mf-husain

मकबूल फिदा हुसेन कला जगत के शोमैन हैं। ऐसे कलाकार, जिनका काम तो हमेशा चर्चा में रहता ही है, वे खुद उससे ज्यादा चर्चाओं में रहते है। लाखों रूपयों में अपनी चित्रकृतियां बेचनेवाले हुसेन के पिता इन्दौर की एक मिल में टाइमकीपर थे। अपनी आजीविका के लिए हुसेन ने कभी सिनेमा के होर्डिंग्स और बच्चों के फर्नीचर की डिजाइन बनाने का काम करीब दस साल तक किया।

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jagmohan

जगमोहन को दिल्ली विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के रूप में ‘मास्टर प्लानर’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने दिल्ली को सलीके से बसाने के लिए कई काम किए हैं। नगर नियोजन पर उनकी चार किताबें भी छपी है। ये किताबें हैं ‘आईलैण्ड ऑफ टुथ’, ‘द तैलैन्ज ऑफ अवर सिटीज’, ‘रिबिल्डिंग शाहजहांनाबाद’ और ‘द वाल्ड सिटी आफ डेल्ही।’

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ram

राम विलास पासवान जितने वोटों से चुनाव में जीते थे, उतने वोटों से तो कभी नेहरू या इंदिरा गांधी भी नहीं जीती। राम विलास पासवान हरिजनों के प्रिय नेता हैं और मंडल आयोग की सिफारिशें लागू करवा कर वे जगजीवन राम का उत्तराघिकारी बनने की तैयारी कर रहे हैं।

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sharad

पंवार को पार्टी तोड़ने और बनाने का अच्छा अनुभव है। अगर इस कार्य के लिए कोई विश्वविद्यालय डिग्री देता तो वे ‘डॉक्टरेट’ के पात्र होते। मौके का फायदा वैâसे उठाया जाता है ‘इसके श्रेष्ठतम उदाहरण शरद पंवार ने पेश किए हैं। वे जानते हैं कि अफवाहों की शुरूआत वैâसे की जाती है और उनसे फायदे किस तरह उठाए जाते है। वे ‘परपेâक्ट प्रोपेâशनल राजनीतिज्ञ’ है।

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maradon

अर्जेण्टीना में मेराडोना की राष्ट्रपति के बाद सबसे ज्यादा इज्जत है। लेकिन वे कोई खास हैंडसम नहीं है। हाल में इटली के एक अखबार ने 18 से 30 के बीच की युवतियों की पसंद पूछी तो मेराडोना का नाम अंतिम था। मेराडोना के पास आज सब कुछ है। अर्जेण्टीना और इटली में उनके मीलों में पैâले हुए मकान है। कारों के काफिले, निजी जेट विमान है। मेराडोना की दो बेटियां है, जिनके जन्म के काफी समय बाद उन्होंने ब्याह रचाया।

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chandraजनता पार्टी के अध्यक्ष चन्द्रशेखर, सपनों में जीने वाले ऐसे नेता है, जिनके पांव जमीन पर भी है। वे कल्पनाशील, मृदुभाषी अच्छे वक्ता और परिश्रमी नेता है। वे आदर्शवादी है और अपनी सीमाओं से वाकिफ है। जनता पार्टी के भीतर और बाहर उनके दोस्त बहुत कम है। एक जमाना था, जब वे धूमकेतू थे और इंदिरा गांधी उनकी चमक से परेशान थी।

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saddam

सद्दाम हुसैन ऐसे नेता है जो साहसी तो है, लेकिन षडयंत्रकारी भी। वे बुद्धिमान है, लेकिन व्रुâर भी है। लड़ाई के तौर-तरीकों का ज्ञान उन्हें अच्छा है, लेकिन ईरान से इतनी लम्बी लड़ाई लड़कर, पांच लाख लोगों को मरवाकर और खरबों के नुकसान के बाद उन्होंने क्या पा लिया? सद्दाम हुसैन का एक ही सपना लगता है कि पूरी मुस्लिम दुनिया में इराक का नाम अव्वल रहे और वैâसे केवल उनकी तूती बोले।

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pranab

पहले प्रणव मुखर्जी को मंत्रिमंडल से हटाया गया। फिर उन्हें कांग्रेस संसदीय दल से अलग किया गया। फिर उन्हें कांग्रेस कार्यसमिति से निकाला गया। अब उनकी जान पर खतरा मंडरा रहा है। कभी उनके घर में बम पूâटता है, कभी उनकी पत्नी की कार चुराई जाती है। धमकी भरे पत्रों ओर टेलीफोनों का सिलसिला तो चल ही रहा है। इस सबसे दुखी होकर प्रणव मुखर्जी, गुण्ड राव ओर जगन्नाथ मिश्र जैसे असंतुष्टों को लेकर कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने के मूड में थे। मगर अब मामला टांय-टांय फिस्स हो गया लगता है।

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karan

दून स्वूâल के भूतपूर्व छात्र, कश्मीर के सदरे रियासत, कवि, लेखक, गायक और विविध भाषाओं के जानकार कर्ण सिंह, उस समय राजनीतिक पटल के हाशिए पर चले गए जब इंदिरा गांधी दोबारा सत्तासीन हुई। अब उन्हें अमेरिका में भारत का राजदूत का पद मिला है। देखें वहां वे भारत की छवि कितनी मजबूत कर पाते है।

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khushwant

जॉनी वॉकर स्कॉच के विज्ञापन का एक मशहूर वाक्य है - ‘बोर्न इन 1915 एंड स्टिल गोइंग स्ट्रांग’। यह बात सरदार खुशवन्त सिंह पर खरी उतरती है। 71 वर्षीय सरदारजी का ‘बल्ब और बोतल’ कालम दुर्भावनाओं और सदभावनाओं सहित अब भी लोकप्रिय है। उनका बल्ब बूझा नहीं, कागज का बंडल खत्म नहीं हुआ और स्कॉच की बोतल सूखी नहीं। मजेदार बात यह कह रही कि पिछले सोमवार को ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने उनके बारे में जो संपादकीय छापा वह उनके कालम की ही तरह जगह-जगह छपा और चिर्चित रहा।

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ashok-bajpai

अशोक वाजपेयी ने मध्य प्रदेश जैसे राज्य में रहते हुए भी यह व्यवस्था करा ली थी कि संस्कृति का पूरा-पूरा उत्थान हो। और ऐसे हो, जैसे वे चाहें। कई मुख्यमंत्री आए और गए। पार्टियों की सरकार आई और गई। लेकिन अशोक वाजपेयी की बोतल ने सबको समेट लिया।

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arun neharu

प्रधानमंत्री कई मामलों में अपने विचार बदल रहे हैं। ओर अब शायद सलाहकार भी। अब अरूण नेहरू वे अरूण नेहरू नहीं है, जो कांग्रेस में दूसरे नंबर के नेता थे। अब अरूण नेहरू के अधिकार काफी कम हो गए हैं और प्रधानमंत्री उन्हें वैसा महत्व नहीं दे रहे है, जैसा पहले दिया करते थे।

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