ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ की मुख्य भूमिका वाली वॉर पैसा वसूल फिल्म है। एक्शन, सस्पेंस और थ्रिल के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म निश्चित ही पसंद आएगी। फिल्म की कमजोर कड़ी है, तो इसके गाने। फिल्म की कहानी में जबरदस्त टि्वस्ट है, जो दर्शकों को अंत तक बांधे रखते है। फिल्म देखते हुए कभी बोरियत नहीं होती। फिल्म रिलीज होने के पहले ही 30 करोड़ के अधिक के टिकटों की बुकिंग हो चुकी थी। हॉलीवुड की फिल्मों जैसी इस फिल्म में एक्शन के अलावा गाने और इमोशनल दृश्य भी हॉलीवुड की फिल्म की तरह है, जो पचते नहीं।
मैंने पत्रकारिता की शुरूआत इंदौर में नईदुनिया से की थी और बाद में मुंबई में धर्मयुग और नवभारत टाइम्स में डेढ़ दशक बिताकर इंदौर के दैनिक भास्कर में आया था और वहां से हिन्दुजा समूह के न्यूज़ चैनल में काम कर रहा था। अभय जी से मिला तो उन्होंने कहा कि सुना है तुम पत्रकारिता में कुछ नया करना चाहते हो? मैंने हाँ कहा तो बोले -चेतक सेंटर जाकर विनय जी (वे अपने बेटे के नाम के आगे भी जी लगाते थे) से मिल लो, वे हिन्दी में इंटरनेट पर पत्रकारिता के क्षेत्र में कुछ बड़ा काम करना चाहते हैं।
सनी देओल ने एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए जो फिल्म बनाई है उसमें अपने बेटे को हीरो बनाया है। आधी फिल्म एडवेंचर टूरिज्म को समर्पित है और बाकी आधी फिल्मी फॉर्मूले को। जिस तरह कहानी का ताना-बाना बुना गया है, वह दिलचस्प है। सोलो ट्रेवलिंग करने वाली वीडियो ब्लॉगर मनाली के पास एक ऐसे कैम्प में जाती है, जहां 5 दिन का खर्च 5 लाख रुपये है। इस फाइव स्टार कैम्प में ट्रेकिंग के लिए हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। हीरोइन यहां अपने ब्लॉग के लिए नकारात्मक विचार लेकर आती है, लेकिन जब वह कैम्प में अद्भूत जीवन का अनुभव करती है, तब उसका वीडियो ब्लॉग नेगेटिव से पॉजिटिव हो जाता है। देश के लिए सनी देओल का यह योगदान है कि उन्होंने इस फिल्म में पीर पांजल पर्वत समूह की स्पिति वैली, चंद्रा ताल, कजा, लाहौल वैली और देवभूमि हिमाचल प्रदेश के मनाली क्षेत्र की अनेक सुरम्य वादियों की सैर करा दी। पर्यटन विभाग को चाहिए कि वह इस फिल्म के फुटेज को जी भरकर प्रचारित करें। इस फिल्म को देखने के बाद दर्शकों को एडवेंचर टूरिज्म का मजा तो आ ही जाता है।
ड्रीम गर्ल कहते ही हेमा मालिनी की छवि सामने आती है, लेकिन एकता कपूर की इस ड्रीम गर्ल को देखने के बाद शायद आयुष्मान खुराना का चेहरा सामने आने लगे। फिल्म का एक डायलॉग है कि जब सही गलत हो, तब सही वो होता है, जो सबसे कम गलत हो। एकता कपूर की लगभग सभी फिल्में फूहड़ हैं, ऐसे में ड्रीम गर्ल सबसे कम फूहड़ फिल्म कही जा सकती है। यह पैसा वसूल कॉमेडी फिल्म है, जिसमें झूठ की पराकाष्ठा से उपजा हास्य छाया रहता है। बीच-बीच में कुछ घटिया लतीफे भी है और दो अर्थों वाले संवाद भी। आज के डिजिटल दौर में यह फिल्म बताती है कि सोशल मीडिया के जरिये कनेक्ट से बेहतर है अपने दोस्तों से जीवंत संपर्क रखना।
झूठ तीन तरह के होते है। सामान्य झूठ तो हर कोई पकड़ सकता है, लेकिन सफेद झूठ उससे बड़ा होता है, जो घुमा फिराकर बताया जाता है, लेकिन सबसे बड़ा झूठ होता है आंकड़ा। आंकड़ों के द्वारा सरकार और अर्थशास्त्री कोई भी बात साबित कर सकते हैैं। अर्थव्यवस्था में मंदी नहीं है, यह बात सीधा-सीधा झूठ है, लेकिन अगर कोई कहे कि यह मंदी नहीं स्लोडाउन है, तो यह सफेद झूठ हुआ, लेकिन कोई यह दावा करे कि आंकड़े बताते है कि भारत की जीडीपी बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रही है और वह दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, तब उसे समझने में थोड़ा वक़्त लगता है। जो व्यक्ति बेरोज़गार हो चुका है, जिसकी दुकान मंदी चल रही है और बंद होने की कगार पर है, जिन बेरोज़गारों को रोज़गार की आशा थी, लेकिन रोज़गार नहीं मिल रहा है, उनके लिए आंकड़े कोई मायने नहीं रखते।
लोकसभा चुनाव में भले ही कांग्रेस को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिली हो, लेकिन सबसे बड़ी विरोधी पार्टी तो वह है ही। एक ऐसी विरोधी पार्टी, जिसने सत्तारूढ़ दल के सामने सरेंडर कर रखा है। सत्ता ही जिस पार्टी का ऑक्सीजन है। बिना सत्ता के वह तड़पती रहती है और निर्जीव होकर इंतजार करती है कि कोई आएगा और उसे सत्ता का ऑक्सीजन मास्क पहना देगा। बहस करने के सारे मंच उसने छोड़ दिए है। विरोध के नाम पर वह कोई नीति तय नहीं कर पा रही। उसके तमाम नेता अंड-बंड बयान देते नजर आते है। देश की धड़कनों से अनजान कांग्रेस अभी भी मूर्खों के स्वर्ग में विचरण कर रही है, जिसके नेता ज़रा सी बात में हिम्मत हार जाते है। जहां सरकार की नीतियों का विरोध करना चाहिए, वहां वे विरोध की खानापूरी करते है।
साहो का एक प्रसिद्ध वनलाइनर है। हर जुर्म का मकसद हो्ता है और हर मुजरिम की कहानी। इसी तरह हर फिल्म बनाने का कोई मकसद होता है और दर्शक को फिल्म देखने का बहाना। साहो को लोग बड़े बजट और प्रभास के कारण देखने जा सकते हैं। दो साल और 300 करोड़ रुपये खर्च करके बनाई गई साहो इसलिए देखनी चाहिए कि भारतीय फिल्म निर्माता हाॅलीवुड की नकल कितनी कर पाते है। आधे घंटे का क्लाइमेक्स, दर्शकों को बांध रखता है, लेकिन पूरी फिल्म में कहानी नाम की कोई चीज है नहीं।
कहावत है कि जब नाव को ज़मीन पर कहीं ले जाना होता है, तब उसे गाड़ी पर रखना पड़ता है, लेकिन जब गाड़ी को नदी के पार ले जाना हो, तब गाड़ी को नाव पर चढ़ाने की ज़रूरत होती है। आशय यह कि दिन सभी के आते हैं। एक दौर था, जब पी. चिदंबरम की तूती बोलती थी। वे मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में सबसे महत्वपूर्ण मंत्रियों में से थे। कभी गृह और वित्त मंत्रालय उनके अधीन था। अब चिदंबरम खुद गर्दिश में हैं। 2007 में हुए एक सौदे के मामले की जांच करते हुए सीबीआई ने पाया कि वित्त मंत्री के रूप में चिदंबरम ने जो कार्य किए, उनमें कई पेंच थे। सीबीआई के अनुसार चिदंबरम ने न केवल अपने बेटे कार्ती चिदंबरम को अनेक तरीके से फ़ायदा पहुंचाया, बल्कि उन लोगों को भी फायदा पहुंचाया, जो उनके समूह में शामिल थे। वित्त मंत्री की हैसियत से प्रवर्तन निदेशालय पी. चिदंबरम के ही हाथ में था। सीबीआई में दर्ज एफआईआर के अनुसार चिदंबरम ने 2007 में 307 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश की धनराशि में काफी घपले किए। चिदंबरम पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक रही है और प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई उनकी तलाश में है। उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट से आईएनएक्स मीडिया केस में राहत नहीं मिली थी और उसके बाद से ही चिदंबरम का कुछ पता नहीं है। 20 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने इसी मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद चिदंबरम ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, लेकिन वहां उन्हें अभी तक कोई राहत नहीं मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया है। अब इस मामले की सुनवाई शुक्रवार 23 अगस्त को हो सकती है। इससे पहले बुधवार सुबह तीन जजों की बेंच ने कहा था कि राहत से जुड़ी याचिका को मुख्य न्यायाधीश के सामने रखा जाए और सीजेआई रंजन गोगोई ही इस मामले में सुनवाई करेंगे। चिदंबरम के वकीलों की कोशिश थी कि इस मामले में बुधवार को ही सुनवाई हो जाए, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
संजीव परसाई का व्यंग्य संग्रह बेहद अजीब नाम वाला है - हम बड़ी ‘ई’ वाले। एक बार तो समझ में नहीं आता, लेकिन संग्रह का 20वां व्यंग्य पढ़ो, तब समझ में आता है कि संजीव परसाई जी बड़ी ई वाले हैं (जैसे प्रकाश हिन्दुस्तानी बड़ी ई वाले हैं)। इस संग्रह के सभी व्यंग्य इतने हल्के-फुल्के है कि आप उन्हें किसी भी मूड में पढ़ सकते है। कुछ व्यंग्य आपको तिलमिलाते हैं, कुछ चिढ़ाते हैं और कुछ मुस्कुराने पर मजबूर कर देते हैं। व्यंग्य के शीर्षक ही अपने आप में बहुत कुछ कह देते हैं। हरिशंकर परसाई का एक व्यंग्य है - ‘प्रेम चंद के फटे जूते’। परसाई जी के भतीजे संजीव परसाई के एक व्यंग्य का शीर्षक है - ‘फटे जूते और बीड़ी’, एक और व्यंग्य का शीर्षक है - ‘लेखक बनना, होना व कहलाना’। इसी तरह मैं और फंटूश का प्यार, मैं कवि और तुम खामखां, कमोड पर बैठा लोकतंत्र, क्योंकि अब सबको बेस पसंद है, करीना ने कहा था, दास्ताने अफेयर जैसे दिलचस्प व्यंग्य इस संग्रह में है।
बालाजी फिल्म फैक्ट्री की नई फिल्म जबरिया जोड़ी मनोरंजक है। मसालों से भरपूर यह फिल्म बिहार के पकड़वा विवाह की घटनाओं पर आधारित है, जहां विवाह योग्य दूल्हों का अपहरण करने के बाद न केवल विवाह करवा दिया जाता है, बल्कि संतान होने तक वे अपहरणकर्ताओं की निगरानी में भी रहते हैं। बिहार की पृष्ठभूमि पर फिल्माई गई इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, जावेद जाफरी, संजय मिश्रा और शक्तिमान खुराना के भाई अपार शक्ति की प्रमुख भूमिकाएं हैं। फिल्म का पहला आधा हिस्सा अच्छा खासा मनोरंजक है और बाद में फिल्म में गंभीर सामाजिक संदेश जोड़ दिया गया है।
शेयर बाज़ार धड़ाम, ऑटोमोबाइल सेक्टर में ऐतिहासिक मंदी, हाउसिंग में लाखों अनबिके मकान, विदेशी निवेशकों का पलायन, टैक्स की वसूली का पिछड़ता लक्ष्य, लाखों को रोज़गार खोने का डर... इस सबके बावजूद 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की बातें। उद्योग जगत को नरेन्द्र मोदी की सरकार की नीयत पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन इस सरकार की आर्थिक नीतियों की दिशा और दशा पर कई लोगों को संदेह है। अनेक उद्योगपतियों का मानना है कि यह सरकार अस्थिर आर्थिक नीतियों वाली है। सरकार खुद जो नीतियां बनाती हैं, उन पर टिकी नहीं रहती।
नरेन्द्र मोदी कोई जम्मू-कश्मीर के वोटों से प्रधानमंत्री नहीं बने, वे पूरे देश से मिले वोटों के कारण प्रधानमंत्री बने हैं। इसलिए उन्हें जम्मू-कश्मीर के सीमित वोटों की उतनी आवश्यकता नहीं। वे यह बात जानते थे कि जम्मू-कश्मीर के बारे में उनका बड़ा फैसला देश सिर-आंखों पर लेगा और हुआ भी यही। पूरे देश में जिस तरह केन्द्र सरकार के फैसले का स्वागत हो रहा है। जगह-जगह मिठाइयां बांटी जा रही है, जश्न हो रहे हैं , उससे लगता है कि यह वाकई एक ऐतिहासिक दिन है। इससे सबसे ज़्यादा तकलीफ़ पाकिस्तान को है। पाकिस्तान की तरफ से कोशिश हो रही है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्ज़ा ख़त्म किये जाने को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस (आईसीजे) और यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल (यूएनएससी) में चुनौती दी जाये और मानव अधिकारों का मुद्दा बना लिया जाए।
खानदानी शफाखाना बेहद अझेलनीय फिल्म है। दिमाग का दही बना देती है। इसे काॅमेडी फिल्म कहा गया है, लेकिन दर्शकों के लिए यह ट्रेजडी फिल्म है। यह बात सही है कि विकी डोनर, पैडमेन, शुभ मंगल सावधान और टायलेट एक प्रेम कथा जैसी फिल्में कामयाब हुई है, लेकिन किसी फिल्म में 20-25 बार सेक्स कह देने से वह कोई सेक्स काॅमेडी फिल्म नहीं हो जाती। 1959 की कहानी अगर 2019 में बनाई जाएगी, तो यही होगा। सोनाक्षी सिन्हा, बादशाह खान, नादिरा बब्बर, वरूण शर्मा, कुलभूषण खरबंदा और अनू कपूर के होते हुए भी यह एक माइंडलेस कॉमेडी फिल्म है। एक नए कलाकार प्रियांश जोरा की आमद फिल्म में है और वह नाहक ही खर्च हो गए। बादशाह खान के गाने भी कोई कितने झेले।
जो नेता विरोधी पार्टी में रहते 'अनैतिक', 'अछूत' और भ्रष्ट माने जाते थे, भाजपा में शामिल होते ही वे 'पवित्र' हो जाते हैं। अब तो ये राज्यपाल जैसे पदों की भी शोभा बढ़ा रहे हैं। विचित्र बात यह है कि मीडिया ऐसी दल-बदल की घटनाओं के बारे में कोई सैद्धांतिक आलोचना करने के बजाय इसे नेताओं का 'मास्टरस्ट्रोक' कहता है और पार्टी के नेताओं की तुलना चाणक्य से करने लगता है। कायदे से मीडिया को ऐसी अनैतिक गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करने वाले नेताओं को हतोत्साहित करना चाहिए, लेकिन मीडिया दल-बदल की घटनाओं को मदारी का खेल समझता है।
एकता कपूर और फिल्म बनाने वाली टीवी चैनल कंपनी से दर्शकों का सवाल है कि मेंटल है क्या? जो ऐसी फिल्में हमें झिलवाने पर आमादा हो। इसे एक्शन, सस्पेंस, थ्रिलर फिल्म बताया जा रहा है। फिल्म में राजकुमार राव, कंगना रनौत और 10-12 कॉकरोचों ने अच्छा काम किया है। हालांकि टाइटल के दौरान यह दिखाया गया है कि फिल्म बनाने के दौरान असली कॉकरोच इस्तेमाल नहीं किए गए, बल्कि ग्रॉफिक्स का इस्तेमाल किया गया। फिल्म में कंगना रनौत को कागज के काॅकरोच बनाते हुए भी दिखाया गया है। वह भी तब जब कंगना को काॅकरोच से चिढ़ रहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में आम्रपाली ग्रुप के खिलाफ आदेश देते हुए रेरा का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया। जांच में यह पता चला कि अनिल कुमार शर्मा की आम्रपाली कंपनी ने फ्लैट खरीदे वाले 49 हजार लोगों के साथ धोखाधड़ी की और कंपनी की करोड़ों रुपये की धनराशि महेंद्र सिंह धोनी की कंपनी को दे दी, जबकि कानूनी रूप से वह ऐसा नहीं कर सकती थी। महेंद्र सिंह धोनी अभी सेना में दो माह के लिए लेफ्टिनेंट कर्नल के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। धोनी ही आम्रपाली ग्रुप के ब्रांड एंबेसेडर थे। महेंद्र सिंह धोनी और उनकी कंपनी ने आम्रपाली समूह से न केवल शेयर पूंजी प्राप्त की, बल्कि लाखों रुपये कंपनी खर्च के नाम पर भी लिया गया, इसके साथ ही नकद लेन-देन भी किया गया।
जिस तरह फेसबुक विज्ञापन का कारोबार कर रहा है, उसमें वह सोशल मीडिया का प्लेटफॉर्म कम और विज्ञापन के जरिये अरबों डॉलर कमाने की मशीन ज्यादा बना हुआ है। फेसबुक ने वैश्विक स्तर पर सोशल मीडिया के जरिये विज्ञापन अर्जित करने में शीर्ष स्थान पा लिया है। इसके बाद भी उसकी विकास की गति लगातार तेज बनी हुई है। सोशल मीडिया के कई दूसरे प्रमुख प्लेटफाॅर्म को एक साथ मिला दें, तो भी वे फेसबुक के बराबर कारोबार नहीं कर पा रहे हैं। विश्व स्तर पर सोशल मीडिया में जितने विज्ञापन दिए जा रहे है, उसका 71 प्रतिशत अकेले फेसबुक पा रहा है। इस वर्ष फेसबुक को विज्ञापनों से होने वाली आय 6700 करोड़ डॉलर (करीब 4 लाख 70 हजार करोड़ रुपये) होने का अनुमान है। पूरे डिजिटल विज्ञापन जगत का राजस्व 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष बढ़ रहा है, जबकि फेसबुक अकेला करीब 25 प्रतिशत ग्रोथ हर साल पा रहा है।
40 साल पहले भी ऋषि कपूर ने 'झूठा कहीं का' नाम की फिल्म में काम किया था, जिसमें उनके साथ नीतू कपूर प्रमुख भूमिका में थीं। रवि टंडन के निर्देशन में बनी उस 'झूठा कहीं का' और इस 'झूठा कहीं का' में ज़मीन-आसमान का अंतर है। यह पंजाबी ब्लॉकबस्टर फिल्म 'कैरी ऑन जट्टा' की रीमेक है। पुरानी फिल्म की तरह ही इसमें भी ऋषि कपूर प्रमुख भूमिका में हैं, लेकिन वे हीरो नहीं हैं। हालांकि फिल्म उन्हीं के कंधे पर सवार है। कारण यह है कि लिलेट दुबे, सनी सिंह, ओंकार कपूर, निमिषा मेहता आदि सभी नए कलाकार इस फिल्म में है। जिमी शेरगिल, मनोज जोशी और राकेश बेदी की भी छोटी भूमिकाएं हैं। अंत में सनी लियोनी का एक आइटम सांग भी डाल दिया गया है , जिसे देखने के लिए दर्शक थियेटर में रुकने की जहमत नहीं उठाते।
बिहारी केवल ओरिजनल होते हैं। उनकी नकल कोई नहीं कर सकता। ऋतिक रोशन भी नहीं। यह बात सुपर 30 में साबित हो गई। ऋतिक ने भले ही श को स, छह को छौ और नर्वस होने को नरभस होना उच्चारित किया हो, वे आनंद कुमार कही से नहीं लगे, वे ऋतिक रोशन ही लगते रहे। बाॅयोपिक के दौर में आनंद कुमार की इस बॉयोपिक में बहुत सारे झोल हैं, लेकिन फिल्म तो फिल्म ही है। निर्देशक विकास बहल ने क्वीन फिल्म में अपने निर्देशन का जादू दिखाया था। इसमें वैसा जादू नहीं बना पाए, जो कुछ जादू है, वह आनंद कुमार का ही है और बिहार के लोग जानते हैं कि आनंद कुमार के बारे में वे कौन से तथ्य हैं, जो फिल्म में नहीं दिखाए गए। इस फिल्म में बताया गया है कि कोचिंग कोई शिक्षा दान नहीं और न ही कोई कारोबार है। यह एक संगठित माफिया है। पर्सनल ट्यूशन तो पहले भी पढ़ाई जाती थी और शिक्षकों को उसकी फीस भी मिलती थी, लेकिन अब जो कोचिंग क्लासेस का कारोबार है, उसमें षड्यंत्र, खून-खराबा, कालाधन और राजनीति सभी कुछ है। कोचिंग माफिया जिस तरह पेपर सेट करवाते है, टेस्ट पेपर की मार्किंग में पक्षपात की साजिशें रचते है और प्रतिस्पर्धी संस्थानों को बदनाम करते हैं, उसकी मामूली झलक इस फिल्म में है।
इस पर खुश न हों कि पाकिस्तान बर्बादी के कग़ार पर है। इमरान खान की चारों तरफ थू-थू हो रही है। पाकिस्तानी रुपया निम्नतम स्तर पर, निर्यात नीचे, विकास दर बेहद मामूली स्तर पर! महंगाई चरम पर, जनता में त्राहि-त्राहि ! लेकिन हमें इस पर खुश होने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह भारत के हित में नहीं है।
जो लोग केवल मनोरंजन के लिए फिल्में देखते है, वे आर्टिकल 15 न देखें। इसमें आम मसाला फिल्मों जैसा कोई मसाला नहीं है। न फूहड़ता, न किसिंग सीन, न फाइटिंग, न नाच-गाने, लेकिन फिर भी यह फिल्म देखने लायक है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है कि इस देश में धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी एक के भी आधार पर किसी भी व्यक्ति से कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। इसके बावजूद देश में भेदभाव जारी है। यही बात फिल्म कहती है।
कांग्रेस में इस्तीफों का मानसून है, मान-मनोव्वल की झड़ियां लग रही हैं, पार्टी के संविधान के अनुसार कार्यसमिति किसी को स्थायी अध्यक्ष नियुक्त नहीं कर सकती। ख़ुशामद चल रही कि कोई गैर-गांधी अध्यक्ष नहीं चल पाएगा। यह सब उस पार्टी में हो रहा है, जिसका गौरवशाली अतीत रहा है।
इस शुक्रवार कुछ नया नहीं घटा। न निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट में, न बॉक्स ऑफिस में। बजट 90 के दशक का है और फ़िल्म भी। संजय लीला भंसाली की भानजी और जावेद जाफरी के बेटे को लेकर गुलशन कुमार के भाई किशन कुमार ने 15 साल पुरानी तमिल फिल्म '7जी रेनबो कॉलोनी' का जो रीमेक बनाया है उसे देखना न देखना बराबर है।
गत पांच अप्रैल को भाजपा के स्थापना दिवस के ठीक पहले ही भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने अपने ब्लॉग में लिखा था - ''भाजपा ने शुरू से ही राजनीतिक विरोधियों को दुश्मन नहीं माना। जो हमसे राजनीतिक तौर पर सहमत नहीं हैं, इन्हें देश विरोधी नहीं कहा।'' इसका आशय मीडिया के एक हिस्से ने इस तरह लगाया कि आडवाणी को देश में आपातकाल जैसे हालात लग रहे हैं। इस ब्लॉग पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल ट्वीट किया था -"आडवाणी जी ने भाजपा की मूल भावना को व्यक्त किया है। विशेष रूप से, 'देश पहले, उसके बाद पार्टी और अंत में मैं ' के मंत्र को महत्वपूर्ण तरीके से रखा गया है। भाजपा कार्यकर्ता होने पर मुझे गर्व है और गर्व है कि आडवाणी जी जैसे महान लोगों ने इसे मजबूत किया है.''
स्वतंत्र भारत के लोकतांत्रिक इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है आपातकाल। 25 और 26 जून 1975 की रात को वह लागू किया गया था। करीब 21 महीने बाद 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त घोषित किया गया। आपातकाल के दौरान चुनाव स्थगित हो गए थे और सभी नागरिक अधिकारों को स्थगित कर दिया गया था। प्रेस की आजादी पर सेंसरशिप लग गई। सोशल मीडिया तो उस वक्त था नहीं, न ही इंटरनेट के माध्यम से सूचनाओं का आदान-प्रदान हो सकता था। आपातकाल के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने मनमाने काम किए थे।
गुजरात के जामनगर की अदालत ने बर्खास्त आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और उनके सहयोगी को हिरासत में मौत के एक पुराने मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। मामला 1990 का है, तब संजीव भट्ट जामनगर के एएसपी थे। जामनगर में भारत बंद के दौरान व्यापक हिंसा हुई थी और पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ्तार किया था। शिकायत के अनुसार इन लोगों के साथ हिरासत में मारपीट की गई, जिसमें 25 लोग घायल हुए थे और उनमें से 8 लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इसी दौरान एक आरोपी प्रभुदास माधवजी वैश्वानी की मृत्यु हो गई थी। संजीव भट्ट और उनके साथियों पर पुलिस हिरासत में मारपीट का मामला चला। मुकदमा भी दर्ज किया गया, लेकिन गुजरात सरकार ने इस मामले में भट्ट के खिलाफ ट्रायल की अनुमति नहीं दी थी।
ऐपल कंपनी के प्रॉडक्ट दुनियाभर में प्रतिष्ठित है। यह दुनिया की 4 बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों में शुमार है। 1976-77 में इसका नाम ऐपल कम्प्यूटर कंपनी था। अब यह ऐपल कम्प्यूटर इंक हो गई है। नास्दाॅक की 100 प्रमुख कंपनियों में शुमार है ऐपल। 2018 में इस कंपनी का कारोबार 265 अरब डॉलर (करीब 18 लाख 55 हजार करोड़ रुपये) था और इसका मार्केट कैप 107 अरब डॉलर (करीब साढ़े सात लाख करोड़ रुपये) से अधिक है। ऐपल दुनिया का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण ब्रांड भी है। उसके प्रॉडक्ट बाजार में आते ही बिक जाते है। कई बार तो आईफोन खरीदने के लिए लोग लंबी-लंबी कतारें लगाए हुए देखे जा सकते हैं। हाल ही में यह बात सामने आई कि अगर लोगों ने ऐपल के प्रॉडक्ट खरीदने के बजाय कंपनी के शेयर खरीदे होते, तो उनकी आर्थिक स्थिति कितनी मजबूत होती।
आमतौर पर लोग अपने बच्चों के फोटो सोशल मीडिया पर जमकर शेयर करते है। अपने बच्चों के हर गतिविधि वे दुनिया को बताना चाहते है, कई लोग तो ऐसे है, जो अपने बच्चों के जन्मदिन हर महीने मनाते है और लिखते है कि आज मेरा बेटा या बेटी इतने महीने के हो गए। बच्चों की पसंद-नापसंद, उनके कपड़े आदि के बारे में अभिभावक सोशल मीडिया पर शेयर करते रहते हैं। भारत में तो नवजात शिशुओं के फोटो भी शेयर करने की परंपरा बन गई है। मैं पिता बन गया या चाचा बन गया जैसे शीर्षक के साथ नवजात शिशु की तस्वीरें फेसबुक पर देखने को मिल जाती है।
क्या नरेन्द्र मोदी के खास लोगों की मंडली में से बाबा रामदेव का नाम कट गया है? पिछले लोकसभा चुनाव में बाबा रामदेव कहीं नजर नहीं आए। उसके पहले में घोषणा कर चुके थे कि वे चुनाव में सक्रिय नहीं रहेंगे। अब 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस है और उस मौके पर भी जितनी सक्रियता बाबा रामदेव की तरफ से दिखनी चाहिए थी, वह नज़र नहीं आ रही। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर रोज़ सुबह अपने पर्सनल ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो शेयर कर रहे हैं। यह वीडियो योग के बारे में होता है।
लोकसभा चुनाव में भाजपा की शानदार सफलता पर संडे गार्डियन में एक विशेष रिपोर्ट छपी है। रिपोर्ट के अनुसार चुनाव में भारी सफलता के पीछे जो मुख्य कारण है, वह है मतदाता का मन समझने में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की कुशलता। अखबार के अनुसार दोनों नेता मतदाता के मन में क्या है, यह बात समझने में पूरी तरह सफल रहे और उन्होंने उसी के हिसाब से चुनाव अभियान चलाया। नतीजे में लोगों ने उन्हें भारी सफलता प्रदान की। नरेन्द्र मोदी की हाल ही में 8 जून को हुई सभा में उन्होंने इसका जिक्र भी किया है।
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में 2009 से 2013 तक कार्य करने वाली सामंथा विनोगार्ड का मानना है कि दुनिया में नया ध्रुवीकरण हो रहा है। इस ध्रुवीकरण के कारण अमेरिका के खिलाफ तमाम देश लामबंद हो रहे है। जो देश अमेरिका के करीबी थे, वे भी दूर छिटक रहे हैं और जो दूर थे, वे और भी ज्यादा दूर जा रहे हैं। इन सबके चलते भविष्य में अमेरिका अलग-थलग पड़ सकता है। इसका एक मुख्य कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का व्यवहार बताया जाता है। यह अमेरिका के हित में नहीं है और न ही अमेरिका के सहयोगी मूल के हित में।
पिछले हफ्ते अमेरिका के वाशिंगटन पोस्ट ने नरेन्द्र मोदी के बारे में एक बेहद आपत्तिजनक लेख प्रकाशित किया था, जिसमें मोदी की तुलना किसी तानाशाह से की गई थी, लेकिन देखते ही देखते अमेरिकी मीडिया के स्वर बदले हुए नजर आ रहे हैं। अब अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपने ओपिनियन पृष्ठ पर स्टीवन रेटनर का एक लेख छापा है, जिसका शीर्षक है - वाय इंडिया नीड्स मोदी। स्टीवन रेटनर ओबामा प्रशासन में ट्रेजरी सेक्रेटरी थे और उन्हें लगता है कि नरेन्द्र मोदी की जीत न केवल उनके या उनकी पार्टी के लिए, बल्कि भारत के लिए भी अच्छी है।
न्यूयॉर्क टाइम्स के कार्यकारी संपादक डीन बाक्वट ने इंटरनेशनल न्यूज मीडिया एसोसिएशन वर्ल्ड कांग्रेस में यह बात कही है कि अमेरिका में अखबारों की उम्र 5 साल बची है। दूसरे देशों में यह अवधि 10 से 15 साल तक हो सकती है, लेकिन यह तय है कि अखबार बंद होते जा रहे है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में प्रिंट मीडिया के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है। उनका इकॉनामिक मॉडल फ्लाॅप हो चुका है और वे किसी तरह जिंदा बचे हुए हैं। 5 साल बाद भी वे अखबार बचे रहेंगे, जिनके पीछे बड़े-बड़े कार्पोरेट घराने हैं। वरना स्वतंत्र मीडिया की उम्र ज्यादा बची नहीं है।
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के आधार पर यह शोध की है कि सोशल मीडिया की गतिविधियों के द्वारा किसी भी शख्स के व्यक्तित्व, सामाजिक व्यवहार और रुचियों का पता लगाया जा सकता है। इस प्रणाली में मशीन लर्निंग और भाषा को लेकर अध्ययन किए गए। सोशल मीडिया पर किए गए सैकड़ों लोगों के पोस्ट को 70 कैटेगरी में विभाजित करके इस शोध ने दिलचस्प नतीजे निकाले है।
सन 2013 से राजेश जैन भारतीय जनता पार्टी के इन्फर्मेशन टेक्नोलॉजी रणनीतिज्ञ हैं। उन्होंने ही सबसे पहले फेसबुक और वाट्सएप का उपयोग भाजपा के प्रचार में करना शुरू किया। यह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं का काम रहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर पार्टी की छवि बनाने के लिए लंबा-चौड़ा काम किया। फेसबुक इंडिया के अधिकारियों की मदद भाजपा ने ली और भाजपा के आईटी सेल के अनेक कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दी गई। भाजपा की छवि चमकाने के लिए विज्ञापन जगत के कई विशेषज्ञों की राय ली गई, जिनमें प्रहलाद कक्कड़, सजन राजगुरू और अनुपम खेर प्रमुख हैं। इन्हीं लोगों ने सलाह दी थी कि सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी की छवि ऐसी बनाई जाए, जिसे लार्जर देन लाइफ कहा जाता है। 2014 आते-आते नरेन्द्र मोदी की छवि बनकर तैयार हो गई थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के खासमखास डॉ. हिरेन जोशी ने मोदी की छवि चमकाने का कामकाज संभाल लिया। आजकल यह काम प्रधानमंत्री कार्यालय के ओएसडी कर रहे हैं। उनके साथ तकनीकी क्षेत्र के दो विशेषज्ञ भी हैं। नीरव शाह और यश राजीव गांधी। डॉ. हिरेन जोशी का फेसबुक से पुराना संपर्क रहा है। माय जीओवी इंडिया वेबसाइट के डायरेक्टर अखिलेश मिश्रा भी नरेन्द्र मोदी की छवि बनाने में लगे है। बीजेपी आईटी सेल के पूर्व प्रमुख अरविन्द गुप्ता को पिछले दिनों माय जीओवी इंडिया का प्रमुख बनाया गया है।
केरल में एक नया पर्यटन स्थल विकसित हुआ है, जो विश्व में तीर्थ स्थल की जगह ले सकता है। यह है जटायु अर्थ्स सेंटर। हिन्दी में इसे जटायु पर्वत कहना ज्यादा सही लगता है। इस स्थान पर एक विशाल पहाड़ी की चोटी पर जटायु का शिल्प बनाया गया है। यह शिल्प 200 फीट लंबा, 150 फीट चौड़ा और 70 फीट ऊंचा है। 65 एकड़ के इस जटायु पर्वत की चोटी पर चट्टानों को तराश कर जटायु के पंख बनाए गए है। उसी जटायु के जिसने सीता के अपहरण करने वाले रावण के साथ आकाश में युद्ध किया था और रावण को अपहरण करने से रोका था। बदले में रावण ने जटायु के पंख काट दिए थे, जिससे वह जमीन पर आ गिरा था।
आमतौर पर माता-पिता बच्चों को शिक्षा देते रहते है और कई बार सजा भी देते है, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में अब बच्चे अपने माता-पिता को सबक सीखा रहे है। वे सोशल मीडिया पर अपने माता-पिता के व्यवहार को लेकर तीखे कमेंट्स करते रहते हैं। इससे कई माता-पिता ने सबक भी सीखा है, लेकिन बहुतेरे हैं, जो सबक नहीं सीख पाए हैं।
लीग क्रिकेट में हो रहा है भारत-पाक संघर्ष
भारत और पाकिस्तान की सीमाओं पर ही तनाव नहीं है। तनाव क्रिकेट में ही है। पुलवामा आतंकी हमले के बाद इस तरह की मांग हो रही है कि पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेला जाएं। आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को पहले से ही प्रतिबंध किया जा चुका है। भारतीय कंपनी ने दुबई में होने वाली पाकिस्तान सुपर लीग के मैचों का प्रसारण रोक दिया था, जिसके विरोध में अब पाकिस्तान ने इंडियन प्रीमियर लीग के मैचों पर रोक लगा दी है। ये बातें ऊपर से जितनी साफ नजर आती है, उतनी साफ है नहीं। दरअसल इसके पीछे क्रिकेट में लगने वाला अपार धन है।
7 अगस्त, जन्मदिन के अवसर पर...
आजकल अखबारों का सम्पादकीय पन्ना ‘वेस्ट मटेरियल' बनता जा रहा है, जिस पन्ने पर लोग सबसे ज्यादा भरोसा करते थे और जिसे पढ़ने के लिए न केवल आतुर रहते थे, बल्कि जिसके एक-एक शब्द को पाठ्यपुस्तक की तरह पढ़ा जाता था, वह अब न्यूजपेपर नाम के प्रॉडक्ट का लगभग अवांछित हिस्सा बन गया है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का टि्वटर अकाउंट बैन कर दिया गया है। ऐसा अमेरिका के इतिहास में पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति को टि्वटर अकाउंट ही डिलीट कर दिया गया। वह भी ऐसे राष्ट्रपति का, जिसने टि्वटर को अपना ऑफिशियल प्रवक्ता बना रखा था। टि्वटर के प्रवक्ता ने यह जानकारी देते हुए बताया कि अब राष्ट्रपति ट्रम्प टि्वटर के जरिये अपने विचार लोगों तक नहीं पहुंचा पाएंगे। टि्वटर पर ट्रम्प के निजी अकाउंट के 5 करोड़ 95 लाख फॉलोअर्स और अमेरिकी राष्ट्रपति के अकाउंट के 2 करोड़ 55 लाख है। चर्चा है कि राष्ट्रपति की प्रेस प्रवक्ता इस बारे में हड़बड़ी में प्रेस कॉफ्रेंस बुला रही है।
साइंस डेली की एक रिपोर्ट के अनुसार जब भी कोई सोशल मीडिया पर अपनी व्यक्तिगत जानकारी शेयर करता हैं, तब दूसरे लोग उस पोस्ट से संबंधित व्यक्ति की निजी जानकारियां खोजने लगते है। खासकर यह कि पोस्ट लिखने वाले की व्यक्तिगत जिंदगी कैसी है, उसका रोमांटिक रिश्ता किससे है और कौन-कौन उसके दोस्त हैं। कौन-कौन से रिश्तों को उसने तवज्जों दी हैं। क्या पोस्ट लिखने वाला या लिखने वाली शादीशुदा हैं, उसका किसी से दोस्ताना हैं, उसका कहां-कहां आना-जाना है। इन सब बातों में लोगों की दिलचस्पी होती है। अगर ऐसी पोस्ट शेयर करने वाला पुरूष न होकर महिला है और युवा है, तब तो लोगों की दिलचस्पी की सीमा ही नहीं रहती। उस निजी जानकारी का एक्स-रे हर कोई करना चाहता है। लोग खोजने लगते है कि पोस्ट लिखने वाले यूजर का आत्मीय रिश्ता किस-किससे है या किस-किससे हो सकता है। अगर आप अपनी निजी जिंदगी की एक-एक बात शेयर कर रहे हो, तो संभव है आपका जीवनसाथी (बेचारा) अपने आप को अकेला महसूस करें।
भारतीय सेना के अधिकारी सोशल मीडिया पर सक्रिय नहीं होते। यह मामूली बात भी कई लोगों को पता नहीं है। पाकिस्तान से लौटने के बाद भारतीय वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान के नाम पर सोशल मीडिया में कई अकाउंट खुल गए है। टि्वटर पर तो एक अकाउंट में सरकार की तारीफ के ट्वीट भी किए गए। यह अकाउंट इस चतुराई से बनाया गया है कि एक आम आदमी गफलत में पड़ जाएं और टि्वटर पर अभिनंदन के फॉलो करने लगे। जब अभिनंदन वर्धमान की मुलाकात रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण के हुई, तब उसकी तस्वीरें कई अखबारों और वेबसाइट में नजर आई। उसी में से तस्वीर चुराकर फर्जी अकाउंट पर डाल दी गई और लिखा कि आज मैंने रक्षा मंत्री से मुलाकात की। अभिनंदन का असली अकाउंट समझकर कई लोगों ने उन्हें फॉलो करना शुरू कर दिया। दो ही दिन में उनके हजारों से ज्यादा फॉलोअर भी बन गए। इस अकाउंट में सरकार की प्रशंसा के संदेश तो थे ही, भारतीय मीडिया के खिलाफ भी कुछ पोस्ट थे, जिसे कई लोगों ने रि-ट्वीट किया।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों के लिए कुछ मोबाइल ऐप बहुत ही खतरनाक है। अगर आपके करीबी किसी बच्चे ने ये ऐप अपने मोबाइल में अपलोड कर रखे हो, तो कोशिश कीजिए कि उन्हें डिलीट कर दिया जाए। संभावित परेशानी से बचने का यह अच्छा तरीका है। पुलिस का तो यह भी कहना है कि अपने बच्चों के मोबाइल की पड़ताल करते रहे और देखते रहे कि वे कौन से ऐप डाउनलोड कर रहे है। बच्चों के मोबाइल की प्राइवेसी सेटिंग की भी जांच करते रहे और फोन तथा उसके ऐप के इस्तेमाल के बारे में उनसे चर्चा करते रहे। पुलिस का कहना है कि बच्चों के मोबाइल में ये ऐप खतरनाक हो सकते है :
सैफ अली खान और करीना कपूर खान का बेटा तैमूर अली खान अकेला नहीं है, जो सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं। सोशल मीडिया पर तैमूर के फोटो और वीडियो अक्सर वायरल होते रहते है, लेकिन इंस्टाग्राम पर एक ऐसा सुपरस्टार परिवार भी है, जिसके बच्चे से लेकर बड़े तक इंस्टाग्राम पर लोकप्रिय है। कुल मिलाकर 40 लाख से अधिक फॉलोअर्स हैं। यह है अरिजोना का स्टॉफर परिवार। केटी, उनके पति चार्ल्स और उनके बच्चे 5 बच्चे कैटलीन, चार्लेस, फिन, मिला और ऐमा। ये सातों ही सोशल मीडिया के सुपरस्टार है और ये अपनी लोकप्रियता को भुनाना भी अच्छी तरह जानते है। अकेले इंस्टाग्राम पर ही इस परिवार के 40 लाख फॉलोअर्स है और यू-ट्यूब तथा फेसबुक पर भी अच्छे खासे फॉलोअर्स है।
अल सल्वाडोर में सोशल मीडिया के स्टार की जीत राष्ट्रपति चुनाव में होना सोशल मीडिया के बढ़ते महत्व को बताता है। हाल ही हुए राष्ट्रपति चुनाव में 37 वर्ष के नायिब बुकेले को बहुमत मिला है। बुकेले इसके पहले अल सल्वाडोर की राजधानी सेन अल्वाडोर के मेयर रह चुके है। चुनाव के पहले राउंड से ही बुकेले आगे चल रहे थे।
अमेरिका के इंडियाना में 13 साल के एक किशोर को पुलिस ने गिरफ्तार किया। माध्यमिक शाला के उस विद्यार्थी ने ऐपल के सिरि ऐप में सर्च किया कि मैं एक स्कूल में गोलीबारी करने जा रहा हूं। उसके जवाब में ऐप ने उसके घर के करीब 32 किलोमीटर के इलाके के स्कूलों की सूची प्रस्तुत कर दी। साथ ही उन स्कूलों की लोकेशन भी उजागर कर दी। बच्चे ने ऐप का स्क्रीनशॉट लिया और सोशल मीडिया पर डाल दिया। इसकी भनक मिलते ही पुलिस सक्रिय हुई और उस बच्चे को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने उसकी पहचान गुप्त रखी है।
क्या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नमो ऐप खुद अफवाहें फैलाने का काम कर रहा है? ऐसे में फेक न्यूज से कैसे निपटा जा सकता है? वरिष्ठ पत्रकार समर्थ बंसल ने इस बारे में एक अध्ययन किया तो पाया कि नमो ऐप खुद ही अनेक ऐसी बातों को फैला रहा है, जिन्हें रोकने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर बना नमो ऐप 10 करोड़ से भी ज्यादा बार डाउनलोड किया जा चुका है। आरोप लगते रहे हैं कि नमो ऐप को डाउनलोड करने वालों का पूरा डाटा उनकी अनुमति के बिना जमा किया जा रहा है। उसका उपयोग डाटा संग्रहकर्ता अपने हित के लिए कर सकता है।
सोशल मीडिया पर कुछ वर्षों से ताइवान की गिगि वू छाई हुई थी। वे सोलो ट्रेवलर और सोलो हाइकर थी। अनेक पर्वत शिखरों पर उन्होंने अपने झंडे गाड़े। अकेले ही ट्रेवल करती थी और पहाड़ पर भी अकेली ही चढ़ती थी। पहाड़ की चोटी पर पहुंचकर वे अक्सर अपने बिकिनी शॉट्स लेती और फिर सोशल मीडिया पर शेयर करती थी। उनकी खूबी यह थी कि वे अनुभवी और प्रशिक्षित पर्वतारोही थी। पहाड़ पर चढ़ने के सभी उपकरण साथ लेकर चलती थी और दिलचस्प अंदाज में अपनी तस्वीरें शेयर करती थी।
अब तक सस्टेनेबल यानी दीर्घकालिक या लंबे समय तक चल सकने वाली बातों में उर्जा या पानी के वितरण की ही चर्चा होती रही है, लेकिन अब लगता है कि पत्रकारिता में भी इसका जिक्र होना जरूरी है। आज पत्रकारिता की जो हालात है, उसे देखकर यह कहा जा सकता है कि पत्रकारिता को भी सस्टेनेबल बनाइए। ऐसा न हो कि क्षरण होते-होते पत्रकारिता का भी युग समाप्त हो जाए।
सोशल मीडिया के कई प्लेटफार्म उपलब्ध है, उनमें इंस्टाग्राम भी एक प्रमुख प्लेटफार्म है। जहां यूजर अपने फोटो और वीडियो किसी एक ग्रुप में या सभी के लिए खुलेआम शेयर कर सकता है। 9 साल पहले इंस्टाग्राम एक नि:शुल्क मोबाइल ऐप के रूप में शुरू किया गया था। दुनिया की तमाम हस्तियां अपनी तस्वीरें और वीडियो यहां शेयर करते है। इसमें लोकेशन भी शेयर की जा सकती है और हैशटैग भी जोड़े जा सकते है। इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा जिस कंपनी का अकाउंट शेयर किया जा रहा है, वह इंस्टाग्राम खुद है। इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा फॉलो किए जाने वाले अकाउंट रोनाल्डो, सेलेना गोमेज, एरियाना ग्रैंड, ड्वैन जॉनसन, किम कार्देशियां, काइली जेनर आदि है। इनमें भी किसी एक पोस्ट को सबसे ज्यादा लाइक्स का रिकॉर्ड काइली जेनर के नाम है, लेकिन अब वह रिकॉर्ड टूट गया है।
15 जनवरी को अमेरिकी के ऐतिहासिक शटडाउन का 25वां दिन है। अमेरिकी इतिहास में इतना बड़ा शटडाउन कभी नहीं हुआ। यह एक तरह की ‘सरकारी हड़ताल’ ही है। दरअसल अमेरिका में एक एंटी डेफिशिएंसी कानून है। इसके अंतर्गत जब सरकार के पास बजट कम होता है, तब वह सरकारी कर्मचारियों को काम करने से रोक देती है। ऐसी हालात तब आती है, जब संसद में फंडिंग के किसी मामले पर आपसी सहमति न पाए। ऐसे शटडाउन में सरकार कर्मचारियों को दो भागों में बांट देती है। आवश्यक और कम आवश्यक। आवश्यक कर्मचारियों को काम पर तो आना पड़ता है, लेकिन उन्हें वेतन नहीं मिलता। दूसरी श्रेणी के कर्मचारियों को वेतन भी नहीं मिलता और काम पर भी नहीं आना पड़ता।
विकिलिक्स के जुलियन असांजे के पक्ष में कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए धन इकट्ठा करने का अभियान शुरू किया गया है। इसके लिए 5 लाख डाॅलर एकत्र करने का लक्ष्य है। इसमें अभी तक 801 डॉलर ही जमा हो पाए है। ब्रिटेन में जुलियन असांजे की गिरफ्तारी और फिर अमेरिका प्रत्यर्पण करने की तैयारी की जा रही है, उसी के खिलाफ यह अभियान चलाया गया है। अभियान का नाम है गो फंड मी। इसके लिए जुलियन असांजे की तरफ से अपील भी जारी हुई है। अमेरिका में असांजे को आजीवन कारावास भुगतनी पड़ सकती है। अभी जुलियन असांजे एक्वाडोर में निर्वासित जीवन जी रहे हैं और अमेरिका उस पर दबाव डाल रहा है कि असांजे को अमेरिका के हवाले कर दें। 2012 में असांजे को अमेरिकी न्यायालय में पेश होना था, लेकिन असांजे तभी से लापता हैं।
सोशल मीडिया के फायदे और नुकसान की बातें, तो अकसर होती ही रहती है। यह भी कहा जाता है कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित बना देता है। कुछ लोग सुबह उठते ही पहला काम सोशल मीडिया पर अपनी हाजिरी दर्ज़ कराने में लगाते है। आधी रात को उनकी नींद खुल जाए, तब भी और यहां तक कि गुसलखाने में भी वे सोशल मीडिया का उपयोग नहीं छोड़ते। कुछ लोगों के लिए ई-मेल देखते रहना जरूरत हो सकती है, लेकिन अधिकांश लोग केवल यहीं दिखाने के लिए सोशल मीडिया पर बने रहते हैं कि वे भी मैदान में हैं और सक्रिय हैं। ऐसे कई लोग हैं, जिनके पास अपने परिवार के लोगों से मिलने और बात करने का समय नहीं है, लेकिन वे सोशल मीडिया पर हर पल हाजिरी देने के लिए समय निकाल ही लेते हैं।
भारत में हम लोग कहते हैं कि हम, भारत के नागरिक। लेकिन चीन में लोग कहते हैं कि हम वर्कर हैं। हाल ही में चीन के एक कुंठित नागरिक ने इस तरह का बयान एक अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी को दिया। सब जानते हैं कि चीन में कर्मचारियों की दशा बहुत ही खराब है। 12-12 घंटे का काम और बिना साप्ताहिक अवकाश के लगातार काम में जुते रहना। कर्मचारियों का वेतन इतना कम है कि ओवरटाइम के लालच में वे कभी छुट्टी नहीं लेते। कुछ औद्योगिक क्षेत्रों को छोड़ दें, तो चीन के बाकी औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी दूसरा व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता। वहां जाने के लिए चीन के लोगों को भी परमिट लेना पड़ता है।
नेटफ्लिक्स के आने से फिल्मों के प्रदर्शन का एक नया दौर शुरू हुआ है। लोग घर बैठे फिल्में देख रहे हैं और काफी कम कीमत पर। पूरी दुनिया में नेटफ्लिक्स के 15 करोड़ ग्राहक भी बन चुके हैं। इतनी बड़ी ग्राहक संख्या कारोबार की दुनिय में मायने रखती है। कुछ साल पहले जब लोग कहते थे कि एकल सिनेमा घर के दिन खत्म हो गए, अब मल्टीप्लेक्स आ गए हैं, वह बात सही निकली। अब कहा जा रहा है कि मल्टीप्लेक्स की दिन भी खत्म हुए, अब डायरेक्ट स्ट्रीमिंग का युग आ गया है। मल्टीप्लेक्स की कीमतों और वहां के महंगे पॉपकार्न से सिने दर्शकों का मोह भंग हो चला है, उन्हें लगता है कि मल्टीप्लेक्स में उन्हें ठगा जा रहा है। मल्टीप्लेक्स की एक ओर दिक्कत है कि पॉपकार्न बेचने वाले दर्शकों की सीट पर जाकर बार-बार उन्हें टोचते है कि कुछ लेंगे क्या? इसके अलावा भी तरह-तरह के ऑफर्स के जरिए दर्शकों को फांसा जाता है।
पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही पोस्ट में दावा किया गया था कि देश के 68 पत्रकारों, लेखकों और पूर्व नौकरशाहों को मोदी सरकार के खिलाफ लिखने के लिए दो से पांच लाख रुपए प्रतिमाह दिया जा रहा है। यह भी दावा किया जा रहा था कि यह भुगतान कैम्ब्रिज एनेलिटिका कंपनी के माध्यम से हो रहा था। एक प्रमुख वेबसाइट के अनुसार इन सभी 68 लोगों को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा भाजपा को बदनाम करने के लिए ठेका दिया गया था और वे अपने काम को अंजाम दे रहे थे। वेबसाइट के अनुसार ये लोग इसीलिए मोदी और भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।
2018 मीडियाकर्मियों के लिए अच्छा नहीं रहा। खासकर रिपोटर्स के लिए। 2018 में जितनी संख्या में पत्रकारों की हत्या हुई, उतने पत्रकार तो युद्ध की रिपोर्टिंग करते हुए भी नहीं मारे गए। गत 3 साल से मीडिया पर हो रहे हमलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इस तरह के हिंसक हमलों के साथ ही मीडिया पर लगने वाले आक्षेपों का स्तर भी लगातार गिरता जा रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के अनुसार प्राप्त सूचनाओं को सही माने, तो इस वर्ष 80 से अधिक पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। इसके अलावा 60 से अधिक पत्रकार बंधक बनाए जा चुके है और करीब 350 पत्रकारों को विभिन्न देशों में हिरासत में रखा गया है। इसके अलावा पत्रकारों के विरुद्ध घृणा फैलाई जा रही है, उनका अपमान भी किया जा रहा है और उन पर तरह-तरह के दबाव डाले जा रहे है। भारत में भी पत्रकारों की हत्या के मामले सामने आए है।
केन्द्र सरकार चाहती है कि प्रिंट और टेलीविजन की तरह सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर भी गैरकानूनी बातें लिखने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सकें। सरकार ने इसके लिए पहल शुरू की है। गैरकानूनी कंटेंट के बारे में सरकार ने मसौदा तैयार किया है कि क्या-क्या कानून बनाए जा सकते है। इसी के साथ सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से कहा गया है कि वे इस बारे में सरकार की मदद करें कि गैरकानूनी कंटेंट की शुरुआत कहा से हो रही है और उसे पहचानने के तरीके क्या-क्या हो सकते है। सरकार यह भी चाहती है कि सोशल मीडिया के प्लेटफार्म सरकार की इच्छा के अनुसार मदद करने के लिए आगे आए और ड्रॉफ्ट के मसौदे पर अपनी राय दें। इसके लिए सरकार ने 15 जनवरी 2019 तक सलाह मांगी है।
एक दौर था जब शहरों और कस्बों में अलग-अलग तरीके के मार्केट हुआ करते थे। कपड़े, किताबें, खिलौने, जूते आदि के बाजार अलग-अलग लगते थे। फिर उसकी जगह माॅल्स ने ले ली। ये मॉल्स साल में एक बार लगने वाले मेलों की तरह हो गए, जो 365 दिन खुले रहते है। यहां मनोरंजन के अलावा खानपान और खरीदारी के लिए भी बहुत कुछ है। अब लोगों को साल में एक बार लगने वाले मेले का इंतजार नहीं करना पड़ता। मॉल में गए और सारी खरीदारी कर ली। सब्जी खरीदने से लेकर व्हॉइट गुड्स तक, सिनेमा देखने से लेकर ब्यूटी पार्लर में जाने तक सब चीजें एक ही जगह उपलब्ध हैं।
आनंद मंत्रालय (4)
हम दोनों पति-पत्नी इंदौर से मुंबई ट्रेन से जा रहे थे। सेकंड एसी के डिब्बे में हमारे सामने दो महिलाएं बैठी हुई थी। एक स्टेशन पर चाय बेचने वाला आया। मैंने दो चाय ऑर्डर की और सामने बैठी महिला से पूछा कि क्या आप चाय लेंगी? उसने न तो मेरी बात सुनी, न मेरी ओर देखा, न कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। मुझे बड़ा अटपटा लगा, थोड़ी बेइज्जती भी लगी, थोड़ी देर बाद उस महिला के साथ बैठी सहयात्री ने कहा - ये लो चाय। उस महिला ने खट से हाथ बढ़ाया और चाय ले ली। मैं बुदबुदाया कि क्या मैं चाय में जहर मिलाने वाला था? बहरहाल मैंने अनदेखा करना बेहतर समझा। करीब दो घंटे बाद अगले स्टेशन पर काफी सारे नए यात्री आने लगे। हमारी बर्थ आरक्षित थी, लेकिन डिब्बे का शुरुआती हिस्सा होने से लोग हमारी तरफ से गुजर रहे थे। ट्रेन में एक वृद्धा चढ़ी, उसने टिकिट निकाला और महिला की ओर बढ़ाकर पूछा - 39 नंबर बर्थ कहां होगी? महिला ने कोई जवाब नहीं दिया। वैसी ही अनजान बनी रही। कुछ घंटे बाद नागदा स्टेशन आया। तब उस महिला की सहयात्री ने कहा जयश्री नागदा आ गया है, खाना खा लें। उस महिला ने खट से टिफिन निकाला और टिफिन खोलने लगी।
प्यू रिसर्च सेंटर ने हाल ही में अमेरिका में एक रिसर्च किया, तो पाया कि अमेरिका की दो तिहाई से भी अधिक वयस्क आबादी के लिए सोशल मीडिया समाचारों का पहला स्रोत बन गया है। दुनिया में कोई खबर हो, लोग सोशल मीडिया पर उसे शेयर कर लेते है और यही सोशल मीडिया के लिए महत्वपूर्ण बात है। रिसर्च के मुताबिक 68 प्रतिशत लोग सबसे पहले सोशल मीडिया से कोई भी समाचार प्राप्त करते है, इसमें वे लोग भी है, जो टेलीविजन भी देखते है और अखबार भी पढ़ते है, लेकिन उन तक सबसे पहले समाचार पहुंचाने का काम सोशल मीडिया करता है।
आनंद मंत्रालय (3)
कई ऐसे लोग आपको वक्त आने पर पहचानते नहीं, जिनके जीवन में आपने कभी बहुत सकारात्मक भूमिका निभाई होगी और कई ऐसे लोग भी मिलते है, जिनसे आप दो मिनट भी नहीं मिलते, लेकिन वे आपको पहचानते है।
कोला कोला कंपनी ने अपने एक नए एनर्जी ड्रिंक विटामिनवॉटर को प्रचारित करने का अनूठा तरीका खोजा है। इसके लिए कोका कोला ने एक प्रतियोगिता रखी है कि जो भी व्यक्ति पूरे एक साल तक स्मार्टफोन उपयोग में नहीं लाएगा, वह एक लाख डॉलर का इनाम जीत सकता है। प्रतियोगिता सभी के लिए खुली है और इसमें भाग लेने की अंतिम तिथि 8 जनवरी 2019 है। कितने लोग इसमें भाग लेते है, यह तो देखने वाली बात होगी, लेकिन विश्व की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक कोला कोला ने अपने एनर्जी ड्रिंक को युवकों में प्रचारित करने के लिए यह एक अनूठी प्रतियोगिता रखी है।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली शिकस्त के बाद सोशल मीडिया पर संबित पात्रा को सबसे अधिक ट्रोल किया जा रहा है। संबित पात्रा को पहले भोपाल में चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए एमपी नगर इलाके में प्रेस कांफ्रेंस करने पर ट्रोल किया गया था। विधानसभा चुनाव के दौरान संबित पात्रा टीवी चैनलों पर डिबेट में कांग्रेस के नेताओं पर तीखे प्रहार करते रहे। यहां तक कि उन्होंने नेहरू-गांधी परिवार को ठग्स ऑफ हिन्दुस्तान भी करार दे दिया था। राहुल गांधी बार-बार उनके निशाने पर आते रहे।
प्रधानमंत्री मोदी का विधवा वाला बयान लोगों को पसंद नहीं आ रहा है। पिछले सप्ताह एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बयान दिया था कि कांग्रेस की कौन-सी विधवा के खाते में पैसा जाता था? हमारी सरकार ने तो सैकड़ों जनहित कार्य योजनाएं बनाई। कांग्रेस ने सिवाए स्कैम के क्या किया? मोदी का निशाना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की विधवा सोनिया गांधी पर था। इस पर सोशल मीडिया में बहुत तीखी प्रतिक्रियाएं हुई। पिछले सप्ताह ही सोनिया गांधी का जन्मदिन था और लोगों ने लिखा कि एक नेता के बारे में इस तरह के बयान देना प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। युवा कांग्रेस के अध्यक्ष केशवचन्द यादन ने तो साफ-साफ लिखा कि प्रधानमंत्री चर्चा और विचार के बहुत निचले स्तर पर पहुंच गए है। उनसे ऐसी आशा नहीं की जाती थी। दिलचस्प बात यह है कि इसके बाद 9 दिसंबर को नरेन्द्र मोदी ने सोनिया गांधी के जन्मदिन पर शुभकामनाएं दी और उनके सुदीर्घ जीवन और बेहतर स्वास्थ्य की कामना भी की।
हिंसक वीडियो के खिलाफ अभियान चलाते हुए यू-ट्यूब की अभिभावक कंपनी गूगल ने लंदन के महापौर को 6 लाख पाउंड का अनुदान दिया है। गूगल ने कहा है कि इस पैसे से सोशल मीडिया पर हिंसात्मक वीडियो के प्रचार को रोकने का कार्य किया जाएगा। यह धनराशि यू-ट्यूब पर हिंसा के महिमामंडन को खोजने और रोकने पर खर्च की जाएगी।
बात पुरानी है। सिंहस्थ के प्रभारी मंत्री ने कहा कि उज्जैन में व्यवस्था का जायजा लेने साथ-साथ चलेंगे। मुझे लगा कि अच्छा मौका है, सो चला गया। सोचा हींग-फिटकरी नहीं लग रही है, चलो ! अस्थायी सिंहस्थ नगरी देख लेंगे !
सबसे पहले हम एक आश्रम में गए। महामण्डलेश्वर अभी पधारे नहीं थे, लेकिन उनके स्टॉफ के लोग मौजूद थे। दो हाथी बंधे थे, जिन्हें संभालने के लिए वन विभाग के कर्मचारी तैनात थे। घोड़े भी थे। सेवक ने महामण्डलेश्वर के लिए बनी एसी ‘कुटिया’ बनाई गई थी, चमाचम। जिसमें आधुनिक शौचालय था, बाथटब भी लगा था। कार्पेट बिछा था। मंत्रीजी से महामण्डलेश्वर के ‘पीए’ ने शिकायत की - आश्रम के लिए जो प्लॉट मिला है, वह मुख्य सड़क से दो सौ मीटर अंदर है। यह ठीक नहीं। यह अपमान है।
विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न दलों के प्रवक्ता और शीर्ष नेताओं की भाषा स्तरीय नहीं कही जा सकती। इस बार लोगों ने जिस तरह की भाषा सुनी, उस तरह की भाषा राष्ट्र नायकों के मुंह से शोभा नहीं देती। आम सभाओं और टीवी की डिबेट के दौरान इस तरह की भाषा आम हो चली थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कभी खुद को देश का चौकीदार कहा था, तो उन्हें इशारा करके कहा गया कि चौकीदार चोर है। स्पष्ट है कि यह बहुत आक्रामक भाषा है। दूसरे तरफ प्रवक्ता कहते है कि क्रिश्चियन मिशेल क्या राहुल गांधी के मामा है? यह क्या भाषा हुई? कोई कहे कि मेहुल मोदी और नीरव मोदी चौकीदार के भाई है, तो। प्रधानमंत्री अम्बानी से गले मिले और यह चित्र अखबारों में छपा, अब कोई कहे कि यह मौसेरे भाइयों का मिलन है, कितनी घटिया भाषा। क्रिश्चियन मिशेल के वकील को देशद्रोही कहने वाले कभी सोचेंगे कि भोपाल गैस कांड के आरोपी वारेन एंडरसन का वकील कौन था? और इंदिरा गांधी के हत्यारों के वकील कौन थे? इसके अलावा सुन मोदी, विधवा, लोहा चोरी, गहना चोरी, नाजायज रिश्ते, बीवी छोड़कर भागना आदि किस तरह की भाषा और किस तरह के मुहावरे है। आजादी के बाद के चुनावों में तो वक्ता अपने विरोधी नेता को भी जी लगाकर संबोधित करते थे। अब न तो कोई जी लगाता है और न ही श्री। सीधे-सीधे वन लाइनर पर आ जाते है। मानो किसी फिल्म के लिए डॉयलाग लिख रहे हो। इसके अलावा जाहिलों, डकैतों, झूठन खाने वालों, मक्खी के बराबर, सभ्यता के दायरे में रहना सीखो, बलात्कार के आरोपी, कान से पीप बहेगा, नेहरू जी की चप्पल सुंघकर ही होश आता था, एजेंट, दलाल, डबल बाप वाले जैसे शब्दों का इस्तेमाल तो गली-मोहल्ले के गुंडे भी नहीं करते, लेकिन इस तरह की शब्दावली अब राष्ट्रीय पार्टियों के नेता टेलीविजन पर करते है और इतने जोश में करते है, मानो वह कोई शास्त्रार्थ कर रहे हो।
कांग्रेस के नेताओं द्वारा पिछले कुछ समय से चौकीदार पर आरोप लगाने और राफेल सौदे को लेकर सवाल खड़े करने के जवाब में सरकार जो कार्रवाई कर रही है, उससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती है। इटली की कंपनी फिनमैकेनिका की ब्रिटिश सहयोगी कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीद मामले की जांच आगे बढ़ रही है। इस मामले में आरोपित ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन मिशेल को प्रत्यर्पित कर भारत ले आया गया और कोर्ट में पेश किया जा चुका है। मिशेल की तलाश 3600 करोड़ रुपए के हेलीकॉप्टर सौदे के मामले की जांच कर रही एजेंसियों को थी। यह प्रत्यर्पण की यह प्रक्रिया इंटरपोल और सीआईडी के सहयोग से हुई। इसके लिए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने यूएई के विदेश मंत्री से कई बार बातचीत की थी।
पूरी दुनिया में पत्रकारों पर हमले और हत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। हाल ही में माल्टा में एक पत्रकार की कार में बम छुपाकर रखा गया और विस्फोट के जरिये पत्रकार की हत्या कर दी गई। एक्वाडोर में संगठित अपराधियों ने दो पत्रकारों का अपहरण किया और उनकी हत्या कर दी। भारत में भी रेत माफिया द्वारा पत्रकार संदीप शर्मा की हत्या की खबर सुर्खियों में आ चुकी है। इस वर्ष अब तक 31 पत्रकारों की हत्या दुनियाभर में हो चुकी है। कई पत्रकार लापता है और कुछ के बारे में पता भी नहीं चल पाया है। पत्रकारों की संस्था रिपोटर्स विदाउट बार्डर्स ने हाल ही में जारी रिपोर्ट में यह बात कही है।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी ब्रांडिंग को लेकर तरह-तरह के जतन करती रहती है, लेकिन कभी-कभी ये जतन महंगे पड़ जाते है, जब सोशल मीडिया पर ऐसे ब्रांड का मजाक उड़ाया जाता है। ऐसी ही गलती पिछले दिनों सैमसंग के सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव ने की, जब उसने गैलेक्सी नोट 9 के प्रचार का ट्वीट अपने निजी आई-फोन से कर दिया और यह बात उजागर हुई।
आनंद मंत्रालय (1)
प्रसिद्ध गणेश मंदिर के बरामदे में बैठकर बड़ा सुकून मिलता है। उस दिन पता नहीं क्या सूझा कि सुबह-सुबह मंदिर चला गया। दर्शन के बाद बरामदे की सीढ़ियों पर टिककर बैठ गया और आने-जाने वाले लोगों का मुआयना करने लगा। एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अपनी पत्नी के साथ आए थे और बात कर रहे थे। गणेशजी की कृपा हुई, तो मनचाही पोस्टिंग मिल ही जाएगी। यहां न तो कमाई हो रही है और न ही शांति है। हे गणेशजी, मेरी प्रार्थना सुनना। चेहरे पर उदासी का भाव था।
एड गुरू एलिक पदमसी से मेरा आमना सामना तो कई बार हुआ, लेकिन लंबी और यादगार मुलाकात कभी नहीं हुई । वे तीन बातों के कारण जाने जाते हैं : वे भारत में आधुनिक एडवरटाइजिंग के पितामह थे, जिन्होंने सअउ से अधिक ब्रांड तैयार किए। दूसरी बात वे अंग्रेजी थिएटर की एक बड़ी हस्ती थे, जिन्होंने 100 से अधिक नाटक तैयार किए। तीसरा उन्होंने सोशल सर्विस का बहुत काम किया, खासकर मुंबई पुलिस फोर्स के साथ महिलाओं की छेड़छाड़ के विरुद्ध। उन्होंने लगातार अभियान चलाए। इसके बावज़ूद उन्हें हमेशा याद किया जाता है सर रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी में उनके जिन्ना के किरदार के लिए।
पूरी दुनिया में श्वेत लोगों की तुलना में अश्वेतों को कमतर आंका जाता है। अश्वेत लोग भी अपने आप को श्वेत दिखाने की कोशिश करते है और इसके लिए तरह-तरह के जतन भी करते है। महंगे मेकअप किट से लेकर सर्जरी तक कराने से नहीं चूकते, लेकिन स्वीडन की मॉडल एेमा हालबर्ग ने जिस तरह के मेकअप के बाद फोटो खिंचवाई और उसे इंस्टाग्राम पर शेयर किया, उससे यह बात साबित होती है कि दुनिया बदल रही है। अब अश्वेतों को हीन नहीं समझा जाता।
आज सुबह इंदौर रेडिसन ब्लू होटल में राहुल गांधी से मिलकर लगा कि वे कुटिल भले ही नहीं हो, लेकिन परिपक्व तो हो ही गए हैं। आक्रामक! बेबाक और बेलौस स्वीकारोक्तियां!! जुबान से डंक मारने की कला सीखने के विद्यार्थी लेकिन संवेदनशील !!! चुनिंदा सम्पादकों और पत्रकारों से उन्होंने खुलकर बात की। राहुल गाँधी अब तंज़ करते हैं, सफाई देते हैं, समझाते हैं और अपने बारे में कहते हैं कि मैं स्वभाव से आक्रामक नहीं हूँ, लेकिन राजनीति के इन हालात ने आक्रामक बना दिया है। वे हिन्दू होने को स्वीकारते हैं और खुद को राष्ट्रवादी कहने में शरमाते नहीं। भाजपा को उसी शैली में जवाब देना सीख गए हैं!
गूगल के लिए रूस एक दुखती रग की तरह है। 2016 के अमेरिकी चुनाव में गूगल पर कई आरोप लगे थे और वे आरोप रूस से की गई कथित गतिविधियों के लिए लगे थे। रूस में गूगल के उतना बोलबाला नहीं है, जितना कि भारत में है। अब ताजा खबर यह है कि रूस की सबसे बड़ी आईटी कंपनी यांडेक्स ने रूस में एंड्रायड वाले मोबाइल फोन पर अपनी बढ़त बना ली है। यांडेक्स न केवल रूस का लोकप्रिय सर्च इंजन है, बल्कि वह कई मोर्चों पर गूगल को टक्कर भी दे रहा है।
'बत्ती गुल मीटर चालू' फिल्म एक ऐसी कार की तरह है,जिसके हॉर्न को छोड़कर सबकुछ बजता है। कुछ अच्छे संवाद, गाने, लोकेशन और शाहिद कपूर का डांस के स्टेप्स अच्छे हैं, लेकिन टॉयलेट वाली प्रेम कहानी के नारायण सिंह की यह पूरी फिल्म सरकार के विकास के बजाते ढोल की बैंड बजा देती है। भाषण पर भाषण, भाषण पर भाषण; मोदी जी कहते कि देश के हर गाँव में बत्ती लगा दी गई है, फिल्म कुछ और कहानी कहती है। पूरे देश में बिजली उपभोक्ता किस तरह परेशान हैं, इसमें उसकी झलक है।
विश्व प्रसिद्ध आर्थिक पत्रिका फॉर्ब्स सोशल मीडिया के नए-नए ट्रेंड्स के बारे में रिसर्च करती रहती है। हाल ही में उसने अध्ययन किया कि 2019 में सोशल मीडिया के ट्रेंड्स क्या रहेंगे ? और उनका असर विज्ञापन की दुनिया पर, खासकर डिजिटल एडवरटाइजिंग पर क्या रहेगा? अध्ययन के अनुसार सोशल मीडिया विज्ञापन की दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण जरिया हो गया है। टेलीविजन के विज्ञापनों से भी ज्यादा महत्वपूर्ण ! इसके बिना कहीं भी विज्ञापन की कल्पना नहीं की जा सकती।
अमेरिका में इन दिनों हवा चल रही है कि फेसबुक ऐप को अपने मोबाइल से डिलीट कर दिया जाए। 44 प्रतिशत युवाओं ने अपने मोबाइल फोन से फेसबुक ऐप हटा दिया है। वे फेसबुक पर जुड़े तो है, लेकिन अपने कम्प्यूटर के जरिये, उन्हें लगता है कि फेसबुक ऐप मोबाइल के जरिये जासूसी कर रहा है। कैम्ब्रिज एनेलिटिका कांड के बाद अमेरिकी युवाओं में फेसबुक के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। इसी के साथ 18 से 49 साल की उम्र के अधिकांश अमेरिकी फेसबुक यूजर्स ने अपने मोबाइल की प्राइवेट सेटिंग में जाकर अपनी निजता को बचाने की कोशिश की है। यह आंकड़ा एक वर्ष का है।
सोशल मीडिया के कुछ नए प्रभावशाली प्लेटफार्म भी उभर रहे है। अगर आप फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप आदि से ऊब गए हो, तो इन नए प्लेटफार्म का उपयोग कर सकते है। सोशल मीडिया पर आए दिन महत्वपूर्ण गतिविधियां होती रहती है और नए-नए खिलाड़ी मैदान में आते रहते है।