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मैं हाई स्वूâल के अपने हिन्दी शिक्षक श्री श्रीराम ताम्रकर को याद करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझे हिन्दी सिखाई। जिनके मार्गदर्शन में मेरा पहला लेख सिंडिकेट किया गया और मुझे ८ रुपए का पहला चेक प्राप्त हुआ।

आज मैं अपने कई पुराने दोस्तों, सहकर्मियों को याद करता हूं, जिसमें नईदुनिया के साथी स्वर्गीय शाहिद मिर्जा, श्री अमित प्रकाश सिंह, श्री सतीश जोशी, श्री राकेश त्रिवेदी, श्री राजेश बादल, श्री शिव अनुराग पटैरिया, श्री विभूति शर्मा हैं।

धर्मयुग के साथियों में श्री ओमप्रकाश, काका हरिओम, श्री अशोक कुमार, स्वर्गीय श्री राजन गांधी, श्री अवध किशोर पाठक, नवभारत टाइम्स के साथियों में श्री रामकृपाल सिंह, श्री कमर वहीद नकवी, श्री संजय पुगलिया, श्री सुमंत मिश्र, श्री सतीश मिश्र, सुश्री ज्योति शुक्ला, सुश्री मणिमाला, श्री भुरेन्द्र त्यागी, श्री अश्विनी रॉय, श्री कुमार पार्थसारथी, श्री विश्वनाथ गोकर्ण, श्री शचीन्द्र त्रिपाठी, श्री प्रकाश दुबे, श्री गंगाधर ढोबले, श्री अवधेश व्यास, श्रीमती सीमा अनंत, श्रीमती लता लाल, श्रीमती सुदर्शना द्विवेदी, श्री वैâलाश सेंगर, सुश्री जयंती रंगराजन, सुश्री लता जोशी करंदीकर, श्री अवधेश व्यास, श्री मिथिलेश सिन्हा, श्री सतीश मिश्र, श्री अनुराग त्रिपाठी, श्री विमल मिश्र, श्री अरुण दीक्षित, श्री पंकज शर्मा, श्रीमती कुमुद संघवी चावरे, श्री दिलीप चावरे, श्री संजय खाती, श्री गोविंद सिंह हैं।

मुंबई में १५ साल टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप में काम करने के बाद इंदौर में आज सभी अपने लगते हैं, लेकिन वेबदुनिया के दिनों के कई साथी आज बहुत याद आते हैं, जिनमें अधिकांश विदेश में हैं। श्री अशोक चतुर्वेदी, श्री जितेन्द्र मुछाल, श्री अमित गोयल, श्री अजीत अंजुम, सुश्री गीताश्री, श्रीमती बबिता अग्रवाल, श्री पूर्णेन्दु शुक्ला, श्री सीमांत सुबीर, श्री के.पी.एस. जादौन ऐसे सहकर्मी रहे हैं, जिन्हें कभी भुला नहीं पाऊंगा। कई नाम ऐसे भी है जिनका योगदान अमूल्य रहा, लेकिन यहां उनका नाम स्मरण नहीं हो पा रहा।

और हां नियोक्ता ही स्टॉफ मेम्बर्स की रेटिंग हमेशा करता है। यहां मैं अपने नियोक्ताओं की रेटिंग भी करना चाहूंगा। मेरा सौभाग्य रहा कि जो भी लोग मिले, बेजोड़ मिले। उनमें टाइम्स ऑ इंडिया समूह के श्री समीर जैन और चौथा संसार समूह के श्री सुरेन्द्र संघवी की तो सौ में से मौ नम्बर देना चाहूंगा। ये दोनों ही विलक्षण प्रतिभा के धनी नियोक्ता हैं। इनके साथ काम करना फक्र की बात है।

वेबदुनिया के श्री अभय छजलानी और उनके बेटे श्री विनय छजलानी का भी कभी भी उऋणी नहीं हो पाऊंगा। जिन्होंने दुनिया के सबसे पहले हिन्दी वेब पोर्टल वेबदुनिया का पहला वंâटेंट एडिटर बनाने के योग्य समझा। वेबदुनिया में ही यह बात भी जानी कि ‘वंâटेंट इज द विंâग’।

दैनिक अखबारों- नईदुनिया, नवभारत टाइम्स (मुंबई), दैनिक भास्कर, चौथा संसार सांध्य, साप्ताहिक धर्मयुग तथा वेब पत्रकारिता के बाद टीवी पत्रकारिता में भी काम करने का मौका मिला।

आज भी मैं अपने पुराने कॉलम को याद करता हूं-

नवभारत टाइम्स में करीब आठ साल तक साप्ताहिक संतभ ‘जिनकी चर्चा है’ लिखा। दैनिक भास्कर और टाइम्स ऑफ इंडिया के इंदौर प्लस में करीब तीन साल ‘एंटी कॉलम’ लिखा और चौथा संसार में सम्पादकीय के साथ ही ‘आपको जानना चाहिए’ कालम लिखा।

कॉलम लिखना अपने आप में सुखकर अनुभव रहा, क्योंकि यह सीखने की अच्छी प्रक्रिया थी। खुशी होती है कि इतने सारे दोस्त, इतने शुभचिन्तक मिले कि मैं उन्हें कभी भी नहीं भूल पाउंगा। हां, कुछ दोस्तों के नाम यहां जानबूझकर छोड़ दिए हैं, क्योंकि उनके बारे में मैं यहां जल्दी ही कुछ लिखने जा रहा हूं।

अंत में... मैंने जिन लोगों से पत्रकारिता में सीखा है, उनकी पेâहरिस्त काफी लम्बी है... लेकिन कुछ नाम ऐसे हैं, जिन्हें मैं अक्सर अपने वरिष्ठ के तौर पर पाता हूं। इनमें कुछ ऐसे नाम है, श्री आर.के. करंजिया, श्री महावीर अधिकारी, श्री नंदकिशोर नौटियाल, श्री मनमोहन सरल, श्री प्रीतिश नंदी, श्री विनोद तिवारी, श्रीमती फातिमा जकरिया, श्रीमती विमला पाटील, श्रीमती सत्या सरन, श्री मधुसूदन आनंद, श्री आलोक मेहता, श्रीमती सोहेला कपूर, श्री धीरेन्द्र अस्थाना, श्री संजय मासूम, श्री द्विजेन्द्र तिवारी, श्री रमेश निर्मल, श्री संजय निरुपम, श्री दत्तू हेगड़े, श्री मुकुल शर्मा।

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