चीनी लोग कौन-सा सामान नहीं बनाते? नकली माल बनाने में तो उन्होंने तथाकथित यूएसए (उल्हासनगर सिंधि एसोसिएशन) को भी मात दे दी है। वे नकली इलेक्ट्रॉनिक सामान तो बनाते ही हैं, नकली पनीर, नकली अंडा और यहां तक कि नकली पत्तागोभी भी बना लेते हैं। दुनियाभर के तमाम बड़े-बड़े ब्रांड अपना माल चीन से बनवाते है और अपना ठप्पा लगाकर दुनियाभर में बेचते हैं। दीपावली के मौके पर भारत में खरीदी जाने वाली लगभग हर वस्तु चीन से बनकर आ रही है और वह भी औने-पौने दामों पर। व्यापारियों को इसमें अच्छा खासा मुनाफा है और लोगों को भी सस्ता माल मिल जाता है।
जब से भारत ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक की है, तब से भारत में पाकिस्तान के साथ-साथ चीन का भी विरोध हो रहा है। सोशल मीडिया पर जमकर चीनी माल के बहिष्कार की बातें हो रही है। चीन के खिलाफ कार्टून प्रकाशित हो रहे है और लोग लिख रहे है कि चीन से खरीदा जाने वाला माल किस तरह पाकिस्तान का मददगार होकर भारत के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल हो रहा है। सोशल मीडिया पर चीनी माल के विरोध में कुछ तथाकथित प्रगतिशील भी मैदान में आ गए है और चीनी माल की तरफदारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि चीन से जो माल आ रहा है, वह भारत सरकार की नीतियों के कारण ही आ रहा है। भारत के ही व्यापारियों ने उस माल को खरीदने के लिए पैसा लगाया है और अब अगर लोग चीन के बने उस माल को नहीं खरीदेंगे, तो भारत के उन व्यापारियों का नुकसान होगा। इसकी अति करते हुए कुछ बुद्धिजीवी तो खुलकर चीनी माल खरीदने की तरफदारी कर रहे है, मानो उन्हें चीन ने अपना माल बेचने के लिए तैनात कर रखा हो।
चीन का मीडिया भारत में चल रहे इस अभियान के खिलाफ सक्रिय हो गया है और अब चीनी अखबारों और चैनलों पर खबरें दिखाई जा रही है कि भारत में चीनी माल के बहिष्कार की बातों के बावजूद इस साल चीनी माल की खपत रिकॉर्ड तोड़ हो रही है। चीनी मीडिया का कहना है कि भारत सरकार की तरफ से कभी भी चीनी सामान की क्वालिटी को लेकर कोई शिकायत नहीं की गई। ऑनलाइन शॉपिंग में भारत में जो माल खरीदा जा रहा है, उसमें चीनी सामान की बहुतायत है। चीनी मीडिया के अनुसार फ्लिपकार्ट के माध्यम से तीन दिन के भीतर चीन में बनने वाले पांच लाख से ज्यादा शियोमी मोबाइल बिक चुके है। यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है। चीनी मीडिया के अनुसार भारत-चीन संबंधों में एक-दूसरे से खरीदे जाने वाले माल की भूमिका प्रमुख है, यह कारोबार दोनों देशों के रिश्तों को और मजबूत करता है। चीनी मीडिया के अनुसार सन 2015 में कुल 70 खरब डॉलर मूल्य का सामान भारत में खरीदा गया, जबकि चीन ने उस साल भारत में 87 करोड़ डॉलर का निवेश किया था।
भारत सरकार के एक प्रवक्ता के अनुसार भारत में जितना चीन का माल खरीदा जाता है, उतना माल चीनी लोग भारतीयों का नहीं खरीदते। भारत और चीन के बीच भारत का कारोबारी घाटा 46 खरब डॉलर का है। यह असंतुलन दोनों देशों के हित में नहीं है।
भारत में सोशल मीडिया पर चीनी माल के खिलाफ लगातार लिखा जा रहा है। लोगों का मानना है कि भारत के लोग चीनी माल का बहिष्कार करके चीन और पाकिस्तान दोनों को एक साथ सबक सिखा सकते है। एक ऐसा दौर रहा है, जब चीनी माल के खिलाफ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अभियान चलाए गए। अलग-अलग देशों के चीनी माल के विरोध के अलग-अलग तर्क है। कई देशों के लोगों का कहना है कि चीन में तानाशाही व्यवस्था है, जहां मजदूरों का शोषण होता है। कई देशों के लोग पर्यावरण को लेकर चीन की नीतियों के खिलाफ है। कई देशों में माना जाता है कि चीन में महिलाओं और बच्चों का जीवन नारकीय है। इसका एक कारण यह है कि महिलाओं और बच्चों को बहुत कम मजदूरी पर कारखानों में काम के लिए लगा दिया जाता है। कई चीनी कारखानों का तो यह हाल है कि वहां मजदूरों को बाथरुम जाने के लिए भी छुट्टी नहीं दी जाती और वे मजदूर सेनेटरी नेप्किन पहनकर काम करते हैं। चीन के हजारों कारखानों में मजदूर बिना साप्ताहिक अवकाश के 12 से 16 घंटे रोज तक कार्य करते है। ना उनके स्वास्थ्य की चिंता की जाती है और न ही कल्याण की। इन कारखानों में दुनिया के दूसरे देशों के लोग तो दूर, खुद चीन के ही लोग निगरानी करने नहीं जा सकते।
भारत के अलावा यूएसए, यूके, रूस और जापान की अपनी समस्याएं है, जिनके कारण वहां चीनी माल के बहिष्कार की बातें उठती रहती है। भारत से लगभग तीन गुना बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन के सामने अनेक आर्थिक परेशानियां भी खड़ी हुई है। इन आर्थिक परेशानियों के चलते चीन को अपना सामान सस्ती कीमत पर निर्यात करना पड़ता है। कई बार तो चीन घाटा उठाकर भी अपना माल निर्यात करने में नहीं हिचकिचाता।
भारत में सस्ता सामान चाहने वाले लोगों की बहुतायत होने के कारण चीनी माल के बहिष्कार का कोई अच्छी परिणाम निकलेगा, यह आशा नहीं की जा सकती। चीनी उद्योगों ने भारत के कई परंपरागत उद्योगों को बंद होने पर मजबूर कर दिया है, क्योंकि वहां से जो माल आता था, उसकी लागत भारत में उत्पादित माल की कीमत में काफी कम होती थी। सोशल मीडिया पर लोगों का मानना है कि चीनी माल का इस तरह बहिष्कार करने का आव्हान तब तक कामयाब नहीं हो सकता, जब तक भारत सरकार भारत में उद्योगों को बढ़ावा देकर कम लागत पर निर्माण की व्यवस्था नहीं करा लेती।
17 oct 2016