक्तित्व बनाए रख सकते है।
2016 की विदाई करीब है। ऑनलाइन मीडिया में कौन-कौन से लोग सबसे लोकप्रिय रहे और कौन-कौन से प्लेटफॉर्र्म सबसे ज्यादा पसंद किए गए, इस बात का अध्ययन किया जा रहा है। शोध के अलग-अलग पैमानों पर इसकी पड़ताल की जा रही है और शोधकर्ता अलग-अलग नतीजे निकाल रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ बातें तो अभी से तय है कि अंतिम परिणाम यही होने वाला है।
चीन में फेसबुक के प्रवेश की फिर से तैयारियां चल रही है। एक ऐसे देश में, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद सीमित है और सेंसरशिप पूरी तरह लागू है, वहां फेसबुक का जाना विस्मय पैदा करता है। चीन ने फेसबुक को ऐसे ही प्रवेश की आजादी नहीं दी, उसने शर्त रखी कि चीन की सरकार के आदेश के अनुसार फेसबुक में वे तमाम फीचर रखे जाएंगे, जिनसे किसी भी पोस्ट को सेंसर किया जा सके। हाल के अमेरिकी चुनाव में फेसबुक और दूसरे सोशल मीडिया पर आई बोगस न्यूज फीड को लेकर उठा विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ है और अब फेसबुक ने खुद इस तरह की सेंसरशिप को मंजूर कर लिया है। यह सब फेसबुक के कम्युनिटी मानकों के विरुद्ध है, लेकिन फेसबुक ने इसके लिए हामी भर दी है।