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webdunia13march17

कई शरीफ माने जाने वाले लोग सोशल मीडिया पर गंदे ट्रोल क्यों करते हैं? क्यों किसी की मजाक उड़ाते हैं? क्यों दूसरों को नीचा दिखाते हैं? उनमें इतना साहस क्यों नहीं कि वे खुलकर अपनी बात कह सकें? वे गिरोहबंदी करके क्यों सामने आते हैं? उत्तर प्रदेश के चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का यही हाल रहा है। गुरमेहर कौर का प्रकरण देखें, तो उसमें भी लगभग ऐसा ही हुआ। कई परिपक्व लोग भी सोशल मीडिया पर भड़ास निकालते नजर आए। अगर वे लोग पूरे मामले को समझते, तो शायद इतने ट्रोल नहीं करते।

ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया पर हर आदमी जल्दबाजी में है। वह पूरा पोस्ट पढ़ता या देखता नहीं। कोई वीडियो है, तो अंत तक देखे बिना वीडियो के बारे में राय बना लेता है। बड़े-बड़े लोगों का समूह ऐसे लोगों पर भी निशाना बनाते हैं, जो आमतौर पर सोशल मीडिया में बहुत सक्रिय नहीं होते। कई बार जानी-मानी शख्सियतें भूल सुधार करने की कोशिश करती हैं, लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका होता है। कई जाने-माने खिलाड़ी और फिल्मी हस्तियां भी इस तरह की हरकत करती हैं। ट्रोल के शिकार लोगों को ब्लॉक करने की भी परंपरा सी बन गई है।

कई मशहूर लोग गुमनाम होकर सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। वे अजीबो गरीब नाम से सोशल मीडिया पर अपनी राय और टिप्पणियां लिखते हैं। इसके पीछे उनकी यह भावना भी रहती होगी कि वे अपनी असली पहचान छुपाकर रखना चाहते हो। ऐसी टिप्पणियों में सामने वालों का मजाक उड़ाने के अलावा अभद्र शब्दों तक का इस्तेमाल होता है। गलत तरीके से किसी की बात को परिभाषित किया जाता है। यह भी होता है कि किसी की बात का केवल छोटा सा हिस्सा उठाकर उसी के बहाने ट्रोल शुरू हो जाता है। शक्ल सूरत, जाति-धर्म, उम्र आदि को लेकर भी मजाक उड़ाया जाता है। यहां तक कि नाम का भी मजाक उड़ाने से नहीं चूका जाता।

सिलिकॉन वैली से लगे स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय में ट्रोल पर रिसर्च हो रहा है। रिसर्च करने वालों ने पाया कि ट्रोल करने वाले किसी खास समय में ज्यादा सक्रिय होते है। यह समय रात के दस बजे से लेकर सुबह के चार बजे तक का होता है। ऐसा लगता है कि जब लोग नींद से उठते हैं या नींद का इंतजार करते होते हैं, तब उनके भीतर की पड़पीड़क की भावनाएं तेजी से उभरती है। ऐसा तथ्य सामने आया है कि ट्रोल के लिए किसी भी व्यक्ति का मूड महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। काम की व्यस्तता के दौरान लोग ट्रोल नहीं करते। जब लोग तनाव में होते हैं, तब अपना गुुस्सा किसी भी अनजान व्यक्ति पर उतारना पसंद करते हैं। रिसर्च में यह बात भी सामने आई कि सोमवार के दिन ट्रोल ज्यादा होते हैं। इसका अर्थ यह लगाया जा सकता है कि काम के तनाव में उलझा व्यक्ति अपना गुस्सा उतारने के लिए किसी न किसी की तलाश में रहता है। जो लोग गंभीर बहस नहीं कर पाते, वे आमतौर पर ट्रोल करते हैं।

ट्रोल करने वाले गलती को महसूस करने के बाद भी उसके पक्ष में तर्क ढूंढ़ते रहते हैं। किसी गंभीर मुद्दे पर जब इस तरह की बहस भटक जाती है, तब नए आने वाले लोग भी उस बात को तर्कपूर्ण तरीके से देखने के बजाय उसी भाषा में अपनी बात कहने लगते हैं। ट्रोल को स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय ने गंभीर मुद्दा माना और रिसर्च में यह निष्कर्ष भी निकाला कि एक खराब ट्रोल पूरी बहस का रुख बदल सकता है। शोधकर्ताओं ने तो यहां तक पाया कि अगर रात में बिस्तर पर गलत जगह पर सोया हुआ व्यक्ति जागकर सोशल मीडिया पर आता है, तब उसका मूड ज्यादा उखड़ा हुआ होता है और वह कुछ भी अंट-शंट बोलने से गुरेज नहीं करता। उस वक्त वह अपने नकारात्मक व्यवहार में होता है।

शोध का उद्देश्य यह था कि सोशल मीडिया पर चर्चा के दौरान लोग अच्छे शब्दों का इस्तेमाल करें और सहयोगपूर्ण वातावरण बनाए रखे। सोशल मीडिया पर दोस्ताना माहौल किसी का मूड अच्छा करने में मददगार हो सकता है। यह भी निष्कर्ष निकला है कि अगर किसी एक मुद्दे पर अभद्र ट्रोल हो रहे हो और कोई बुद्धिमान आदमी उस चर्चा में प्रवेश करें, तो वह अपने अच्छे शब्दों से ट्रोल करने वालों को रोकने में मदद कर सकता है। ट्रोल के कारण कई लोगों का मूड खराब हो जाता है, लोग अपनी राय गलत दिशा में मोड़ लेते है और उनके मन में नकारात्मकता आने लगती है।

13 March 2017

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