लगता है होली का त्यौहार अब गली-मोहल्लों और चौराहों पर कम मनाया जाता है और सोशल मीडिया पर ज्यादा। वैसे भी होली कोई देखने का त्यौहार तो है नहींं, जब तक आप इसके रंग में सराबोर न हों, तो इसका मजा ही क्या? होली खेलने के लिए अपने भीतर उत्साह होना जरूरी है। अब वैसे भी लोग वर्च्युअल दुनिया में जी रहे हैं, इसलिए बहुत बड़ी संख्या में लोग केवल सोशल मीडिया पर ही होली खेलते है और वह भी अपने-अपने घरों में बंद रहकर या दूसरे शहर में पिकनिक स्पॉट पर जाकर।
हां, सोशल मीडिया पर होली को लेकर प्रवचन देने वालों की कमी नहीं है। होली का त्यौहार बहुत सी आजादी देता है। यह आजादी कहीं-कहींं भद्रता की सीमा भी पार कर जाती है। वाराणसी में तो बाकायदा गालियों के सम्मेलन होते हैं। उन सम्मेलनों में जी भरकर गालियां मंच से दी जाती है और बुरा नहीं माना जाता। हर बार होली आने के पहले पानी बचाने का संदेश भी दिया जाता है। उसके जवाब में यह संदेश भी प्रसारित होता है कि पानी बचाना है, तो पूरे 365 दिन पानी बचाओ, एक दिन पानी बचा लोगे तो क्या होगा?
पुरानी लतीफे होली के मौके पर फिर चलन में आ जाते हैं। नेताओं के नाम भी आमतौर पर वहीं होते हैं, जो चर्चा में हो। शहीद भगत सिंह के रंग दे बसंती को भी याद किया जाता है और बसंती रंग की पवित्रता की भी चर्चा होती है। मथुरा-वृंदावन की होली से लेकर उज्जैन के राजा भगवान महाकाल की होली की भी चर्चा होती है। बार-बार बदलने वाले रंगों का जिक्र आने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी तंज कसे जाते हैं और अरविन्द केजरीवाल की होली पर भी। दिलचस्प बात यह है कि इस बार होली दो दिन की रही और इसका भी मजा सोशल मीडिया पर छाया रहा।
अधिकांश इलाकों में होली पर ड्राय-डे रहता है। पानी बचाने के लिए सुरा प्रेमियों ने सोशल मीडिया पर फिर आव्हान किया कि पानी बचाइए, केवल नीट ही पीजिए। होली हो और केजरीवाल का जिक्र ना हो, यह कैसे संभव है? केजरीवाल पर फेंकी गई स्याही को लोगों ने वक्त के पहले मनाई गई होली करार दिया। होली आते ही एक से बढ़कर एक छिछोरे डायलॉग, पुराने फिल्मी गाने और गब्बर सिंह को याद किया जाता है, जो शोले में ‘होली कब है’ पूछते रहते थे। सोशल मीडिया पर लोगों ने उन सेक्युलर लोगों पर भी सवाल उठाए, जो पर्यावरण के नाम पर हर साल दिवाली के पहले कोर्ट कचहरी में जाते हैं।
होली सबसे ज्यादा कहां मनाई जाती है, इस सवाल के जवाब को खोजने की कोशिश इस तरह हुई कि होली सबसे ज्यादा न्यूज चैनलों में मनाई जाती है। वहां एंकर और एंकरानियां पावडर-लिपस्टिक के साथ ही गालों पर गुलाल मलकर आती है और वे तमाम भूतपूर्व कवि काम में आ जाते है, जो सालभर बेकार बैठे होते हैं। टीवी सीरियलों में भी होली का माहौल नजर आता है।
ठिलवाई के अलावा सोशल मीडिया पर गंभीर संदेश भी होली के मौके पर प्रचलन में आ जाते है। रंगों की पवित्रता, स्नेह का रंग, होली के परंपरागत व्यंजन, पुराने अनुपयोगी कपड़े सभी कुछ सोशल मीडिया पर नजर आता है। होली और होली के बाद रंगपंचमी के रंग भी सोशल मीडिया पर नजर आते हैं। यह मजेदार पोस्ट भी देखने को मिली कि लोग गालों पर रंग लगाकर दिल का रंग उड़ा ले जाते हैं। जेएनयू के मामले में किसी ने टिप्पणी लिखी कि अब तो लाल सलाम बोलना छोड़ो, होली है तो काहे का लाल सलाम, लाल के साथ-साथ हरा, नीला, पीला, भगवा, जामुनी, गुलाबी हर रंग का सलाम करो यार। उत्तरप्रदेश सरकार के उस आदेश को भी लोगों ने होली पर निशाने पर लिया, जिसमें कहा गया था कि होली के दौरान किसी मस्जिद की दीवारों पर रंग लगा, तो सरकार अपने खर्चे से उसकी पुताई करवाएगी।