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भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई जो काम कर रही हैं, अभी भले ही उसकी आलोचना हो रही हो, लेकिन उनके समर्थकों की संख्या भी कम नहीं है। समर्थकों का कहना है कि तृप्ति देसाई के काम का मूल्यांकन करने में समाज को कई साल लगेंगे। तृप्ति देसाई शनि शिंगनापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश और पूूजा के अधिकार को लेकर आंदोलन कर रही थीं और चार सौ साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए उन्होंने मंदिर में प्रवेश और पूजा की। उनके काम की सराहना करने वालों में प्रगतिशील लोगों की कमी नहीं है, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग है, जिन्हें तृप्ति देसाई का यह काम रास नहीं आ रहा है।
मई के दूसरे रविवार को मनाया जाने वाला मदर्स-डे सोशल मीडिया पर लोगों के लिए भावनाएं व्यक्त करने का जरिया बन गया। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की तरह मदर्स-डे पर भी लोगों ने अपनी भावनाएं अलग-अलग तरीके से व्यक्त की। इन भावनाओं में मां के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए लगा कि पूरी दुनिया ही एक मंच है और सभी लोगों की भावनाएं एक समान व्यक्त की जा रही हैं। तरीकों में थोड़ा बहुत अंतर जरूर देखने को मिला, लेकिन एक ऐसा बड़ा वर्ग भी था, जिसने इस दिन को मां के प्रति अपने कत्र्तव्यों के निर्वहन का दिन माना।
क्या 51 सूत्रीय सिंहस्थ घोषणा पत्र में वास्तव में कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं या यह केवल दिमागी कसरत, परम्परागत जोड़ - घटाव ही हैं? क्या ऐसे विचार महाकुम्भ से कुछ हासिल होगा या नहीं? ऐसी चिंताएं तीन दिन तक सोशल मीडिया पर छाई रहीं। उज्जैन के पास निनोरा गाँव में 12 से 14 मई तक विशाल और भव्य विचार महाकुम्भ आयोजित किया गया। विचार महाकुम्भ के आयोजन में हज़ारों लोगों ने हिस्सा लिया, जिनमें अनेक धर्मगुरुओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाल सिरीसेन और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी शामिल हुए। विचार महाकुम्भ के समापन के मौके पर जो 51 सूत्रीय सिंहस्थ घोषणापत्र जारी किया गया था उसमें तीन दिन हुई चर्चाओं का सार था।
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद तमाम सरकारी विभागों में रखी जाने वाली शिकायत एवं सुझाव पेटी की अहमियत ही खत्म हो गई है, क्योंकि शिकायत एवं सुझाव पेटी का काम अब ट्विटर करने लगा हैं। पूरी सरकार ही ट्विटर पर आए संदेशों को बेहद गंभीरता से ले रही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद ट्विटर का उपयोग कर रहे हैं और रेल मंत्री सुरेश प्रभु, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा ट्विटर संदेशों पर लिए गए एक्शन हर रोज खबरें बन रहे हैं।
मीडिया में इन दिनों दलितों की बहुत चर्चा है। पहले उज्जैन सिंहस्थ में दलित संतों का शाही स्नान, एक ट्रेनी आईएएस का अस्पताल में पलंग के हत्थे पर जूता पहनकर पाँव रखकर बातचीत करना, यूपीएससी की चयन परीक्षा में दलित छात्रा का आईएएस टॉपर बनना और अब बीजेपी के सांसद तरुण विजय पर इसलिए हमला, कि वे चकराता के पोखुरी में शिलगुर देवता मंदिर में दलितों को प्रवेश दिलाने ले गए थे।
जून शुरू होते ही सर्विस टैक्स का सेस बढ़ने और पेट्रोल-डीजल महंगे होने से लोग कहने लगे हैं कि 2 जून की रोटी कमाना-खाना महंगा और मुश्किल हो गया हैं। इसके विपरीत मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर जो विज्ञापन अभियान चलाए जा रहे है, वे साफ-साफ कहते हैं कि यह गरीबों की सरकार हैं। केन्द्र सरकार के लगभग सभी विभाग अपनी उपलब्धियों का ढिंढोरा पीट रहे हैं। बीजेपी का आईटी सेल बढ़े हुए टैक्स की तरफ से लोगों का ध्यान खींचने के लिए गरीबों की सरकार शीर्षक से अभियान चलाया है। जो काम सरकार का प्रचार-तंत्र नहीं कर पा रहा, वह पाटीa का प्रचार तंत्र कर रहा है। प्रचार यही कि मोदी सरकार गरीबों की सरकार है और उसे गरीबों की फिक्र हैं।