भारत के फार्मा सेक्टर को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अहसानमंद होना चाहिए कि उन्होंने दुनिया की निगाहों में भारतीय फार्मा सेक्टर की महत्ता बार-बार बताई। यह काम करोड़ों डॉलर के खर्च के बाद भी संभव नहीं हो पाता। भारत विश्व में हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। भारत तकरीबन 400 करोड़ की हाइड्रॉक्सोक्लोरोक्वीन का निर्यात भी करता है। भारत में मुख्यतः इसे इप्का और कैडिला लैब बनाती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार की रात ट्विटर पोस्ट में लिखा- ''रविवार को फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यू-ट्यूब को अलविदा की सोची। इस बारे में अवगत कराता रहूँगा।'' उन्होंने यह नहीं लिखा था की मैं सोशल मीडिया के ये प्लेटफार्म छोड़ रहा हूँ या छोड़ने वाला हूँ। घंटेभर के भीतर ही इस एक ट्वीट पर 50,000+ लोगों ने कमेंट किये, 25,200+ ने रिट्वीट किया, 76,400 ने लाइक्स किया। मैंने देखा कि सोमवार रात तक ट्विटर पर मोदी के 5 करोड़ 33 लाख फ़ॉलोअर्स हैं। उनका फेसबुक पेज चेक किया तो पाया कि उन्हें 4 करोड़ 47 लाख से ज़्यादा लोग फॉलो करते हैं। इंस्टाग्राम पर 3 करोड़ 52 लाख प्लस फ़ॉलोअर्स हैं और यूट्यूब पर सब्सक्राइबर्स की संख्या 4 करोड़ 51 लाख से अधिक है I उनके नाम पर दर्ज़नों फर्जी अकाउंट भी हैं। सोशल मीडिया से दूरी बनाने के नरेंद्र मोदी के ट्वीट के बाद ट्विटर पर नो सर हैशटैग चल निकला। मोदी के प्रमुख विरोधी माने जाने वाले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सलाह दी कि मोदी सोशल मीडिया से दूरी न बनाएं।
गली ब्वॉय ने ठीक ही गाया था - 'क्या घंटा लेकर जायेगा?' फिल्मफेयर ने गली ब्वॉय की मान ली। वही मिला मनोज मुन्तशिर को।
फिल्म : केसरी 1897 में 'ब्रिटिश भारतीय सेना' की 36वीं सिख रेजीमेंट के 21 बहा
दुर सैनिकों की लड़ाई की कहानी है जो उन्होंने सारागढ़ी में करीब दस हज़ार हमलावरों से लड़ी थी। इसे सारागढ़ी की लड़ाई भी कहते हैं। सेना दे 21 बहादुर जवानों की टुकड़ी का नेतृत्व कर रहे हवलदार ईशर सिंह ने मृत्युपर्यन्त युद्ध करने का निर्णय लिया। इसे सैन्य इतिहास में इतिहास के सबसे बड़े अन्त वाले युद्धों में से एक माना जाता है।
संदर्भ : जवाहरलाल नेहरू की वसीयत का अंश - "मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठी भर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समुंदर में जा मिले। लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दिया जाए। वह खेत जहां हज़ारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर हिस्सा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए."
गीत : अब आप जरा जवाहरलाल नेहरू की वसीयत और केसरी फिल्म के गाने के बोल की तुलना करें। खास बात यह है कि इस गाने में वतन को भारत माता नहीं कहा गया है, बल्कि वतन की तुलना महबूब से की गई है। जब भी मैं यह गाना सुनता हूँ तो रोमांचित हो उठता हूँ।
अगर आप 1990 और 2020 के दो प्रेमी जोड़ों की टेंशन अपने सिर में डाउनलोड करना चाहते हैं, तो वेलेंटाइन्स डे पर यह कर सकते हैं। यह फिल्म ऐसे युवक-युवती की कहानी है, जो युवावस्था में केवल मस्ती और संभावनाओं को एक्सप्लोर करना चाहते हैं। जो लोग यह मानते हैं कि प्यार दिल से करना चाहिए, लेकिन शादी दिमाग के अनुसार। जिंदगी में पैसा कमाना बहुत जरूरी है और वास्तव में ज्यादा पास आना, असल में दूर जाना होता है। यह पीढ़ी समझती है कि प्यार में सीरियस होना कोई अच्छी बात नहीं है। इस तरह दो पीढ़ियों के दो युगल की कहानी एक साथ चलती रहती है। एक फ्लैशबैक में है और दूसरी रियल टाइम में। वेलेंटाइन्स डे के अवसर को भुनाने में जुटे बाजार की भीड़ में इम्तियाज अली की यह फिल्म भी शामिल हो गई।
फिल्म मलंग फिल्म प्रमाणन बोर्ड के नए डिजाइन के प्रमाण पत्र के साथ शुरू होती है, जिसमें अक्षय कुमार और नंदू के सेनेटरी पैड के विज्ञापन के बाद कबीर की दो लाइन स्क्रीन पर आती है - ‘नींद निशानी मौत की, जाग कबीरा जाग और रसायन छांड़िके, नाम रसायन लाग।’ मलंग फिल्म बनाने वाले ने मलंग का अर्थ समझ लिया है टोटल गैरजिम्मेदार आदमी, जो केवल अपनी मस्ती के लिए ही जीता है। न वह अपना सोचता है, न परिवार का, न समाज का और देश या इंसानियत के बारे में तो सोचने की कोई बात ही नहीं।
फेसबुक 16 साल का हो गया। उसके संस्थापक मार्क जकरबर्ग कहते हैं कि सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवां स्तम्भ है। जकरबर्ग का दावा सही है या गलत यह तो अभी भी विवादों में ही है, लेकिन यह तय है कि फेसबुक अब सोशल मीडिया का प्लेटफार्म भर नहीं रह गया है, बल्कि इससे अधिक एक ऐसी दैत्याकार कार्पोरेट शक्ति बन गया है, जो कई सरकारों की भी नहीं सुनता। सोशल मीडिया का उपयोग देशों की सीमाओं के बाहर धूर्त राजनेता अपने-अपने हिसाब से करते आ रहे है।
पंगा फिल्म का नाम वापसी या कमबैक होना चाहिए था। कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की महिला खिलाड़ी शादी और एक बच्चे को जन्म देने के 7 साल बाद वापस कबड्डी की राष्ट्रीय टीम में आने के लिए संघर्ष करती हैं। पति साथ है, बेटा साथ है, मां साथ है, दोस्त साथ है। ऑफिस के लोग भी कमोबेश साथ है, तो इसमें पंगा लेने की क्या बात है। पति और बेटे को भोपाल में छोड़कर मुंबई और कोलकाता में कबड्डी खेलने जाना कोई पहाड़ तोड़ना नहीं है। अब अगर कोई ऐसे में घर में सहायक की नियुक्ति न करें, मां की मदद न लें और रोना रोते रहे कि मैं एक मां हूं और मां के कोई सपने नहीं होते, तो यह मूडता है। वैसी ही मूडता जैसी फिल्म में नायिका और उसका परिवार कार होते हुए भी स्कूटर पर बैठकर शॉपिंग करने जाता है। शादी और बच्चा होने के बाद नेशनल टीम में भले ही न खेलें, लेकिन खुद को फिट रखने से कौन किसी को रोकता है। कहानी में यही सब झोल है। वरना फिल्म में अच्छी एक्टिंग है और पारिवारिक कहानी है।
में शायरी का चलन बहुत लोकप्रिय है। यह उर्दू कविता का एक रूप है। भारत और पाकिस्तान में हज़ारों लोकप्रिय शायर हुए हैं। ग़ज़ल अरबी साहित्य की विधा थी, लेकिन उसे फारसी, उर्दू, हिन्दी और नेपाली ने भी अपना लिया। ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है।
ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते हैं और अंतिम शेर को मक़्ता। ग़ज़ल जिस धुन या तर्ज़ पर होती है उसे बहर कहा जाता है और आखिरी शेर मक़्ता कहलाता है। शेर के बहुवचन को अशआर कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम जोड़ देता है ग़ज़ल में शेर एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। कभी-कभी एक से अधिक शेर मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शेर कता बंद कहलाते हैं।
मध्यप्रदेश के इंदौर और भोपाल शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने की बातें तो कई बार हुई है, लेकिन वह सारी कवायद ब्यूरोक्रेसी में ही उलझ कर रह गई है। इसी बीच उत्तरप्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने लखनऊ और गौतमबुद्ध नगर यानी नोएडा में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने के लिए फैसला कर लिया।
देश में अभी 15 राज्यों के 71 शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू है। उत्तरप्रदेश में करीब 50 वर्षों से पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू करने पर चर्चा चल रही थी। सरकार का तर्क है कि इसे लागू करने से लखनऊ और नोएडा की कानून और व्यवस्था की स्थिति अच्छी होगी। अपराधियों पर नियंत्रण करना आसान होगा और फैसलों में तेजी आएगी। वास्तव में पुलिस कमिश्नर प्रणाली अंग्रेजों के ज़माने की देन है। आजादी के बाद भी मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में यही प्रणाली लागू थी।
मध्यप्रदेश में तो सरकार ने छपाक को टैक्स फ्री भी कर दिया है। वास्तव में छपाक दर्शनीय फिल्म है। इसलिए नहीं कि यह एसिड अटैक पर आधारित है, बल्कि इसलिए की इसमें अन्याय के विरुद्ध लड़ने की कोशिश करने वालों की जीत की कहानी है। फिल्म बताती है कि दुनिया में सबकुछ बुरा ही बुरा नहीं हो रहा है। न्याय व्यवस्था के प्रति यह फिल्म आस्था जगाती है कि देर से ही सही पर न्याय के लिए लड़ा जरूर जाना चाहिए। एसिड अटैक के बहाने इसमें समाज में महिलाओं के प्रति बदले की भावना, समाज के सकारात्मक सोच वाले लोगों की पहल और जातिगत हिंसा को भी छूने की कोशिश की गई है। कहानी के खलनायक की जाति से संबंधित दुष्प्रचार भी झूठा साबित होता है। किसी वर्ग की जाति या धर्म छुपाने की कोशिश नहीं की गई है।
आर्थिक जगत में डॉ. भीमराव आम्बेडकर के योगदान को हमेशा कमतर आंका गया है। डॉ. आम्बेडकर का कद इतना बड़ा था कि उसका आकलन छोटी बात नहीं है। आमतौर पर जन-जन में उनकी छवि संविधान निर्माता और युगांतरकारी नेता के रूप में ही प्रमुखता से रही है। अर्थ जगत में डॉ. आम्बेडकर के योगदान की चर्चा कम ही होती है। डॉ. आम्बेडकर ने विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, शिक्षाविद, चिंतक, धर्मशास्त्री, पत्रकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि अनेक रूपों में अहम योगदान दिया है। आज़ादी के बाद अगर उन्हें समय मिलता तो निश्चित ही अर्थशास्त्री के रूप में उनकी सेवाओं का लाभ दुनिया ले पाती। भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना में डॉ. आम्बेडकर का योगदान अहम है।
फिल्म गुड न्यूज ऐसे वयस्कों के लिए है, जिन्होंने विकी डोनर और बधाई हो जैसी फिल्में पसंद की है। यह विकी डोनर से आगे की कहानी है, जिसमें कॉमेडी और इमोशन का कॉकटेल है। भारत में गुड न्यूज का अर्थ एक ही बात से लिया जाता है और वहीं इस कहानी के केन्द्र में है। कॉमेडी से शुरू हुई फिल्म धीरे-धीरे ऐसे गंभीर और भावनात्मक मोड पर पहुंच जाती है, जब दर्शक भावुक हो जाते है। आज से 20 साल पहले हिन्दी में इस तरह की फिल्मों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
दबंग-3 सलमान खान की फॉर्मूला फिल्म है, जिसमें सलमान खान, सलमान खान कम और रजनीकांत ज्यादा नजर आए। एक्शन और फाइट के सीन दक्षिण भारतीय फिल्मों की तरह है। यह दबंग की फ्रेंचाइजी है, तो जाहिर है कि सलमान खान टाइप फिल्म ही होगी और वैसी है भी। या तो यह फिल्म आपको बेहद पकाऊ लगेगी या बेहद मनोरंजक। आपके बुद्धि के स्तर की परीक्षा लेती है यह फिल्म। फिल्म का एक संवाद है कि भलाई और बुराई की लड़ाई में बुराई हमेशा जीत जाती है, क्योंकि भलाई के पास इतना कमीनापन नहीं होता कि वह लड़ सकें। सलमान और सोनाक्षी के अलावा इसमें महेश मांजरेकर की बेटी सई मांजरेकर की भी बड़ी भूमिका है। दबंग-3 में भी चुलबुल पांडे उर्फ रॉबिनहुड पांडे उर्फ करू के रोल में सलमान खान और फिलर के रूप में सोनाक्षी सिन्हा के घीसे-पीटे संवाद है। इसका फॉर्मूला थोड़ा बदला गया है और कहानी में थोड़ा टि्वस्ट भी है। मुन्नी बदनाम की जगह, मुन्ना बदनाम हुआ, नैना वाले गाने, आइटम और फाइटिंग के दृश्य है।
डिस्क्लैमर : किसी साहसी महिला को मर्दानी कहना उसकी प्रशंसा नहीं, एक लिंगभेदी टिप्पणी है। उसे प्रशंसा के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। इंदिरा गांधी के बारे में किसी ने कहा था कि उस दौर की राजनीति में वे इकलौती मर्द थीं। वास्तव में उन्हें लौह महिला या आयरन लेडी कहना उचित होता।
मर्दानी-2 फिल्म 2014 में आई मर्दानी की अगली कड़ी है। यह एक जांबाज आईपीएस अधिकारी की कहानी है, जो कोटा में एसपी हैं और उसे एक साइको किलर ने चुनौती दे रखी है कि अगर दम है, तो मुझे पकड़कर दिखा। इस फिल्म में पुलिस अधिकारी बनी रानी मुखर्जी का साबका एक ऐसे अपराधी से होता है, जो महिलाओं के प्रति क्रूरतम अपराध करता है और इसके साथ ही पुलिस को चुनौती देता जाता है।
करीब 259 साल पहले 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठा योद्धाओं और अफगानिस्तान की सेना के बीच हुई तीसरी बड़ी लड़ाई को आशुतोष गोवारीकर ने अपने अंदाज में फिल्माया है। इतिहास के इस बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक दौर को फिल्माने के लिए निर्देशक ने रचनात्मक स्वतंत्रता खुद ही ले ली है। पानीपत में संजय दत्त ने अहमद शाह अब्दाली - दुर्रानी (1722 से 1772) का चित्रण किया है। उसे अफगानिस्तान में हीरो की तरह माना जाता है। भारत में अब्दाली को आने से रोकने के लिए पुणे से पेशवा राजा ने अपनी सेना भेजी थी, ताकि अफगानिस्तान की फौजें भारत में कब्जा न कर पाएं। लगान, स्वदेश, जोधा-अकबर आदि फिल्में बनाने वाले गोवारीकर ने फिल्म के ऐतिहासिक संदर्भों को दिखाने के साथ-साथ भारत में राजाओं के आपसी विवादों को भी दिखाने की कोशिश की है। संजय दत्त ने जिस अहमद खान अब्दाली का रोल किया है, उसे 25 साल की उम्र में ही सर्वसम्मति से अफगानिस्तान का राजा चुना गया था। अब्दाली को वहां के लोग विनम्रता और बहादुरी के लिए पहचानते है। उसे दुर-ए-दुर्रान का खिताब दिया गया था, जिस कारण उसका नाम दुर्रानी भी पड़ा।
लगता है कि राजनीति में खासकर चुनावी राजनीति में अब विचारधारा हाशिये पर चली गई है, जो लोग कभी सहयोगी होते थे, अब विरोधी हो जाते हैं, जो कभी विरोधी थे, सहयोगी होने लगे। महाराष्ट्र में जिस तरह कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की मदद से शिवसेना के उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने हैं, वहां शिवसेना कभी कांग्रेस की सबसे बड़ी विरोधी हुआ करती थी। शिवसेना करीब तीन दशकों से भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी पार्टी के रूप में चुनाव लड़ रही थी, लेकिन अब उसके नेता राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के सहयोग से सरकार चला रहे हैं। महाराष्ट्र की सियासत चल ही रही थी कि एक ऐसा ही अजूबा गोवा में देखने को मिला। गोवा के मारगो में महापौर के लिए तीन पार्टियां मैदान में थी। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी, भाजपा और कांग्रेस। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी एनडीए में है और भाजपा की सहयोगी पार्टी है, लेकिन मार्गो के महापौर चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मिलकर अपने संयुक्त उम्मीदवार डोरिस टेक्सेरिया का समर्थन किया। गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के उम्मीदवार पूना नायक थे। मारगो नगर निगम में भाजपा की 7 सीटें हैं और कांग्रेस की 6, जबकि गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के 11 सदस्य जीते हैं। 25 सदस्यीय परिषद में गोवा फॉर्वर्ड पार्टी के उम्मीदवार की जीत हुई। गत 22 नवंबर को यह अजूबा हुआ, जब महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल अपने शीर्ष पर थी।
फिल्म होटल मुंबई इसलिए देखनीय है कि इसमें 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुई आतंकवादी हमले का एक हिस्सा बेहद यथार्थ रूप में दिखाया गया है। यह पूरी फिल्म बंबई पर हुए हमले के बजाय ताज होटल पर हुए हमले और वहां के बचाव कार्यक्रम पर केन्द्रित है। फिल्म का हर दृश्य दहशत से भरा हुआ है और दर्शक चौकन्ना होकर सीट पर चिपका रहता है। आतंकियों के मनोविज्ञान और ताज होटल में बंधक बने करीब 1700 अतिथियों और कर्मचारियों की आपबीती का अंदाज इस फिल्म को देखकर होता है। यह भी समझ में आता है कि टीवी मीडिया ने किस तरह आतंकवादियों और उनके सरगनाओं की मदद की, क्योंकि टीवी पर लाइव कवरेज देखते हुए आतंकियों का सरगना दिशा-निर्देश देता रहा।
पागलपंती फिल्म देखना वैसे ही है जैसे कि किसी बेवकूफी का ऐप डाउनलोड करना। मल्टी स्टारर पागलपंती के निर्देशक इसके पहले नो एंट्री, वेलकम, सिंग इज किंग, भूल भुलैइया, रेडी, मुबारका जैसी फिल्में बना चुके हैं, लेकिन पागलपंती में पागलपंती थोड़ी ज्यादा ही हो गई है। जॉन अब्राहम, अनिल कपूर, अरशद वारसी, पुल्कित सम्राट, सौरभ शुक्ला, कृति खरबंदा, उर्वशा रौतेला, इलियाना डिक्रूज जैसे अनेक कलाकारों के होते हुए भी फिल्म अतिरेक की शिकार हो गई है। ओवरएक्टिंग और हंसाने की जबरदस्ती कोशिश मजा किरकिरा कर देती है। इस फिल्म की कहानी और निर्देशन है अनीज बज्मी का। फिल्म में मुकेश तिवारी और डॉली बिंद्रा के भी छोटे-छोटे रोल है, लेकिन कोई भी फिल्म को बहुत प्रभावित नहीं कर पाया।
केन्द्र सरकार जश्न के लिए हवेली की नीलामी करने जा रही है। भारत की नवरत्न कंपनियों में से एक भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) का विनिवेश करने का फैसला कुछ इसी तरह का है। बीपीसीएल में भारत सरकार का 53.23 प्रतिशत हिस्सा है और सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी किसी और को सौंपने जा रही है। यह देश की दूसरी सबसे बड़ी तेल कंपनी है। विनिवेश के बाद सरकार का नियंत्रण इस कंपनी से हट जाएगा।
हे प्रभु, मुझे माफ़ कर, मैंने मरजाँवा फ़िल्म देख ली!
(तत्काल लिखने की हिम्मत नहीं हुई!)
मुझे पागल कुत्ते ने नहीं काटा था, लेकिन फिर भी मैं मरजाँवा फिल्म देखने के लिए चला गया। आप किसी भी कारण से यह फिल्म देखने का जोखिम मत उठाइए। महाबकवास है!
जो रोल अमिताभ बच्चन को मिलना चाहिए, वह अवतार गिल को मिल जाए, तो क्या होगा? अगर अमिताभ को दीवार और शोले की जगह अवतार में प्रमुख भूमिका निभानी होगी तो क्या होगा? यह हेयर लॉस नहीं आइडेंडिटी का ही लॉस हो जाएगा। पिछले हफ्ते ही फिल्म आई थी उजड़ा चमन और इस शुक्रवार को लगी है बाला। दोनों ही फिल्मों का विषय एक है। जवानी में गंजे होते युवाओं की समस्या। बाला ने उजड़ा चमन को बहुत पीछे छोड़ दिया है, क्योंकि इसमें कहानी और चरित्रों की प्रस्तुती इस तरह की गई है कि वह दिलचस्प और विचारोत्तेजक लगती है। उजड़ा चमन देखते हुए गिरते बालों की समस्या से परेशान व्यक्ति को खीज होने लगती है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने जैसे पात्र का उपहाश बर्दाश्त नहीं कर सकता। बाला में इसी बात को संजीदगी से प्रस्तुत किया गया है। उजड़ा चमन में गंजे होते युवा और रश्त-पुश्त होती युवती की कहानी थी। इसमें एक सुंदर युवती और गंजे होते युवक के साथ ही एक श्याम वर्ण युवती की कहानी भी जोड़ दी गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन और जापान को सबक सिखा सकते हैं, लेकिन लश्कर-ए-नोएडा को नहीं। भारत में आरसीईपी यानी रीजनल कम्प्रेहेन्सिव इकॉनामिक पार्टनरशिप में शामिल होने से इनकार किया, वह तो देशहित में ही है, लेकिन फिर भी मीडिया का एक प्रमुख वर्ग जिसे लश्कर-ए-नोएडा कहा जाने लगा है, सरकार के फैसले के खिलाफ आग उगल रहा है। अब भी अगर यह स्थिति है, तो सोचिए कि समझौते में शामिल होने के बाद क्या स्थिति होती ? तब यही लश्कर-ए-नोएडा आरोप लगाता कि मोदी सरकार ने राष्ट्रीय हितों को बेच दिया है और उसे देश के किसानों, मजदूरों, छोटे व्यापारियों और उद्योगों की कोई चिंता नहीं है। अब यह वर्ग कहना लगा है कि समझौते से अलग हटने के कारण यह बात साफ हो गई है कि भारत की अर्थव्यवस्था कमज़ोर स्थिति में है। यह भी कहा जा रहा है कि अगर भारत इस समझौते में शामिल होता, तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य पाना आसान हो जाता है। इसका मतलब यह कि चित भी हमारी और पट भी हमारी।
दूसरे नरेन्द्र मोदी!
वास्तव में दो नरेन्द्र मोदी हैं। एक भाजपा के नेता हैं और दूसरे भारत के प्रधानमंत्री! आप भाजपा नेता से घोर असहमत हो सकते हैं। लेकिन शायद प्रधानमंत्री मोदी से नहीं। बैंकाक में आरसीईपी कई बैठक में प्रधानमंत्री मोदी गए थे, वहां उन्होंने जो कहा भारत ने कहा, भारत की ओर से कहा और बेशक़ भारत के लिए कहा।
2012 से चीन, जापान, आस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, सिंगापुर और आसियान के दस देशों सहित कुल 16 देश मुक्त कारोबार करनेवाले देशों का संगठन बनाना चाहते थे। मुक्त व्यापार यानी बेरोकटोक आयात और निर्यात! भारत भी उस चर्चा में शामिल होता था।
दिलों की बात करता है जमाना, लेकिन मोहब्बत अब भी चेहरे से ही शुरू होती है। चेहरे और शरीर की बनावट को लेकर बनी उजड़ा चमन फिल्म में सब कुछ साधारण है। अभिनय, निर्देशन, गीत-संगीत, छायांकन, सभी कुछ औसत दर्जे का। इस कारण फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में सफल नहीं हो पाई। दो घंटे की फिल्म भी लंबी लगने लगती है। कहां लिखा है कि गोरा होना अच्छा है और सांवला होना अच्छा नहीं। यह भी कहां लिखा है कि बाल वाले ज्यादा हैंडसम लगते है और गंजे हैंडसम नहीं लगते। यह भी कहीं नहीं लिखा कि अच्छा डीलडौल होना कोई बड़ी अयोग्यता है, लेकिन फिर भी समाज में ये सब चलता रहता है।
मीडिया पर सेलेब्रिटी का आतंक इतना ज्यादा हो गया है कि वह आम आदमी से दूर भाग रहा है!उसे एक तरह का फ़ोबिया हो गया है। आम आदमी की ख़बरें ग़ायब; राजनीति, कूटनीति, अर्थ जगत, जेंडर से जुड़े विषय, विषमताओं समाचार लुप्त; संस्कृति,शिक्षा और ज्ञान-विज्ञान से जुड़े तमाम मुद्दों और विचारों का स्पेस अब केवल और केवल सेलेब्रिटी से भरा जा रहा है, वह भी उन सेलेब्रिटीज़ के बहाने, जिन्हें शायद ही कोई पूछता हो! हमारे दिमाग़ को कूड़ाघर समझ रखा है?
ताजमहल बहुत सुंदर है, हमने सुना है, उसे देखा नहीं। हवाई जहाज में बैठने में बहुत मजा आता है, हमने सुना है पर हम कभी हवाई जहाज में नहीं बैठे। समंदर में बहुत ज्यादा पानी होता है, हमने सुना है पर हमने उसे देखा नहीं, लेकिन हमारे बच्चे यह सब देखेंगे। हमारी बेटियों के नाखूनों पर गोबर लगा है, लेकिन वहां भी कभी नेल पॉलिश लगेगी। यही मूल स्वर है सांड की आंख फिल्म का। जेंडर इक्वेलिटी पर बनी यह फिल्म अतिनाटकीय है। फिल्म मन को छूं जाती है और छोटी-मोटी कमियों को भुला दें, तो यह एक शानदार फिल्म है।
पत्रकार के रूप में मुंबई में करीब डेढ़ दशक बिताने के बाद महाराष्ट्र चुनाव के बारे में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि :
1. राज ठाकरे और मनसे का कोई भविष्य महाराष्ट्र में नहीं बचा है।
2. भाजपा की सीटें गत चुनाव से कम हुई हैं और शिव सेना की बढ़ी हैं इससे शिव सेना अब ज्यादा और महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो के लिए दावा करेगी।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न दिलाने का मुद्दा घोषणा पत्र में लिखे जाने के बाद सावरकर पर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जिसने दो-दो बार काला पानी की सजा पाई हो। दोनों बार यह सजा आजीवन मिली थी। न ही इतिहास में कोई ऐसा स्वाधीनता सेनानी दर्ज़ है, जिसके परिवार की संपत्ति अंग्रेज़ों ने 6-6 बार कुर्क की हो और न ही इतिहास में कोई ऐसा स्वाधीनता सेनानी दर्ज़ है, जिसमें एक ही परिवार के दो भाइयों को एक ही जेल में रखा गया हो और वे 12 साल तक एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देख पाए हों। जो बलिदानी भारत माता के लिए अंडमान की जेल में कोल्हू के बैल की तरह 10 साल तक जुटा रहा, जिसने जेल की दीवारों पर भारत माता की स्मृति में नाखून और पत्थर से कविताएं लिखी, जो बलिदानी अपने जीवन के महत्वपूर्ण 26 साल जेल में बिताने पर भी उद्वेलित नहीं हुआ, जिस क्रांतिकारी ने जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी, अंधविश्वासों के खिलाफ युद्ध किया। जिसने हमेशा साहित्य, भारतीयता और मातृभूमि की रक्षा को बल दिया, जिसने पढ़ाई करने के बाद भी बैरिस्टर की डिग्री इसलिए नहीं ली कि उन्हें इसके लिए ब्रिटेन की महारानी के नाम पर शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करने थे और उन्होंने इससे इनकार कर दिया था।
एक दौर था जब देश धर्म के आधार पर चला करते थे। फिर राजतंत्र आया। उसके बाद साम्यवाद, पूंजीवाद आदि की अवधारणाएं आई। यह माना जाने लगा कि सरकारें देश चलाती हैं। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में यह धारणा है कि सरकारें देश चलाती हैं, लेकिन वास्तव में बाज़ार की शक्तियां ही सरकार को संचालित करती हैं। वे ही देश की दिशा तय करती है और सरकारों को बाज़ार के हिसाब से चलना होता है। यूरोप के कई देशों में हम इसे देख चुके हैं और भारत तथा चीन जैसे देशों में भी इसका एहसास होता है। बात चाहे मीडिया की हो, शिक्षा व्यवस्था की, चिकित्सा व्यवस्था की या और किसी भी व्यवस्था की। बाज़ार के सामने सभी हाशिये पर हैं, जो लोग बाज़ार को गाली देते हैं, वे भी बाज़ार के इशारे पर ही चलते नज़र आते हैं। यह कोई नई बात नहीं है। पूर्ववर्ती सरकारों में भी यही होता था। अब बाज़ार का प्रभाव पहले की अपेक्षा कही ज्यादा है।
जिंदगी में खुशियां ही सबकुछ नहीं होती। कभी पैसे खर्च करके भी रोने का मन करें, तो प्रियंका चोपड़ा की नई फिल्म हाजिर है। फिल्म देखकर लगा कि जायरा वसीम ने हिन्दी फिल्म दर्शकों पर बड़ा उपकार किया कि अभिनय की दुनिया त्याग दी। अगर आपके पास दिल्ली के पास छतरपुर में स्वीमिंग पुल वाला शानदार फॉर्म हाउस है, पैसे की कोई कमी नहीं है, घर नौकर-चाकरों से भरा पड़ा है, तनख्वाह पाने के लिए बॉस से डांट नहीं खानी पड़ती या कारोबार में कोई झिकझिक नहीं करनी पड़ती, भूतपूर्व मिस वर्ल्ड जैसी बीवी, दो बच्चे और एक कुत्ता आप अफोर्ड कर सकते है, तो आपको पूरा हक है कि इमोशनल हुआ जाए। अगर आपके पास यह सब नही और जबरन इमोशनल होना ही हो, टसुएं बहाने का मूड हो, तब प्रियंका चोपड़ा के नाम पर 200-500 रुपये स्वाहा किए जा सकते हैं।
ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ की मुख्य भूमिका वाली वॉर पैसा वसूल फिल्म है। एक्शन, सस्पेंस और थ्रिल के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म निश्चित ही पसंद आएगी। फिल्म की कमजोर कड़ी है, तो इसके गाने। फिल्म की कहानी में जबरदस्त टि्वस्ट है, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखते है। फिल्म देखते हुए कभी बोरियत नहीं होती। फिल्म रिलीज होने के पहले ही 30 करोड़ के अधिक के टिकटों की बुकिंग हो चुकी थी। हॉलीवुड की फिल्मों जैसी इस फिल्म में एक्शन के अलावा गाने और इमोशनल दृश्य भी हॉलीवुड की फिल्म की तरह है, जो पचते नहीं।
मैंने पत्रकारिता की शुरूआत इंदौर में नईदुनिया से की थी और बाद में मुंबई में धर्मयुग और नवभारत टाइम्स में डेढ़ दशक बिताकर इंदौर के दैनिक भास्कर में आया था और वहां से हिन्दुजा समूह के न्यूज़ चैनल में काम कर रहा था। अभय जी से मिला तो उन्होंने कहा कि सुना है तुम पत्रकारिता में कुछ नया करना चाहते हो? मैंने हाँ कहा तो बोले -चेतक सेंटर जाकर विनय जी (वे अपने बेटे के नाम के आगे भी जी लगाते थे) से मिल लो, वे हिन्दी में इंटरनेट पर पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ बड़ा काम करना चाहते हैं।
सनी देओल ने एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए जो फिल्म बनाई है उसमें अपने बेटे को हीरो बनाया है। आधी फिल्म एडवेंचर टूरिज्म को समर्पित है और बाकी आधी फिल्मी फॉर्मूले को। जिस तरह कहानी का ताना-बाना बुना गया है, वह दिलचस्प है। सोलो ट्रेवलिंग करने वाली वीडियो ब्लॉगर मनाली के पास एक ऐसे कैम्प में जाती है, जहां 5 दिन का खर्च 5 लाख रुपये है। इस फाइव स्टार कैम्प में ट्रेकिंग के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। हीरोइन यहां अपने ब्लॉग के लिए नकारात्मक विचार लेकर आती है, लेकिन जब वह कैम्प में अद्भूत जीवन का अनुभव करती है, तब उसका वीडियो ब्लॉग नेगेटिव से पॉजिटिव हो जाता है। देश के लिए सनी देओल का यह योगदान है कि उन्होंने इस फिल्म में पीर पांजल पर्वत समूह की स्पिति वैली, चंद्रा ताल, कजा, लाहौल वैली और देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मनाली क्षेत्र की अनेक सुरम्य वादियों की सैर करा दी। पर्यटन विभाग को चाहिए कि वह इस फिल्म के फुटेज को जी भरकर प्रचारित करें। इस फिल्म को देखने के बाद दर्शकों को एडवेंचर टूरिज्म का मजा तो आ ही जाता है।
ड्रीम गर्ल कहते ही हेमा मालिनी की छवि सामने आती है, लेकिन एकता कपूर की इस ड्रीम गर्ल को देखने के बाद शायद आयुष्मान खुराना का चेहरा सामने आने लगे। फिल्म का एक डायलॉग है कि जब सही गलत हो, तब सही वो होता है, जो सबसे कम गलत हो। एकता कपूर की लगभग सभी फिल्में फूहड़ हैं, ऐसे में ड्रीम गर्ल सबसे कम फूहड़ फिल्म कही जा सकती है। यह पैसा वसूल कॉमेडी फिल्म है, जिसमें झूठ की पराकाष्ठा से उपजा हास्य छाया रहता है। बीच-बीच में कुछ घटिया लतीफे भी है और दो अर्थों वाले संवाद भी। आज के डिजिटल दौर में यह फिल्म बताती है कि सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट से बेहतर है अपने दोस्तों से जीवंत संपर्क रखना।
झूठ तीन तरह के होते है। सामान्य झूठ तो हर कोई पकड़ सकता है, लेकिन सफेद झूठ उससे बड़ा होता है, जो घुमा फिराकर बताया जाता है, लेकिन सबसे बड़ा झूठ होता है आंकड़ा। आंकड़ों के द्वारा सरकार और अर्थशास्त्री कोई भी बात साबित कर सकते हैैं। अर्थव्यवस्था में मंदी नहीं है, यह बात सीधा-सीधा झूठ है, लेकिन अगर कोई कहे कि यह मंदी नहीं स्लोडाउन है, तो यह सफेद झूठ हुआ, लेकिन कोई यह दावा करे कि आंकड़े बताते है कि भारत की जीडीपी बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है और वह दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, तब उसे समझने में थोड़ा वक़्त लगता है। जो व्यक्ति बेरोज़गार हो चुका है, जिसकी दुकान मंदी चल रही है और बंद होने की कगार पर है, जिन बेरोज़गारों को रोज़गार की आशा थी, लेकिन रोज़गार नहीं मिल रहा है, उनके लिए आंकड़े कोई मायने नहीं रखते।
लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली हो, लेकिन सबसे बड़ी विरोधी पार्टी तो वह है ही। एक ऐसी विरोधी पार्टी, जिसने सत्तारूढ़ दल के सामने सरेंडर कर रखा है। सत्ता ही जिस पार्टी का ऑक्सीजन है। बिना सत्ता के वह तड़पती रहती है और निर्जीव होकर इंतजार करती है कि कोई आएगा और उसे सत्ता का ऑक्सीजन मास्क पहना देगा। बहस करने के सारे मंच उसने छोड़ दिए है। विरोध के नाम पर वह कोई नीति तय नहीं कर पा रही। उसके तमाम नेता अंड-बंड बयान देते नजर आते है। देश की धड़कनों से अनजान कांग्रेस अभी भी मूर्खों के स्वर्ग में विचरण कर रही है, जिसके नेता ज़रा सी बात में हिम्मत हार जाते है। जहां सरकार की नीतियों का विरोध करना चाहिए, वहां वे विरोध की खानापूरी करते है।
साहो का एक प्रसिद्ध वनलाइनर है। हर जुर्म का मकसद हो्ता है और हर मुजरिम की कहानी। इसी तरह हर फिल्म बनाने का कोई मकसद होता है और दर्शक को फिल्म देखने का बहाना। साहो को लोग बड़े बजट और प्रभास के कारण देखने जा सकते हैं। दो साल और 300 करोड़ रुपये खर्च करके बनाई गई साहो इसलिए देखनी चाहिए कि भारतीय फिल्म निर्माता हाॅलीवुड की नकल कितनी कर पाते है। आधे घंटे का क्लाइमेक्स, दर्शकों को बांध रखता है, लेकिन पूरी फिल्म में कहानी नाम की कोई चीज है नहीं।
कहावत है कि जब नाव को ज़मीन पर कहीं ले जाना होता है, तब उसे गाड़ी पर रखना पड़ता है, लेकिन जब गाड़ी को नदी के पार ले जाना हो, तब गाड़ी को नाव पर चढ़ाने की ज़रूरत होती है। आशय यह कि दिन सभी के आते हैं। एक दौर था, जब पी. चिदंबरम की तूती बोलती थी। वे मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रियों में से थे। कभी गृह और वित्त मंत्रालय उनके अधीन था। अब चिदंबरम खुद गर्दिश में हैं। 2007 में हुए एक सौदे के मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने पाया कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम ने जो कार्य किए, उनमें कई पेंच थे। सीबीआई के अनुसार चिदंबरम ने न केवल अपने बेटे कार्ती चिदंबरम को अनेक तरीके से फ़ायदा पहुंचाया, बल्कि उन लोगों को भी फायदा पहुंचाया, जो उनके समूह में शामिल थे। वित्त मंत्री की हैसियत से प्रवर्तन निदेशालय पी. चिदंबरम के ही हाथ में था। सीबीआई में दर्ज एफआईआर के अनुसार चिदंबरम ने 2007 में 307 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की धनराशि में काफी घपले किए। चिदंबरम पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है और प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई उनकी तलाश में है। उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से आईएनएक्स मीडिया केस में राहत नहीं मिली थी और उसके बाद से ही चिदंबरम का कुछ पता नहीं है। 20 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां उन्हें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार 23 अगस्त को हो सकती है। इससे पहले बुधवार सुबह तीन जजों की बेंच ने कहा था कि राहत से जुड़ी याचिका को मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाए और सीजेआई रंजन गोगोई ही इस मामले में सुनवाई करेंगे। चिदंबरम के वकीलों की कोशिश थी कि इस मामले में बुधवार को ही सुनवाई हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
संजीव परसाई का व्यंग्य संग्रह बेहद अजीब नाम वाला है - हम बड़ी ‘ई’ वाले। एक बार तो समझ में नहीं आता, लेकिन संग्रह का 20वां व्यंग्य पढ़ो, तब समझ में आता है कि संजीव परसाई जी बड़ी ई वाले हैं (जैसे प्रकाश हिन्दुस्तानी बड़ी ई वाले हैं)। इस संग्रह के सभी व्यंग्य इतने हल्के-फुल्के है कि आप उन्हें किसी भी मूड में पढ़ सकते है। कुछ व्यंग्य आपको तिलमिलाते हैं, कुछ चिढ़ाते हैं और कुछ मुस्कुराने पर मजबूर कर देते हैं। व्यंग्य के शीर्षक ही अपने आप में बहुत कुछ कह देते हैं। हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य है - ‘प्रेम चंद के फटे जूते’। परसाई जी के भतीजे संजीव परसाई के एक व्यंग्य का शीर्षक है - ‘फटे जूते और बीड़ी’, एक और व्यंग्य का शीर्षक है - ‘लेखक बनना, होना व कहलाना’। इसी तरह मैं और फंटूश का प्यार, मैं कवि और तुम खामखां, कमोड पर बैठा लोकतंत्र, क्योंकि अब सबको बेस पसंद है, करीना ने कहा था, दास्ताने अफेयर जैसे दिलचस्प व्यंग्य इस संग्रह में है।
बालाजी फिल्म फैक्ट्री की नई फिल्म जबरिया जोड़ी मनोरंजक है। मसालों से भरपूर यह फिल्म बिहार के पकड़वा विवाह की घटनाओं पर आधारित है, जहां विवाह योग्य दूल्हों का अपहरण करने के बाद न केवल विवाह करवा दिया जाता है, बल्कि संतान होने तक वे अपहरणकर्ताओं की निगरानी में भी रहते हैं। बिहार की पृष्ठभूमि पर फिल्माई गई इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा और शक्तिमान खुराना के भाई अपार शक्ति की प्रमुख भूमिकाएं हैं। फिल्म का पहला आधा हिस्सा अच्छा खासा मनोरंजक है और बाद में फिल्म में गंभीर सामाजिक संदेश जोड़ दिया गया है।
शेयर बाज़ार धड़ाम, ऑटोमोबाइल सेक्टर में ऐतिहासिक मंदी, हाउसिंग में लाखों अनबिके मकान, विदेशी निवेशकों का पलायन, टैक्स की वसूली का पिछड़ता लक्ष्य, लाखों को रोज़गार खोने का डर... इस सबके बावजूद 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बातें। उद्योग जगत को नरेन्द्र मोदी की सरकार की नीयत पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन इस सरकार की आर्थिक नीतियों की दिशा और दशा पर कई लोगों को संदेह है। अनेक उद्योगपतियों का मानना है कि यह सरकार अस्थिर आर्थिक नीतियों वाली है। सरकार खुद जो नीतियां बनाती हैं, उन पर टिकी नहीं रहती।
नरेन्द्र मोदी कोई जम्मू-कश्मीर के वोटों से प्रधानमंत्री नहीं बने, वे पूरे देश से मिले वोटों के कारण प्रधानमंत्री बने हैं। इसलिए उन्हें जम्मू-कश्मीर के सीमित वोटों की उतनी आवश्यकता नहीं। वे यह बात जानते थे कि जम्मू-कश्मीर के बारे में उनका बड़ा फैसला देश सिर-आंखों पर लेगा और हुआ भी यही। पूरे देश में जिस तरह केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत हो रहा है। जगह-जगह मिठाइयां बांटी जा रही है, जश्न हो रहे हैं , उससे लगता है कि यह वाकई एक ऐतिहासिक दिन है। इससे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ पाकिस्तान को है। पाकिस्तान की तरफ से कोशिश हो रही है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्ज़ा ख़त्म किये जाने को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) और यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में चुनौती दी जाये और मानव अधिकारों का मुद्दा बना लिया जाए।
खानदानी शफाखाना बेहद अझेलनीय फिल्म है। दिमाग का दही बना देती है। इसे काॅमेडी फिल्म कहा गया है, लेकिन दर्शकों के लिए यह ट्रेजडी फिल्म है। यह बात सही है कि विकी डोनर, पैडमेन, शुभ मंगल सावधान और टायलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्में कामयाब हुई है, लेकिन किसी फिल्म में 20-25 बार सेक्स कह देने से वह कोई सेक्स काॅमेडी फिल्म नहीं हो जाती। 1959 की कहानी अगर 2019 में बनाई जाएगी, तो यही होगा। सोनाक्षी सिन्हा, बादशाह खान, नादिरा बब्बर, वरूण शर्मा, कुलभूषण खरबंदा और अनू कपूर के होते हुए भी यह एक माइंडलेस कॉमेडी फिल्म है। एक नए कलाकार प्रियांश जोरा की आमद फिल्म में है और वह नाहक ही खर्च हो गए। बादशाह खान के गाने भी कोई कितने झेले।
जो नेता विरोधी पार्टी में रहते 'अनैतिक', 'अछूत' और भ्रष्ट माने जाते थे, भाजपा में शामिल होते ही वे 'पवित्र' हो जाते हैं। अब तो ये राज्यपाल जैसे पदों की भी शोभा बढ़ा रहे हैं। विचित्र बात यह है कि मीडिया ऐसी दल-बदल की घटनाओं के बारे में कोई सैद्धांतिक आलोचना करने के बजाय इसे नेताओं का 'मास्टरस्ट्रोक' कहता है और पार्टी के नेताओं की तुलना चाणक्य से करने लगता है। कायदे से मीडिया को ऐसी अनैतिक गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करने वाले नेताओं को हतोत्साहित करना चाहिए, लेकिन मीडिया दल-बदल की घटनाओं को मदारी का खेल समझता है।
एकता कपूर और फिल्म बनाने वाली टीवी चैनल कंपनी से दर्शकों का सवाल है कि मेंटल है क्या? जो ऐसी फिल्में हमें झिलवाने पर आमादा हो। इसे एक्शन, सस्पेंस, थ्रिलर फिल्म बताया जा रहा है। फिल्म में राजकुमार राव, कंगना रनौत और 10-12 कॉकरोचों ने अच्छा काम किया है। हालांकि टाइटल के दौरान यह दिखाया गया है कि फिल्म बनाने के दौरान असली कॉकरोच इस्तेमाल नहीं किए गए, बल्कि ग्रॉफिक्स का इस्तेमाल किया गया। फिल्म में कंगना रनौत को कागज के काॅकरोच बनाते हुए भी दिखाया गया है। वह भी तब जब कंगना को काॅकरोच से चिढ़ रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में आम्रपाली ग्रुप के खिलाफ आदेश देते हुए रेरा का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया। जांच में यह पता चला कि अनिल कुमार शर्मा की आम्रपाली कंपनी ने फ्लैट खरीदे वाले 49 हजार लोगों के साथ धोखाधड़ी की और कंपनी की करोड़ों रुपये की धनराशि महेंद्र सिंह धोनी की कंपनी को दे दी, जबकि कानूनी रूप से वह ऐसा नहीं कर सकती थी। महेंद्र सिंह धोनी अभी सेना में दो माह के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। धोनी ही आम्रपाली ग्रुप के ब्रांड एंबेसेडर थे। महेंद्र सिंह धोनी और उनकी कंपनी ने आम्रपाली समूह से न केवल शेयर पूंजी प्राप्त की, बल्कि लाखों रुपये कंपनी खर्च के नाम पर भी लिया गया, इसके साथ ही नकद लेन-देन भी किया गया।
जिस तरह फेसबुक विज्ञापन का कारोबार कर रहा है, उसमें वह सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म कम और विज्ञापन के जरिये अरबों डॉलर कमाने की मशीन ज्यादा बना हुआ है। फेसबुक ने वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया के जरिये विज्ञापन अर्जित करने में शीर्ष स्थान पा लिया है। इसके बाद भी उसकी विकास की गति लगातार तेज बनी हुई है। सोशल मीडिया के कई दूसरे प्रमुख प्लेटफाॅर्म को एक साथ मिला दें, तो भी वे फेसबुक के बराबर कारोबार नहीं कर पा रहे हैं। विश्व स्तर पर सोशल मीडिया में जितने विज्ञापन दिए जा रहे है, उसका 71 प्रतिशत अकेले फेसबुक पा रहा है। इस वर्ष फेसबुक को विज्ञापनों से होने वाली आय 6700 करोड़ डॉलर (करीब 4 लाख 70 हजार करोड़ रुपये) होने का अनुमान है। पूरे डिजिटल विज्ञापन जगत का राजस्व 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, जबकि फेसबुक अकेला करीब 25 प्रतिशत ग्रोथ हर साल पा रहा है।
40 साल पहले भी ऋषि कपूर ने 'झूठा कहीं का' नाम की फिल्म में काम किया था, जिसमें उनके साथ नीतू कपूर प्रमुख भूमिका में थीं। रवि टंडन के निर्देशन में बनी उस 'झूठा कहीं का' और इस 'झूठा कहीं का' में ज़मीन-आसमान का अंतर है। यह पंजाबी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'कैरी ऑन जट्टा' की रीमेक है। पुरानी फिल्म की तरह ही इसमें भी ऋषि कपूर प्रमुख भूमिका में हैं, लेकिन वे हीरो नहीं हैं। हालांकि फिल्म उन्हीं के कंधे पर सवार है। कारण यह है कि लिलेट दुबे, सनी सिंह, ओंकार कपूर, निमिषा मेहता आदि सभी नए कलाकार इस फिल्म में है। जिमी शेरगिल, मनोज जोशी और राकेश बेदी की भी छोटी भूमिकाएं हैं। अंत में सनी लियोनी का एक आइटम सांग भी डाल दिया गया है , जिसे देखने के लिए दर्शक थियेटर में रुकने की जहमत नहीं उठाते।
बिहारी केवल ओरिजनल होते हैं। उनकी नकल कोई नहीं कर सकता। ऋतिक रोशन भी नहीं। यह बात सुपर 30 में साबित हो गई। ऋतिक ने भले ही श को स, छह को छौ और नर्वस होने को नरभस होना उच्चारित किया हो, वे आनंद कुमार कही से नहीं लगे, वे ऋतिक रोशन ही लगते रहे। बाॅयोपिक के दौर में आनंद कुमार की इस बॉयोपिक में बहुत सारे झोल हैं, लेकिन फिल्म तो फिल्म ही है। निर्देशक विकास बहल ने क्वीन फिल्म में अपने निर्देशन का जादू दिखाया था। इसमें वैसा जादू नहीं बना पाए, जो कुछ जादू है, वह आनंद कुमार का ही है और बिहार के लोग जानते हैं कि आनंद कुमार के बारे में वे कौन से तथ्य हैं, जो फिल्म में नहीं दिखाए गए। इस फिल्म में बताया गया है कि कोचिंग कोई शिक्षा दान नहीं और न ही कोई कारोबार है। यह एक संगठित माफिया है। पर्सनल ट्यूशन तो पहले भी पढ़ाई जाती थी और शिक्षकों को उसकी फीस भी मिलती थी, लेकिन अब जो कोचिंग क्लासेस का कारोबार है, उसमें षड्यंत्र, खून-खराबा, कालाधन और राजनीति सभी कुछ है। कोचिंग माफिया जिस तरह पेपर सेट करवाते है, टेस्ट पेपर की मार्किंग में पक्षपात की साजिशें रचते है और प्रतिस्पर्धी संस्थानों को बदनाम करते हैं, उसकी मामूली झलक इस फिल्म में है।
इस पर खुश न हों कि पाकिस्तान बर्बादी के कग़ार पर है। इमरान खान की चारों तरफ थू-थू हो रही है। पाकिस्तानी रुपया निम्नतम स्तर पर, निर्यात नीचे, विकास दर बेहद मामूली स्तर पर! महंगाई चरम पर, जनता में त्राहि-त्राहि ! लेकिन हमें इस पर खुश होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह भारत के हित में नहीं है।
जो लोग केवल मनोरंजन के लिए फिल्में देखते है, वे आर्टिकल 15 न देखें। इसमें आम मसाला फिल्मों जैसा कोई मसाला नहीं है। न फूहड़ता, न किसिंग सीन, न फाइटिंग, न नाच-गाने, लेकिन फिर भी यह फिल्म देखने लायक है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि इस देश में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के भी आधार पर किसी भी व्यक्ति से कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद देश में भेदभाव जारी है। यही बात फिल्म कहती है।
कांग्रेस में इस्तीफों का मानसून है, मान-मनोव्वल की झड़ियां लग रही हैं, पार्टी के संविधान के अनुसार कार्यसमिति किसी को स्थायी अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर सकती। ख़ुशामद चल रही कि कोई गैर-गांधी अध्यक्ष नहीं चल पाएगा। यह सब उस पार्टी में हो रहा है, जिसका गौरवशाली अतीत रहा है।
इस शुक्रवार कुछ नया नहीं घटा। न निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में, न बॉक्स ऑफिस में। बजट 90 के दशक का है और फ़िल्म भी। संजय लीला भंसाली की भानजी और जावेद जाफरी के बेटे को लेकर गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार ने 15 साल पुरानी तमिल फिल्म '7जी रेनबो कॉलोनी' का जो रीमेक बनाया है उसे देखना न देखना बराबर है।
गत पांच अप्रैल को भाजपा के स्थापना दिवस के ठीक पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था - ''भाजपा ने शुरू से ही राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन नहीं माना। जो हमसे राजनीतिक तौर पर सहमत नहीं हैं, इन्हें देश विरोधी नहीं कहा।'' इसका आशय मीडिया के एक हिस्से ने इस तरह लगाया कि आडवाणी को देश में आपातकाल जैसे हालात लग रहे हैं। इस ब्लॉग पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल ट्वीट किया था -"आडवाणी जी ने भाजपा की मूल भावना को व्यक्त किया है। विशेष रूप से, 'देश पहले, उसके बाद पार्टी और अंत में मैं ' के मंत्र को महत्वपूर्ण तरीके से रखा गया है। भाजपा कार्यकर्ता होने पर मुझे गर्व है और गर्व है कि आडवाणी जी जैसे महान लोगों ने इसे मजबूत किया है.''
स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है आपातकाल। 25 और 26 जून 1975 की रात को वह लागू किया गया था। करीब 21 महीने बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त घोषित किया गया। आपातकाल के दौरान चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। प्रेस की आजादी पर सेंसरशिप लग गई। सोशल मीडिया तो उस वक्त था नहीं, न ही इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सकता था। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने मनमाने काम किए थे।
गुजरात के जामनगर की अदालत ने बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और उनके सहयोगी को हिरासत में मौत के एक पुराने मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। मामला 1990 का है, तब संजीव भट्ट जामनगर के एएसपी थे। जामनगर में भारत बंद के दौरान व्यापक हिंसा हुई थी और पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ्तार किया था। शिकायत के अनुसार इन लोगों के साथ हिरासत में मारपीट की गई, जिसमें 25 लोग घायल हुए थे और उनमें से 8 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इसी दौरान एक आरोपी प्रभुदास माधवजी वैश्वानी की मृत्यु हो गई थी। संजीव भट्ट और उनके साथियों पर पुलिस हिरासत में मारपीट का मामला चला। मुकदमा भी दर्ज किया गया, लेकिन गुजरात सरकार ने इस मामले में भट्ट के खिलाफ ट्रायल की अनुमति नहीं दी थी।
ऐपल कंपनी के प्रॉडक्ट दुनियाभर में प्रतिष्ठित है। यह दुनिया की 4 बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों में शुमार है। 1976-77 में इसका नाम ऐपल कम्प्यूटर कंपनी था। अब यह ऐपल कम्प्यूटर इंक हो गई है। नास्दाॅक की 100 प्रमुख कंपनियों में शुमार है ऐपल। 2018 में इस कंपनी का कारोबार 265 अरब डॉलर (करीब 18 लाख 55 हजार करोड़ रुपये) था और इसका मार्केट कैप 107 अरब डॉलर (करीब साढ़े सात लाख करोड़ रुपये) से अधिक है। ऐपल दुनिया का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण ब्रांड भी है। उसके प्रॉडक्ट बाजार में आते ही बिक जाते है। कई बार तो आईफोन खरीदने के लिए लोग लंबी-लंबी कतारें लगाए हुए देखे जा सकते हैं। हाल ही में यह बात सामने आई कि अगर लोगों ने ऐपल के प्रॉडक्ट खरीदने के बजाय कंपनी के शेयर खरीदे होते, तो उनकी आर्थिक स्थिति कितनी मजबूत होती।
आमतौर पर लोग अपने बच्चों के फोटो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर करते है। अपने बच्चों के हर गतिविधि वे दुनिया को बताना चाहते है, कई लोग तो ऐसे है, जो अपने बच्चों के जन्मदिन हर महीने मनाते है और लिखते है कि आज मेरा बेटा या बेटी इतने महीने के हो गए। बच्चों की पसंद-नापसंद, उनके कपड़े आदि के बारे में अभिभावक सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। भारत में तो नवजात शिशुओं के फोटो भी शेयर करने की परंपरा बन गई है। मैं पिता बन गया या चाचा बन गया जैसे शीर्षक के साथ नवजात शिशु की तस्वीरें फेसबुक पर देखने को मिल जाती है।
क्या नरेन्द्र मोदी के खास लोगों की मंडली में से बाबा रामदेव का नाम कट गया है? पिछले लोकसभा चुनाव में बाबा रामदेव कहीं नजर नहीं आए। उसके पहले में घोषणा कर चुके थे कि वे चुनाव में सक्रिय नहीं रहेंगे। अब 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है और उस मौके पर भी जितनी सक्रियता बाबा रामदेव की तरफ से दिखनी चाहिए थी, वह नज़र नहीं आ रही। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर रोज़ सुबह अपने पर्सनल ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो शेयर कर रहे हैं। यह वीडियो योग के बारे में होता है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार सफलता पर संडे गार्डियन में एक विशेष रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट के अनुसार चुनाव में भारी सफलता के पीछे जो मुख्य कारण है, वह है मतदाता का मन समझने में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की कुशलता। अखबार के अनुसार दोनों नेता मतदाता के मन में क्या है, यह बात समझने में पूरी तरह सफल रहे और उन्होंने उसी के हिसाब से चुनाव अभियान चलाया। नतीजे में लोगों ने उन्हें भारी सफलता प्रदान की। नरेन्द्र मोदी की हाल ही में 8 जून को हुई सभा में उन्होंने इसका जिक्र भी किया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में 2009 से 2013 तक कार्य करने वाली सामंथा विनोगार्ड का मानना है कि दुनिया में नया ध्रुवीकरण हो रहा है। इस ध्रुवीकरण के कारण अमेरिका के खिलाफ तमाम देश लामबंद हो रहे है। जो देश अमेरिका के करीबी थे, वे भी दूर छिटक रहे हैं और जो दूर थे, वे और भी ज्यादा दूर जा रहे हैं। इन सबके चलते भविष्य में अमेरिका अलग-थलग पड़ सकता है। इसका एक मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का व्यवहार बताया जाता है। यह अमेरिका के हित में नहीं है और न ही अमेरिका के सहयोगी मूल के हित में।
पिछले हफ्ते अमेरिका के वाशिंगटन पोस्ट ने नरेन्द्र मोदी के बारे में एक बेहद आपत्तिजनक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें मोदी की तुलना किसी तानाशाह से की गई थी, लेकिन देखते ही देखते अमेरिकी मीडिया के स्वर बदले हुए नजर आ रहे हैं। अब अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने ओपिनियन पृष्ठ पर स्टीवन रेटनर का एक लेख छापा है, जिसका शीर्षक है - वाय इंडिया नीड्स मोदी। स्टीवन रेटनर ओबामा प्रशासन में ट्रेजरी सेक्रेटरी थे और उन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी की जीत न केवल उनके या उनकी पार्टी के लिए, बल्कि भारत के लिए भी अच्छी है।
न्यूयॉर्क टाइम्स के कार्यकारी संपादक डीन बाक्वट ने इंटरनेशनल न्यूज मीडिया एसोसिएशन वर्ल्ड कांग्रेस में यह बात कही है कि अमेरिका में अखबारों की उम्र 5 साल बची है। दूसरे देशों में यह अवधि 10 से 15 साल तक हो सकती है, लेकिन यह तय है कि अखबार बंद होते जा रहे है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रिंट मीडिया के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। उनका इकॉनामिक मॉडल फ्लाॅप हो चुका है और वे किसी तरह जिंदा बचे हुए हैं। 5 साल बाद भी वे अखबार बचे रहेंगे, जिनके पीछे बड़े-बड़े कार्पोरेट घराने हैं। वरना स्वतंत्र मीडिया की उम्र ज्यादा बची नहीं है।
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के आधार पर यह शोध की है कि सोशल मीडिया की गतिविधियों के द्वारा किसी भी शख्स के व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार और रुचियों का पता लगाया जा सकता है। इस प्रणाली में मशीन लर्निंग और भाषा को लेकर अध्ययन किए गए। सोशल मीडिया पर किए गए सैकड़ों लोगों के पोस्ट को 70 कैटेगरी में विभाजित करके इस शोध ने दिलचस्प नतीजे निकाले है।
सन 2013 से राजेश जैन भारतीय जनता पार्टी के इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी रणनीतिज्ञ हैं। उन्होंने ही सबसे पहले फेसबुक और वाट्सएप का उपयोग भाजपा के प्रचार में करना शुरू किया। यह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का काम रहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर पार्टी की छवि बनाने के लिए लंबा-चौड़ा काम किया। फेसबुक इंडिया के अधिकारियों की मदद भाजपा ने ली और भाजपा के आईटी सेल के अनेक कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी गई। भाजपा की छवि चमकाने के लिए विज्ञापन जगत के कई विशेषज्ञों की राय ली गई, जिनमें प्रहलाद कक्कड़, सजन राजगुरू और अनुपम खेर प्रमुख हैं। इन्हीं लोगों ने सलाह दी थी कि सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसी बनाई जाए, जिसे लार्जर देन लाइफ कहा जाता है। 2014 आते-आते नरेन्द्र मोदी की छवि बनकर तैयार हो गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के खासमखास डॉ. हिरेन जोशी ने मोदी की छवि चमकाने का कामकाज संभाल लिया। आजकल यह काम प्रधानमंत्री कार्यालय के ओएसडी कर रहे हैं। उनके साथ तकनीकी क्षेत्र के दो विशेषज्ञ भी हैं। नीरव शाह और यश राजीव गांधी। डॉ. हिरेन जोशी का फेसबुक से पुराना संपर्क रहा है। माय जीओवी इंडिया वेबसाइट के डायरेक्टर अखिलेश मिश्रा भी नरेन्द्र मोदी की छवि बनाने में लगे है। बीजेपी आईटी सेल के पूर्व प्रमुख अरविन्द गुप्ता को पिछले दिनों माय जीओवी इंडिया का प्रमुख बनाया गया है।
केरल में एक नया पर्यटन स्थल विकसित हुआ है, जो विश्व में तीर्थ स्थल की जगह ले सकता है। यह है जटायु अर्थ्स सेंटर। हिन्दी में इसे जटायु पर्वत कहना ज्यादा सही लगता है। इस स्थान पर एक विशाल पहाड़ी की चोटी पर जटायु का शिल्प बनाया गया है। यह शिल्प 200 फीट लंबा, 150 फीट चौड़ा और 70 फीट ऊंचा है। 65 एकड़ के इस जटायु पर्वत की चोटी पर चट्टानों को तराश कर जटायु के पंख बनाए गए है। उसी जटायु के जिसने सीता के अपहरण करने वाले रावण के साथ आकाश में युद्ध किया था और रावण को अपहरण करने से रोका था। बदले में रावण ने जटायु के पंख काट दिए थे, जिससे वह जमीन पर आ गिरा था।
आमतौर पर माता-पिता बच्चों को शिक्षा देते रहते है और कई बार सजा भी देते है, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में अब बच्चे अपने माता-पिता को सबक सीखा रहे है। वे सोशल मीडिया पर अपने माता-पिता के व्यवहार को लेकर तीखे कमेंट्स करते रहते हैं। इससे कई माता-पिता ने सबक भी सीखा है, लेकिन बहुतेरे हैं, जो सबक नहीं सीख पाए हैं।
लीग क्रिकेट में हो रहा है भारत-पाक संघर्ष
भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर ही तनाव नहीं है। तनाव क्रिकेट में ही है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद इस तरह की मांग हो रही है कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेला जाएं। आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को पहले से ही प्रतिबंध किया जा चुका है। भारतीय कंपनी ने दुबई में होने वाली पाकिस्तान सुपर लीग के मैचों का प्रसारण रोक दिया था, जिसके विरोध में अब पाकिस्तान ने इंडियन प्रीमियर लीग के मैचों पर रोक लगा दी है। ये बातें ऊपर से जितनी साफ नजर आती है, उतनी साफ है नहीं। दरअसल इसके पीछे क्रिकेट में लगने वाला अपार धन है।
7 अगस्त, जन्मदिन के अवसर पर...
आजकल अखबारों का सम्पादकीय पन्ना ‘वेस्ट मटेरियल' बनता जा रहा है, जिस पन्ने पर लोग सबसे ज्यादा भरोसा करते थे और जिसे पढ़ने के लिए न केवल आतुर रहते थे, बल्कि जिसके एक-एक शब्द को पाठ्यपुस्तक की तरह पढ़ा जाता था, वह अब न्यूजपेपर नाम के प्रॉडक्ट का लगभग अवांछित हिस्सा बन गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का टि्वटर अकाउंट बैन कर दिया गया है। ऐसा अमेरिका के इतिहास में पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति को टि्वटर अकाउंट ही डिलीट कर दिया गया। वह भी ऐसे राष्ट्रपति का, जिसने टि्वटर को अपना ऑफिशियल प्रवक्ता बना रखा था। टि्वटर के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अब राष्ट्रपति ट्रम्प टि्वटर के जरिये अपने विचार लोगों तक नहीं पहुंचा पाएंगे। टि्वटर पर ट्रम्प के निजी अकाउंट के 5 करोड़ 95 लाख फॉलोअर्स और अमेरिकी राष्ट्रपति के अकाउंट के 2 करोड़ 55 लाख है। चर्चा है कि राष्ट्रपति की प्रेस प्रवक्ता इस बारे में हड़बड़ी में प्रेस कॉफ्रेंस बुला रही है।
साइंस डेली की एक रिपोर्ट के अनुसार जब भी कोई सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी शेयर करता हैं, तब दूसरे लोग उस पोस्ट से संबंधित व्यक्ति की निजी जानकारियां खोजने लगते है। खासकर यह कि पोस्ट लिखने वाले की व्यक्तिगत जिंदगी कैसी है, उसका रोमांटिक रिश्ता किससे है और कौन-कौन उसके दोस्त हैं। कौन-कौन से रिश्तों को उसने तवज्जों दी हैं। क्या पोस्ट लिखने वाला या लिखने वाली शादीशुदा हैं, उसका किसी से दोस्ताना हैं, उसका कहां-कहां आना-जाना है। इन सब बातों में लोगों की दिलचस्पी होती है। अगर ऐसी पोस्ट शेयर करने वाला पुरूष न होकर महिला है और युवा है, तब तो लोगों की दिलचस्पी की सीमा ही नहीं रहती। उस निजी जानकारी का एक्स-रे हर कोई करना चाहता है। लोग खोजने लगते है कि पोस्ट लिखने वाले यूजर का आत्मीय रिश्ता किस-किससे है या किस-किससे हो सकता है। अगर आप अपनी निजी जिंदगी की एक-एक बात शेयर कर रहे हो, तो संभव है आपका जीवनसाथी (बेचारा) अपने आप को अकेला महसूस करें।
भारतीय सेना के अधिकारी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं होते। यह मामूली बात भी कई लोगों को पता नहीं है। पाकिस्तान से लौटने के बाद भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के नाम पर सोशल मीडिया में कई अकाउंट खुल गए है। टि्वटर पर तो एक अकाउंट में सरकार की तारीफ के ट्वीट भी किए गए। यह अकाउंट इस चतुराई से बनाया गया है कि एक आम आदमी गफलत में पड़ जाएं और टि्वटर पर अभिनंदन के फॉलो करने लगे। जब अभिनंदन वर्धमान की मुलाकात रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के हुई, तब उसकी तस्वीरें कई अखबारों और वेबसाइट में नजर आई। उसी में से तस्वीर चुराकर फर्जी अकाउंट पर डाल दी गई और लिखा कि आज मैंने रक्षा मंत्री से मुलाकात की। अभिनंदन का असली अकाउंट समझकर कई लोगों ने उन्हें फॉलो करना शुरू कर दिया। दो ही दिन में उनके हजारों से ज्यादा फॉलोअर भी बन गए। इस अकाउंट में सरकार की प्रशंसा के संदेश तो थे ही, भारतीय मीडिया के खिलाफ भी कुछ पोस्ट थे, जिसे कई लोगों ने रि-ट्वीट किया।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के लिए कुछ मोबाइल ऐप बहुत ही खतरनाक है। अगर आपके करीबी किसी बच्चे ने ये ऐप अपने मोबाइल में अपलोड कर रखे हो, तो कोशिश कीजिए कि उन्हें डिलीट कर दिया जाए। संभावित परेशानी से बचने का यह अच्छा तरीका है। पुलिस का तो यह भी कहना है कि अपने बच्चों के मोबाइल की पड़ताल करते रहे और देखते रहे कि वे कौन से ऐप डाउनलोड कर रहे है। बच्चों के मोबाइल की प्राइवेसी सेटिंग की भी जांच करते रहे और फोन तथा उसके ऐप के इस्तेमाल के बारे में उनसे चर्चा करते रहे। पुलिस का कहना है कि बच्चों के मोबाइल में ये ऐप खतरनाक हो सकते है :
सैफ अली खान और करीना कपूर खान का बेटा तैमूर अली खान अकेला नहीं है, जो सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया पर तैमूर के फोटो और वीडियो अक्सर वायरल होते रहते है, लेकिन इंस्टाग्राम पर एक ऐसा सुपरस्टार परिवार भी है, जिसके बच्चे से लेकर बड़े तक इंस्टाग्राम पर लोकप्रिय है। कुल मिलाकर 40 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। यह है अरिजोना का स्टॉफर परिवार। केटी, उनके पति चार्ल्स और उनके बच्चे 5 बच्चे कैटलीन, चार्लेस, फिन, मिला और ऐमा। ये सातों ही सोशल मीडिया के सुपरस्टार है और ये अपनी लोकप्रियता को भुनाना भी अच्छी तरह जानते है। अकेले इंस्टाग्राम पर ही इस परिवार के 40 लाख फॉलोअर्स है और यू-ट्यूब तथा फेसबुक पर भी अच्छे खासे फॉलोअर्स है।
अल सल्वाडोर में सोशल मीडिया के स्टार की जीत राष्ट्रपति चुनाव में होना सोशल मीडिया के बढ़ते महत्व को बताता है। हाल ही हुए राष्ट्रपति चुनाव में 37 वर्ष के नायिब बुकेले को बहुमत मिला है। बुकेले इसके पहले अल सल्वाडोर की राजधानी सेन अल्वाडोर के मेयर रह चुके है। चुनाव के पहले राउंड से ही बुकेले आगे चल रहे थे।
अमेरिका के इंडियाना में 13 साल के एक किशोर को पुलिस ने गिरफ्तार किया। माध्यमिक शाला के उस विद्यार्थी ने ऐपल के सिरि ऐप में सर्च किया कि मैं एक स्कूल में गोलीबारी करने जा रहा हूं। उसके जवाब में ऐप ने उसके घर के करीब 32 किलोमीटर के इलाके के स्कूलों की सूची प्रस्तुत कर दी। साथ ही उन स्कूलों की लोकेशन भी उजागर कर दी। बच्चे ने ऐप का स्क्रीनशॉट लिया और सोशल मीडिया पर डाल दिया। इसकी भनक मिलते ही पुलिस सक्रिय हुई और उस बच्चे को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उसकी पहचान गुप्त रखी है।
क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नमो ऐप खुद अफवाहें फैलाने का काम कर रहा है? ऐसे में फेक न्यूज से कैसे निपटा जा सकता है? वरिष्ठ पत्रकार समर्थ बंसल ने इस बारे में एक अध्ययन किया तो पाया कि नमो ऐप खुद ही अनेक ऐसी बातों को फैला रहा है, जिन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर बना नमो ऐप 10 करोड़ से भी ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है। आरोप लगते रहे हैं कि नमो ऐप को डाउनलोड करने वालों का पूरा डाटा उनकी अनुमति के बिना जमा किया जा रहा है। उसका उपयोग डाटा संग्रहकर्ता अपने हित के लिए कर सकता है।
सोशल मीडिया पर कुछ वर्षों से ताइवान की गिगि वू छाई हुई थी। वे सोलो ट्रेवलर और सोलो हाइकर थी। अनेक पर्वत शिखरों पर उन्होंने अपने झंडे गाड़े। अकेले ही ट्रेवल करती थी और पहाड़ पर भी अकेली ही चढ़ती थी। पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर वे अक्सर अपने बिकिनी शॉट्स लेती और फिर सोशल मीडिया पर शेयर करती थी। उनकी खूबी यह थी कि वे अनुभवी और प्रशिक्षित पर्वतारोही थी। पहाड़ पर चढ़ने के सभी उपकरण साथ लेकर चलती थी और दिलचस्प अंदाज में अपनी तस्वीरें शेयर करती थी।
अब तक सस्टेनेबल यानी दीर्घकालिक या लंबे समय तक चल सकने वाली बातों में उर्जा या पानी के वितरण की ही चर्चा होती रही है, लेकिन अब लगता है कि पत्रकारिता में भी इसका जिक्र होना जरूरी है। आज पत्रकारिता की जो हालात है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि पत्रकारिता को भी सस्टेनेबल बनाइए। ऐसा न हो कि क्षरण होते-होते पत्रकारिता का भी युग समाप्त हो जाए।
सोशल मीडिया के कई प्लेटफार्म उपलब्ध है, उनमें इंस्टाग्राम भी एक प्रमुख प्लेटफार्म है। जहां यूजर अपने फोटो और वीडियो किसी एक ग्रुप में या सभी के लिए खुलेआम शेयर कर सकता है। 9 साल पहले इंस्टाग्राम एक नि:शुल्क मोबाइल ऐप के रूप में शुरू किया गया था। दुनिया की तमाम हस्तियां अपनी तस्वीरें और वीडियो यहां शेयर करते है। इसमें लोकेशन भी शेयर की जा सकती है और हैशटैग भी जोड़े जा सकते है। इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा जिस कंपनी का अकाउंट शेयर किया जा रहा है, वह इंस्टाग्राम खुद है। इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले अकाउंट रोनाल्डो, सेलेना गोमेज, एरियाना ग्रैंड, ड्वैन जॉनसन, किम कार्देशियां, काइली जेनर आदि है। इनमें भी किसी एक पोस्ट को सबसे ज्यादा लाइक्स का रिकॉर्ड काइली जेनर के नाम है, लेकिन अब वह रिकॉर्ड टूट गया है।
15 जनवरी को अमेरिकी के ऐतिहासिक शटडाउन का 25वां दिन है। अमेरिकी इतिहास में इतना बड़ा शटडाउन कभी नहीं हुआ। यह एक तरह की ‘सरकारी हड़ताल’ ही है। दरअसल अमेरिका में एक एंटी डेफिशिएंसी कानून है। इसके अंतर्गत जब सरकार के पास बजट कम होता है, तब वह सरकारी कर्मचारियों को काम करने से रोक देती है। ऐसी हालात तब आती है, जब संसद में फंडिंग के किसी मामले पर आपसी सहमति न पाए। ऐसे शटडाउन में सरकार कर्मचारियों को दो भागों में बांट देती है। आवश्यक और कम आवश्यक। आवश्यक कर्मचारियों को काम पर तो आना पड़ता है, लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिलता। दूसरी श्रेणी के कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिलता और काम पर भी नहीं आना पड़ता।