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हर खबर, पॉजिटिव खबर होती है:

न्यूज, केवल न्यूज होती है। नेगेटिव या पॉजिटिव नहीं। सभी खबरें पॉजिटिव न्यूज ही होती हैं। मेरा मानना है कि हत्या, चोरी और बलात्कार जैसी खबरें भी अगर मीडिया में आती हैं, तो यह बताने के लिए कि हमारे समाज में पॉजीटिव लोग कम हो रहे हैं। यह एक चेतावनी होती है समाज में। अगर ५० लाख लोगों के शहर में बहुत बड़ी वारदात हो तो उसका उद्देश्य समाज को, सत्ता को, प्रशासन को चेताने का रहता है।

प्रेस की आजादी का अर्थ, मीडिया संस्थान के मालिक की ही आबादी नहीं होती:

प्रेस के मालिक कोई भी हो सकते हैं- व्यक्ति, फर्म, कम्पनी, ट्रस्ट। कोई भी, लेकिन प्रेस की आजादी सभी लोगों की आजादी का प्रतीक है। कई लोग समझते हैं कि प्रेस की आजादी, मतलब मालिक की आजादी।

वे भाषण और लेख तो बड़े अच्छे, क्रांतिकारी लिखते हैं। शोषण का विरोध करते हैं, लेकिन वे खुद बड़े शोषक बन बैठते हैं। वे समझते हैं कि मीडिया की मिल्कियत का अर्थ कानून की अवहेलना कर हक पाना। प्रेस की आजादी का अर्थ है सभी की आजादी।... और मीडिया का असली मालिक तो है उसका पाठक, दर्शक या यूजर।

एवरी थिंग इज लोकल :

अखिल भारतीय या वैश्विक जैसी धारणाएं छलावा हैं। न तो कुछ वैश्विक होता है, न ही अखिल भारतीय। यह प्यूरलिज्म (बहुक्चनवाद) का दौर है। माओ ने कहा था- हजारों पूâल खिलने दो। आज हजारों पूâल खिल रहे हैं। सबकी अपनी खूबियां हैं, अपनी-अपनी व्यवस्थाएं। हर माध्यम का अपना टीजी (यानी टारगेट ग्रुप) है और अपनी यूएसपी। ये सब मिलकर स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप बनाते हैं।

शहरी ज्यादा संवेदनशील हैं :

मैं ये महसूस करता हूं कि आज के दौर में हमारे शहरी लोग ज्यादा संवेदनशील हो गए हैं। शहर के लोगों में संवेदना प्रकट करने, सहयोग करने और तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने की क्षमता अकल्पनीय बढ़ी है।

हमारे नेता बहुत बुद्धिमान और मेहनती हैं :

टीवी और फिल्में नेताओं को चाहे जितना कोसें, उन्हें अपराधी, गुण्डा, चोर कहें- वास्तव में हमारे नेता बेहद बुद्धिमान और मेहनती हैं। इन नेताओं को हम गुण्डा कहते है, पर उनके यहां सलाम बजाने से बाज नहीं आते। पैâक्ट्री का उद्घाटन हो या घर में शादी, नेताओं का आगमन हमारे लिए गर्व का विषय होता है।

हम पुराने नेताओं को याद करते हैं और आज के नेताओं को कोसते हैं, जो गलत है। नेताओं के बिना हमारा काम हो ही नहीं सकता। सवाल है कि वे वैâसे और ज्यादा जिम्मेदार हों। अगर हमारे नेता आगे आएं तो गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अन्याय, गंदगी जैसे बीमारियां जल्दी दूर हो सकती हैं।

जो बना है, वो फना है :

अमरत्व की बात बकवास है। कोई भी अमर नहीं है। न कोई हुआ है, न होगा। क्या आपको पता है ९९ प्रतिशत व्यक्तियों को अपने दादाजी के दादाजी का नाम भी याद नहीं। हर जन्म की मृत्यु तय है। हर निर्माण को बर्बाद होना है। वक्त के वूâड़ेदान में पूâल हों या कांटे, सभी को जाना है। जो भी है, बस यही एक पल है।

किसी के भी प्रवचन सुनना खुद को मूर्ख साबित करना है :

प्रवचन के नाम पर क्या होता है- धूर्तता, छलावा, व्यभिचार और लूट। आप खुद ही आपके सबसे बड़े गुरु हैं। आपको किसी के मार्गदर्शन की जरुरत नहीं। कम से कम धर्म के नाम पर तो बिल्कुल नहीं। हमारे धर्मगुरु जनता को लूट-लूटकर अरबों रुपए के ब्रांड बन बैठे हैं। ये धर्मगुरु हमें रोज डराते हैं, जबकि हमें साहस की जरुरत है।

केवल प्रकृति ही ईश्वर है :

ईश्वर है तो उसका नाम, काम, रूप, रंग, विज्ञान- सबकुछ प्रकृति है। प्रकृति से बड़ा जादूगर कोई नहीं। उससे बलशाली कोई नहीं। उससे बड़ा चिकित्सक, मार्गदर्शक, वैज्ञानिक कोई नहीं। प्रकृति ही है, जो हमारी राहें रोशन, सुरमयी, सुगन्धित, ऊर्जावान और चलायमान हैं। प्रकृति की हर रचना स्वस्पूâर्त परिवर्तनीय है। प्रकृति की कोई भी रचना निरुद्देश्य नहीं।

दुनिया रोज और बेहतर हो रही है :

आपका धन्यवाद, आप यहां तक आए। आखिरी बात, मुझे लगता है कि पूरी दुनिया हर रोज पहले से बेहतर होती जा रही है और इसका श्रेय लोगों को मिलना चाहिए। आज हम मूक जानवरों तक के कल्याण पर सोचते हैं और काम करते हैं।

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